| शब्द का अर्थ | 
					
				| गोबर					 : | पुं० [सं० गोमय] गाय का मल या विष्टा जो हिंदुओं में पवित्र माना जाता और सूख जाने पर ईधन के रूप में जलाया जाता है। क्रि० प्र० पाथना। मुहावरा–गोबर खानाएक बार अनुपयुक्त ढंग से काम करने पर तथा अपनी भूल मालूम होने या सफलता न मिलने पर भी फिर से उपयुक्त ढंग से काम न करना। | 
			
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				| गोबर-गणेश					 : | वि० [हि० गोबर+सं० गणेश] १. जो आकार-प्रकार या रूप-रंग की दृष्टि से बहुत ही भद्दा हो। २. निरा मूर्ख (व्यक्ति)। | 
			
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				| गोबर-गिद्धा					 : | पुं० [हिं० गोबर+गिद्धा] गिद्ध जाति का एक पक्षी। | 
			
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				| गोबर-धन					 : | पुं०=गोवर्धन। | 
			
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				| गोबरहारा					 : | पुं० [हिं० गोबर+हारा (प्रत्यय)] गोबर उठाने तथा पाथनेवाला व्यक्ति। | 
			
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				| गोबराना					 : | स० [हिं० गोबर+ना (प्रत्य)] जमीन या दीवार पर गोबर पोतना या लीपना। | 
			
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				| गोबरिया					 : | पुं० [हिं० गोबर] बछनाग की जाति का एक पहाड़ी पौधा। | 
			
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				| गोबरी					 : | स्त्री० [हिं० गोबर+ई (प्रत्य०)] १. उपला। कंडा। गोहरा। २. जमीन या दीवार पर गोबर से की जाने वाली लिपाई या पोताई। क्रि० प्र०= करना।–फेरना। स्त्री० [देश०] जहाज के पेंदे का छेद। (लश०)। मुहावरा-गोबरी निकालना=जहाज के पेदें में छेद करना। | 
			
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				| गोबरैला					 : | पुं० [हि० गोबर+ऐसा या औला (प्रत्य०)] गोबर में उत्पन्न होने और रहने वाला एक छोटा कीड़ा। | 
			
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				| गोबरौला,गोबरौला					 : | पुं० गोबरैला। | 
			
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