छाया/chhaaya

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छाया  : स्त्री० [सं०√ छो (काटना)+य-टाप्] १. वह अंधकार या अंधकारपूर्ण वातावरण जो किसी स्थान (अवकाश) में प्रकाश की किरणें किसी बीच में पड़नेवाली आड़ या आवरण के कारण न पहुँच सकने पर उत्पन्न होता है। २. ऐसा स्थान जहाँ उक्त प्रकार का अंधकार या अंधकारपूर्ण वातावरण हो। ३. ऊपर या सामने रहनेवाली वह चीज जो धूप, वर्षा, शीत आदि से बचाती है। ४. वह अंधकारपूर्ण आकृति जो किसी स्थान पर प्रकाश की किरणें न पहुँच सकने पर बनती है और यह उस वस्तु की आकृति जैसी होती है जो प्रकाश की किरणों को किसी स्थान पर नहीं पहुँचने देती। परछाई। प्रतिबिंब। ५. प्रायः किसी के पीछे या साथ टोह, रक्षा आदि के लिए लगा रहनेवाला व्यक्ति। ६. किसी वस्तु के अनुकरण पर बनी हुई और कुछ-कुछ वैसी ही जान पड़नेवाली पर कम महत्व की चीज। प्रतिकृति। अनुहार। ७. ऐसी तत्त्वहीन या निस्सार बात या पदार्थ जो किसी वास्तविक या महत्त्वपूर्ण बात या पदार्थ की भद्दी नकल भर हो। व्यर्थ की निकम्मी और भ्रामक प्रतिकृति। ८. किसी बात या पदार्थ का बहुत ही क्षीण या नाम-मात्र का अवशेष जो उस मूल बात या पदार्थ का आभास देता हो। ९. चित्र का वह अंश जहाँ पर किसी अंश की छाया पड़ने के कारण अपेक्षाकृत कुछ अधिक कालापन आ गया हो। (शेड) १॰. भूत-प्रेत आदि के कारण होनेवाली बाधा। ११. कांति। दीप्ति। १२. एक रागिनी। १३. दुर्गा। १४. सूर्य की पत्नी। १५. आर्या छंद का एक भेद।
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छाया  : मित्र
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छाया-कर  : पुं० [छाया√ कृ (करना)+अच्] किसी के पीछे छतरी लेकर चलनेवाला व्यक्ति।
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छाया-गणित  : पुं० [मध्य० स०] गणित की वह प्रक्रिया जिससे उनकी छाया के सहारे ग्रहों की गति-विधि आदि जानी जाती है।
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छाया-गत  : वि० दे० पार्श्वगत।
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छाया-ग्रह  : पुं० [छाया√ ग्रह (ग्रहण)+अच्] आईना। शीशा।
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छाया-ग्राहिणी  : स्त्री० [सं० छायाग्राहिन+ङीष्] सिहिंका। (दे०) नामक राक्षसी।
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छाया-ग्राही(हिन्)  : वि० [सं० छाया√ग्रह-णिनि] [स्त्री० छायाग्राहिणी] किसी की छाया के आधार पर ही उसे ग्रहण लेने या पकड़नेवाला।
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छाया-चित्र  : पुं० [मध्य० स०] वह चित्र जो विशेष प्रकार से निर्मित कागज या शीशे पर किसी वस्त्तु की छाया मात्र पड़ने पर उत्तर आता है। २. उक्त प्रतिबिम्ब को छापने से बननेवाला चित्र। (फोटो)।
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छाया-चित्रण  : पुं० [ष० त०] वह कला या क्रिया जिससे किसी वस्तु की छाया या प्रतिबिम्ब एक प्रकार के शीशे पर ले लिया जाता है और उसके द्वारा एक विशेष प्रकार के कागज पर उसका चित्र छापा जाता है। (फोटोग्राफी)।
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छाया-तनय  : पुं० [ष० त०] शनि।
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छाया-दान  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का दान जिसमें ग्रहजन्य अरिष्टों की शांति के लिए काँसे की कटोरी में घी या तेल भरकर पहले उसमें अपनी छाया देखी जाती है और तब उस पात्र का घी या तेल दक्षिणा सहित किसी को दे दिया जाता है।
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छाया-नट  : पुं० [ब० स०] षाड़व संपूर्ण जाति का एक संकर राग जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
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छाया-नाटय  : पुं० [सं०] पुतलियों का एक प्रकार का नाटक जिसमें चमड़े की पुतलियाँ और पुतले बनाकर उन्हें कठपुतलियों की तरह इस प्रकार नचाया और उनसे अभिनय कराया जाता था कि उनकी छाया आगे पड़े हुए उस पर्दे पर पड़ती जो दर्शकों के सामने होता था। विशेष–इसका आरंभ चीन में और विकास भारत में हुआ था जहाँ से यह भारत और अरब होता हुआ अफ्रीका और यूरोप में पहुँचा था। यही आधुनिक चलचित्रों का मूल रूप माना गया है।
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छाया-पथ  : पुं० [मध्य० स०] असंख्य नक्षत्रों का विशिष्ट समूह जो हमें उत्तर-दक्षिण फैला हुआ दिखाई देता है। आकाशगंगा। (गैलेक्सी)। विशेष–वस्तुतः महाशून्य में ऐसे अनेक छाया-पद जगह-जगह फैले हुए हैं और हमारी पृथ्वी तथा सौर मंडल इसी प्रकार के एक छाया छाया-पथ के अंतर्गत हैं।
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छाया-पुरुष  : पुं० [मध्य० स०] हठ योग की एक साधना के फलस्वरूप द्रष्टा को आकाश में दिखाई पड़नेवाली निजी छाया रूपी आकृति।
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छाया-मूर्ति  : स्त्री० [मध्य० स०] छाया पड़ने से बनी हुई आकृति या रूप।
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छाया-मृगधर  : पुं० [छाया-मृग, मध्य० स० छायामृग-कर, ष० त०] चंद्रमा।
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छाया-यंत्र  : पुं० [मध्य० स०] धूप-घड़ी।
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छाया-लोक  : पुं० [मध्य० स०] अदृश्य जगत् (इस लोक से परे माना जानेवाला वह लोक जो दिखाई न देता हो।
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छाया-वाद  : पुं० [ष० त०] आधुनिक साहित्य में आत्म अभिव्यक्ति का वह नया ढंग या उससे संबंध रखनेवाला सिद्धांत जिसके अनुसार किसी सौंदर्यमय प्रतीक की कल्पना करके ध्वनि, लक्षणा आदि के द्वारा उसके संबंध में अपनी अनुभूति या आंतरिक भाव प्रकट किए जाते हैं।
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छाया-सुत  : पुं० [ष० त०] शनि।
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छायांक  : पुं० [सं० छाया-अंक, ब० स०] चंद्रमा।
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छायापाती(तिन्)  : पुं० [सं० छाया√पत्(गिरना)+णिनि] सूर्य।
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छायापात्र  : पुं० [ष० त०] वह छोटा पात्र जिसमें घी या तेल भर कर छाया-दान किया जाता है।
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छायाभ  : (ा) यवि० [सं० छाया-आभा, ब०स०] १. जो छाया से युक्त हो। २. जिस पर छाया पड़ी हो। स्त्री० अंधकार और प्रकाश। उदाहरण–यह छायांभा है अविच्छिन्न यह आँख मिचौनी चिर सुन्दर।–पंत।
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छायामय  : वि० [सं० छाया+मयट्] छाया से युक्त।
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छायामान  : पुं० [ब० सत०] चंद्रमा।
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छायावादी(दिन्)  : वि० [सं० छायावाद+इनि] १. छायावाद संबंधी (रचना)। २. छायावाद के सिद्धांत माननेवाला या उसका अनुसरण करनेवाला (व्यक्ति)।
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