ताव/taav

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ताव  : पुं० [सं० ताप; प्रा० ताव] १. आँच, धूप आदि के कारण उत्पन्न होनेवाली वह गरमी जो वस्तुओं को लगकर तपाती या पकाती और व्यक्तियों को लगकर शारीरिक कष्ट देती है। गरमी। ताप। क्रि० प्र०–लगना। मुहावरा–(किसी वस्तु में) ताव आना-किसी वस्तु का जितना चाहिए, उतना गरम हो जाना। जैसे–जब तक तवे में ताव न आवे तब तक उस पर रोटी नहीं डालनी चाहिए। (किसी वस्तु का) ताव खा जाना-तेज आँच लगने पर आवश्यकता से अधिक गरम होकर जल या बिंगड़ जाना अथवा वे-स्वाद हो जाना। कुछ या बहुत जल जाना। जैसे–शीरा ताव खा जायगा तो कडुंआ हो जायगा। (किसी व्यक्ति का) ताव खाना-अधिक गरमी या धूप लगने से अस्वस्थ या विकल हो जाना। जैसे–लड़का कल दोपहर में ताव खा गया था, इसी से रात को उसे बुखार आ गया। (आँच का) ताव बिगड़ना-आँच का इस प्रकार आवश्यकता के कम या ज्यादा हो जाना कि उस पर पकाई जानेवाली चीज ठीक तरह से पकने पावे। २. वह आवेश या मनोवेग का उद्दीप्त रूप जो काम, क्रोध, घमंड आदि दूषित भावों या विचारों के फलस्वरूप अथवा बढ़ावा देने, ललकारने आदि पर उत्पन्न होता और भले-बुरे का ध्यान भुलाकर मनुष्य को किसी काम या बात में वेगपूर्वक अग्रसर या प्रवृत्त करना। मुहावरा–ताव चढ़ना-मन में उक्त परकार का विकार या स्थिति उत्पन्न होना। जैसे–अभी इसे ताव चढ़ेगा तो बात में सौ दो सौ रुपए खर्च कर डालेगें। (किसी को) ताव दिखाना-उक्त प्रकार की स्थिति में आकर अभिमानपूर्वक किसी को दबाने, नीचा दिखाने, हराने आदि की तत्परता प्रकट करना। जैसे–बहुत ताव मत दिखाओं, नहीं तो अभी तुम्हें दुरुस्त क दूँगा। ताव-पेंच खाना-रह-रहकर क्रोध या आवेश दिखाते हुए रुक-रुक जाना। (किसी व्यक्ति का) ताव में आना-अभिमान, आवेश, क्रोध, दूषित मनोविकार आदि से युक्त होकर कोई दुस्साहसपूर्ण काम करने पर उतारू होना या किसी ओर प्रवृत्त होना। ३. कोई काम या बात तुरंत या बहुत जल्दी पूरी करने या होने की प्रबल उत्कंठा या कामना। उतावलेपन से युक्त चाह या कामना। क्रि० प्र०–चढ़ना। पद–ताव पर-प्रबल आवश्यकता, इच्छा, मनोवेग आदि उत्पन्न होने की दशा में अथवा उत्पन्न होते ही तत्काल या तुरंत। जैसे–तुम्हारे ताव पर तो पुस्तक छप नहीं जायगी, उसमें समय लगेगा। पद–ताव-भाव। ४. पदार्थों, आदि की वह स्थिति जिसमें वे कृत्रिम उपायों या स्वाभाविक रूप में कुछ कड़े, खड़े या सीधे रहते हैं और उनमें लचक या लुजलुजाहट या शिथिलता नहीं रहती। जैसे–(क) इस्तरी करने से कपड़ों में ताव आ जाता है। (ख) लाखों रुपए के कर्जदार होने पर भी वे बाजार में बहुत ताव से चलते हैं। मुहावरा–मूँछों पर ताव देना-मूँछें उमेठ या मोरडकर खड़ी या सीधी करते हुए अपनी ऐंठ, पराक्रम या शान दिखाना। ५. मन को दुःखी या शरीर को पीड़ित करनेवाली कोई बात। कष्ट। तकलीफ। ताप। उदाहरण–चंद्रावत तज साम ध्रम विणहीं पड़ियों ताव।–बांकीदास। पुं० [फा० ता=संख्या] कागज का चौकोर और बड़ा टुकड़ा जो पूरी उकाई के रूप में बनकर आता और बाजारों में ‘ताव’ शब्द फा० ‘ता’ से व्युत्पन्न माना गया है, परन्तु वह व्युत्पत्ति कुछ ठीक नहीं जान पड़ती। हो सकता है कि ताव का कागज के तख्तेवाला यह अर्थ भी ताव के उस चौथे अर्थ का ही विस्तृत रूप हो जो ऊपर ताप से व्युत्पन्न प्रसंग में बतलाया गया है और जिसके अन्तर्गत कपड़े में ताव आने और बाजार में ताव से चलने के उदाहरण–दिये गये हैं।
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ताव-भाव  : पुं० [हिं० ताव+भाव] १.वह स्थिति जो किसी काम,बात या व्यक्ति की विशिष्ट प्रवृत्ति या स्वरूप के कारण उत्पन्न होती है और जिससे उसके बल,मान,वेग आदि का अनुमान किया जाता है। जैसे–जरा उनका ताव-भाव तो देख लो,फिर समझौते की बातचीत चलाना। २.किसी काम,चीज या बात की ठीक-ठाक अन्दाज या हिसाब। जैसे–वह तरकारी में बहुत ताव-भाव से मसाले डालता है। ३.ऐंठ। ठसक। शेखी। जैसे–जरा देखिए तो आप कैसे ताव-भाव से चले आ रहे हैं। ४.रंग-ढंग। तौर-तरीका।
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तावत  : अव्य० [सं० तद्+डावतु] १. उस अवधि या समय तक। तब तक। २. उस सीमा या हद तक। वहाँ तक। ३. उस परिमाण या मात्रा तक (यावत् का नित्य संबंधी का संबंध पूरक)।
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तावदार  : वि० [हिं० ताव+फा० दार] [भाव० तावदारी] १. (व्यक्ति) जिसमें ताव हो। जो उमंग या जोश में आकर अथवा साहसपूर्वक कोई काम कर सकता हो। २. (पदार्थ) जिसमें कुछ विशेष कड़ापन तथा सौंदर्य हो। जैसे–तावदार कपड़ा या जूता।
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तावना  : स० [तपाना] १. गरम करना। जलाना। २. कष्ट, या दुख देना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तावबंद  : पुं० [हिं० ताव+फा० बंद] वह रसायम जिसके चाँदी का खोट उसे तपाने पर भी दृष्टिगत नहीं होता।
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तावर  : पुं०=तावरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तावरा  : पुं० [सं० ताप] १.गरमी।ताप। २.आंच,धूप आदि के कारण होनेवाली गरमी। ३.गरमी के कारण सिर में आनेवाला चक्कर या होनेवाली बेहोशी क्रि० प्र०–आना।
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तावरी  : स्त्री० [सं० ताप, हिं० ताव+री (प्रत्यय)] १. गरमी। ताप। २. जलन। दाह। ३. दाह० धूप। ४. गरमी लगने पर सिर में आनेवाला घुमटा या चक्कर। ५. ज्वर। बुखार। ६. ईर्ष्या। जलन।
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तावरो  : पुं०=तावरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तावल  : स्त्री० [हिं० ताव] उतावनापन । हड़बड़ी।
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तावला  : वि०=उतावला।
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तावा  : पुं० [हिं० ताव] १. तवा। २. वह कच्चा खपड़ा जिसके किनारे अभी मोड़े न गये हों और इसलिए जिसका रूप तवे का सा हो। (कुम्हार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तावान  : पुं० [फा०] आर्थिक क्षति आदि होने पर उसकी पूर्ति के लिए या बदले में दिया जाने अथवा लिया जानेवाला धन। डाँड़। क्रि० प्र०–देना।–लगना।–लगाना।–लेना।
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ताविष  : पुं० [सं०√तव् (गति)+टिषच्, णित्त्वात्, वृद्धि]–तावीष।
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ताविषी  : स्त्री० [सं० ताविष+ङीष्] १. देवकन्या। २. नदी। ३. पृथ्वी। भूमि।
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तावीज  : पुं० [अ० तअवीज] १. कागज, भोज-पत्र आदि पर लिखा हुआ वह यंत्र मंत्र जो अपनी रक्षा आदि के विचार से छोटी डिबिया के आकार के संपुट मे बन्द करके गले में या बाँह पर पहना अथवा कमर में बाँधा जाता है। रक्षा-कवच। क्रि० प्र–पहनना।–बाँधना। २. चाँदी, सोने आदि का वह गोलाकार या चौकोर छोटा संपुट जो गहने के रूप में गले में या बाँह पर पहना जाता है। क्रि० प्र०–पहनना।
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तावीष  : पुं० [सं०=ताविष, पृषो० दीर्घ] १. सोना। स्वर्ण। २. स्वर्ग। ३. समुद्र० सागर। विशेष–वाचस्पत्य अभिधान में शब्द का यह रूप अशुद्ध और असिद्ध कहा गया है।
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तावुरि  : पुं० [पूना० टारस] वृष राशि।
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