शब्द का अर्थ
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					झल्ल					 :
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					पुं० [सं०√ झर्च्छ्+क्विप्√ ला+क] १. वह जिसके वैदिक संस्कार न हुए हों। व्रात्य। २. एक प्राचीन वर्ण-संकर जाति। ३. भाँड़। विदूषक। ४. हुडुक नाम का बाजा। पटह। ५. आग की लपट। ज्वाला। स्त्री० [हिं० झल्ला] झल्ले होने की अवस्था या भाव। पागलपन। सनक।				 | 
			
			
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					झल्ल-कंठ					 :
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					पुं० [ब० स०] कबूतर।				 | 
			
			
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					झल्लक					 :
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					पुं० [सं० झल्ल+कन्] १. काँसे का बना हुआ करताल। झाँझ। २. मँजीरा।				 | 
			
			
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					झल्लकी					 :
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					स्त्री० [सं० झल्लक+ङीष्]=झल्लक।				 | 
			
			
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					झल्लना					 :
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					अ० [हिं० झल्ल] १. बावला या पागल होना। २. क्रुद्ध होना। ३. डींग मारना। स० =झलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					झल्लरा					 :
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					स्त्री० [√झर्च्छ्+अरन्, पृषो० सिद्धि] १. पुरानी चाल का चमड़े से मढ़ा हुआ एक बाजा। हुडुक। २. झाँझ। ३. पसीना। स्वेद। ४. घुँघराले बाल। ४. शुद्धता।				 | 
			
			
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					झल्लरी					 :
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					स्त्री० [सं० झल्लर+ङीष्]=झल्लरा।				 | 
			
			
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					झल्ला					 :
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					पुं० [देश०] [स्त्री० झल्ली] १. बहुत बड़ा टोकरा। झाबा। २. वर्षा की ऐसी झड़ी जिसके साथ तेज हवा भी हो। झंझा। ३. तमाकू के पत्तों पर उभरनेवाले चकते या दाने। वि० [हिं० झल्लाना] [स्त्री० झल्ली] कम वृद्धि होने के कारण पागलों जैसा आचरण करनेवाला। सिड़ी। वि० [हिं० झाल] [स्त्री० झल्ली] बहुत ही तरल या पतला। जैसे–झल्ली दाल, तरकारी का झल्ला रसा।				 | 
			
			
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					झल्लाना					 :
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					अ० [हिं० झल] १. क्रुद्ध होकर या खीझकर बहुत ही तीक्ष्ण स्वर में बोलना। २. बिगड़ते हुए बोलना। स० किसी को खिजलाने या खीझने में प्रवृत्त करना।				 | 
			
			
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					झल्लिका					 :
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					स्त्री० [सं० झल्ल√कै (प्रकाश करना)+क, पृषो० सिद्धि] १. शरीर पोंछने का कपड़ा। अँगोछा। २. शरीर को मलकर पोंछने पर निकलेवाली मैल। ३. चमक। दीप्ति। ४. सूर्य की किरणों का तेज या प्रकाश।				 | 
			
			
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					झल्ली					 :
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					स्त्री० [सं० झल्ली+ङीष्] एक प्रकार का चमड़े से मढा हुआ छोटा बाजा। वि० हिं० ‘झल्ला’ का स्त्री रूप।				 | 
			
			
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					झल्लीवाला					 :
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					पुं० [हिं० झल्ली] [स्त्री० झल्लीवाली] वह व्यक्ति जो टोकरे में बोझ रखकर ढोता हो।				 | 
			
			
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					झल्लीषक					 :
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					पुं० [सं०] एक तरह का नृत्य।				 | 
			
			
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