ढ/dh

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ढ  : हिन्दी वर्णमाला का चौंदहवाँ व्यंजन वर्ण जो उच्चारण तथा भाषा-विज्ञान की दृष्टि से मूर्द्धन्य, स्पर्शी, महाप्राण तथा सघोष व्यजन हैं। इसका एक रूप ढ़ भी है जो मूर्द्धन्य, उत्क्षिप्त, उत्क्षिप्त, महाप्राण, सघोष व्यजंन है। पुं० [सं० ढौक (गति)+ड] १. बड़ा ढोल। २. कुत्ता। ३. कुत्तें की दुम। ४. ध्वनि। नाद ५. साँप।
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ढई  : स्त्री० [हिं० ढहना-गिराना] १. ढह या गिर पड़ने की अवस्था या भाव। २. किसी स्थान पर इस प्रकार बैठना कि जल्दी उठने का ध्यान ही न आवे। मुहावरा–(कहीं या किसी के यहाँ) ढई देना=(क) जमकर बैठ जाना और जल्दी उठने का नाम न लेना। (ख) धरना देना।
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ढक-पेडरू  : पुं० [देश] एक तरह की चिड़िया।
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ढकई  : वि०, पुं०=ढाकई।
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ढंकना  : स०=ढकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=ढकना (ढक्कन)।
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ढकना  : स० [सं० स्थग, प्रा० ढक्क, ढकण] १. किसी चीज के ऊपर या सामने कोई ऐसी आड़ या आवरण खड़ा करना कि वह चीज ऊपर या बाहर न दिखाई से पड़े अथवा सुरक्षित रहे। जैसे–(क) देगची को कटोरी या ढक्कन से ढकना। (ख) कपड़े से दूध या मलाई ढकना। २. ओढ़े या पहने हुए वस्त्र से शरीर का कोई अंग छिपाना। जैसे–घूँघट से मुँह ढकना अथवा चादर से छाती ढकना। ३. किसी चीज के ऊपर किसी दूसरी बात का आकर उसे आड़ में करना। जैसे–बादलों का आसमान को ढकना। ४. लाक्षणिक अर्थ में, ऐसा उपाय करना जिससे दूसरे के सामने दूषित बात या रूप न प्रकट होने पावे। जैसे–किसी की इज्जत या ऐब ढकना। अ० आड़ आवरण आदि के कारण ऐसी स्थिति में होना कि ऊपर या बाहर से दिखाई न दे अथवा वातावरण आदि के प्रभाव से रक्षित रहे। जैसे–कपड़े या कागज से ढकी हुई मिठाई। पुं० [स्त्री० अल्पा० ढकनी] वह चीज या रचना जिससे कोई चीज ढकी जाती है। ढक्कन। जैसे–डिब्बे या सन्दूक का ढकना।
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ढकनियाँ  : स्त्री०=ढकनी।
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ढकनी  : स्त्री० [हिं० ढकना] १. चोटा ढकना या ढक्कन। २. फूल के आकार का एक प्रकार का छोटा गोदना।
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ढका  : पुं० [सं० आढ़क] १. तीन सेर की एक तौल। २. उक्त तौल का बटखरा या बाट। पुं० [अं० डाँक] जहाजों के ठहरने का घाट। (लश०)। पुं० [अनु०] जोर से लगाई जानेवाली टक्कर या दिया जानेवाला धक्का। पुं०=ढक्का (बढ़ा ढोल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढकिल  : स्त्री० [हिं० ढकेलना] १. एक दूसरे को ढकलने की क्रिया या भाव। २. आक्रमण। चढ़ाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढंकी  : स्त्री०=ढक्कन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढँकुली  : स्त्री० दे० ‘ढेंकी’।
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ढकेलना  : स० [हिं० धक्का] १. किसी भारी चीज या यान को पीछे से इस प्रकार धक्का देना कि वह आगे बढ़े या चले। २. किसी व्यक्ति अथवा किसी चीज को इस प्रकार धक्का देना कि वह गिर या लुढ़क पड़े। जैसे–(क) आदमी का बच्चे को ढकेलना। (ख) पहाड़ पर से पत्थर ढकेलना। ३. अनादरपूर्वक धक्का देते हुए किसी को कहीं से बाहर निकालना। ४. किसी को किसी ओर बढ़ने में प्रवृत या विवश करना। जैसे–भीड़ को आगे या पीछे ढकेलना। ५. कोई काम जैसे–तैसे आगे बढ़ाना या चलाना। ६. किसी को इस प्रकार बुरी तरह से दूर करना या हटाना कि वह हीन स्थिति में पहुँचे। जैसे–लड़की का ब्याह क्या किया है किसी तरह उसे घर से ढकेला है। ७. भोजन करना। खाना। (व्यंग्य)। ८. किसी के साथ प्रसंग या संभोग करना। (बाजारू)।
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ढकेला-ढकेली  : स्त्री० [हिं० ढकेलना] आपस में एक दूसरे को बार-बार ढकेलने या धक्के देने की क्रिया या भाव।
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ढकोरना  : स०=ढकेलना। (पूरब)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढकोसना  : स० [ढक-ढक से अनु०] एक बारगी या भुखमरी की तरह कोई चीज अधिक खाना या पीना। भकोसना।
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ढकोसला  : पुं० [हिं० ढंग+सं० कौशल] १. दूसरों को धोखा देकर अपना कोई उद्देश्य सिद्ध करने के लिए धारण किया या बनाया हुआ झूठा रूप। आंडंबर। २. एक प्रकार की कविता जिसमें कई अन-मेल या असंगत बातें एक साथ कही जाती हैं। उदाहरण–-भादों, पक्की पीपली, झड़-झड़ पड़े कपास। बी मेहतरानी दाल पकाओगी या नंगा ही सो रहूँ।–खुसरों।
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ढक्क  : पुं० [सं०] एक प्राचीन देश का नाम। (कदाचित आधुनिक ढाका के आस-पास का प्रदेश)।
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ढक्कन  : पुं० [हिं० ढकना] किसी आधान का वह अंग जो उसके मुँह पर उसे बंद करने के लिए रखा या कसा जाता है। जैसे–डिब्बे या देगची का ढक्कन, टोकरी या संदूक का ढक्कन। विशेष–कुछ आधानों के ढक्कन उनके साथ लगे होते हैं, और कुछ के अलग होते हैं।
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ढक्का  : स्त्री० [सं० ढक√कै (शब्द)+क-टाप्] [स्त्री० अल्पा० ढक्की] १. बड़ा ढोल। २. डंका। नगाड़ा। पुं० दे० ‘धक्का’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढक्कारी  : स्त्री० [सं० ढक√कृ (करना)+अण्-ङीप्] तारा देवी।
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ढक्की  : स्त्री० [हिं० ढाल] १. पहाड़ी प्रदेशों में वह स्थान जहाँ से ऊपर की ओर चढ़ना पड़ता है। (पश्चिम) २. ढालुआँ भू-भाग।
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ढंख  : पुं० [सं० आषाढ़क या हि० ढाक] १. ढाक या पलाश का पौधा। २. वह स्थान जहाँ पलाश के बहुत से पौधे हों।
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ढंग  : पुं० [सं० तंग (तंगन)] १. कोई काम करने की रीति, विशेषतः ऐसी रीति जिसके अनुसार प्रायः कोई काम किया जाता या होता हो। जैसे–उनके बैठने-उठने या चलने-फिरने का ढंग निराला है। २. कोई काम करने या रचना प्रस्तुत करने की प्रचलित तथा व्यवस्थित शैली। जैसे–साड़ी पर जाल बनाने का ढंग भी वह जानता है। ३. किसी चीज या बनावट की रचना का वह विशिष्ट प्रकार जिससे उसका स्वरूप स्थिर होता है। जैसे–आज-कल इस ढंग के कपड़े नहीं चलते। ४. भेद-विभेद आदि के विचार से स्थिर होनेवाला प्रकार। पद–ढंग का=(क) अच्छे और उपयुक्त प्रकार का। जैसे–कोई ढंग की नौकरी तो पहले मिले। (ख) कार्य व्यवहार आदि में कुशल या चतुर। जैसे–कोई ढंग का नौकर रखो। ५. किसी चीज की बनावट या रचना का प्रकार जिससे उसका स्वरूप स्थिर होता है। जैसे–आज-कल इस ढंग के कपड़ों का चलन नहीं है। ६. अभिप्राय या कार्य सिद्ध करने का उपाय या युक्ति। तरकीब। जैसे–किसी ढंग से अपनी रकम निकाल लेनी चाहिए। क्रि० प्र०–निकालना। मुहावरा–(किसी के) ढंग पर चढ़ना=किसी की तरकीब या युक्ति के फेर में पड़कर उसके उद्देश्य साधन में अनुकूल होकर सहायक बनना। (किसी को) ढंग पर लाना=अपना अभिप्राय सिद्ध करने के लिए किसी को अपने अनुकूल करना या बनाना। किसी को इस प्रकार प्रवृत्त करना जिससे कुछ मतलब निकले। ७. अभिप्राय या कार्य सिद्ध करने के लिए धारण किया जानेवाला ऐसा रूप जो केवल दूसरों को धोखे में रखने के लिए हो। जैसे–यह लड़का मिठाई खाने के लिए तरह-तरह के ढंग रचता है। क्रि० प्र०–रचना।–साधना। ८. ऐसा आचरण, बरताव या व्यवहार जो किसी विशिष्ट कार्य के लिए उपयुक्त या पात्र बनाता हो। जैसे–यह सब तो जाति (या क्षेत्र) के चौपट होने का ढंग है। मुहावरा–ढंग बरतना=पारस्परिक व्यवहार में ठीक-तरह से आचरण करना। जैसे–जरा ढंग बरतना सीखो ९. कोई ऐसी अवस्था या स्थिति जो किसी बात की सूचक हो। चिन्ह। लक्षण। जैसे–अभी पानी बरसने का कोई ढंग नहीं दिखाई देता। पद–रंग-ढंग=स्वरूप और कार्य-प्रणाली। जैसे–इस कार्यालय का रंग-ढंग कुछ अच्छा नही जान पड़ता।
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ढंग-उजाड़  : पुं० [हिं० ढंग+उजाड़] कुछ घोड़ों की दुम नीचे होनेवाली भौरी जो अशुभ मानी जाती है।
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ढंग-बाज  : वि०=ढोंगी।
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ढगण  : पुं० [मध्य० स०] पिंगल में तीन मात्राओं का एक गण।
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ढँगलाना  : स० [?] लुढ़काना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ०–लुढ़कना।
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ढंगी  : वि० [हिं० ढंग] १. (व्यक्ति) जो ढंग से कोई काम करता हो। २. बहुत बड़ा चालबाज या धूर्त्त। (व्यक्ति) ३. दे० ‘ढोंगी’।
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ढचर  : पुं० [हिं० ढाँचा] १. कोई काम करने या चीज बनाने से पहला खड़ा या तैयार किया जानेवाला उसका ढांचा। क्रि० प्र०–बाँधना। क्रि० प्र०–फैलाना।–रचना। २. आडंबर। ढकोसला। ढोंग। ३. व्यर्थ का जंजाल या झंझट। वि० बहुत ही क्षीण, जर्जर या दुबला-पतला।
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ढटींगड़(र)  : पुं०=ढटींगड़।
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ढट्ठा  : पुं० [स्त्री० अल्पा० ढट्ठी] १.ढाटा। २.=ढड्ढा। ३. =डट्टा (डाट)।
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ढट्ठी  : स्त्री० [हिं० डाढ़] १. छोटा ढाटा। २. कपड़े की वह चौड़ी पट्टी जिससे दाढ़ी बाँधी जाती है।
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ढड्ढो  : स्त्री० [हिं० ढड्ढा] १. वह बहुत बुड्ढी स्त्री जिसके शरीर में हड्डियों का ढाँचा ही रह गया हो। २. मटमैले रंग की एक चिड़िया जो बहुत शोर करती और प्रायः अपने वर्ग की दूसरी चिड़ियों से लड़ती रहती है। चरखी।
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ढँढ़रच  : स्त्री० [हिं० ढंग+रचना] ढकोसला।
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ढंढस  : पुं० दे० ‘ढँढरच’।
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ढंढार  : वि० [हिं० ढंग] जिसे कोई ढंग न आता हो। अकुशल तथा मूर्ख।
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ढँढोर  : पुं० [अनु० धायँ-धायँ] १. आग की लपट। २. लंगूर। पुं०=ढँढोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढँढोरची  : पुं० [हिं० ढँढोर+फा० ची (प्रत्यय)] ढँढोरा पेरनेवाला। डुग डुगी बाजकर घोषणा करनेवाला। ढँढोरिया।
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ढँढोरना  : स० [हिं० ढंढोरा] १. ढँढोरा पीटना या बजाना। २. ढँढोरा फेरना। मुनादी कराना। स० [हिं० ढूँढ़ना] तलाश करना। उदाहरण–-सारद उपमा सकल ढँढोरी।–तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढँढोरा  : पुं० [अनु० ढम+ढोल] १. वह ढोल जो जन-साधारण को किसी बात की सूचना देने या सार्वजनिक रूप से घोषणा करने के समय बजाया जाता है। डुगडुगी। डुग्गी। डौंडी। क्रि० प्र०–पीटना।–बजाना। २. ढोल बजाकर की जानेवाली घोषणा। मुनादी। मुहावरा–ढँढोरा फेरना=(क) किसी बात की सूचना सबको ढोल बजाकर देना। जैसे–लड़के के खोने पर उन्होंने ढँढोरा फिरवाया था। (ख) किसी बात की सूचना सब को देते फिरना। जैसे–घर की बातों का ढँढोरा नहीं फेरा जाता।
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ढँढोरिया  : पुं=ढँढोरची।
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ढँढोलना  : स०=ढँढोरना (ढूँढ़ना)।
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ढढ्ढा  : वि० [हिं० ठाठ] बहुत से व्यर्थ के अंगों या बातों से युक्त होने के कारण जिसका आकार या रूप व्यर्थ बहुत बढ़ गया हो। पुं० १. बाँसों आदि की वह रचना जिस पर खड़े होकर राज, मिस्त्री आदि ऊंची दीवारें आदि बनाते हैं। २. किसी वस्तु या रचना के अंगों की वह स्थूल योजना जो उसके आरंभ में की जाती है और जो उसके भावी रूप की परिचायक होती है। ठाठ। ढाँचा। ३. कोई ऐसी बहुत बड़ी या विस्तृत चीज जिसके बहुत से अंश फालतू या व्यर्थ के हों। ४. व्यर्थ का आडंबर या ठाठ-बाट।
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ढनमनाना  : अ० [अनु०] लुढ़कना। स०=लुढ़काना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढप  : पुं०=डफ।
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ढँपना  : अ० [हिं० ढाँपना का अ०] किसी प्रकार की आड़ में या आवरण के नीचे होने के कारण आँखों से ओझल होना। ढाँपा जाना। स०=ढकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=ढकना। (ढक्कन)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढपना  : पुं० [हिं० ढाँपना] ढकने की वस्तु। ढक्कन। स०=ढाकना (ढाँकना)।
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ढपरी  : स्त्री० [हिं० ढाँपना] १. ढाँपने या ढकने की कोई छोटी चीज। २. अंगीठी ढकने का ढक्कन। (चूड़ीवाले)।
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ढपला  : पुं० [स्त्री० ढपली]=डफला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढप्पू  : वि० [देश०] १. बहुत बड़ा परन्तु प्रायः निकम्मा या व्यर्थ का।
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ढफ  : पुं०=डफ (बाजा)।
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ढब  : पुं० [सं० धव] १. कोई काम ठीक प्रकार से संपादित करने की क्रिया-प्रणाली या रीति। २. ठीक प्रकार से कोई कार्य संपादित करने का गुण या योग्यता। पद–ढब का-(व्यक्ति) जो ठीक प्रकार से काम करता हो। जैसे–कोई ढब का नौकर मिले तो रख लिया जायगा। ३. बनावट, रचना आदि का कोई विशिष्ट प्रकार। ४. उपाय। युक्ति। मुहावरा–ढब पर चढ़ाना, लगाना या लाना=किस को इस प्रकार फुसलाना कि उससे अपना काम निकाला जा सके। ५. आकृति। स्वभाव। ६. आदत। बान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढबका  : पुं० [हिं० ढब] उपाय। तरकीब।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढबरा  : वि०=ढाबर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढबरी  : स्त्री०=ढिबरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढबीला  : वि० [हिं० ढब] [स्त्री० ढबीली] १. (वस्तु) जो अच्छे रूपरंग या प्रकार की हो तथा काम में आने योग्य हो। ढब का। २. (व्यक्ति) जो ठीक ढंग से काम करता हो।
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ढबुआ  : पुं=डेउआ (पैसा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [देश०] खेत की मचान की छाजन।
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ढबैला  : वि० [हिं० ढाबर] (पानी) जिसमें मिट्टी और कीचड़ मिला हुआ हो। वि=ढबीला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढमकना  : अ० [अनु०] ढम ढम शब्द उत्पन्न होना। स०=ढमकाना।
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ढमकाना  : स० [हिं० ढमकना] ढम ढम शब्द उत्पन्न करना। उदाहरण–-कोउ उमंग सौं संग-संग ढोलक ढमकावत।–रत्ना।
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ढमढम  : पुं० [अनु०] ढोल, नगाड़े आदि के बजने का शब्द। क्रि० वि० ढम-ढम शब्द करते हुए।
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ढमलाना  : स०=लुढ़काना। अ०=लुढ़कना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढयना  : अ०=ढहना। (गिरना)।
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ढरक  : स्त्री० [हिं० ढरकना] १. ढरकने की क्रिया या भाव। २. दयालुता। ३. अनुरक्ति। ४. प्रवृत्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढरकना  : अ० [हिं० ढार] १. ढलकना। २. लेटना।
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ढरका  : पुं०=ढलका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढरकाना  : स=ढलकाना।
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ढरकी  : स्त्री० [हिं० ढरकना] करघे में छोटे खाने की तरह का वह अंग जिसमें बाने का सूत रहता है और जिसके दाहिने बाएँ आते-जाते रहने से ताने में बाने का सूत भरता है।
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ढरकीरा  : वि० [हिं० ढरकना] ढलने या ढलकने वाला।
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ढरना  : अ=ढलना।
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ढरनि  : स्त्री० [हिं० ढरना] १. ढलने या ढरने की क्रिया या भाव। ढाल। २. बार-बार इधर-उधर प्रवृत्त होने अथवा हिलने-डुलने की क्रिया या भाव। ३. किसी पर अनुरक्त या किसी ओर प्रवृत्त होने की अवस्था, क्रिया या भाव। ४. किसी की दीन-हीन दशा पर मन के द्रवित होने की अवस्था या भाव। ५. नीचे की ओर गिरने या पतित होने की क्रिया या भाव। पतन।
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ढरहरना  : अ० [हिं० ढरना या ढलना] १. ढाला जाना। उँडेला जाना। २. पूरी तरह से भरा जाना। ३. खिसकना या लुढ़कना। ४. किसी ओर झुकना या ढलना।
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ढरहरा  : वि० [हिं० ढार+हरा (प्रत्यय)] [स्त्री० ढरहरी] १. ढलने, बहने या लुढ़कनेवाला। २. ढालुआँ। ३. किसी ओर प्रवृत्त होनेवाला।
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ढरहरी  : स्त्री० [देश] १. एक प्रकार का पकवान। २. पकौड़ी। स्त्री० [हिं०=ढलना](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) ढालुई जमीन। ढाल।
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ढराई  : स्त्री०=ढलाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढराना  : स० [?] १. दे० ‘ढलाना’ या ‘ढलवाना’। २. दे० ‘ढलकाना’।
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ढरारा  : वि० [हिं० ढार] [स्त्री० ढरारी] १. किसी ओर ढलने या बहनेवाला। २. ढालुआँ ३. जल्दी इधर-उधर लुढ़कनेवाला। ४. किसी की ओर प्रवृत्त होनेवाला। ५. सहज में किसी के साथ अनुराग या स्नेह करनेवाला। उदाहरण–-नीके अनियारे अति चपल ढरारे प्यारे..।सेनापति।
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ढरियाना  : स० [हिं० ढारना] १. ढालना। २. ढलकाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढरी  : पुं० [हिं० ढरना-ढलना] १. किसी वस्तु या व्यक्ति के ढरने (ढलने) या किसी ओर प्रवृत्त होने का प्रकार, मार्ग या रूप। २. कोई काम करने की निश्चित या बँधी हुई पद्धति, प्रणाली या शैली। मुहावरा–ढर्रे पर आना या लगना=कार्य सिद्ध के लिए अनुकूल, ठीक ढंग या रास्ते पर आना। जैसे–अब तो वह बहुत कुछ ढर्रे पर आ चला है। ३. उपाय। तदबीर। युक्ति। ४. आचार, व्यवहार आदि का प्रकार या रूप। जैसे–उसका यह ढर्रा तो ठीक नहीं है।
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ढरैया  : वि० पुं०=ढलैया।
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ढलकना  : अ० [हिं० ढलना] १. पानी या और किसी द्रव पदार्थ का नीचे की ओर प्रवृत्त होना या बहना। ढलना। जैसे–आँखों से आँसू ढलकना। २. लुढ़कना। ३. नीचे की ओर प्रवृत्त होना। ४. किसी पर अनुरक्त होना। विशेष दे० ढलना।
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ढलका  : पुं० [हिं० ढलकना] १. आँख का एक रोग जिसमें आँख से बराबर पानी बहा करता है। २ .बाँस का वह चोंगा या नली जिसकी सहायता से चौपायों के गले के नीचे दवा उतारी या ढलकाई जाती है।
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ढलकाना  : स० [हिं० ढलकना का स०] १. पानी या और किसी द्रव पदार्थ को ढलकने में प्रवृत्त करना। २. नीचे की ओर प्रवृत्त करना। ३. लुढ़कना। संयो० क्रि०–देना।
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ढलकी  : स्त्री०=ढरकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढलना  : अ० [हिं० ढालना का अ०] १. द्रव पदार्थ का नीचे की ओर गिरना या गिराया जाना। जैसे–बोतल की दवा गिलास में ढलना। २. साँचे में किसी पिघले हुए पदार्थ का, उसे कोई विशेष आकार,-प्रकार देने के लिए उँड़ेला या डाला जाना। ३. उक्त प्रकार से पिघले हुए पदार्थ का साँचे में जम या ठंढ़ा होकर ठोस रूप धारण करना। जैसे–मूर्ति ढलना। ४. अवनति या ह्रास अथवा अंत या समाप्ति की ओर बढ़ना। जैसे–उमर या जवानी ढलना, दिन ढलना। ५. ग्रह, नक्षत्र आदि के संबंध में, अस्त होने पर आना। जैसे–चांद या सूर्य का ढलना। पद–ढलती फिरती छाँह-ऐसी स्थिति जो कभी बिगड़ती और कभी सुधरती हो। ६. समय का बीतने को होना। जैसे–अवधि ढलना। ७. दया, प्रेम आदि के वश में होकर किसी ओर अनुरक्त या प्रवृत्त होना। जैसे–भगवान का भक्तों पर ढलना। ८. विशिष्ट रूप से केवल मद्य के संबंध में, पीने के लिए पात्र में उँडेला जाना। जैसे–बोतल या शराब ढलना। ९. लुढ़कना। १॰. दे० ‘ढुलना’।
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ढलमल  : वि० [अनु०] जो कभी इधर और कभी उधर प्रवृत्त होता या लुढ़कता हो। ढुलमुल।
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ढलवाँ  : वि० [हिं० ढालना] १. जो साँचे में डालकर बनाया गया हो। ढाला हुआ। २. दे० ‘ढालुआँ’।
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ढलवाना  : स० [हिं० ढालना का प्रे०] ढालने का काम किसी और से कराना। किसी को कुछ ढालने में प्रवृत्त करना।
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ढलाई  : स्त्री० [हिं० ढालना] १. ढालने की क्रिया या भाव। २. पिघली हुई धातु को साँचे में ढालकर बरतन, मूर्तियाँ आदि बनाने की क्रिया या भाव या मजदूरी। ३. ढलान। (दे०)
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ढलान  : स्त्री० [हिं० ढलना] १. ढलने या ढालने की क्रिया या भाव। २. कोई ऐसा भू-खंड जो चिपटा और समतल न हो, बल्कि तिरछा हो, अर्थात् जिसमें नीचे की ओर ढाल हो। ३. ऐसा ढालुआँ स्थान जहाँ वर्षा का पानी ढलकर किसी नदी में मिलता हो।
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ढलाना  : स=ढलवाना।
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ढलाव  : पुं० [हिं० ढालना+आव (प्रत्यय)] ढलने या ढालने की क्रिया ढंग या भाव।
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ढलुआँ  : वि०=ढलवाँ।
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ढलैत  : पुं० [हिं० ढाल] प्राचीन काल में, वह योद्धा जो डाल बाँधे रहता था।
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ढलैया  : वि० [हिं० ढालना] ढालनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० वह कारीगर जो गलाई हुई धातुओं को ढालकर कोई चीज बनाता हो।
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ढवरी  : स्त्री० [हिं० ढलना] १. ढलने अर्थात् किसी ओर प्रवृत्त होने अथवा किसी पर अनुरक्त होने की अवस्था, या भाव। २. निरंतर किसी की ओर बना रहनेवाला ध्यान। लगन। लौ।
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ढसक  : स्त्री० [अनु० ढस० ढस] सूखी खाँसी। ढाँसी।
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ढहरना  : अ०=ढलना। उदाहरण–-पै उठि लहर समूह नैकुँ इत उत नहि ढहरै।–रत्ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ढहरा  : पुं० [?] १. जंगल। वन। २. खुली और नीची भूमि। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढहराना  : स० [अनु०] १. ढरकाना। २. ढाना। ३. सूप में अनाज रखकर फटकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढहरी  : स्त्री० [सं० देहली] डेहरी। दहलीज। स्त्री० [?] मिट्टी का घड़ा या मटका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढहवाना  : स० [हिं० ढाहना का प्रे०] ढाने का काम दूसरे से कराना। गिरवाना। ढहाना।
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ढहाना  : स०=ढहवाना।
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ढाई  : वि० [सं० अर्द्ध-द्वितीय, प्रा० अड्ढाइय; पुं० हिं० अढ़ाई] १. (इकाई या मान) जिसमें दो पूरे के साथ आधा और मिला हुआ हो जैसे–ढाई गज कपड़ा, ढाई सेर चीनी, ढाई रुपया। २. जो गिनती में दो से आधा अधिक हो। जैसे–ढाई बजे की गाड़ी। मुहावरा–(किसी को) ढाई घड़ी को आना=अचानक और चटपट मौत आना। (स्त्रियों को कोसना) जैसे–तुझे ढाई घड़ी को आवे। पद–ढाई दिनों की बादशाहत=(क) थोड़े समय का ऐश्वर्य या सुखभोग। (ख) किसी के विवाह के समय के दो तीन दिन। स्त्री० [हिं० ढाना] १. लड़कों का एक खेल जो कौडियों से खेला जाता है। २. उक्त खेल खेलने की कौडियाँ। ढाक
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ढाँक  : पुं० [हिं० ढाँकना ?] कुस्ती का एक पेंच। पुं०=ढाक (पलाश)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढाक-पाटन  : पुं० [ढाका नगर] एक प्रकार की बढ़िया मलमल जिसकी बुनावट में फूल या बूटियाँ बनी होती थी।
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ढाकई  : वि० [हिं० ढाका नगर] ढाके का। जैसे–ढाकई नाव, ढाकई साड़ी। पुं० ढाके की तरफ होने वाला एक प्रकार का केला।
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ढाँकना  : स०=ढकना।
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ढाकना  : स०=ढकना। (ढाँकना)।
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ढाकेवाल  : वि=ढाकई। जैसे–ढाकेवाल पटैला।
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ढाँखा  : पुं० [हिं० ढाक] ढाक या पलाश का जंगल। उदाहरण–जावंत जग साखा बन ढाँखा।–जायसी।
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ढाँगाँ  : वि० दे० ‘ढालुआँ’।
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ढाँच  : पुं०=ढाँचा।
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ढाँचा  : पुं० [सं० स्थाता] १. कोई वस्तु या रचना बनाते समय उसके विभिन्न मुख्य अंगों को जोड़ या बाँदकर खड़ा किया हुआ वह आरंभिक या स्थूल रूप जिस पर बाकी सारी रचना प्रस्तुत होती है। जैसे–मकान का ढाँचा, कुरसी का ढाँचा। २. कोई ऐसी रचना जिसमें कोई दूसरी चीज जड़ी, बैठाई या लगाई जाती है। ३. ग्रंथ, लेख, नक्शे आदि का आरंभिक तथा आधारिक रूप। ४. ठठरी। पंजर। ५. गठन। बनावट।
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ढाटा  : पुं० [हिं० डाढ़] १. कपड़े की वह चौड़ी पट्टी जिससे दाढ़ी बाँधी जाती है। २. वह पगड़ा जिसका एक फेंटा या बल गालों और दाढ़ी पर भी लपेटा जाता है ३. वह कपड़ा जो मुरदे के कफन पर उसका मुँह बँधा रखने के लिए बाँधा जाता है। क्रि० प्र०–बाँधना।
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ढाड  : स्त्री० [अनु०] १. दहाड़। २. दाढ़। २. ढाह (चिल्ला कर रोना)। मुहावरा–ढाह मारकर रोना=खूब जोर से चिल्लाते हुए रोना।
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ढाडना  : अ=दहाड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढाडी  : पुं०=दाढ़ी।
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ढाढ  : स्त्री=ढाढ।
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ढाढ़ना  : स० १. दे० ‘डाढ़ना’। २. दे० ‘दहाड़ना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढाढ़स  : पुं०=ढारस।
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ढाढ़िन  : स्त्री० [हिं०] ढाढ़ी का स्त्री रूप।
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ढाढ़ी  : पुं० [देश०] [स्त्री० ढाढ़िन] १. गाने-बजाने वालों की एक जाति या वर्ग जो मंगल-अवसरों पर बधाइयाँ आदि गाती है। २. मुसलमान गवैयों की एक जाति या वर्ग जो प्रायः अच्छे संगीतज्ञ होते हैं।
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ढाढ़ौन  : पुं० [सं० ढिढ़िणी] जल-सिरिस का पेड़।
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ढाना  : स० [सं० ध्वंसन, हिं० ढाहना] १. कोई ऊँची उठी या बनी हुई इमारत या रचना तोड़-फोड़कर गिराना। जैसे–दीवार या मकान ढाना। २. किसी प्रकार बे-काम करके जमीन पर गिराना। जैसे–कुश्ती में प्रतिपक्षी को या लड़ाई में शत्रु को ढाना। ३. कोई विकट बात उपस्थित या प्रस्तुत करना। जैसे–गजब ढाना। संयो० क्रि०–देना। ४. मिटाना। (पश्चिम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढाँपना  : स०=ढकना (ढाँकना)।
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ढापना  : स०=ढाँपना। (ढकना)।
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ढाब  : पुं० [हिं० डाबर] छोटा ताल। तलैया।
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ढाबर  : वि० पुं०=डाबर।
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ढाबा  : पुं० [देश०] १. ओलती २. जाल। ३. परछत्ती मियानी। ४. वह स्थान जहाँ पकी हुई कच्ची रसोई बिकती या दाम लेकर लोगों को खिलाई जाती हो पुं०=धाबा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढामक  : पुं० [अनु०] ढोल, नगाड़े आदि के बजने का शब्द।
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ढामना  : पुं० [देश०] एक प्रकार का साँप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढामरा  : स्त्री० [सं० ढाम√रा (देना)+क-टाप्] मादा हंस। हंसी।
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ढार  : पुं० [सं० धार] १. पथ। मार्ग। रास्ता। २. ढंग। प्रकार। ३. ढाँचा। ४. वस्तुएँ ढालने का साँचा। ५. साँचे में ढाली हुई वस्तु। ६. रचना। बनावट। ७. दे० ‘ढरनि’। स्त्री० १. कान में पहनने का बिरिया नाम का गहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) २. हाथ में पहनने की पिछेले। स्त्री०=ढाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढारना  : स०१=ढालना। २.=डालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढारस  : पुं० [सं० धूष् या दाढर्य ?] १. किसी दुःखी निराश या हतोत्साह व्यक्ति के प्रति कही जानेवाली ऐसी आशामय बात जिससे उसके मन में पिर से कुछ उत्साह या धैर्य का संचार हो। आश्वासन। क्रि० प्र०–देना।–बँधाना। २. कष्ट, विपत्ति आदि के समय भी मन में बना रहनेवाला साहस या हिम्मत। ३. मन या विचार की दृढता (क्व०)।
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ढारा  : वि० [हिं० ढारना] ढारने अर्थात् ढालनेवाला। उदाहरण–-रखेउ छात चँवर औ ढार।–जायसी।
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ढाल  : स्त्री० [सं०√ढौक् (चलाना)+अच्, पृषो० सिद्धि] चमड़े, धातु आदि का बना हुआ वह गोलाकार उपकरण जिसे युद्ध-क्षेत्र में सैनिक लोग तलवार, भाले आदि का वार रोकने के लिए अपने बायँ हाथ में रखते थे। चर्म। फलक। मुहावरा–ढाल तलवार बाँधना=वीरों का सा वेश धारण करके योद्धा बनना। स्त्री० [सं० धार] किसी भूखंड का ऐसा तल जो क्षितिज के समतल न हो बल्कि तिरछा या नीचे की ओर झुका हुआ हो। स्त्री० [हिं० ढालना] १. ढालने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. वह प्रकार या रूप जिसमें कोई चीज ढली या ढालकर बनी हो। ३. रंग-ढंग। तौर-तरीका। पद–चाल-ढाल (देखें)। ४. चन्दे, प्राप्य धन आदि की उगाही। (पश्चिम)।
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ढालना  : स० [सं० ध्वल्, प्रा० ढाल, डल्ल, गु० ढालवूँ, मरा० ढालणें, सि, ढारराड] १. कोई द्रव पदार्थ धार बाँधकर किसी पात्र में या यों ही कहीं गिराना या डालना। उँड़ेलना। जैसे–(क) गिलास में दूध ढालना। (ख) हंडे का पानी जमीन पर ढालना। २. कोई चीज बनाने के लिए गली या पिघली हुई धातु किसी साँचे में उँड़ेलना या गिराना। जैसे–पीतल के खिलौने या लोहे के कल-पुरजे ढालना। ३. पीने के लिए बोतल में से गिलास आदि में शराब उलटना या गिराना। ४. मद्य-पान करना। शराब पीना। जैसे–आज-कल मित्र मंडली में वह भी ढालने लगे हैं। ५. व्यंगंय हास्य आदि के रूप में कही हुई बात किसी दूसरे व्यक्ति पर लगाना या उसकी ओर प्रवृत्त करना। जैसे–साधारण हँसी की बात भी तुम मुझ पर ही ढीलने लगते हो ६. दाम लेकर कोई चीज बेचना। (दलाल) जैसे–वे अपने दोनों मकान ढाल रहे हैं। ७. प्राप्य धन, चन्दा आदि उगाहना। (पंजाब)।
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ढालवाँ  : वि०=ढालुआँ।
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ढालिया  : पुं० [हिं० ढालना] वह कारीगर जो साँचों में चीजें ढालकर बनाता हो। पुं० [हिं० ढाल] वह योद्धा जो अपने पास ढाल (रक्षा का उपकरण) रखता हो।
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ढाली (लिन्)  : पुं० [हिं० ढाल+इनि] वह सैनिक जो ढाल धारण किये हो।
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ढालुआँ  : वि० [हिं० ढाल] [स्त्री० ढालुई] १. (तल या स्तर) जो बराबर आगे की ओर नीचा होता गया हो। जिसमें ढाल अर्थात् आगे की ओर बराबर उतार हो। जैसे–जहाज का ढालवाँ किनारा। वि० [हिं० ढालना] (पदार्थ) जो साँचे आदि में ढालकर बनाया गया हो। जैसे–ढालवाँ लोटा।
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ढालू  : वि० [हिं० ढालना=बेचना] जो कोई चीज बेचने को हो। (दलाल) वि०=ढालआँ। (तल)।
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ढावना  : स०=ढाना। (गिरना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढाँस  : स्त्री० [अनु०] १. ढाँसने की क्रिया या भाव। दे० ‘ढाँसी’।
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ढास  : पुं० [सं० दस्यु] १. ठग। २. लुटेरा। ३. डाकू। स्त्री० [हिं० ढासना] १. ढासना लगाने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–लगाना। २. वह चीज जिस पर ढासना लगाकर बैठा जाय।
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ढाँसना  : अ० [हिं० ढाँस] इस प्रकार बार-बार खाँसना कि गले से वैसा ही ढाँ ढाँ शब्द निकले जैसा प्रायः कुत्तों के खाँसने के समय निकलता है।
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ढासना  : पुं० [सं० धा=धारण करना+आसन] वह तकिया या और कोई ऊंची खड़ी वस्तु जिस पर टेक लगाकर कहीं बैठा जाता है। जैसे–दीवार का ढासना लगाकर बैठना।
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ढाँसी  : स्त्री० [अनु०] एक प्रकार की सूखी खाँसी जिसमें लगातार कुछ समय तक गले में उसी प्रकार का ढाँ ढाँ शब्द निकलता है जैसा कुत्तों के खाँसने पर होता है।
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ढाहना  : स०=ढाना। (गिराना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढाहा  : पुं० [हिं० ढाहना] नदी का ऊँचा किनारा (जिसके आगे की मिट्टी ढह गई हो।)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढिकचन  : पुं० [देश०] एक प्रकार का गन्ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढिकुली  : स्त्री=ढेंकली।
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ढिंग  : क्रि० वि० [सं० ढिक्=ओर] पास समीप। निकट। नजदीक। स्त्री०१.नजदीकी। सामीप्य। २.जलाशय का किनारा या तट। ३.छोर। सिरा। ४.चादर,धोती आदि का किनारा। पाड़।
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ढिठई  : स्त्री=ढिठाई (धृष्टता)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ढिठाई  : स्त्री० [हिं० ढीठ+आई (प्रत्यय)] १. ढीठ अर्थात् धृष्ट होने की अवस्था या भाव। धृष्टता। २. बड़ों के सामने लज्जा छोड़कर दुस्साहसपूर्वक किया जानेवाला कोई अनुचित, अशोभन या उद्दंडतापूर्ण आचरण या व्यवहार। ३. ऐसा साहस जो उचित या उपयुक्त न हो अथवा जिसके फल-स्वरूप कोई हानि हो सकती हो।
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ढिंडोरा  : पुं० [अनु० ढम+ढोल] १. वह डुग्गी या ढोल जिसे बजाकर किसी बात की सार्वजनिक घोषणा की जाती है। मुहावरा–ढिंढोरा पीटना या बजाना=ढोल बजाकर किसी बात की सूचना सर्वसाधारण को देना। मुनादी करना। ढिंढोरा फेरना=(क) ढिढोंरा बजाकर चारों ओर सूचना दिलवाना। मुनादी कराना। (ख) किसी घटना या बात की सूचना बहुत से लोगों को देना। २. उक्त प्रकार से की हुई घोषणा या सब को दी जानेवाली सूचना।
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ढिंढोरना  : स० [हिं० ढिंढोरा] ढिढोंरा पीटना या फेरना। स० [हिं० ढूँढ़ना] १. तलाश करना। ढूँढ़ना। २. बिलोड़ना। मथना।
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ढिपनी  : स्त्री० [देश०] १. पत्ते, फल, फूल आदि का वह भाग जो गोल छेद या मुँह के आकार का होता है और जहाँ से वह टहनी या डाल के साथ जुड़ा रहता तथा तोड़कर अलग किया जाता है। २. उक्त छेद या मुँह का वह रूप जो वानस्पतिक रस के जमने से उभरी हुई घुंडी के आकार का हो जाता है। जैसे–आम, जामुन, या लीची की ढिपनी। ३. स्तन का अग्र भाग।
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ढिपुनी  : स्त्री०=ढिपनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढिबरी  : स्त्री० [सं० ढिब्ब या हिं० ढपना] १. टीन, मिट्टी, शीशे आदि की वह कुप्पी जिसके मुँह पर चोंगी लगी रहती है। विशेष–कुप्पी में मिट्टी का तेल और चोंगी में बत्ती डालकर यह प्रकाश करने के लिए जलाई जाती है। २. बरतन बनाने के साँचे में सबसे नीचे का वह भाग जिसकी सहायता से ऊपर के दोनों खंड कसे जाते हैं। ३.किसी चीज में कसे हुए पेच को हिलने-डुलने से रोकने के लिए उसके मुँह पर लगाया जानेवाला चूड़ीदार छल्ला। ४. चमड़े या मूँज की वह चकती जो चरखे में इसलिए लगाई जाती है कि तकला घिरने न पावे।
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ढिमका  : सर्व० [हिं० अमका-अमुक, सं० अमुक का अनु०] [स्त्री० ढिमकी] अमुक। फलाना। पद–अमका ढिमका=कोई अज्ञात, तुच्छ या सामान्य (पदार्थ या व्यक्ति)]
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ढिमराऊ  : वि० [हिं० ढीमर] ढीमर या धीवर जाति का। पुं० वे विशिष्ट प्रकार के गीत जो ढीमर जाति के लोग गाते हैं।
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ढिमरिया  : वि० [हिं०ढीमर] ढीमर या धीवर संबंधी। स्त्री०ढीमर या धीवर जाति की स्त्री।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढिलढिला  : वि० [हिं०ढीला] १. ढीला-ढाला। २. (रस या रसा) जो बहुत गा़ढ़ा न हो, बल्कि कुछ पतला हो।
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ढिलाई  : स्त्री० [हिं० ढीला+आई (प्रत्यय)] १. ढीले होने की अवस्था या भाव। ढील। २. नियंत्रण, रुकावट आदि में होनेवाली कमी या शिथिलता। ३. कार्य, प्रबंध आदि में होनेवाली शिथिलता। सुस्ती।
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ढिलाना  : स० [हिं० ढीलना का प्रे०] किसी को कुछ ढीलने या ढीला करने में प्रवृत्त करना।
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ढिल्लड़  : वि० [हिं० ढीला] जो ढिलाई या बहुत सुस्ती से काम करता हो। शिथिलतापूर्वक काम करनेवाला। मट्ठर। सुस्त।
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ढिल्ली  : स्त्री=दिल्ली। (नगरी)।
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ढिल्ली वै  : पुं०=दिल्लीपति। उदाहरण–-ढिल्ली वै स्वपनंत मात कहिय प्रगट विप्यायं।– चंदवरदाई।
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ढिसरना  : अ० [सं० ध्वसंन] १. फिसल पड़ना। २. सरककर कुछ आगे बढ़ना। ३. उन्मुख या प्रवृत्त होना। ४. फलों का कुछ-कुछ पकना।
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ढींगर  : पुं० [हिं० डिंगर] १. लंबा-चौडा तथा मोटा ताजा आदमी। २. पत्नी की दृष्टि से उसका पति। ३. उपपति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढीगे  : क्रि० वि०=ढिग (पास)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ढीच  : पुं० [?] १. सफेद चील। २. कूबड़ (राज०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढीट  : वि०=ढीठ। (धृष्ट)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढीठ  : वि० [सं० धृष्ट] [भाव० ढिठाई] १. जो जल्दी किसी से डरता न हो और जो भय या संकट के समय भी अपने स्थान या हठ पर अड़ा रहता हो। जैसे–शहरों के बन्दर बहुत ढीठ होते हैं। २. जो प्रायः ऐसे अवसरों पर भी संकोच न करता हो जहाँ बड़ों की मान-मर्यादा का ध्यान रखना आवश्यक हो। जैसे–स्त्रियों को इतना ढीठ नहीं होना चाहिए। ३. जो जान-बूझ कर और हठ-वश ही बड़ों की आज्ञा-पालन न करता हो या उनका निषेध न मानता हो। जैसे–यह लड़का दिन-पर-दिन बहुत ढीठ होता जा रहा है। ४. साहसी। हिम्मतवर।
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ढीठता  : स्त्री० [हिं० ढीठ+ता (प्रत्यय)] ढीठ होने की अवस्था, गुण या भाव। ढिठाई। धृष्टता। (असिद्ध रूप)।
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ढीठयौ  : स्त्री० [हिं० ढीठ] धृष्टता। ढिठाई। उदाहरण–-त्यों त्यौं अति मीठी लगति ज्यों ज्यों ढीठयौ देइ।–बिहारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ढीठा  : वि=ढीठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढींढ  : पुं०=ढींढ़ा।
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ढींढ़स  : पुं० [सं० टिंडिश] डेंडशी। टिड़ा।
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ढींढ़ा  : पुं० [सं० ढुंढि=लंबोदर गणेश] १. बड़ा, भारी या निकला हुआ पेट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) मुहावरा–ढींढा फूलना=पेट में बच्चा होने पर (स्त्री का) पेट बढ़ना या निकलना। २. गर्भ। हमल। मुहावरा–ढींढा गिरना=गर्भपात होना।
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ढीम  : पुं० [देश०] १. पत्थर का बड़ा टुकड़ा। पत्थर या ढोका। २. मिट्टी आदि का बड़ा डला।
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ढीमड़ो  : पुं० [देश०] कूँआ। (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ढीमर  : पुं० [सं० धीवर] १. मल्लाह। २. कहारों की एक जाति।
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ढीमा  : पुं=ढीम।
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ढील  : स्त्री० [हिं० ढीला] १. ढीले होने की अवस्था, गुण या भाव। तनाव का भाव। २. नियंत्रण, रुकावट आदि में किसी के साथ की जानेवाली ढिलाई शिथिलता। क्रि० प्र०–देना। ३. विलंब। देर। वि०=ढीला। स्त्री० [देश०] सिर के बालों में पड़नेवाला एक प्रसिद्ध छोटा कीड़ा। जूँ।
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ढीलना  : स० [हिं० ढीला] १. किसी कसी हुई चीज को ढीला करना या छोड़ना। ऐसा काम करना जिससे कसाव या तनाव दूर होता हो। २. पकड़ी हुई रस्सी आदि इस प्रकार ढीली छोड़ना जिसमें वह बराबर आगे की ओर बढ़ती जाय। जैसे–पतंग की डोर ढीलना। ३. नियंत्रण, रुकावट आदि में शिथिलता करना। ४. बंधन मुक्त करना। छोड़ देना। ५. देर या विलंब करना। ६. किसी गाढ़े द्रव में पानी मिलाकर पतला करना। ७. किसी को किसी ओर ले जाना। (क्व०) जैसे–पूरब की तरफ बैल ढीलना।
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ढीला  : वि० [सं० शिथिल, प्रा० सिढिल, ढिला] [स्त्री० ढीली, भाव० ढिलाई] १. बन्धन जिसमें आवश्यक या उचित कसाव न आने पाया हो। जैसे–ढीली गाँठ, ढीली मुट्ठी। २. पदार्थ जो कसकर बाँधा न गया हो। जैसे–ढीली धोती, ढीली पगड़ी। ३. जिसमें उचित कसाव-खिंचाव या तनाव का अभाव हो। जैसे–ढीली चारपाई, ढीली रस्सीस, ढीली लगाम। मुहावरा–(किसी को) ढीला छोडऩा=आवश्यक अथवा उचित अंकुश नियंत्रण या दबाव न रखना। बहुत-कुछ स्वतंत्रता देखना। जैसे–तुमने लड़के को ढीला छोड़ रखा है, इसी लिए वह बिगड़ता जा रहा है। ४. जो अपने स्थान पर अच्छी तरह या ठीक जमा या बैठा न हो। जैसे–ढीला ढक्कन, ढीला पेंच। ५. जो नाप आदि के विचार से आवश्यकता से अधिक गहरा, चौड़ा या लंबा हो। जैसे–ढीला कुरता, ढीला जूता। ६. जिसमें उतना गाढ़ापन या घनता न हो जितनी होनी चाहिए। जैसे–ढीली चाशनी, ढीली दाल या तरकारी। ७. मंद। मद्धिम। पद–ढीली आँख=धीमी परन्तु मधुर चितवन या दृष्टि। ८. आलसी। मठ्ठर। सुस्त। जैसे–ढीला नौकर। ९. जो अपने कर्तव्य-पालन, प्रयत्न, विचार, संकल्प आदि में यथेष्ठ दृढ़ न रहता हो। जैसे–ढीला अफसर, ढीला मालिक। १॰. जिसका आवेश, क्रोध या और कोई मनोविकार मन्द पड़ गया हो या पड़ने लगा हो। जैसे–बात-चीत या व्यवहार में किसी के साथ ढीला पड़ना। क्रि० प्र०–पड़ना। ११. जिसमें काम का वेग या स्त्री-प्रसंग की शक्ति उचित या स्वाभाविक से बहुत कम हो।
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ढीलापन  : पुं० [हिं० ढीला+पन (प्रत्यय)] ढीले होने की अवस्था या भाव। ढिलाई। शिथिलता।
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ढीह  : पुं० १. =ढूह। (ऊँचा टीला)। २. =डीह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढ़ुकना  : अ० [सं० ढुक्क, प्रा० ढुक्कइ] १. अन्दर प्रवेश करना, विशेषतः झुक या छिपकर अथवा सिर झुकाकर प्रवेश करना। २. किसी के पारा या समीप पहुँचना। ३. टोह लेने के लिए आड़ में छिपना। ४. किसी पर टूट पड़ना। धावा करना।
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ढुकास  : स्त्री० [अनु० ढुक-ढुक] बहुत तृषित होने पर जल्दी जल्दी बहुत सा जल पीने की प्रबल इच्छा। कड़ी या तेज प्यास। क्रि० प्र०–लगना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुक्का  : पुं०=ढूका।
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ढुच्च  : पुं० [अनु०] घूँसा। मुक्का।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुटौना  : पुं०=ढोटा (लड़का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुँढ़  : पुं० [हिं० ढूँढ़ना] १. चाई। उचक्का। २. ठग। लुटेरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुंढन  : पुं० [सं०√ढुंढ (खोजना)+ल्युट-अन] ढूढ़ने की क्रिया या भाव।
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ढुंढ़पाणि  : पुं० [सं० दंडपाणि] १. दंडपाणि। भैरव। २. शिव का एक गण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुंढ़ा  : स्त्री० [सं०] राक्षस हिरण्य कश्यप की एक बहन जो प्रह्लाद को जलाने के निमित्त उसे गोद में लेकर आग में बैठी थी। भगवान विष्णु का यह वर कि तुम आग में नहीं जलोगी प्राप्त होने पर भी विष्णु भगवान की कृपा से यह जलकर भस्म हो गई थी।
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ढुंढि  : पुं० [सं०√ढुंढ+इन्] गणेश का एक नाम। ढुंढिराज। ये ५६ विनायकों में से एक हैं।
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ढुंढित  : वि० [सं० ढुंढ (खोजना)+क्त] ढूँढ़ा हुआ।
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ढुंढिराज  : पुं० [सं०] ढूँढ़ि नामक गणेश।
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ढुंढी  : स्त्री० [देश०] बाँह। मुहावरा–ढुंढियाँ चढ़ाना=मुश्कें बाँधना।
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ढुंढी  : स्त्री०=ढोंढी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुनमुनिया  : स्त्री० [हिं० ढनमनाना] १. बराबर लुढकने हुए या बार-बार कलाबाजी खाते हुए आगे बढ़ने की क्रिया या भाव। २. स्त्रियों का घेरा बाँधकर नाचते हुए कजली गाना।
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ढुर  : अव्य-घुर। (ठिकाने तक)।
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ढुर-ढुर  : वि० [?] १. साफ सुथरा। २. चिकना।
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ढुरकना  : अ० [हिं० ढार] १. लुढ़कना। २. झुकना। ३. प्रवृत्त होना। ४. अनुकूल या प्रसन्न होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुरकी  : स्त्री० [हिं० ढुरकना] ढुरकने की क्रिया या भाव। स्त्री=ढुरकी (करघे की)।
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ढुरन  : स्त्री० [हिं० ढुरना] ढुरने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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ढुरना  : अ० [हिं० ढार] १. नीचे की ओर प्रवृत्त होना। अनुकूल या प्रसन्न होना। ३. कभी इधर और कभी उधर गिरना, झुकना या लुढ़कना। जैसे–किसी के सिर पर चँवर ढुरना। ४. लुढ़कना। ५. ढलकना।
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ढुरहरी  : स्त्री० [हिं० ढुरना] १. बार-बार इधर-उधर ढुरने या हिलने-डोलने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. नथ में लगी हुई सोने के गोल दानों, मोतियों आदि की पंक्ति जो प्रायः इधर-उधर लुढ़कती रहती है। ३. ढुर्री। पगदंडी।
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ढुराना  : स० [हिं० ढुरना का स०] १. ढुरने अर्थात् नीचे की ओर गिरने जाने आदि में प्रवृत्त करना। ढलकाना। २. बार-बार इधर उधर हिलने-डोलने में प्रवृत्त करना। जैसे–चँवर ढुराना। ३. लुढ़काना।
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ढुरावना  : स०=ढुराना।
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ढुरुआ  : पुं० [हिं० ढुरना] गोल मटर। केराव मटर।
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ढुरुकना  : अ०=ढुलकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुर्री  : स्त्री० [हिं० ढुरना] खेतों, जंगलो, पहाड़ों आदि में का वह पतला रास्ता जो लोगों के चलते रहने या आने-जाने से आप से आप रेखा के रूप में बन जाता है। पगदंडी।
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ढुलकना  : अ० [हिं० ढुरना या ढलना] १. द्रव पदार्थ का नीचे की ओर प्रवृत्त होना। २. बराबर ऊपर नीचे चक्कर खाते हुए नीचे गिरना। लुढ़कना। ३. किसी पर अनुरक्त या प्रसन्न होना० ४. दे० ‘ढलना’।
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ढुलकाना  : स० [हिं० ढुलकना का स०] १. किसी चीज को ढुलकने में प्रवृत्त करना। २. लुढ़काना।
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ढुलढुल  : वि० [हिं० ढुलना=ढुलकना] जो बराबर लुढ़कता रहता हो।
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ढुलना  : अ० [हिं० ढना का अ०] एक स्थान से उठाकर किसी भारी चीज याचीजों को दूसरे स्थान पर पहुँचाया, रखा या लाया जाना। ढोया जाना। जैसे–असबाब या माल का ढुलना। अ० १. ढुलकना। (सभी अर्थों में) २. डुलना। (चँवर आदि का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढुलमुल  : वि० [हिं० ढुलना में का ढुल+अनु० मुल] १. (पदार्थ) जो किसी स्थान पर स्थिर न रहने के कारण बराबर हिलता-डुलता रहे। २. (व्यक्ति) जो विचारो की दृढ़ता या निश्चय के अभाव में किसी बात के दोनों पक्षों में से कभी एक ओर और कभी दूसरी ओर प्रवृत्त होता हो। जिसमें किसी बात या विषय के संबंध में अंतिम निर्णय करने की समर्थता न हो। जैसे–ढुलमुल यकीन=जल्दी हर बात पर अथवा कभी एक बात पर और कभी दूसरी बात पर विश्वास कर लेनेवाला।
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ढुलवाई  : स्त्री० [हिं० ढुलवाना] ढुलवाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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ढुलवाना  : स० [हिं० ढोना का प्रे०] किसी को कुछ ढोने में प्रवृत्त करना। ढोने का काम किसी दूसरे से कराना।
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ढुलाई  : स्त्री० [हिं० ढोना या ढुलवाना] १. ढोने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. दे० ‘ढुलवाई’।
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ढुलाना  : स० [हिं० ढोना का प्रे०] कोई चीज ढोने का काम किसी से कराना। ढुलवाना। जैसे–असबाब ढुलाना। स० १. नीचे की ओर गिराना, बहाना या लाना। ढलकाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) २. किसी ओर अनुरक्त या प्रवृत्त करना, अनुकूल या प्रसन्न कराना। ३. लुढ़काना। ४. इधर-उधर चलाना-फिराना या लाना-ले जाना। ५. लेप आदि के रूप में किसी चीज पर पोतना या लगाना। ६. डुलाना। (दे०)।
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ढुलुआ  : पुं० [देश०] खजूर की बनी हुई चीनी।
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ढुवारा  : पुं० [देश०] घुन। क्रीड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढूकड़ा  : अव्य० [सं० ढौक] पास। समीप। (राज०) उदाहरण–-साल्ह मललहूँ ढूकड़ा ढाठी डेरउ लीध।–ढोला मारू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढूँकना  : अ०=ढुकना।
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ढूँका  : पुं०=ढूका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढूका  : पुं० [हिं० ढुकना] १. ढुकने या प्रविष्ट होने की क्रिया या भाव। २. किसी की बात सुनने या रंग-ढंग देखने के लिए आड़ में छिप या लुककर बैठना। मुहावरा–ढूका देना या लगाना=छिप या लुककर किसी की बात-चीत सुनना या रंग-ढंग देखना। (किसी के) ढूके लगाना-ढूका लगाना। (देखें ऊपर)
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ढूँढ़  : स्त्री० [हिं० ढूँढना] ढूँढ़ने की क्रिया या भाव। खोज।
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ढूँढ़ना  : स० [सं० ढुंढ] किसी छिपी या खोई हुई अथवा इधर-उधर पड़ी हुई या आँखों से ओझल वस्तु, व्यक्ति आदि का पता लगाने के लिए इधर-उधर देखना-भालना। जैसे–अलमारी में से किताब ढूँढ़ना। (ख) किसी वकील का घर या डाक्टर की दूकान ढूँढ़ना।
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ढूँढ़ला  : स्त्री० [सं० ढुंढ़ा] हिरण्य कश्यप की बहन ढुँढा।
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ढूढिया  : पुं० [देश०] एक तरह के श्वेताम्बर जैन साधु जो मुँह पर पट्टी बाँधे रहते हैं।
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ढूल  : पुं०=ढोल । उदाहरण–-असंष सारहली बाजइ धूल।–नरपतिनाल्ह।
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ढूलड़ी  : स्त्री० [?] गुड़िया। (डि०) उदाहरण–-राजकुँमारि ढूलड़ी रमांति।–प्रिथीराज।
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ढूसर  : पुं० [देश०] वैश्यों का एक वर्ग जो आजकल प्रायः भार्गव नाम से प्रसिद्ध हो रहा है।
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ढूसा  : पुं० [अनु०] कुश्ती के समय नीचे गिर या पट पड़े हुए पहलवान की गरदन पर कलाई और कोहनी के बीच की हडडी से बार-बार रगड़ते हुए किया जानेवाला आघात। रद्दा।
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ढूह  : पुं० [सं० स्तूप] १. ढेर। अटाला। २. टीला। भीटा। ३. सीमा आदि कासूचक मिट्टी का छोटा ऊँचा ढेर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढूहा  : पुं=ढूह।
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ढेउआ  : पुं० [सं० ढेब्बुका] पैसा नाम का ताँबे का सिक्का।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढेऊ  : स्त्री०=[देश०] पानी की तरंग। लहर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढेंक  : स्त्री० [सं० ढेक] लंबी गरदनवाला एक प्रकार का जलपक्षी।
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ढेक  : स्त्री०=ढेंक (जल-पक्षी)।
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ढेंकली  : स्त्री० [हिं० ढेंक-लंबी गरदनवाली एक चिड़िया] १. चावल निकालने के लिए धान कूटने का एक प्रसिद्ध यंत्र जो लंबी मोटी लकड़ी का बना होता है और जो बार-बार पैर से दबाकर चलाया जाता है। ढेंकी। मुहावरा–(किसी को) ढेंकली में डालना=ऐसी अवस्था में रखना जिसमे बहुत कष्ट या संकट हो। २. सिंचाई आदि के लिए कूएँ से पानी निकालने का एक यंत्र जिसमें एक ढाँचे पर बँधे बाँस के सिरे पर पानी भरने के लिए कोई पात्र विशेषतः डोल बंधा रहता है। ३. कपड़े जोड़ने के लिए एक प्रकार की आड़ी सिलाई। क्रि० प्र०–खाना।
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ढेंकली  : स्त्री०=ढेंकली।
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ढेंका  : पुं० [हिं० ढेंक=पक्षी] १. कोल्हू में का वह बाँस जो जाट के सिरे से कतरी तक लगा रहता है। २. दे० ‘ढेंकली’।
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ढेंकिका  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार का नृत्य।
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ढेंकिया  : स्त्री० [हिं० ढेंकी] सिलाई में, कपड़े काटने का एक ढंग या काट जिसके फलस्वरूप किसी कपड़े की लंबाई एक तिहाई घट जाती है और चौड़ाई एक तिहाई बढ़ जाती है।
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ढेंकी  : स्त्री० [सं०] नृत्य का एक प्रकार। स्त्री०=ढेंकली।
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ढेंकुर  : पुं० [स्त्री० ढेंकुरी] दे० ‘ढेकली’।
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ढेंकुला  : पुं=बड़ी ढेंकली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढेकुला  : पुं०=ढेंकुला (बड़ी ढेंकली)।
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ढेंकुली  : स्त्री०=ढेंकली।
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ढेंटी  : स्त्री० [देश०] धव का पेड़।
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ढेंड़  : पुं०=ढेंढ़।
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ढेंड़स  : स्त्री०=डेड़सी।
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ढेंढ़  : पुं० [देश०] १. हिन्दुओं में एक जाति जिसकी गिनती अन्त्यजों में होती थी। २. कौआ। वि० जिसे कुछ भी बुद्धि न हो। परम मूर्ख। जड़। पुं०=डोडा (वनस्पतियो का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढेंढर  : पुं० [हिं० टेटंर] १. एक रोग जिसमें आँख के डेले पर मांस निकल आता है। २. इस प्रकार आँख के डेले पर उभरा या निकला हुआ मांस।
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ढेंढवा  : पुं० [देश०] लंगूर।
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ढेंढा  : पुं०१=ढेंढ़। २=ढेंढ़वा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढेंढ़ी  : स्त्री० [हिं० ढेंढा] १. कपास पोस्ते आदि की डोडी। २. कान में पहनने का एक गहना।
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ढेंप  : स्त्री०=ढेंपनी (ढिपनी)।
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ढेंपनी  : स्त्री०=ढिपनी।
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ढेपुनी  : स्त्री०=ढिपनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढेबरी  : स्त्री=ढिबरी।
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ढेबुआ  : पुं०=ढेउआ (पैसा)।
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ढेबुक  : पुं०=ढेउआ (पैसा)।
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ढेम-मौज  : स्त्री० [देश ढेऊ+फा० मौज] ऊँची या बड़ी लहर।
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ढेर  : पुं० [हिं० धरना] [स्त्री० अल्पा० ढेरी] एक स्थान पर विशेषतः एक दूसरी पर रखी हुई बहुत सी वस्तुओं का ऊंचा समूह। विशेष–ढेर करना=किसी को मारकर इस प्रकार गिरा देना कि वह निर्जीव पदार्थ का ढेर या राशि जान पड़े अथवा हो जाय। पद–ढेर-सा=मान, मात्रा, आदि में अधिक या बहुत। जैसे–ढेर-सा, रुपया।
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ढेरना  : पुं० [देश०] सूत या रस्सी बटने की फिरकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढेरा  : पुं० [देश०] १. सुतली बटने की फिरकी जो परस्पर काटती हुई दो आड़ी लकड़ियों के बीच में एक बड़ा डंडा जड़कर बनाई जाती है। २. लकडी का वह घेरा जो मोट के मुँह पर लगा होता है। ३. चकई नाम का खिलौना। ४. अंकोल वृक्ष। पुं०=ढेला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] सिहोर नामक वृक्ष। उदाहरण–हैसि मकोई औ डेरा।–नर मुहम्मद।
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ढेरा ढोंक  : स्त्री० [देश०] एक तरह की मछली।
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ढेरी  : स्त्री० [हिं० ढेर] छोटा ढेर। जैसे–आमों की ढेरी।
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ढेल  : पुं०=ढेला।
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ढेलवाँस  : स्त्री० [हिं० ढेला+सं० पाश] एक प्रकार का जीलादर थैली जिसके एक सिरे पर भी रस्सी बंधी रहती है। विशेष–थैली में बहुत से छोटे-मोटे कंकड़ पत्थर भरे जाते हैं और तब उस रस्सी से पकड़कर उसे चारों ओर आकाश में घुमाया जाता है जिससे कंकड़, पत्थर चुट-पुट इधर-उधर गिरकर आघात करते हैं।
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ढेला  : पुं० [सं० दल, हिं० डला] १. किसी जमी हुई चीज का वह कड़ा और ठोस छोटा टुकडा़ जिसका आकार या नियमित रूप से न हो और जो हाथ में उठाया जा सके। जैसे–मिट्टी या पत्थर का ढेला या गुड़ या नमक का ढेला। २. अवध में होनेवाला एक तरह का धान। उदाहरण–-मधुकर डेलाजीरा सारी।–जायसी
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ढेला-चौथ  : स्त्री० [हिं० ढेला+चौथ] भादों सुदी चौथ जिस दिन चंद्रमा देख लेने पर उसके कलंकात्मक दोष से बचने के लिए आस-पास के मकानों पर ढेले फेंके जाते और गालियाँ सुनी जाती हैं।
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ढेवुका  : स्त्री० [सं०] प्राचीन काल का एक सिक्का जो एक पैसे के मूल्य के बराबर होता था।
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ढैंक  : पुं० [?] मेंढ़क।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढैचा  : पुं० [देश०] १. चकवँड़ की तरह का एक पेड़ जिसकी छाल से रस्सियाँ बनाई जाती है। जयंती। २. सन या पटवे के डंठल जिससे प्रायः भीटा छाया जाता है। पुं०=ढौंचा (पहाड़ा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढैया  : स्त्री० [हिं० ढाई] १. ढाई सेर का बाट। २. ढाई सेर की तौल। ३. ढाई गुने का पहाड़ा। ढौंचा। ४. फलित ज्योतिष में शनि का भोग-काल जो ढाई पर, ढाई दिन, ढाई महीने, ढाई वर्ष आदि का होता है।
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ढोंक  : स्त्री०=ढोक (मछली)।
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ढोक  : स्त्री० [देश०] एक तरह की मछली जो १२ इंज लंबी होती है। ढेरी। ढोंक।
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ढोकन  : पुं० [सं०√ढौक् (गमनादि)+ल्युट-अन] १. घूसप। रिश्वत। २. उपहार। भेंट।
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ढोंकना  : स० [अनु०] कोई चीज अधिक मात्रा में और जल्दी पीना (व्यंग्य)।
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ढोंका  : पुं० [देश०] १. किसी चीज का ठोस, कड़ा और बड़ा टुकड़ा। बड़ा ढेला। जैसे–पत्थर या मिट्टी का ढोंका। २. वह बाँस जो कोल्हू में जाट के सिरे से लेकर कोल्हू तक बँधा रहता है। ३. दो ढोली अर्थात ४॰॰ पानों के मान की संज्ञा।
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ढोका  : पुं०=ढोका।
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ढोंग  : पुं० [हिं० ढंग] दूसरों की दया, सहानुभूति आदि प्राप्ति करने के लिए खड़ा किया हुआ ढकोसला या रचा हुआ पाखंड।
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ढोंग-बाजी  : स्त्री० [हिं० ढोंग+फा० बाजी] झूठ-मूठ ढोंग रचने की क्रिया या भाव।
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ढोंगधतूर  : पुं० [हिं० ढोंग+धूर्त] १. ऐसा व्यक्ति जो ढोंग रचकर अपना काम निकाल लेता हो। २. धूर्त्त विद्या।
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ढोंगी  : वि० [हिं० ढोंग] ढोंग रचने वाला झूठा आडंबर खड़ा करनेवाला। (व्यक्ति)।
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ढोंटा  : पुं०=ढोटा।
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ढोटा  : पुं० [हिं० ढोंटी का पुं०] १. पुत्र। बेटा। २. बालक। लड़का।
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ढोटी  : स्त्री० [सं० दुहित्] १. पुत्री। बेटी। २. बालिका। लड़की।
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ढोटौना  : पुं०=ढोटा।
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ढोड़  : पुं० [देश०] ऊँट। (डिं०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढोंढ़  : पुं० [सं० तुंड] १. कपास, पोस्ते आदि की कली। २. कली।
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ढोंढ़ी  : स्त्री० [हिं० ढोंढ़] १. नाभि। धुन्नी। २. कली। डोडी।
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ढोना  : स० [सं० वोढ-वहन करना ले जाना, आद्यंत विपर्यय-ढोव] १. पीठ या सिर पर रखकर या हाथ में लटकाकर कोई भारी चीज एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना। जैसे–मजदूरों का माल ढोना। २. पशु, यान आदि पर लादकर भारी चीजें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना। जैसे–गधों पर ईंटे ढोना। ट्रक या बैलगाड़ी पर अनाज या माल ढोना। ३. कहीं से बहुत सी संपत्ति आदि अनुचित रूप से उठाकर ले जाना। ४. विपत्ति, संकट आदि में निर्वाह करना।
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ढोर  : पुं० [हिं० ढुरना] गाय, बैल आदि पशु। चौपाया। स्त्री० [हिं० ढुरना] १. ढुरने की क्रिया या भाव। २. अंगों आदि का कोमलतापूर्ण और मोहक संचालन। नजाकत की दशा। उदाहरण–-कोमल चरन कौल नटवर ढोर मोर, पोर-पोर छोरै छवि कोटिन अनंग की।–
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ढोरना  : स० [हिं० ढारना] १. ढालना। ढरकाना। २. लुढ़काना। ३. हिलाना-डुलाना। ४. (अपने या किसी के) पीछे या साथ चलने में प्रवृत्त करना। पीछे लगाना। अ० १. जमीन पर लोटना या लुढ़कना। २. किसी का अनुयायी बनकर उसके पीछे या साथ चलना।
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ढोरा  : पुं=ढोर।
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ढोरी  : स्त्री० [हिं० ढोरना] १. ढोरने का भाव। २. उत्कट अभिलाषा। ३. धुन। लगन। उदाहरण–-ढोरी लाई सुनन की कहि गोरी मुसकात।–बिहारी।
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ढोल  : पुं० [सं० ढक्का√ला (लेना)+क, पृषो० सिद्धि, मि० फा० दुहुल] १. एक प्रकार का लंबोत्तरा बाजा जिसके दोनों ओर चमड़ा मढ़ा होता है। मुहावरा–(किसी बात का) ढोल पीटना या बजाना=कोई बात खुले आम सबसे कहना फिरना। २. कान की वह झिल्ली या परदा जिसपर वायु का आघात पड़ने से शब्द का ज्ञान होता है।
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ढोल-ढमक्का  : पुं० [हिं० ढोल+अनु० ढमक्का] १. ढोल और उसके साथ बजनेवाले कई तरह के बाजे। २. व्यर्थ का बहुत अधिक आडंबर।
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ढोलक  : स्त्री० [सं० ढोल+कन्] एक तरह का छोटा ढोल। ढोलकी।
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ढोलकिया  : पुं० [हिं० ढोलक] ढोल बजानेवाला व्यक्ति।
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ढोलकी  : स्त्री०=ढोलक।
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ढोलन  : पुं० [हिं० ढोला] १. दूल्हा। २. पति।
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ढोलना  : पुं० [हिं० ढोल] ढोलक के आकार का एक तरह का छोटा जंतर जिसे तागे में पिरोकर गले में पहना जाता है। स० १.=ढालना। २. ढोरना या डोलाना।
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ढोलनी  : स्त्री० [हिं० ढोलन] बच्चों का छोटा झूला। पालना।
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ढोलवाई  : स्त्री० दे० ढुलवाई।
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ढोला  : पुं० [हिं० ढोल] १. सड़ी हुई वनस्पतियों, शरीरों आदि में पड़नेवाला एक तरह का सफेद छोटा कीड़ा। २. हद या सीमा का निशाना। ३. देह। शरीर। पुं० [सं० दुर्लभ, प्रा० दुल्लह] १. वर। दूल्हा। २. पति। ३. प्रियतम। ४. विवाह के समय गाये जानेवाले एक प्रकार के गीत। (पश्चिम) ५. कलवाहा वंश के राजा नल के पुत्र का नाम जिसका प्रेम माखणी पूगल के राजा पिंगल की कन्या मारू से हुआ था। इनकी प्रेम गाथा अति प्रसिद्ध है।
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ढोलिनी  : स्त्री० [हिं० ढोलिया का स्त्री० रूप] ढोल बजानेवाली।
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ढोलिया  : पुं० [हिं० ढोल] [स्त्री० ढोलिनी] ढोल बजानेवाला व्यक्ति।
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ढोली  : स्त्री० [हिं० ढोल] दो सौ पानों की गड्डी या थाक। स्त्री०=ठठोली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढोव  : पुं० [हिं० ढोवना (ढोना)] १. ढोने की क्रिया या भाव। २. ढोकर ले जाई जानेवाली चीज। ३. प्राचीन काल में, वह भेंट जो राजा को रसदार लोग मंगल अवसरों पर देते थे और जो मात्रा, मान आदि की अधिकता से कारण ढोकर ले जाई जाती थी।
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ढोवना  : स०=ढोना।
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ढोवा  : पुं० [हिं० ढोना] १. ढोये जाने की क्रिया या भाव। ढुलाई। २. माल ढोनेवाला व्यक्ति। ३. दूसरों का मान या संपत्ति अनुचित रूप से उठाकर ले जाना। लूट। ४. =ढोव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढोवाई  : स्त्री०=ढुलाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढोहना  : स०१. =ढोना। २. =ढूँढ़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ढौकना  : स० [देश०] तरल पदार्थ जल्दी-जल्दी और बहुत अधिक पीना। (व्यंग्य)।
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ढौचा  : पुं० [सं० अर्द्ध, प्रा० अट्ट=हिं० चार] साढ़े तार का पहाड़ा।
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ढौरना  : स० [हिं० ढाल] इधर-उधर घुमाना। ढुराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ढौरा  : वि० [सं० धवल] [स्त्री० ढौरी] १. सफेद। २. साफ। स्वच्छ।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ढौरी  : स्त्री० [हिं०] धुन। लगन। स्त्री० [हिं० ढरना] ढंग। तरीका।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ढौंसना  : अ० [हिं० धौंस का अनु] आनंद ध्वनि करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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