टहल/tahal

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टहल  : स्त्री० [हिं० टहलना] १. टहलने की क्रिया या भाव। २. किसी को शारीरिक सुख पहुँचाने के लिए की जानेवाली उसकी छोटी या निम्न कोटि की सेवा। खिदमत। जैसे–पैर या सिर दबाना, बदन में तेल मलना आदि।
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टहलना  : अ० [सं० तत्+चलन्=चलना] केवल जी बहलाने, स्वास्थ्य ठीक रखने, हवा खाने आदि के उद्देश्य से धीरे-धीरे इधर-उधर चलना-फिरना या कहीं जाना। मुहावरा–(कहीं से) टहल जाना=किसी जगह से चुपचाप या धीरे से खिसक या हट जाना। चल देना।
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टहलनी  : स्त्री० [हिं० टहलुआ का स्त्री० रूप] १. टहल करनेवाली दासी। सेविका। २. मजदूरनी। स्त्री० [?] दीए की बत्ती उसकाने की छोटी लकड़ी या सींक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टहलाना  : स० [हिं० टहलना] १. किसी को टहलने में प्रवृत्त करना। मनोविनोद, स्वास्थ्य-रक्षा आदि के लिए धीरे-धीरे चलाना या घुमाना-फिराना। २. चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसाकर किसी को अपने साथ कहीं ले जाना।
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टहलुआ  : पुं० [हिं० टहल] [स्त्री० टहलुई, टहलनी] टहल या सेवा करनेवाला व्यक्ति।
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टहलुई  : स्त्री० [हिं० टहलुवा का स्त्री० रूप]=टहलनी।
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टहलुवा  : पुं०=टहलुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टहलू  : पुं=टहलुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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