शब्द का अर्थ
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					चीत					 :
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					पुं० [सं०√चि(चयन करना)+क्त-दीर्घ, पृषो] सीसा नामक धातु। पुं० चित्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० चित्रा (नक्षत्र)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चीतक					 :
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					पुं० दे० ‘चीतल’।				 | 
			
			
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					चीतकार					 :
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					पुं० १. चीतकार। २. चित्रकार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चीतना					 :
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					स० [सं० चेत] [वि० चीता] १. मन मे किसी प्रकार की भावना या सोच-विचार करना। सोचना। जैसे–किसी का बुरा या भला चीतना। २. याद या स्मरण करना। जैसे=विरह में प्रिय को चीतना। अ० होश में आना। चेतना। स० [सं० चित्रल] चित्र अंकित या चित्रित करना।				 | 
			
			
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					चीतल					 :
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					पुं० [सं० चित्रल] १. एक प्रकार का बारहसिंघा जिसका चमड़ा चित्तीदार और बहुत सुन्दर होता है। यह जलाशयों के पास झुंड में रहता है और मांस के लिए इसका शिकार किया जाता है। २. एक प्रकार का चित्तीदार बड़ा साँप या छोटा अजगर जो खरगोश, बिल्ली आदि छोटे जंतुओं पर निर्वाह करता है। ३. एक प्रकार का पुराना सिक्का।				 | 
			
			
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					चीता					 :
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					पुं० [सं० चित्रक, पा० चित्रो, चित्तो, प्रा० चित्तअ, बँ० चिता, गु० सिं० चित्रो, मरा० चित्ता;] १. बिल्ली शेर आदि की जाति का एक प्रसिद्ध हिंसक जंतु जिसके शरीर पर धारियाँ होती हैं। इसकी कमर पतली होती है और गरदन पर अयाल या बाल नहीं होते। इसकी सहायता से कुछ लोग हिरनों आदि का शिकार भी करते हैं। २. एक प्रकार का बड़ा क्षुप जिसकी पत्तियाँ जामुन की पत्तियों से मिलती-जुलती होती हैं। इसकी कई जातियाँ हैं जिनमें भिन्न-भिन्न रंगों के सुंगधित फूल लगते हैं। इसकी छाल और जड़ ओषधि के काम में आती है। पुं० [सं० चित्त] १. चित्त। मन। हृदय। दिल। २. चेतना। संज्ञा। होश-हवास। वि-[हिं० चेतना] [स्त्री० चीता] मन में विचारा या सोचा हुआ। जैसे–मन-चीती बात होना।				 | 
			
			
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					चीतावती					 :
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					स्त्री० [सं० चेत्] यादगार। स्मारक चिह्न।				 | 
			
			
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					चीत्कार					 :
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					पुं० [सं० चीत्√कृ(करना)+अण्] १. खूब जोर से चिल्लाने की क्रिया, भाव या शब्द। चिल्लाहट। २. घोर दुःख या संकट में पड़ने पर मुँह से अनायास निकलनेवाली बात या शब्द।				 | 
			
			
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