शब्द का अर्थ
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जागर :
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पुं० [सं०√जाग् (जागना)+घञ्] १. जागरण। जागने की क्रिया। २. वह स्थिति जिसमें अंतःकरण की सब वृत्तियाँ जाग्रत अवस्था में होती हैं। ३. कवच। |
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समानार्थी शब्द-
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जागरक :
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वि० [सं०√जागृ+ण्वुल्-अक] १. जागता हुआ। २. जागनेवाला। |
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जागरण :
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पुं० [सं०√जागृ+ल्युट-अन] [वि० जागरित] १. जागते रहने की अवस्था या भाव। २. किसी उत्सव, पर्व आदि की रात को जागते रहने का बाव। ३. लाक्षणिक अर्थ में, वह अवस्था जिसमें किसी जाति, देश, समाज आदि को अपनी वास्तविक परिस्थितियों और कारणों का ज्ञान हो जाता है और वह अपनी उन्नति तथा रक्षा करने के लिए सचेष्ट हो जाता है। |
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जागरन :
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पुं०=जागरण। |
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जागरा :
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स्त्री० [सं०√जागृ+अच्-टाप्] जागरण। |
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जागरित :
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वि० [सं०√जागृ+क्त] १. जाग्रत या जागता हुआ। २. (वह अवस्था) जिसमे मनुष्य को इंद्रियों द्वारा सब प्रकार के व्यवहारों और कार्यों का अनुभव और ज्ञान होता हों। (सांख्य)। |
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जागरू :
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पुं० [देश०] १. दाँयी हुई फसल का वह अंश जिसमें भूसा और कुछ अन्न कण मिलें हों। २. भूसा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जागरूक :
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वि० [सं०√जागृ+ऊक] १. (व्यक्ति) जो जाग्रत अव्सथा में हो। २ (वह) जो अच्छी तरह सावधान होकर सब ओर निगाह या ध्यान रखता हो। (विजिलेन्ट)। पुं० -पहरेदार। |
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जागरूप :
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वि० [हिं० जागना+सं० रूप] जिसका रूप बहुत ही प्रत्यक्ष और स्पष्ट हो। |
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जागर्ति :
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स्त्री० [सं०√जागृ+क्तिन्] १. जाग्रत होने की अवस्था या भाव। २. जागरण। ३. चेतनता। |
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