गल/gal

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गल  : पुं० [सं०√गल् (खाना)+अप्] १. गला। कंठ। गरदन। २. एक प्रकार का पुराना बाजा। ३. गड़ाकू मछली। ४. दाल। पुं० हिं० ‘गला’ का संक्षिप्त रूप जो उसे यौगिक शब्दों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे–गलफाँसी, गलबहियाँ आदि।
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गल-कंबल  : पुं० [सं० स० त०] गाय के गले के नीचे का वह भाग जो लटकता रहता है। झालर। लहर।
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गल-गंड  : पुं० [स० त०] एक प्रकार का रोग जिसमें गले की अवटुका नामक ग्रन्थियों में सूजन होती है और जो बड़ी गाँठ के रूप में बाहर निकल आती है। घेघा। (गायटर)
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गल-ग्रह  : पुं० [ष० त०] १. गले में पड़ा हुआ कष्टदायक बंधन। २. इस रूप में होनेवाली विपत्ति या संकट। ३. आई हुई वह आपत्ति जो कठिनता से टले। ४. मछली फँसाने का काँटा। ५. गले में गफ अटकने या रुकने के कारण होनेवाला एक रोग। ६. ज्योतिष के अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी, अमावस्या और प्रतिपदा।
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गल-तकिया  : पुं० [हिं० गाल+तकिया] गाल के नीचे रखा जानेवाला एक प्रकार का गोल छोटा तकिया।
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गल-शुंडी  : स्त्री० [स० त०] जीभ की जड़ के पास छोटी घंटी। कौआ। जीभी।
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गल-शोथ  : पुं० [ष० त० ] कुछ रोगों (जैसे–जुकाम, तुंदिका शोथ आदि) के कारण गले के भीतरी भाग में होनेवाली सूजन और पीड़ा। (सोर थ्रोट)।
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गल-स्तन  : पुं० [स० त०] [वि० गलस्तनी] कुछ बकरियों के गले में लटकनेवाला मांस पिंड। गलथना।
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गल-स्वर  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का प्राचीन बाजा जो मुँह से फूँककर बजाया जाता था।
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गल-हँड  : पुं०=गलगंड (रोग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गलई  : स्त्री०=गलही।
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गलक  : पुं० [सं० गल+कन्] १. गला। २. गड़ाकू मछली। ३. मोती। उदाहरण–गुहे गलक कुंतल मँह कैसे।–जायसी।
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गलका  : पुं० [हिं० गलना] १. हाथ की उँगलियों के अगले सिरे पर होनेवाला जहरीला फोड़ा जिससे हाथ में टपक पड़ती है। इसकी गिनती चेचक या माता में होती है। २. एक प्रकार का चाबुक।
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गलकोड़ा-गलखोड़ा  : पुं० [हिं० गला+कोड़ा] १. कुश्ती का एक पेंच। २. मालखंभ की एक कसरत। ३. एक प्रकार का कीड़ा या चाबुक।
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गलगंजन  : पुं० [हिं० गल+गाँजना] १. शोर-गुल। २. डींग।
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गलगंजना  : स० [हिं० गलगंजन] १. जोर-जोर से चिल्लाना। शोर-गुल करना। २. डींग हाँकना।
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गलगल  : स्त्री० [देश०] १. मैना जाति की एक चिड़िया जो कुछ सुर्खी लिये काले रंग की होती है। गिरगोटी। गलगलिया। २. एक प्रकार का बड़ा खट्टा नीबू जिसका अचार पड़ता है। ३. चरबी की बत्ती का वह टुकड़ा जो चलते हुए जहाजों की सीसे की उस नली में लगा रहता है जिससे समुद्र की गहराई नापी जाती है। (लश०) ४. एक प्रकार का मसाला जो लकड़ियों को जोड़ने अथवा उनके छेद बंद करने के काम आता है।
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गलगला  : वि० [हिं० गलना या गीला] [स्त्री० गलगली] १. भीगा हुआ। आर्द्रा। तर। २. आँसुओं से भरा हुआ। (नेत्र) ३.बहुत ही कोमल या मुलायम।
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गलगलाना  : अ० [हिं० गलना] १. गीला या तर होना। भींगना। २. कठोर पदार्थ का बहुत कोमल हो जाना। ३. (हृदय का) आर्द्रा या दयालु होना। मन का कोमल भावों से युक्त होना। ४. हर्षित होना।
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गलगाजना  : अ० [हिं० गाल+गाजना] १. खुशी से गाल बजाना। २. शोर-गुल करना। ३. डींग मारना।
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गलगुच्छा  : पुं०=गलमुच्छा।
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गलगुथना  : वि० [हिं० गाल] जिसका शरीर खूब भरा हुआ और गाल फूलें हो। जैसे–गलगुथना बच्चा।
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गलघोंटू  : वि० [हिं० गला+घोंटना] गला घोंटने या दबानेवाला। पुं० १. ऐसा काम या बात जो गला घोटनेवाली हो। २. व्यर्थ का और कष्टदायक भार।
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गलचा  : स्त्री० [?] कंबोज देश और उसके आस-पास की बोली जानेवाली कुछ बोलियों का वर्ग या समूह।
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गलछट  : स्त्री०=गलफड़ा।
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गलजँदड़ा  : पुं० [सं० गल+यंत्र,पं० जंदरा] १. वह जो सदा पीछे या साथ लगा रहे। गले का हार। २. गले में लटकाई जानेवाली कपड़े की वह पट्टी जो चोट खाये हुये हाथ को सहारा देने के लिए बाँधी जाती है और जिसकी लपेट में हाथ या कलाई रहती है।
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गलजोड़  : पुं०=गलजोत।
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गलजोत  : स्त्री० [हिं० गला+जोत] १. वह रस्सी जिसके एक बैल का गला दूसरे बैल के गले से बाँधा जाता है। गलजोड़। २. गले में पड़ा हुआ किसी प्रकार का कष्टदायक बंधन। ३. दे० ‘गलजँदड़ा’।
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गलझंप  : पुं० [हिं० गला+झाँपना] हाथी के गले में बाँधी जानेवाली लोहे की जंजीर।
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गलत  : वि० [अ०] १. (मौखिक या लिखित प्रश्नोत्तर या हिसाब-किताब) जिसमें कलन या गणन संबंधी कोई भूल हो अथवा जो नियम या सिद्धान्त की दृष्टि से ठीक न हो। २. (लेख) जो अक्षरी व्याकरण आदि की दृष्टि से शुद्ध न हो। जिसमें किसी प्रकार की भूल या भूलें हों। ३. जो तथ्य के अनुरूप न हो। जो असत्य या झूठ हो। जैसे–तुम गलत कहतें हो मैंने कभी ऐसा नहीं कहा था। ४. जो उचित या विहित न हो। दूषित या बुरा। जैसे–उन्होंने गलत रास्ता अपनाया है।
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गलत-फहमी  : स्त्री० [अ०+फा०] किसी की कही हुई बात का अर्थ या आशय कुछ का कुछ समझना। कोई बात समझने में कुछ धोखा खाना।
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गलतंग  : वि० [सं० गलित+अंग] बेसुध। बेखबर। बेहोश।
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गलतनामा  : पुं०=शुद्धिपत्र।
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गलतनी  : स्त्री० [हिं० गला+तनना] बैल के गेराँव में बाँधी जानेवाली रस्सी। पगहा।
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गलतंस  : पुं० [सं० गलित+वंश] १. ऐसी संपत्ति जिसका कोई उत्तराधिकारी न रह गया हो। लावारिस। जायदाद। २. ऐसा व्यक्ति जिसकी संपत्ति का कोई उत्तराधिकारी न रह गया हो।
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गलताँ  : वि०=गलतान।
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गलता  : पुं० [फा० गलतान] १. एक प्रकार का बहुत चमकीलाम मोटा कपड़ा जिसका ताना रेशम का और बाना सूत का होता है। २. दीवार में बनी हुई कंगनी या छज्जी। कारनिस।
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गलताड़  : पुं० [सं० ष० त० ] जूए या जुआठे की वह खूँटी जो अन्दर की ओर होती है।
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गलतान  : वि० [फा०] १. लड़खाड़ाता या लुढ़कता हुआ। २. घूमता या चक्कर खाता हुआ। पुं० एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
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गलती  : स्त्री० [अ० गलत+ई फा०] १. कलन या गणना संबंधी बूल। २. नियम, रीति, व्याकरण, सिद्धान्त आदि की दृष्टि से होनेवाली कोई भूल। अशुद्धि। ३. ठीक प्रकार से कोई काम न करने, न देखने या न समझने की अवस्था या भाव। पुं० [हिं० गलना] अभिषेक-घट जिसमें छिद्र होता है। उदाहरण–पुन गलती पुजारा, गाडुवा नैन ढालंती।
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गलंती,गलंतीका  : स्त्री० [सं०√गल् (क्षरण होना)+शतृ-ङीप्+कन्-टाप्] [√गल्+शतृ-ङीष्] १. छोटी कलसी। २. छेददार घड़ा जिसमें से शिवलिंग पर पानी चूता रहता है।
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गलथना  : पुं० [सं० गलस्तन, पा० गलत्थन, गलथन] कुछ बकरियों के गले में लटकाया हुआ लंबोत्तरा मांस-पिंड।
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गलथैली  : स्त्री० [हिं० गाल+थैली] पशुओं विशेषतः बंदरों के गले के अन्दर थैली के आकार का वह अंग जिसमें वे खाने की वस्तु पहले भर लेते हैं और तब बाद में धीरे-धीरे निकालकर खाते हैं।
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गलदश्रु  : वि० [सं० गलत-अश्रु, ब० स०] जिसके आँसू बह रहे हों। रोता हुआ।
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गलन  : पुं० [सं०√गल्+ल्युट्-अन] १. गलने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. किसी तरल पदार्थ का किसी पात्र में से चूना या रिसना।
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गलनहाँ  : पुं० [हिं० गलना+नहँ-नाखून] १. हाथियों का एक रोग जिसमें उनके नाखून गलगलकर निकलने लगते हैं। २. वह हाथी जिसे उक्त रोग हो।
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गलना  : अ० [सं० गलन] १. ताप की अधिकता के कारण किसी घन पदार्थ का तरल होना। जैसे–बरफ, मक्खन या सोना गलना। २. किसी तरल पदार्थ में डाले हुए कड़े या घन पदार्थ का कोमल होकर उसमें घुल कर मिल जाना। जैसे–दूध या पानी में चीनी गलना। ३. आग पर रखकर उबाले या पकाये जाने पर किसी कड़ी वस्तु का इतना नरम हो जाना कि धीरे से उँगली से दबाने पर वह टूट-फूट या दब जाए। जैसे–तरकारी या दाल गलना। मुहावरा–(किसी की) दाल गलना=कौशल, प्रयत्न आदि में सफलता होना। (प्रायः नहिक रूप में प्रयुक्त) जैसे–यहाँ आपकी दाल नहीं गलेगी, अर्थात् प्रयत्न सफल नही होता। ४. उक्त के आधार पर किसी वस्तु का इतना नरम, (क्षीण या जीर्ण) हो जाना कि छूने भर से फट जाए। जैसे–रखे-रखे कपड़ा या कागज गलना। ५. शरीर का क्रमशः क्षीण होते होते बहुत ही दुर्बल और निस्सार होना। जैसे–चिन्ता करते-करते उनका शरीर आधा रह गया है। ६. रोग आदि के कारण शरीर के किसी अंग का धीरे-धीरे कटकर नष्ट होना। जैसे-कोढ़ से पैर या हाथ की उँगलियाँ गलना। ७. बहुत अधिक सरदी के कारण ऐसा जान पड़ना कि पैर या हाथ की उँगलियाँ तरल होकर गिर या बह जायेगी। जैसे–पूस-माघ में तो यहाँ हाथ-पैर गलने लगते हैं। ८. इच्छा न होने पर व्यर्थ व्यय होना। जैसे–सौ रुपये गल गये। ९. निष्फल अथवा व्यर्थ हो जाना। जैसे–जूए में दाँव या चौपड़ के खेल में मोहरा गलना। १॰. गड्ढ़े आदि में बनाई या रखी हुई चीज का धीरे-धीरे धँसना या बैठना। जैसे–कूँए की बनावट में जमवट गलना। ११. (किसी नक्षत्र का) वर्षा करना। पानी बरसना। जैसे–गली रेवती जल को नासै।–भड्डरी। १२. समय से पहले स्राव या पतन होना। जैसे–गर्भ गलना।
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गलफड़ा  : पुं० [फेफड़ा का अनु०] १. जल में रहनेवाले जीवों का वह अवयव जिससे वे पानी में साँस लेते हैं। (यह स्थल में रहनेवाले प्राणियों के फेफड़े का ही आरंभिक रूप है)। २. गाल का चमड़ा।
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गलफरा  : पुं०=गलफड़ा।
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गलफाँस  : स्त्री०=गलफाँसी।
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गलफाँसी  : स्त्री० [हिं० गला+फाँसी] १. गले में पड़ी हुई फाँसी या उसका फंदा। २. ऐसा बहुत बड़ा संकट जिससे छुटकारा मिलना बहुत कठिन हो। ३. मालखंभ की एक प्रकार की कसरत।
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गलफूट  : स्त्री० [हिं० गाल+फूटना] (क) अंड-बंड बकने या (ख) नींद में बड़-बड़ाने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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गलफूला  : वि० [हिं० गाल+फूलना] [स्त्री० गलफूली] जिसके गाल फूले हुए हों। पुं० गले के फूलने या सूजने का एक रोग।
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गलफेड़  : पुं० [सं० गल-पिंड] गले के आस-पास की गिलटियाँ।
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गलबंदनी  : स्त्री०=गुलूबंद (आभूषण)।
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गलबदरी  : स्त्री० [हिं० गलना+बदरी-बादल] शीतकाल की बदली जिसमें हाथ पाँव गलने लगते है।
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गलबली  : पुं० [अनु०] १. कोलाहल। २. गड़बड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गलबहियाँ(बाहीं)  : स्त्री० [हिं० गला+बाँह] दो व्यक्तियों के परस्पर गले में हाथ डालकर आलिंगन करने की अवस्था या भाव।
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गलबा  : पुं० [अ० गल्बः] अभिभूत करनेवाली प्रबलता। जैसे–नींद का गलबा। पु०=बलवा (विद्रोह)।
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गलमँदरी  : स्त्री० [हिं० गाल+मुद्रा] १. व्यर्थ की बकवाद। २. दे० ‘गल-मुद्रा’।
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गलमुच्छा  : पुं० [हिं० गाल+मूछ] गालों पर के वे बाल जो बीच में ठोढ़ी पर के बाल मूँड दिए जाने पर भी बचाकर रखे और बढ़ाये जाते हैं।
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गलमुद्रा  : स्त्री० [सं० ष० त० ] शिव के पूजन के समय उन्हें प्रसन्न करने के लिए गाल बजाने (अर्थात् गालों की सहायता से विशिष्ट प्रकार का स्वर निकालने) की क्रिया या भाव। गलमँदरी।
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गलवाना  : स० [हिं० का प्रे० रूप] किसी वस्तु को गलाने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को गलाने में प्रवृत्त करना।
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गलंश  : पुं० दे० ‘गलतंस’।
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गलसिरी  : स्त्री० [सं० गल-श्री] गले में पहनने का कंठ-श्री नामक गहना।
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गलसुआ  : पुं० [हिं० गाल+सूजन] एक रोग जिसमें गाल के नीचे का भाग सूज जाता है और उससे पीड़ा होती है। कनपेड़ा।
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गलसुई  : स्त्री० १. दे० गल तकिया। २. दे० ‘गलसुआ’।
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गलही  : स्त्री० [सं० गल+हिं० ही (प्रत्यय)] नाव का वह अगला कोना जो गोलाकार और कुछ ऊपर उठा हुआ होता है।
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गला  : पुं० [सं० गल, प्रा० गल, पा० गलो, द्र० गार्, गरोर्, उ०पं० बं० गला, गु० गलु, मरा, गंठा, सि० गरो] १. शरीर का वह गोलाकार लंबोत्तर अंग जो धड़ के ऊपर और सिर के नीचे होता है और जिसके अंदर सांस लेने, स्वरों का उच्चारण करने और खाने-पीने की चीजें पेट तक पहुँचाने वाली नलिकाएँ होती हैं। गरदन। ग्रीवा। मुहावरा–(अपना या दूसरे का) गला काटना=छुरी, तलवार या धारदार औजार से काटकर सिर को धड़ से अलग करना और इस प्रकार मृत्यु का कारण बनना। गरदन काटकर हत्या करना। जैसे–चोरों ने चलते-चलाते बुढिया का भी गला काट डाला। (किसी का) गला काटना=किसी का सब कुछ छीन लेना अथवा इसी प्रकार की बहुत बड़ी हानि करना। जैसे–दूसरों का गला काट-काटकर ही तो वे बड़े आदमी बने है। (किसी का) गला घोंटना-गला दबाना ( दे० आगे)। (किसी बात या व्यक्ति से) गला छूटना=कष्ट, संकट आदि (अथवा त्रस्त करनेवाले व्यक्ति) से पीछा छूटना। छुटकारा मिलना। जान बचना। पिंड छूटना। जैसे–चलों इनके आ जाने से हमारा गला छूट गया। (किसी का) गला जकड़ना=कोई बंधन लगाकर या बाधा खड़ी करके किसी को बोलने से बलपूर्वक रोकना। (किसी से) गाल जोड़ना=मैत्री या घनिष्ट संबंध स्थापित करना। गहरा मेल-मिलाप पैदा करना। (किसी का) गला टीपना या दबाना=(क) हाथ या हाथों से इस प्रकार चारों ओर से दबाना कि उसका दम घुंट जाए या सांस रुक जाए और वह मर जाए या मरने को हो जाए। (ख) कोई काम करने या स्वार्थ साधने के लिए जबरदस्ती किसी को विवश करना। अनुचित रूप से बहुत अधिक दबाव डालना। (किसी का) गला पकड़ना=किसी को किसी बात के लिए उत्तरदायी ठहराना। जैसे–यदि इस युक्ति से हमारा काम न हुआ तो हम तुम्हारा गला पकड़ेगे। गला फँसना-किसी प्रकार के कष्टदायक बंधन में पड़ना। जैसे–तुम्हारें कारण अब इसमें हमारा भी गला फँस गया है। (किसी का) गाल रेतना=किसी को क्रमशः या निर्दयतापूर्वक बहुत अधिक कष्ट पहुँचाकर अथवा उसकी बहुत अधिक हानि करके अपना मतलब निकालना। जैसे–इस तरह दूसरों का गरा रेतकर अपना काम निकालना ठीक नहीं है। (कोई बात) गले तक आना=किसी कार्य, बात या व्यापार की इतनी अधिकता होना कि उसका निर्वाह या सहन करना बहुत अधिक कठिन हो जाए। जैसे–जब बात गले तक आ गई, तब मै भी बिगड़ खड़ा हुआ। विशेष–जब नदी या बाढ़ का पानी बढ़ता-बढ़ता आदमी के गले तक पहुँच जाता है, तब वह असह्य भी हो जाता है और आदमी अपने जीवन से निराश हो जाता है। लाक्षणिक रूप में यह मुहावरा ऐसी ही स्थिति का सूचक है। (कोई चीज या बात) गले पड़ना=इच्छा न होते हुए भी जबरदस्ती या भार रूप में आकर प्राप्त होना। जैसे–यह व्यर्थ का झगड़ा आकर हमारे गले पड़ा है। उदाहरण–गरे परि कौ लागि प्यारी कहैये। (अपने ) गले बाँधना=जान-बूझकर या इच्छापूर्वक अपने साथ या पीछे लगाना। उदाहरण–लोभ पास जेहि गर न बँधाया।–तुलसी। (किसी के) गले बाँधना, मढ़ना या लगाना=किसी की इच्छा के विरुद्ध उसे कोई चीज देना अथवा कोई भार सौंपना। (किसी को) गले लगाना= (क) आलिंगन करना। (ख) अपराध, दोष आदि का विचार छोड़कर अपना बनाना। जैसे–उच्च वर्णों के लोगों को चाहिए कि वे हरिजनों को गले लगावें। पद-गले का ढोलना या हार-ऐसी वस्तु या व्यक्ति जो सदा साथ रखा जाए अथवा रहे। जिसका या जिससे जल्दी साथ न छूटे। २. शरीर के उक्त अंग का वह भीतरी भाग जिसमें खाने, पीने बोलने साँस लेने आदि की नलियाँ रहती है। मुँह के अन्दर का वह विवर जिसका संबंध पेट, फेफड़ों आदि से होता है। मुहावरा-गला आना या पडना=गले की घंटी में पीड़ा या सूजन होना। गलांकुर रोग होना। गला उठाना या करना-गले की घंटी बढ जाने पर उसे उँगली से दबाकर और उस पर कोई दवा लगाकर उसे ऊपर उठाना। घंटी बैठाना। (किसी चीज का) गला काटना=चरपरी या तीखी चीज खानेपर उसके गले के भीतरी भाग में हल्की खुजली चुन-चुनाहट या जलन पैदा करना। जैसे–जमीकंद या सूरन यदि ठीक तरह से न बनाया जाए तो कला काटता है। गला घुटन=प्राकृतिक कारणों अथवा अस्वस्थता, रोग आदि के फलस्वरूप साँस आने-जाने में बाधा होना। दम घुटना। गला जकड़ना-गले की ऐसी अवस्था होना कि सहज में कुछ खाया पिया या बोला न जा सके। (किसी चीज का) गला पकड़ना=कसैली या खट्टी चीज खाने पर गले में ऐसा विकार या हलकी सूजन होना कि खाने-पीने, बोलने में कष्ट हो। जैसे–ज्यादा खटाई खाओगे तो गला पकड़ लेगी। गला फँसन=गले के अन्दर किसी चीज का पहुँचकर इस प्रकार अटक फंस या रुक जाना कि खाने-पीने बोलने साँस लेने आदि में कष्ट होने लगे। जैसे–अब तो पानी भी कटिनाई से गले के नीचे उतरता है। (किसी बात का) गले के नीचे उतरना= (क) ठीक प्रकार से समझ में आना। (ख) ग्राह्म, मान्य या स्वीकृत होना। जैसे–उनका उपदेश तुम्हारें गले के नीचे उतार या नहीं। ३. शरीर के उक्त अंग का वह अंश जिसमें बोलने के समय शब्दों आदि का और गाने के समय स्वरों आदि का उच्चारण होता है। स्वर-नाली। जैसे–जब तक गवैये का गला अच्छा न हो तब तक उसके गाने में रस नहीं आता। मुहावरा–गला खुलना=गले का इस योग्य होना कि उसमें से अच्छी तरह या ठीक तरह से स्वर निकल सके। गला गरमाना-गाने, भाषण देने आदि के समय आंरभ में कुछ देर तक धीरे-धीरे गाने या बोलने के बाद कंठ-स्वर का तीव्र या प्रबल होकर पूरी तरह से काम करने के योग्य होना। गला फटना-बहुत चिल्लाने, बोलने आदि से अथवा स्वर नाली में कोई रोग होने के कारण कंठ स्वर का इस प्रकार विकृत हो जाना कि उससे ठीक, सुरीला और स्पष्ट उच्चारण न हो सके। जैसे–चिल्लाते-चिल्लाते गला फट गया पर तुमने जबाव न दिया। गला फाड़ना=बहुत जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर बोलना और स्वतः अपना कंठ-स्वर कर्णकटु तथा विकृत करना। जैसे–तुम लाख गला फाड़ा करो पर वहाँ तुम्हारी सुनता कौन है। गला फिरना=गाने के समय स्वरों और उनकी श्रुतियों पर बहुत ही सहज में और सुन्दरता पूर्वक अथवा सुरीलेपन से कंठ-स्वर का उच्चरित होना अथवा ऊपर और नीचे के स्वरों पर सरलतापूर्वक आना-जाना। जैसे–हर किटिकरी तान, पलटे और फंदेपर उसका गला इस तरह फिरता था कि तबीयत खुश हो जाती थी। गला बैठना=बहुत अधिक गाने चिल्लाने बोलने आदि से अथवा कुछ प्रकृत कारणों या विकारों से कंठ-स्वर का इतना धीमा या मन्द पड़ना कि कंठ-से होने वाला शब्दों का उच्चारण सहज में दूसरों को सुनाई न पड़े। ४. कमीज, कुरते कोट आदि पहनने के कपड़ों का वह अंश जो गरदन पर और उसके चारों ओर रहता है। रेगबान। ५. घड़े, लोटे, सुराही आदि पात्रों का वह ऊपरी गोलाकार तंग और लंबोतर भाग जो उनके पेट और मुँह के बीच में पड़ता है और जिससे होकर उन पात्रों में चीजें आती-जाती (अर्थात् निकलती या भरी) जाती है। जैसे–गगरे का गला टूट गया है।
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गलाऊ  : वि० [हिं० गलाना] गलानेवाला। वि. [हिं० गलना] जो गल सकता हो। गलनशील।
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गलांकुर  : पुं० [सं० गल-अंकुर, मध्य० स०] एक रोग जिसमें गले के अंदर का कौआ या घंटी सूज जाती है। (टान्सिल)।
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गलाना  : स० [हिं० गलना का प्रे० रूप] १. किसी घन या ठोस पदार्थ को इतना अधिक गरम करना या तपाना कि वह तरल हो जाए। जैसे–मक्खन या सोना गलाना। २. कड़े और कच्चे अन्नों, तरकारियों आदि को उबाल या पकाकर नरम या मुलायम और खाये जाने के योग्य करना। जैसे–आलू या दाल गलाना। ३. तरल पदार्थ में किसी क्रिया से कोई विलेय वस्तु घुमाना। जैसे–तेजाब में चाँदी गलाना। ४. बहुत अधिक चिंता या श्रम करके अपने शरीर को क्षीण और दुर्बल बनाना। जैसे–देश की सेवा में तन या शरीर गलाना। ५. किसी प्रकार नष्ट या बरबाद करना। ६. ठंढक या सरदी का अपनी तीव्रता से हाथ-पैर गलानेवाली सरदी पड़ना। ७. वास्तु-शास्त्र में किसी खड़ी रचना पर इतना दबाव या बोझ डालना कि वह धीरे-धीरे नीचे धँस कर अदृश्य हो जाए। जैसे–पुल बनाने के लिए कोठी या खंभा गलाना।
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गलानि  : स्त्री०=ग्लानि। पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली।
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गलार  : वि० [हिं० गाल] १. बहुत गाल बजानेवाला अर्थात् बकवादी। २. झगड़ालू। स्त्री० [?] मैना (पक्षी)। पुं० [?] एक प्रकार का वृक्ष।
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गलारी  : स्त्री० [सं० गल्प, प्रा० गल्ल] गिलगिलिया नाम की चिड़िया। गल-गलिया।
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गलावट  : स्त्री० [हिं० गलाना] १. गलने की क्रिया या भाव। २. गलने के कारण घटने या नष्ट होनेवाला अँश। ३. ऐसी वस्तु जो दूसरी वस्तुओं को गलाने में सहायक होती हो।
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गलि  : पुं० [सं० गंडि ड को ल] १. बछड़ा। २. सुस्त बैल।
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गलित  : वि० [सं०√गल्+क्त] १. (पदार्थ) जो पुराना या बासी होने के कारण गल या सड़ गया हो। गला हुआ। २. (तत्त्व या शरीर) जोस पुराना होने के कारण रस, सार आदि से रहित हो गया हो। जैसे-गलित अंग, गलित यौवन। ३. पुराने होने के कारण जो खंडित और जीर्ण-शीर्ण हो चुका हो। नष्ट-भ्रष्ट। ४. जिसमें गलने-गलाने आदि की प्रवृत्ति हो। जैसे–गलित कुष्ठ। ५. चुआ या चुआया हुआ। ६. जो आवेग, उमंग आदि की अधिकता के कारण मत्त होकर अ-वश या आपे से बाहर हो गया हो। उदाहरण–अति मद-गलित ताल पुल तें गुरु युगल उरोज उतंगनि कौ।–सूर।
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गलित-कुष्ठ  : पुं० [कर्म० स] आठ प्रकार के कुष्ठों में से एक जिसमें रोगी के अंग-गल-गलकर गिरने लगते हैं।
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गलित-यौवना  : वि० स्त्री० [ब० स०] (स्त्री०) जिसका यौवन बीत जाने के कारण बहुत कुछ नष्ट हो चुका हो।
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गलितक  : पुं० [सं० गलित√कै(प्रतीत होना)+क] नृत्य में एक प्रकार की अंग-भंगी या मुद्रा।
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गलिया  : स्त्री० [हिं० गली] चक्की के ऊपर के पाट में वह छेद जिसमें दलने या पीसने के लिए अनाज डाला जाता है। वि० [सं० गलित] (पशु) जो बहुत ही सुस्त या मट्ठर हो।
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गलियारा  : पुं० [हिं० गली+आरा(प्रत्यय)] [स्त्री० अल्पा० गलियारी] १. गली की तरह का लंबा, सीधा रास्ता। २. किसी देश में से होकर जाने वाला वह स्थल मार्ग जिसपर एकाधिकार किसी दूसरे देश का होता है। (कारिडोर)
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गलियारी  : पुं० [हिं० गलियारा] छोटी या तंग गली।
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गली  : स्त्री० [सं० गल] १. वह सँकरा मार्ग जिसके दोनों ओर घर आदि बनें होते हैं तथा जिसपर चलकर लोग प्रायः घरों को जाते हैं। (लेन) पद-गली कूचा। ( दे०) मुहावरा–गली कमाना=गली में झाड़ू देकर या उसकी नालियों, मोरियों आदि साफ करके जीविका उपार्जित करना। गली गली मारे फिरना= (क) व्यर्थ इधर-उधर घूमना। (ख) जीविका के लिए इधर-से उधर भटकना। (ग) किसी पदार्थ का चारों ओर से अधिकता से मिलना। २. किसी गली के आस-पास के घरों का समूह, मुहल्लों के नामवाचक रूप में। जैसे-कचौरी गली, गणेश गली आदि।
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गलीचा  : पुं० [फा० गालीचः(कालीन चा-तु० काली या कालीन से)] १. ऊन की बुनी हुई एक प्रकार की मोटी चादर जिसपर लोग बैठते हैं। २. कँकरीली जमीन (कहार)।
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गलीज़  : वि० [अ०] १. गँदला। मैला। २. अपवित्र। नापाक। स्त्री० १. कूड़ा-कर्कट। गंदगी। २. मल-मूत्र आदि।
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गलीत  : वि० [सं० गलित] १. गंदा या मैला। २. अनुचित या बुरा। ३. दे० गलित।
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गलीम  : पुं०=गनीम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गलू  : पुं० [सं०] एक प्रकार का पत्थर जिससे प्राचीन काल में मद्यपात्र आदि बनते थे।
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गलेफ  : पुं० =गिलाफ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गलेबाज  : वि० [हिं० गला+बाज] [भाव० गलेबाजी] १. जिसका गला बहुत अधिक या तेज चलता हो। बहुत अधिक जोर से या बढ़-बढ़ कर बातें करनेवाला। २. बहुत सी ताने और पलटे लेनेवाला और गले का काम अच्छी तरह दिखलानेवाला (गवैया)।
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गलेबाजी  : स्त्री० [हिं० गाल+बाजी] १. बहुत जोर से या बढ़-चढ़ कर बातें करने की क्रिया या भाव। २. गाते समय बहुत अधिक ताने और पलटें लेना।
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गलैचा  : पुं० =गलीचा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गलोना  : पुं० [देश०] एक प्रकार का कंधारी या काबुली सुरमा।
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गलौ  : पुं० [सं० ग्लौ] चंद्रमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गलौआ  : पुं० [हिं० गाल] बंदरों के गालों के अंदर की थैली जिसमें वे जल्दी जल्दी खाने की वस्तुएँ भर लेते हैं और बाद में फिर से उसमें से निकाल कर चबा-चबा कर खाते हैं। वि० [हिं० गलाना] १.जो गलाकर फिर से नया बनाया गया हो। २.जो गलाया जाने को हो।
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गलौध  : पुं० [स० त० ] एक प्रकार का रोग जिसमें गले के अंदर सूजन हो जाती है और साँस लेने में कठिनता होती है।
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गल्प  : स्त्री० [सं० जल्प वा कल्प] १. मिथ्या प्रलाप। गप्प। २. डींग। शेखी। ३. भावपूर्ण या विचार-प्रधान कोई छेटी घटनात्मक कहानी। ४. मृदंग के बारह प्रबंधों में से एक।
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गल्यारा  : पुं० दे० ‘गलियारा’।
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गल्ल  : पुं० [सं०√गल्+ल] गाल। कपोल। स्त्री० [सं० गल्प] १. बात। (पंजाब) २. शोर। हल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गल्लई  : स्त्री० [अ० गुल, हिं० गुल्ला] शोर गुल। वि० [हिं० गल्ला=अनाज] अनाज या गल्ले के रूप में होने अथवा दिया-लिया जानेवाला। जैसे–खेत की पैदावार का गल्लई। बँटवारा।
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गल्लक  : पुं० [सं०√गल्+क्विप्,गल्√ला(लेना)+क] १. मद्य पीने का पात्र। २. एक प्रकार का राल।
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गल्लह  : पुं० [सं०गल्ल] १.कुछ विशिष्ट प्रकार के पशुओं का झुंड। दल। जैसे-बकरियों या भेड़ों का गल्ला। २.वह थैली या संदूक जिसमें दूकानदार रोज की ब्रिकी से आनेवाला धन रखते हैं। गुल्लक। जैसे-बोहनी न बट्टा, गल्ले में हाथ। (कहा.) पुं० [अ.गल्लः] १.अनाज। अन्न। २.उतना अन्न जितना चक्की में पीसने के लिए एक बार में डाला जाता है। ३.पेड़-पौधों आदि की उपज या पैदावार। पुं० [?] एक प्रकार का बेंत जिसे मोला भी कहते हैं।
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गल्लाफऱोश  : पुं० [फा०] अनाज बेचनेवाला व्यापारी।
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गल्ली  : स्त्री०=गली।
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गल्वर्क  : पुं० [सं०√गल्+उन्,गलु-अर्क,ब० स०] प्राचीन भारत में गलू नामक पत्थर का बननेवाला मद्य-पात्र। गलू पत्थर का बना हुआ प्याला।
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गल्ह  : वि० [सं० गल्भ] धृष्ट। ढीठ। स्त्री० [सं० गल्प] बात।
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गल्हाना  : स० [हिं० गल्ह] १. बातें करना। २. बहुत बढ़-चढ़कर बातें करना। डींग हाँकना।
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