शब्द का अर्थ
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					चीर					 :
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					पुं०√[चि (ढकना)+क्रन्, दीर्घ] १. कपड़ा वस्त्र। २. आजकल थान, धोती आदि में लंबाई के बल का वह अंतिम छोर या सिरा जिसमें बनावट कुछ भिन्न प्रकार की अथवा हलकी होती है। ३. कपड़े कागज आदि का कम चौड़ा और अधिक लंबा टुकड़ा। धज्जी। ४. पुराने कपड़े का टुकड़ा। चिथड़ा। लता। ५. योगियों, साधुओं आदि और विशेषतः बौद्ध भिक्षुओं के पहनने का कपड़ा। ६. पेड़ की छाल। ७. गौ का थन। ८. मोतियों की माला जिसमें चार लड़ हो। ९. एक प्रकार का बड़ा पक्षी जिसकी लंबी दुम बहुत सुन्दर होती है। यह प्रायः चीर चीर शब्द करता है। १॰. धूप या सरल का पेड़। ११. सीसा नामक धातु। १२. छप्पर या छाजन का अगला भाग। मँगरा। मथौत। पुं० [हिं० चीरना] १. चीरने की क्रिया या भाव। पद–चीर-फाड़ (क) चीरने या फाड़ने का भाव या क्रिया। (ख) शल्य चिकित्सा। २. चीर कर बनाई हुई दरार या संधि। शिगाफ। ३. रेखा। लकीर। ४. कुश्ती का एक दाँव या पेंच जिसमें विपक्षी के दोनों हाथ एक दूसरे से बिलकुल अलग और बहुत दूर करके उसे नीचे गिराया जाता है।				 | 
			
			
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					चीर-चरम					 :
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					पुं० [सं० चीर+चर्म] हिरन आदि की खाल जो ओढ़ी या बिछाई जाय। जैसे–बाघंबर, मृग-छाला आदि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चीर-पत्रिका					 :
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					स्त्री० [ब० स०] चेंच नाम का साग।				 | 
			
			
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					चीर-परिग्रह					 :
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					पुं० वि० [ब० स०]=चीर-वासा।				 | 
			
			
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					चीर-फाड़					 :
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					स्त्री० [हिं० चीर+फाड़] १. चीरने और फाड़ने की क्रिया या भाव। २. नश्तर आदि से फोड़े चीरने का काम शल्य-चिकित्सा। ३. बहुत ही अनुचित रूप से किया जानेवाला किसी साहित्यिक कृति, तथ्य, वाद आदि का विश्लेषण।				 | 
			
			
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					चीर-वर्ण					 :
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					पुं० [ब० स०] साल नामक वृक्ष।				 | 
			
			
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					चीर-हरण					 :
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					पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण की एक प्रसिद्ध लीला जो इस अनुश्रुति के आधार पर है कि एक बार यमुना में नहाती हुई गोपियों के चीर या वस्त्र लेकर वे वृक्ष के ऊपर जा बैठे थे।				 | 
			
			
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					चीरक					 :
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					पुं० [सं० चीर+कन्] १. कागज के किसी टुकड़े पर लिखी हुई कोई सार्वजनिक घोषणा। २. लिखने का ढंग। ३. लेख्य। ४. मुट्ठे की तरह गोलाकार लपेटा हुआ लंबा कागज। खर्रा। (रोल, स्क्रोल)।				 | 
			
			
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					चीरना					 :
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					स० [सं० चीर्णन] १. किसी चीज को एक जगह या सिरे से दूसरी जगह या सिरे तक सीध में किसी धारदार उपकरण द्वारा काट या फाड़कर अलग या टुकड़े करना। जैसे–कपड़ा, फोड़ा या लकड़ी चीरना। २. कहीं से कोई चीज निकाल लेना। मुहावरा–माल चीरना=अनुचित रूप से बहुत अधिक आर्धिक लाभ करना। ३. किसी बड़ी चीज या तल के अंश इधर-उधर करते हुए आगे बढ़ने के लिए मार्ग निकालना या रास्ता बनाना। जैसे–(क) पानी चीरते हुए नाव का आगे बढ़ना। (ख) भीड़-चीर कर सबसे आगे पहुँचना।				 | 
			
			
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					चीरनिवसन					 :
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					पुं० [सं०] १. पुराणानुसार एक देश जो कूर्म विभाग के ईशान कोण में है। २. उक्त् देश का निवासी।				 | 
			
			
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					चीरल्लि					 :
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					पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का पक्षी।				 | 
			
			
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					चीरवासा(सस्)					 :
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					पुं० [सं० चीरवासस्] १. शिव। महादेव। २. यक्ष। वि० जो चीर (छाल या वल्कल) ओढ़ता या पहनता हो।				 | 
			
			
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					चीरा					 :
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					पुं० [सं० चीर] १. एक प्रकार का लहरिएदार रंगीन कपड़ा जो पगड़ी बनाने के काम में आता है। २. उक्त प्रकार के कपड़े की बनी या बँधी हुई पगड़ी। पुं० [हिं० चीरना] १. चीरने की क्रिया या भाव। २. चीरकर बनाया हुआ क्षत या घाव। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। मुहावरा–चीरा उतारना या तोड़ना=कुमारी के साथ पहले-पहल संभोग या समागम करना। (बाजारू)। ३. गाँव की सीमा सूचक खंभा या पत्थर।				 | 
			
			
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					चीरा-बंद					 :
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					पुं० [हिं० चीरा=पगड़ी+फा० बंद] वह कारीगर जो लोगों के लिए चीरे बाँधकर तैयार करता हो। वि० (कुमारी या बालिका) जिसके साथ अभी तक किसी पुरुष ने संभोग या समागम न किया हो। (बाजारू)।				 | 
			
			
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					चीरा-बंदी					 :
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					स्त्री० [हिं० चीरा=पगड़ी का कपड़ा+फा० बंदी] १. चीरा (पगड़ी) बनाने या बाँधने की क्रिया या भाव। २. एक प्रकार की बुनावट जो पगड़ी बनाने के लिए ताश के कपड़े पर कारचोबी के साथ की जाती है।				 | 
			
			
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					चीरि					 :
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					स्त्री० [सं० चि+क्रि० दीर्घ] १. आँख पर बाँधी जानेवाली पट्टी। २. धोती आदि की लाँग। ३. झींगुर।				 | 
			
			
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					चीरिका					 :
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					स्त्री० [सं० चीरि√कै (शब्द करना)+क-टाप्] झींगुर। झिल्ली।				 | 
			
			
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					चीरिणी					 :
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					स्त्री० [सं० चीर+इनि-ङीप्] बदरिकाश्रम के निकट की एक प्राचीन नदी जिसके तट पर वैवस्वत मनु ने तपस्या की थी (महाभारत)।				 | 
			
			
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					चीरित					 :
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					भू० कृ० [सं० चीर+इतच्] फटा हुआ। (केवल समास में)।				 | 
			
			
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					चीरितच्छदा					 :
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					स्त्री० [सं० चीरित-छद, ब० स० टाप्] पालक का साग।				 | 
			
			
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					चीरी-वाक					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का कीड़ा।				 | 
			
			
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					चीरी(रिन्)					 :
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					वि० [सं० चीर+इनि] १. वल्कलधारी। २. चिथड़े लपटनेवाला। पुं० १. झिल्ली। झींगुर। २. एक प्रकार की छोटी मछली। स्त्री० =चिड़ी (पक्षी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० दे० ‘चीढ़’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं० चीर] चिट्ठी। पत्र। उदाहरण–सात बरस पेहलो रह्यो चीरी जणहन मोकल्यें कोई।–नरपति नाल्ह।				 | 
			
			
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					चीरु					 :
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					पुं०=चीर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चीरुक					 :
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					पुं० [सं० ची√रु (शब्द करना)+क] एक प्रकार का फल जो वैद्यक में रुचिकर और कफ-पित्त वर्द्धक माना गया है।				 | 
			
			
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					चीरू					 :
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					पुं० [सं० चीर] १. एक प्रकार का लाल रंग का सूत। २. चीर। कपड़ा।				 | 
			
			
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					चीरेवाला					 :
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					पुं० [हिं०] १. घोड़ों आदि की चीर-फाड़ करनेवाला हकीम। जर्राह। २. चिकित्सक। (मुसल० स्त्रियाँ)।				 | 
			
			
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					चीर्ण					 :
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					वि० [सं०√चर् (चलना)+नक्, पृषो० ईत्व] चिरा या चीरा हुआ।				 | 
			
			
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					चीर्ण-पर्ण					 :
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					पुं० [ब० स०] १. नीम का पेड़। २. खजूर का पेड़।				 | 
			
			
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