तों/ton

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तों  : क्रि० वि०=त्यों।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तो  : अव्य० [सं० तु] एक अव्यय जिसका प्रयोग वाक्य में किसी कथन, पद या संभावित बात पर जोर देने या पार्थक्य, विशिष्टता आदिसूचित करने के लिए अथवा कभी-कभी यों ही किया जाता है। जैसे–(क) जरा दिन तो चढ़ लेने दो। (ख) वे किसी तरह आवें तो सही। (ग) मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई।–मीराँ। (घ) अब तो बात फैल गई, जानत सब कोई।–मीराँ। अव्य [सं० तत्] उस अवस्था या दशा में। तब। जैसे–यदि आप चलेगें तो हम भी आप के साथ हो लेगें। सर्व० [सं० तव] १. ब्रजभाषा में तू का वह रूप जो उसे विभक्ति लगने के समय प्राप्त होता है। जैसे–तोंको, तोसों आदि। २. तेरा। अ० [पुं० हिं० हतो=था का संक्षिप्त] था। (क्व०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तो-तो  : पुं० [अनु०] कुत्तो, कौओं की तरह तिरस्कारपूर्वक किसी व्यक्ति को बुलाने का शब्द।
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तोंअर  : पुं०=तोमर(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोअर  : पुं०=तोमर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोइ  : पुं० [सं० तोय] जल। पानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोई  : स्त्री० [देश०] १. अंगे, कुरते आदि में कमर पर लगी हुई गोट या पट्टी। २. चादर आदि की गोट। ३. लहँगे का नेफा। स्त्री० [हिं० तवा] छोटा तवा। तौनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोईज  : अव्य० [हिं०] तभी। तभी तो। उदाहरण–भला भलो सति तोईज भंजिया।–प्रिथीराज।
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तोक  : पुं० [सं०√तु (बरतना)+क] १. श्रीकृष्णचंद्र के एक सखा। २. बच्चा। शिशु।
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तोकक  : पुं० [सं० तोक+कन्] चातक। पपीहा।
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तोकरा  : स्त्री० [देश०] एक तरह की लता जो अफीम के पौधों से लिपटती है और उन्हें सुखा डालती है।
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तोक्म  : पुं० [सं०√तक् (हँसना)+म, पृषो० सिद्धि] १. अंकुर। २. कच्चा या हरा जौ। ३. हरा रंग। ४. बादल। मेघ। ५. कान की मैल।
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तोख  : पुं०=तोषा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोखार  : पुं० १.=तुखार (एक प्रदेश) २.=तुषार।
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तोखों  : सर्व० [सं० तव, हिं० तो+खों (को)] तुझको। उदाहरण–जननी जनम दियो है तोखों बस आजहि के लानें।–लोकगीत।
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तोट  : पुं० [सं० त्रुटि या हिं० टूटना](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. टूटने की क्रिया या भाव। २. कमी। त्रुटि। ३. घाटा। ४. दोष। बुराई।
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तोटक  : पुं० [सं० त्रोटक] १. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में चार सगण होते हैं। २. संकराचार्य के चार मुख्य शिष्यों में से एक जिनका दूसरा नाम नंदीश्वर भी था।
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तोटका  : पुं०=टोटका(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोटकी  : स्त्री० [देश०] एक तरह की वनस्पति जो प्रायः घास के साथ होती है।
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तोटना  : अ०=टूटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स०=तोड़ना।
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तोड़  : पुं० [हिं० तोड़ना] १. तोड़े या तोड़े जाने की क्रिया, दशा या भाव। २. पानी हवा आदि का वह तेज बहाव जो सामने पड़नेवाली चीजों को तोड़-फोड़ डालता हो या तोड़-फोड़ सकता हो। जैसे–(क) इस घाट पर पानी का जबरदस्त तोड़ पड़ता है। (ख) छोटे-मोटे पेड़ हवा का तोड़ नही सह सकते। ३. कोई ऐसा काम, चीज या बात जो किसी दूसरे बड़े काम, चीज या बात का प्रभाव नष्ट कर सकता हो या उसे व्यर्थ कर सकता हो। जैसे–नशे का तोड़ खटाई है। ४. कुश्ती में वह दाँव-पेंच जो विपक्षी का दाँव-पेंच व्यर्थ कर सकता हो। ५. किले की दीवार का वह अंश जो गोलों की मार से टूट फूट गया हो। ६. दफा। बार। जैसे–उनसे कई तोड़ या लड़ाई या मुकदमेबाजी हो चुकी है। ७. दही का पानी (जो उसके छूटने अर्थात् गलने से बनता है)
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तोड़-जोड़  : पुं० [हिं० तोड़+जोड़] १. कहीं से कुछ तोड़ने और कहीं कुछ जोड़ने की अवस्था, क्रिया या भाव। उदाहरण–तोड़ी जो उसने मुझसे जोड़ी रकबी से। इन्शा तू अपने यार केयो तोड़-जोड़ देख। इन्शा। २. ऐसा उपाय, युक्ति या साधन जो किसी बिगड़ती हुई बात को बना सके अथवा बनी-बनाई बात बिगाड़ सके। जैसे–वह तोड़-जोड़कर जैसे–तैसे अपना काम निकाल ही लेता है। क्रि० प्र०–करना।–भिड़ना।–मिलाना।–लगाना।
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तोड़-फोड़  : स्त्री० [हिं० तोड़ना+फोड़ना] १. तोडऩे और फोड़ने की क्रिया या भाव। २.जान-बूझकर हानि पहुँचाने के उद्देश्य से किसी भवन या रचना के कुछ अंशों को खंडित करना ३. दे० ‘ध्वसंन’।
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तोड़क  : वि० [सं०√तुड् (तोड़ना)+ण्वुल्-अक] तोड़नेवाला। जैसे–जात-पात तोड़क मंडल। (असिद्ध रूप)। पुं० [?] स्त्रियों का माँग-टीका नाम का गहना। (पूरब)।
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तोड़न  : पुं० [सं०√तुड्+ल्युट्-अन] १. तोड़ने की क्रिया या भाव। २. भेदन करना। ३. आघात या चोट पहुँचाना।
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तोड़ना  : स० [हिं० टूटना] १. किसी चीज पर बराबर आघात करते हुए उसे छोटे-छोटे खंडों में विभक्त करना। जैसे–पत्थर या गिट्टी तोड़ना। २. ऐसा काम करना जिससे कोई वस्तु खंडित, भग्न या नष्ट-भ्रष्ट हो जाय तथा काम में आने योग्य न रह जाय। जैसे–शीशे का गिलास तोड़ना। सं० क्रि०–डालना।–देना। ३. किसी वस्तु के कोई अंग अथवा उसमें लगी हुई कोई वस्तु काट-कर या और किसी प्रकार उससे अलग करना या निकाल लेना। जैसे–वृक्ष से फल या फूल तोड़ना, किताब की जिल्द तोड़ना, जानवर के दाँत तोड़ना। ४. किसी वस्तु का कोई अंग इस प्रकार खंडित या भग्न करना कि वह ठीक तरह से या पूरा काम करने योग्य न रह जाय। जैसे–(क) घड़ी या सिलाई की मशीन तोड़ना। (ख) किसी के हाथ-पैर तोड़ना। ५. नियम, निश्चय आदि का पालन न करके अपनी दृष्टि से उसे निरर्थक या व्यर्थ करना। जैसे–(क) अपनी प्रतिज्ञा (या किसी के साथ किया हुआ समझौता) तोड़ना। (ख) व्रत तोड़ना। ६. किसी चलते या होते हुए काम, व्यवस्था, संघटन आदि का स्थायी रूप से अन्त या नाश करना। जैसे–शासन का कोई पद या विभाग तोड़ना। ७. बल, प्रभाव, महत्त्व, विस्तार आदि घटाना या नष्ट करना। अशक्त, क्षीण या दुर्बल करना। जैसे–(क) बाजार की मन्दी ने बहुत व्यापारियों को तोड़ दिया। (ख) दमे (या यक्ष्मा) ने उनका शरीर तोड़ दिया। ८. किसी प्रकार नष्ट या विच्छिन्न करके समाप्त कर देना। चलता या बना न रहने देना। जैसे–(क) किसी का घमंड तोड़ना। (ख) किसी से नाता (या संबंध) तोड़ना। किसी की दृढ़ता, बल आदि घटाकर या नष्ट करके उसे उसके पूर्व रूप में स्थित या स्थिर न रहने देना। जैसे–(क) मुकदमें में विपक्षी के गवाह तोड़ना। (ख) कमर या हिम्मत तोडना। १॰. खरीदने के समय किसी चीज का दाम घटाकर कुछ कम करना। जैसे–तुमने तो तोड़कर दस रुपये कम कर ही लिये। ११. खेत में हल चलाकर उसकी सतह की मिट्टी खंडित करके ढेलों के रूप में लाना। १२. किसी कुमारी के साथ पहले-पहल समागम करना। (बाजारू) १३.चोरी करने के लिए सेंध लगाना। जैसे–चोर ताला तोड़ कर सब माल उठा ले गये। १४. बड़े सिक्कों को छोटे-छोटे सिक्कों में बदलवा देना। विशेष–यह क्रिया अनेक संज्ञाओं के साथ लगकर उन्हें मुहावरों का रूप देती है, और ऐसे अवसरों पर उनके भिन्न-भिन्न प्रकार के अर्थ होते हैं जैसे–किसी के पैर या मुँह तोड़ना, किसी से तिनका तोड़ना, किसी को रोटी (रोटियाँ) तोड़ना आदि। ऐसे अवसरों के लिए सम्बद्ध शब्द या संज्ञाएँ देखनी चाहिएँ।
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तोड़र  : पुं०=तोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोड़वाना  : स० [भाव० तुड़वाई] तुड़वाना।
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तोड़ा  : पुं० [सं० त्रुट, हिं० तोड़ना] १. टूटने या तोड़ने की क्रिया या भाव। टूट। २. किसी चीज को तोड़कर उसमें से अलग किया या निकाला हुआ अंश या बाग। खंड। टुकड़ा। जैसे–रस्सी या रस्से का तोड़ा। ३. घाटा। टोटा। (देखें)। क्रि० प्र०–आना–पड़ना। ४. वह मैदान या स्थान जो नदी के तोड के कारण कटकर अलग हो गया हो। ५. वह स्थान जो प्रायः नदियों के संगम पर उस बालू और मिट्टी के इकट्ठे होने से बनता है जो नदी अपने साथ मैदानों में से तोड़कर लाती है। क्रि० प्र०–पड़ना। ६. नदी का किनारा। तट। ७. नाच का उतना टुकड़ा जितना एक बार में नाचा जाता है और जिसमें प्रायः एक ही वर्ग की गतियाँ अथवा एक ही प्रकार के भावों की सूचक अंग-भंगियाँ या मुद्राएँ होती है। क्रि० प्र०–नाचना। ८. चाँदी आदि की लच्छेदार और चौड़ी जंजीर या सिकरी जिसका व्यवहार आभूषण की तरह पहनने में होता है। जैसे–गलें पैर या हाथ में पहनने का तोड़ा। ९. टाट की वह थैली जिसमें चाँदी के १॰॰॰) आते या रखे जाते हों। मुहावरा–(किसी के आगेध तोड़ा उलटना या गिराना-(किसी को) सैकड़ों, हजारों रुपए देना। बहुत सा धन देना। १॰. हल के आगे की वह लंबी लकड़ी जिसके अगले सिरे पर जूआ लगा रहता है। हरिस। ११.खूब अच्छी तरह साफ की हुई वह चीनी जिसके दाने या रवे कुछ बड़े होते हैं और जिससे ओला बनता था। कन्द। १२. अभिमान। घमंड। मुहावरा–तोड़ा लगाना–अभिमान या घमंड दिखाना। पद–नक-तोड़ (देखें)। पुं० [सं० तुंड या टोंटा] १. नारियल की जटा की वह रस्सी जिसके ऊपर सूत बुना रहता था और जिसकी सहायता से पुरानी चाल की तोड़दार बंदूक छोड़ी जाती थी। पलीता। पद–तोड़दार बंदूक-पुरानी चाल की वह बंदूक जो तोड़ा दागकर छोड़ी जाती थी। २. जिसे लोहा जिसे चकमक पर मारने से आग निकलती है और जिसकी सहायता से तोड़ेदार बन्दूक चलाने का तोड़ा या पलीता सुलगाया जाता था।
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तोड़ाई  : स्त्री०=तुड़वाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोतक  : पुं० [हिं० तोता ?] पपीहा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोतर  : वि०=तोतला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोतरंगी  : स्त्री० [देश०] एक तरह की चिड़िया।
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तोतरा  : वि०=तोतला।
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तोतराना  : अ०=तुतलाना।
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तोतला  : वि० [हिं० तुतलाना] [स्त्री० तोतली] १. जो तुतलाकर बोलता हो। अस्पष्ट बोलनेवाला। जैसे–तोतला बालक। २. (जवान) जिससे रुक-रुककर और तुतलाकर उच्चारण होता हो। ३. (उच्चारण) जो बच्चों की तरह का अस्पष्ट और रुक-रुककर होता हो।
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तोतलाना  : अ०=तुतलाना।
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तोता  : पुं० [फा०] [स्त्री० तोती] १. एक विशिष्ट प्रकार के पक्षियों को प्रसिद्ध जाति या वर्ग जिसमें से कुछ उप-जातियाँ ऐसी होती हैं जिनके तोते मनुष्य की बोली की ठीक-ठीक नकल उतारते हुए बोलना सीख लेते और प्रायः इसी लिए घरों में पाले जाते हैं। कीर। सुग्गा। सूआ। विशेष–इस जाति के पक्षियों की चोंच अंकुड़ीदार या नीचे की ओर घूमी हुई होती है, पर कई तरह के चमकीले रंगों के होते हैं और पैरों में दो उँगलियों आगे की ओर तथा दो पीछे की ओर होती हैं। मुहावरा–तोता पालना=दोष, दुर्यवसन, रोग को जान-बूझकर अपने साथ लगाये रहना, उससे छूटने का प्रयत्न न करना। तोते की तरह आँखें फेरना या बदलना-बहुत वेमुरौवत होना। विशेष–कहते है कि तोता चाहे कितने दिनों का पालतू क्यों न हो, पर जब एक बार पिंजरे के बाहर निकल जाता है तब फिर अपने पिंजरे या मालिक की तरफ देखता तक नहीं। इसी आदार पर यह मुहावरा बना है। मुहावरा–तोते की तरह पढ़ाना-बिना समझे-बूझे पढते या रटते चलना। हाथों के तोते उड़ना-इस प्रकार बहुत घबरा जाना कि समझ में न आवे कि अब क्या करना चाहिए। पद–तोता चश्म। २. बन्दूक का घोड़ा।
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तोता-चश्म  : वि० [फा०] [भाव० तोता-चश्मी] १. जिसकी आँखों में तोते की तरह लिहाज या संकोच का पूर्ण अभाव हो। २. बे-वफा। बे-मुरौवत।
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तोता-चश्मी  : स्त्री० [फा० तोताचश्म+ई (प्रत्यय)] तोताचश्म होने की अवस्था, गुण या भाव।
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तोतापरी  : पुं० [देश०] एक तरह का बढिया आम।
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तोती  : स्त्री० [फा० तोता] १. तोते की मादा। २. रखेली स्त्री। रखनी।
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तोत्र  : पुं० [सं०√तुद् (पीड़ित करना)+ष्ट्रन] पशु हाँकने की चाबुक या छड़ी।
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तोत्र-वेत्र  : पुं० [कर्म० स०] विष्णु के हाथ का दंड।
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तोंद  : स्त्री० [सं० तुंड] छाती या वक्ष से अधिक फूला तथा बढ़ा हुआ पेट। क्रि० प्र–निकलना।–बढ़ना। मुहावरा–तोंद पचना–(क) मोटाई काम होना। (ख) घमंड या शेखी दूर होना।
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तोद  : वि० [सं०√तुद्+घञ्] कष्ट या पीड़ा देनेवाला। पुं० पीड़ा। व्यथा।
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तोदन  : पुं० [सं०√तुद्+ल्युट-अन] १. पशुओं को हाँकने का उपकरण। २. पीड़ा। व्यथा। ३. एक प्रकार का वृक्ष जिसके फल वैद्यक में कसैले, रूखे और कफ तथा वायु नाकश कहे गये हैं।
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तोंदरी  : स्त्री० [?] एक तरह के बीज जो मसूर से कुछ छोटे होते हैं। और सूजे हुए अंग पर बाँधे जाने पर सूजन दूर करते हैं।
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तोदरी  : स्त्री० [फा०] फारस देश में होनेवाला एक तरह का पेड़ और उसका फल।
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तोंदल  : वि० [हिं० तोंद+ल (प्रत्य)] जिसकी तोंद निकली या बढ़ी हुई हो। तोंदवाला।
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तोंदा  : पुं० [देश] वह मार्ग जिसमें से होकर तालाब का पानी बाहर निकलता है। पुं० दे० ‘तोदा’।
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तोदा  : पुं० [फा० तोदः] वह मिट्टी की दीवार या टीला जिस पर तीर या बंदूक चलाने का अभ्यास करने के लिए निशाना लगाते हैं। २. ढेर। राशि।
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तोंदी  : स्त्री० [सं० तुंडी] नाभी। ढोंढ़ी।
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तोदी  : स्त्री० [देश०] संगीत में एक प्रकार का ख्याल।
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तोंदीला  : वि०=तोंदल।
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तोंदेल  : वि०=तोंदल। (तोंदवाला)।
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तोन  : पुं० [सं० तूण] तूणीर। तरकश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोप  : स्त्री० [तु०] एक आधुनिक यंत्र जिसकी सहायता से युद्ध के समय शत्रुओं पर गोले, बम आदि बहुत दूर-दूर तक फेंके जाते हैं। विशेष–आज-कल समुद्री और हवाई जहाजों पर रखने के लिए और हवा में उड़ते हुए हवाई जहाज आदि नष्ट करने के लिए अनेक आकार-प्रकार की तोपें बनती हैं। क्रि० प्र०–चलाना।–छोड़ना।–दागना।–मारना। मुहावरा–तोप कीलना=तोप की नाली में लकड़ी का कुंदा कसकर ठोंक देना जिसमें वह गोला छोड़ने के योग्य न रह जाय। तोप की सलामी उतारना=किसी प्रसिद्ध और बड़े अधिकारी के आने पर अथवा किसी महत्त्वपूर्ण घटना के अवसर पर तोप चलाना जिससे बहुत जोरों का शब्द होता है। तोप के मुंह पर रखकर उडाना=किसी को तोप की नाली के आगे बाँध, बैठा या रखकर उस पर गोला छोड़ना जिससे उसका शरीर टुकड़े-टुकड़े हो जाय। तोप दम करना-तोपके मुँह पर रखकर उड़ाना। पद–तोप का ईँधन या चारा=युद्ध क्षेत्र में वे सैनिक जो जान-बूझकर इसलिए आगे किये जाते है कि शत्रुओं की तोपों के गोलों के सिकार बने (व्यंग्य) २. आतिशबाजी का लोहे का वह बड़ा नल जिसमें रखकर वे बहुत जोर की आवाज करनेवाले गोले छोड़ते हैं। पाली।
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तोपखाना  : पुं० [अतोप+फा० खाना] १. वह स्थान जहाँ तोपें, गोला बारूद आदि रहता हो २. कई तोपों का कोई स्वतन्त्र वर्ग या समूह जो प्रायः एक साथ रहता और एक इकाई के रूप में काम करता है।
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तोपची  : पुं० [अ० तोप+ची (प्रत्यय)] वह व्यक्ति जो तोप से गोले छोड़ता हो।
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तोपड़ा  : पुं० [देश] १. एक प्रकार का कबूतर। २. एक प्रकार की मक्खी।
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तोपना  : स० [सं०√तुप्] [भाव० तोपाई] १. किसी चीज के ऊपर कोई दूसरी चीज इस प्रकार रखना कि नीचेवाली चीज बिलकुल ढक जाय २. (गड्ढा आदि) भरना। पाटना।
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तोपवाना  : स० [हिं० तोपना का प्रे०] तोपने का काम दूसरे से कराना।
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तोपा  : पुं० [हिं० तुरपना] १. सूई से होनेवाली उतनी सिलाई जितनी एक बार में एक छेद से दूसरे छेद तक की जाती है। सिलाई में का कोई टाँका। मुहावरा–तोपा भरना या लगाना-टाँके लगाते हुए सीना। सीधी सिलाई करना।
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तोपाई  : स्त्री० [हिं० तोपना] तोपने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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तोपाना  : स०=तोपवाना।
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तोपास  : पुं० [देश०] झाडू देनेवाला। झाड़ू बरदार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोपी  : स्त्री०=टोपी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोफगी  : स्त्री०=तोहफगी।
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तोफा  : वि० [अ० तोहफा] बहुत बढ़िया। पुं०=तोहफा।
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तोबड़ा  : पुं० [फा० तोबरा या तुबरा] चमड़े, टाट आदि का वह थैला जिसमें चने भरकर घोड़े के खाने के लिए उसके मुँह पर बाँध देते हैं। क्रि० प्र०–चढ़ाना।–बाँधना।–लगाना। मुहावरा–(किसी के मुँह) तोबड़ा लगाना=बलपूर्वक किसी को बोलने से रोकना (बाजारू)।
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तोंबा  : पुं० [स्त्री० तोंबी]=तूँबा।
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तोबा  : स्त्री० [अ० तौबः] १. भविष्य में फिर वैसा काम करने की प्रतिज्ञा। क्रि० प्र०–करना।–तोड़ना। मुहावरा–तोबा तिल्ला करना या मचाना-रोते–चिल्लाते या दीनता दिखलाते हुए यह कहना कि हम पर दया करो, अब हम ऐसा नहीं करेगें। २. किसी बुरे काम से बाज रहने की प्रतिज्ञा। जैसे–ऐसे कामों (या बातों) से तो तोबा ही भली। मुहावरा–तोबा करके (कोई बात) कहना=अभिमान छोड़कर या ईश्वर से डरकर (कोई बात) कहना। (किसी से) तोबा बुलवाना=किसी को दबाते या परेशान करते हुए इतना अधिक दीन और विवश बनाना कि फिर कभी वह कोई अनुचित काम या विरोध करने का साहस न कर सके। पूर्ण रूप से परास्त करना। अव्य-ईश्वर न करे कि फिर ऐसा कभी हो। जैसे–तोबा भला अब मैं कभी उनसे बात करूँगा। (उपेक्षा तथा घृणा सूचक)।
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तोम  : पुं० [सं० स्तोम] समूह। ढेर।
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तोमड़ी  : स्त्री० [?] एक प्रकार की आतिशबाजी। स्त्री०=तूँबड़ी।
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तोमर  : पुं० [सं०√तुम्प् (मारना)+अर्, पृषो० सिद्धि] १. भाले की तरह का एक प्राचीन अस्त्र। २. पुराणानुसार एक प्रावीं से चीन देश। ३. उक्त देश का निवासी। ४. राजपूतों की एक जाति। विशेष–इसी जाति ने ८वीं० से १२वीं शती तक दिल्ली में शासन किया था। अनंगपाल, जयपाल इसी वंश के राजा थे। ५. बारह मात्राओं का एक छन्द जिसके अंत में एक गुरु और एक लघु होता है।
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तोमरिका  : स्त्री० [सं०तोमर+कन्-टाप्,इत्व] १.गोपी। चंदन। २. अरहर।
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तोमरी  : स्त्री० [हिं० तुमड़ी] तूंबड़ी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोय  : पुं० [सं०√तु+विच् तो√या (जाना)+क] १. जल। पानी। २. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र।
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तोय  : पुं० [ब० स०]=तोयधर।
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तोय-कुंभ  : पुं० [ष० त०] सेवार।
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तोय-कृच्छ्र  : पुं० [तृ० त०] एक प्रकार का व्रत जिसमें जल के सिवा और कुछ ग्रहण नहीं किया जाता।
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तोय-धर  : पुं० [ष० त०] १. बादल। मेघ। २. मोथा।
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तोय-धि  : पुं० [सं० तोय√धा (धारण करना)+कि] समुद्र। सागर।
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तोय-निधि  : पुं० [ष० त०] समुद्र। सागर।
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तोय-पिप्पली  : स्त्री०=जलपिप्पली।
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तोय-पुष्पी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] पाटला वृक्ष। पाँढर।
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तोय-प्रसादन  : पुं० [ष० त०] निर्मली।
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तोय-फला  : स्त्री० [ब० स० टाप्] तरबूज या ककड़ी आदि की बेल।
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तोय-भिंड  : पुं० [ष० त०] ओला।
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तोय-मल  : पुं० [ष० त०] समुद्र फेन।
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तोय-यंत्र  : पुं० [मध्य० स०] १. पानी के द्वारा समय बताने का यंत्र। जल-घड़ी। २. फुहारा।
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तोय-राज  : पुं० [ष० त०] समुद्र। सागर।
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तोय-शुक्ति  : स्त्री० [मध्य० स०] सीपी।
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तोय-शूक  : पुं० [ष० त०]=तोय-वृक्ष।
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तोय-सर्पिका  : स्त्री० [स० त०] मेंढक।
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तोय-सूचक  : पुं० [ष० त०] १. ज्योतिष का वह योग जिसें वर्षा होने की संभावना मानी जाती है। २. मेंढक।
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तोयकाम  : पुं० [सं० तोय√कम् (चाहना)+अण्] एक प्रकार का बेंत जो जल के पास होता है। बानीर।
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तोयडिंब  : पुं० [ष० त०] ओला। पत्थर। करका।
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तोयद  : पुं० [सं० तोय√दा (देना)+क] १. मेघ। बादल। २. नागरमोथा। ३. घी। घृत। ४. वह जो किसी को जल देता हो। ५. उत्तराधिकारी जो किसी का तर्पण करता है। वि० जल देनेवाला।
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तोयदागम  : पुं० [सं० तोयद-आगम, ष० त०] वर्षाऋतु। बरसात।
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तोयधि-प्रिय  : पुं० [ब० स०] लौंग।
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तोयनीबी  : स्त्री० [ब० स०] पृथ्वी।
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तोयपर्णी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] करेला।
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तोयमुच  : पुं० [सं० तोय√मुच् (छोड़ना)+क्विप्, उप० स०] १. बादल। मेघ। २. मोथा।
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तोयराशि  : पुं० [ष० त०] १. बड़ा तालाब। झील। २. समुद्र। सागर।
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तोयवल्ली  : स्त्री० [मध्य० स०] करेले की बेल।
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तोयवृक्ष  : पुं० [स० त०] सेवार।
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तोयाधार  : पुं० [तोय-आधार, ष० त०] पुष्करिणी। तालाब।
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तोयाधिवसिनी  : स्त्री० [सं० तोय-अधि√वस् (रहना)+णिनि-ङीष्,उप० स०] पाटला वृक्ष।
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तोयालय  : पुं० [तोय-आलय, ष० त०] समुद्र।
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तोयालिक  : वि० [सं० तोय से] १. तोय या जल से संबंध रखनेवाला। २. तोय या जल के प्रवाह अथवा शक्ति से चलनेवाला। (हाइड्राँलिक)
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तोयालिकी  : स्त्री० [सं० तोय० से] वह विद्या जिसमें जलाशयों, नदियों समुद्रो आदि की गहराई और प्रवाह का इस दृष्टि से अध्ययन या विचार किया जाता है कि उनमें जहाज या नावें कब और कैसे चलाई जानी चाहिए। (हाइड्रोग्रैफी)।
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तोयालेख  : पुं० [तोय-आलेख, ष० त०] वह आलेख या नकशा जिनमें किसी जलाशय की गहराई, प्रवाहों की दिशाएँ आदि अंकित होती है। (हाइड्रोग्राफ)।
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तोयाशय  : पुं० [तोय-आशय, ष० त०]=तोयाधार।
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तोयेश  : पुं० [तोय-ईश, ष० त०] १. वरुण। २. शतभिषा नक्षत्र। ३. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र।
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तोयोत्सर्ग  : पुं० [तोय-उत्सर्ग, ष० त०] वर्षा।
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तोंर  : पुं०=तोमर।
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तोर  : पुं० [सं० तुवर] अरहर। वि०=तेरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=तोड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोरई  : स्त्री०=तोरी।
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तोरण  : पुं० [सं०√तुर् (जल्दी करना)+ल्युट-अन] १. किसी बड़ी इमारत या नगर का वह बड़ा और बाहरी फाटक जिसका ऊपरी भाग मंडपाकार हो और प्रायः पताकाओं, मालाओं आदि से सजाया जाता हो २. उक्त फाटक सजाने के लिए लगाई जानेवाली पताकाएं मालाएँ आदि। ३. ऐसी बनावट या वास्तु रचना जिसका ऊपरी भाग अर्द्ध-गोलाकार और बेल-बूटेदार हो। मेहराब। (आर्च)। ४. उक्त फाटक के आकार-प्रकार की कोई अस्थायी रचना जो प्रायः शोभा सजावट आदि के लिए की जाती है। ५. वे मालाएँ आदि जो सजावट के लिए खंभों और दीवारों आदि में बाँधकर लटकाई जाती है। बंदनवार। पुं० [सं०√तुल् (तौलना)+ल्युट-ल-र] १. ग्रीवा। गला। २. महादेव। शिव।
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तोरण-माल  : पुं० [ब० स०] अवंतिकापुरी।
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तोरण-स्फटिका  : स्त्री० [ब० स०] दुर्योधन की वह सभा जो उसके पांडवों की मयदानव वाली सभा देखकर उसके जोड़ की बनवाई थी।
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तोरन  : पुं०=तोरण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोरना  : स०=तोड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोरश्रवा  : पुं० [सं०] अंगिरा ऋषि का एक नाम।
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तोरा  : पुं० [तु० तोरह] १. भेंट रूप में देने या स्वागत-सत्कार के लिए रखा जानेवाला वह बड़ा थाल जिसमें स्वादिष्ठ पकवान, मांस, मिठाइयाँ आदि रखी जाती है। २. विवाह के अवसर पर वर-पक्ष को उक्त प्रकार के थाल भेंट करने या भेजने की रसम। (मुसल०) सर्व० दे० ‘तेरा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०-तोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=तुर्रा (कलगी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोराई  : अ० [अव्य० त्वरा] १. वेगपूर्वक। तेजी से। २. जल्दी। शीघ्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोराना  : स०=तुड़ाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोरावान  : वि० [सं० त्वरावत्] [स्त्री० तोरावली] वेगवान्। तेज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोरित  : भू० कृ० [सं०√तीर्(कार्य समाप्त होना)+क्त] निर्णीत।
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तोरिया  : स्त्री० [सं० तूरी] गोटा-किनारी बुननेवालों का वह छोटा बेलन जिस पर वे बुना हुआ गोटा आदि लपेटते चलते हैं। स्त्री० [देश०] १. वह गाय या भैंस जिसका बच्चा मर गया हो और जिसका दूध दुहने के लिए कोई युक्ति करनी पड़ती हो। २. एक प्रकार की सरसों।
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तोरी  : स्त्री० [सं० तूर] १. एक प्रकार की बेल जिसकी फलियों की तरकारों की बनती है। २. उक्त बेल की फली जो प्रायः ननुए की तरह होती और तरकारी बनाने के काम आती है। ३. काली सरसों।
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तोल  : पुं० [सं०√तुल् (तौलना)+घञ्] बारह माशे की तौल। तोला। स्त्री० [हिं०]=तौल। वि०=तुल्य (समान) उदाहरण–मदने पाओल आपन तोल।–विद्यापति। पुं० [देश०] नाव का डाँड़ा (लश०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोलक  : पुं० [सं० तोल+कन्] तोला। (तौल) बारह माशे की वजन।
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तोलन  : पुं० [सं०√तुल् (तौलना)+ल्युट-अन] १. तौलने की क्रिया या भाव। २. ऊपर उठाने की क्रिया। स्त्री० चाँड़। थूनी।
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तोलना  : स०=तौलना।
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तोलवाना  : स०=तौलवाना।
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तोला  : पुं० [सं० तोल] १. एक तौल जो बारह माशे या छानबे रत्ती की होती है। २. उक्त तौल का बाट।
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तोलाना  : स०=तौलना।
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तोलिया  : पुं० दे० ‘तौलिया’।
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तोल्य  : वि० [सं०√तुल् (तौलना)+ण्यत्] तौले जाने योग्य। पुं० तौलने की क्रिया या भाव।
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तोश  : वि० [सं०√तुश् (वध करना)+घञ्] हिंसा करनेवाला। हिंसक। पुं० १. हिंसा। २. हिंसक पशु या प्राणी।
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तोशक  : स्त्री० [तु०] दोहरी चादर या खोल में रूई, नारयिल की जटा आदि भरकर बनाया हुआ गुदगुदा बिछौना। हलका गद्दा।
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तोशदान  : पुं० [फा० तोशः दान] १. वह झोला या थैली जिसमे मार्ग के लिए यात्री विशेषतः सैनिक अपना जलपान आदि या दूसरी आवश्यक चीजें रखते हैं। २. चमड़े की वह पेटी जिसमें सैनिक कारतूस या गोलियाँ रखते हैं।
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तोशल  : पुं०=तोषल।
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तोशा  : पुं० [फा० तोशः] १. वह खाद्य पदार्थ जो यात्री मार्ग के लिए अपने साथ रख लेता है। पाथेय। २. खाने-पीने का सामान। ३. बाँह पर पहनने का एक प्रकार का गहना।
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तोशाखाना  : पुं० [तु० तोशक+फा० खाना] वह बड़ा कमरा या स्थान जहाँ राजाओं और अमीरों के पहनने के बढ़िया कपड़े, गहने आदि रहते हों। वस्त्रों और आभूषणों आदि का भण्डार।
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तोश्क-खाना  : पुं० दे० ‘तोशाखाना’।
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तोष  : पुं० [सं०√तुष् (सन्तोष करना)+घञ्] १. अघाने या मन भरने की क्रिया या भाव। तुष्टि। तृप्ति। २. असंतोष, कष्ट हानि आदि का प्रतिकार हो जाने पर मन में होनेवाली तृप्ति। (सोलेस) ३.खुशी। प्रसन्नता। ४.पुराणानुसार स्वायंभुव मनु के एक देवता। ५.श्रीकृष्ण के एक सखा। अव्य०अल्प। कुछ । थोड़ा।
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तोष-पत्र  : पुं० [मध्य० स०] वह पत्र जिसमें राज्य की ओर से जागीर मिलने का उल्लेख रहता है। बख्शिशनामा।
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तोषक  : वि० [सं०√तुष्+णिच्+ण्वुल–अक] तोष देने या तृप्त करने वाला। सन्तुष्ट करनेवाला।
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तोषण  : पुं० [सं०√तुष्+णिच्+ल्युट–अन] १. किसी को तुष्ट या तृप्त करने की क्रिया या भाव २. [√तुष्+ल्युट्] तृप्ति। वि० [√तुष्+णिच्+ल्यु-अन] तुष्ट या प्रसन्न करनेवाला। (यौं० पदों के अन्त में)।
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तोषणिक  : पुं० [सं० तोषक+ठन्-इक] वह धन जो किसी को तुष्ट करने के उद्देश्य से दिया जाय।
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तोषता  : स्त्री०=तोष। (तुष्टि)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोषना  : स० [सं० तोष] तृप्त या संतुष्ट करना। तृप्त करना। उदाहरण–विग्र, पितर, सुर, दान, मान, पूजा सौं तोषे।–रत्नाकर। अ० तृप्त या सन्तुष्ट होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोषल  : पुं० [सं०] १. कंस का एक असुर मल्ल जिसे धनुर्यज्ञ में श्रीकृष्ण नेमार डाला था। २. मूसल।
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तोषार  : पुं० १.=तुषार। २.=तुखार। (देश०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोषित  : वि० [सं०√तुष्+णिच्+क्त] जिसका तोष हो गया हो, अथवा जिसे तृप्त किया गया हो। तुष्ट। तृप्त।
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तोषी(षिन्)  : वि० [सं०√तुष्+णिनि] समस्तप दों के अन्त में, (क) सन्तुष्ट होनेवाला। थोड़ी -सी चीज या बात से संतुष्ट होनेवाला। जैसे–अल्प-तोषी। (ख) [√तुष्+ णिच्+णिनि] तुष्ट या संतुष्ट करनेवाला। जैसे–सर्व तोषी-सबको तुष्ट करनेवाला।
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तोस  : पु०=तोष।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोसक  : स्त्री०=तोशक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० तोषक।
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तोसल  : पुं०=तोषल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोसा  : पुं०=तोशा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोसाखाना  : पुं०=तोशाखाना।
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तोसागार  : पुं० दे० ‘तोशाखाना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तोंहका  : सर्व०=तुम्हें।
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तोहफगी  : स्त्री० [अ० तोहफा+फा० गी(प्रत्यय)] तोहफा अर्थात् बढ़िया और विलक्षण होने की अवस्था या भाव।
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तोहफा  : पुं० [अ० तुहफा] १. अदभुत और सुन्दर पदार्थ। बढ़िया और विलक्षण चीज। २. उपायन। बैना। सौगात। ३.उपहार। भेंट। वि०अच्छा। उत्तम। बढ़िया।
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तोहमत  : स्त्री० [अ०] किसी पर लगाया जानेवाला झूठा और व्यर्थ का अभियोग या आरोप। झूठा दोषारोपण। क्रि० प्र०–जोड़ना।–धरना।–लगाना।
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तोहमती  : वि० [अ० तोहमत+ई (प्रत्यय)] दूसरों पर झूठा अभियोग या तोहमत लगानेवाला। मिथ्या कलंक लगानेवाला।
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तोहरा  : सर्व० दे० ‘तुम्हारा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तोहार  : सर्व० दे० ‘तुम्हारा’।
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तोहि  : सर्व० [हिं० तू० या तैं] मुझको। तुझे।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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