| शब्द का अर्थ | 
					
				| घोटा					 : | पुं० [हिं० घोटना] १. घोटने, पीसने अथवा रगड़ने की क्रिया या भाव। २. पत्थर, लकड़ी, लोहे आदि का वह उपकरण जिससे कोई चीज घोटने का काम किया जाय। (बर्निशर) ३. रँगरेजों का एक उपकरण जिसे वह रंगे हुए कपड़ों पर रगड़ते है जिससे कपड़े चमकीले हो जाते है। ४. घुटा हुआ चमकीला कपड़ा। ५. पाठ आदि मुँह जबानी याद करने के लिए उसे बार-बार कहने या पढ़ने का काम। जैसे–पाठशाला में लड़के घोटा लगाते हैं। ६. बाँस आदि का वह चोंगा जिसमें घोंड़ों, बैलों आदि को औषधि पिलाई जाती है। ७. नगजड़ियों का एक औजार जिससे वे डाँक को चमकीला करते हैं। ८. छुरे से बाल बनाने या बनवाने की क्रिया या भाव। हजामत। क्रि० प्र०=फिरवाना। | 
			
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				| घोटा-घोबा					 : | पुं० [देश०] रेवंद-चीनी की जाति का एक पेड़ जिसमें से एक प्रकार की राल निकलती है जो दवा, रँगाई आदि के काम में आती है। | 
			
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				| घोटाई					 : | स्त्री० [हिं० घोटना+आई (प्रत्य)] १. घोटने की क्रिया, भाव या मजदूरी। (सभी अर्थो में) २. चित्रकला में, पूरी तरह से चित्र अंकित हो जाने पर उसे शीशे पर उलटकर उसकी पीठ पर घोटे से रगड़ना जिससे चित्र में चमक आ जाय। | 
			
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				| घोटाला					 : | पुं० [मरा०] १. किसी काम या बात में होनेवाली बहुत बड़ी अव्यवस्था या गड़बड़ी। २. किसी कार्यालय, संस्था आदि के किसी अधिकारी, कर्मचारी द्वारा उसके हिसाब किताब में की हुई गड़बडी अथवा उसकी सामग्री, धन आदि का किया हुआ दुरुपयोग। मुहावरा–घोटाले में पड़ना=(क) किसी कार्य या बात का निपटारे या सुलझने की स्थिति में न होना। (ख) सामग्री,धन आदि का ऐसी स्थिति में होना कि उसका वापस मिलना बहुत कठिन हो। | 
			
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