शब्द का अर्थ
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					चरम					 :
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					वि० [सं०√ चर् (चलना)+अमच्] १. अंतिम सीमा तक पहुँचा हुआ। हद दरजे का। जैसे–चरम पंथ। २. सबसे अधिक या आगे बढ़ा हुआ। जैसे–चरम गति। ३. अंतिम। आखिरी। जैसे–चरम अवस्था (=वृद्धावस्था) ४. पश्चिमी। पुं० १. पश्चिमी दिशा। २. वृद्धावस्था। ३. अंत। ४. उपन्यास, कहानी, नाटक आदि में का वह अंश या अवस्था जहाँ पर कथा की धारा अधिकतम ऊँचाई पर पहुँचती है। (क्लाइमैक्स) पृं=चर्म।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चरम-काल					 :
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					पुं० [कर्म० स०] मृत्यु का समय।				 | 
			
			
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					चरम-गिरि					 :
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					पुं० [कर्म० स०] अस्ताचल।				 | 
			
			
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					चरम-पत्र					 :
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					पुं० [कर्म० स०] अपनी संपत्ति के उत्तराधिकार, व्यवस्था आदि के संबंध में अंतिम अवस्था में लिखा जानेवाला पत्र या लेख। दित्सापत्र। वसीयतनामा। (विल)।				 | 
			
			
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					चरम-पंथ					 :
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					पुं० [सं० चरम+हिं० पंथ] वह विचार-धारा जो यह प्रतिपादित करती है कि समाज को अस्वस्थ बनाने वाले तत्त्वों को सारी शक्ति से और शीघ्रतापूर्वक दूर या नष्ट कर देना चाहिए। (ऐक्स्ट्रीमिज्म)।				 | 
			
			
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					चरम-पंथी					 :
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					पुं० [हिं० चरमपंथ से] वह जो इस बात का पक्षपाती हो कि सामाजिक दोषों को बलपूर्वक और शीघ्रता से दूर या नष्ट कर देना चाहिए (एक्स्ट्रीमिस्ट)				 | 
			
			
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					चरम-वय(स्)					 :
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					वि० [ब० स०] १. अधिक अवस्थावाला (व्यक्ति)। २. पुराना।				 | 
			
			
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					चरमर					 :
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					पुं० [अनु०] कसी या तनी हुई चीमड़ चीज के दबने या मुड़ने से होनेवाला शब्द। जैसे–चलने में जूते का चरमर बोलना।				 | 
			
			
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					चरमरा					 :
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					वि० [अनु०] चरमर शब्द करने वाला। जिससे चरमर शब्द निकले। जैसे–चरमरा जूता। पुं० [देश०] एक प्रकार की घास जिसे तकड़ी भी कहते हैं।				 | 
			
			
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					चरमराना					 :
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					अ० [हिं० चरमर] चरमर शब्द होना। स० चरमर शब्द उत्पन्न करना।				 | 
			
			
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					चरमवती					 :
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					स्त्री० [सं० चर्मण्वती] चंबल नदी।				 | 
			
			
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