शब्द का अर्थ
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					झिलमिल					 :
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					स्त्री० [सं० ज्वल्+झला] १. संध्या या सबेरे की वह स्थिति जब कि कुछ कुछ अंधकार भी हो और कुछ-कुछ प्रकाश भी, और जिसमें चीजें साफ न दिखाई देती हों। झिलमिला। २. प्रकाश की किरणों या लौ के हिलते रहने की वह स्थिति जिसमें कभी तो कुछ अँधेरा हो जाता हो और कभी-कभी कुद्ध उजाला। ३. किसी चमकीली चीज की वह स्थिति जिसमें रह-रहकर प्रकाश की किरणें दिखाई देती या निकलती हों। जैसे–पानी की झिलमिल। ४. पुरानी चाल की एक प्रकार की बहुत बढ़िया मलमल जिसकी प्रायः साड़ियाँ बनती थीं। वि०=झिलमिला।				 | 
			
			
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					झिलमिला					 :
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					वि० [सं०√ज्वल्+झला] १. (समय) जिसमें न तो पूरा अंधकार ही हो और न पूरा प्रकाश ही। मिला-जुला थोड़ा अँधेरा और थोड़ा उजाला। २. (प्रकाश) जो हिलते रहने के कारण रह-रहकर चमकता हो और फिर बीच-बीच में आँखों से ओझल हो जाता हो। रह-रहकर चमकनेवाला। ३. (आवरण) जिसमें जगह-जगह बहुत से छोटे-छोटे अवकाश या छेद हों और इसीलिए जिसके कारण कहीं तो प्रकाश आ जाता हो और कहीं अँधेरा बना रहता हो। ४. जिसका कुछ-कुछ आभास तो मिलता हो, फिर भी पूरी तरह से स्पष्ट न हो। पुं०=झिलमिल।				 | 
			
			
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					झिलमिलाना					 :
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					अ० [अनु०] [भाव० झिलमिलाहट, झिलमिली] हिलते रहने के कारण रह-रहकर चमकना। जैसे–लौ का झिलमिलाना। स० किसी चमकीली चीज को इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा हिलाना कि उसमें से रह-रहकर प्रकाश या उसकी किरणें निकलें।				 | 
			
			
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					झिलमिलाहट					 :
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					स्त्री० [अनु०] झिलमिलाने की क्रिया, अवस्था या भाव।				 | 
			
			
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					झिलमिली					 :
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					स्त्री० [हिं० झिलमिल] १. बेड़े बल में एक दूसरी पर जड़ी या बैठाई हुई पटरियों का वह ढाँचा जो किवाड़ों के पल्लों के कुछ भागों में इसलिए जड़ा रहता है कि खड़े बल में लगी हुई लकड़ी के सहारे आवश्यकतानुसार प्रकाश, वायु आदि के आने के लिए कुछ अवकाश निकाला जा सके। खड़खड़िया। क्रि० प्र०–उठाना।–खोलना।–गिराना।–चढ़ाना। २. चिक। चिलमन। ३. कान में पहनने का एक प्रकार का गहना। ४. झिलमिलाहट।				 | 
			
			
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