शब्द का अर्थ
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दधि :
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पुं० [सं०√धा (धारण करना)+कि (द्वित्व)] १. दही। २. वस्त्र। कपड़ा। पुं० [सं० उदधि] १. समुद्र। २. छोटा दह या तालाब। उदाहरण—और रवि होहु कँवल दधि माहाँ।—जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दधि-काँदों :
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पुं० [सं० दधि+हिं० काँदों=कीचड़] जन्माष्टमी के अवसर पर होनेवाला एक उत्सव जिसमें हल्दी मिला हुआ दही एक दूसरे पर फेंका जाता है। (कृष्ण जन्म के अवसर पर आमोद-सूचक) |
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दधि-कूर्चिका :
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स्त्री० [मध्य० स०] फटे या फाड़े हुए दूध का सार भाग। छेना। |
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दधि-जात :
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वि० पुं० [पं० त०] दधि या दही से उत्पन्न या बना हुआ। पुं० [सं० उदधि+जात] चंद्रमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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दधि-नामा (मन्) :
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पुं० [सं० ब० स०] कैथ का पेड़। |
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दधि-पुष्पिका :
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स्त्री० [ब० स०, कप्+टाप्, इत्व] सफेद अपराजिता का वृक्ष। |
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दधि-पुष्पी :
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स्त्री० [ब० स०, ङीष्] सेम। |
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दधि-पूप :
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पुं० [मध्य० स०] साठी के चावल के चूर्ण को दही में मिलाकर और घी में तलकर बनाया जानेवाला एक तरह का पकवान। |
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दधि-बरी :
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स्त्री० [सं०+हिं०] दही में डाली हुई बरी या पकौड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दधि-मंड :
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पुं० [ष० त०] दही का पानी। |
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दधि-मंडोद :
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पुं० [दधिमंड-उदक, ब० स० उद-आदेश] दही का समुद्र। (पुराण)। |
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दधि-मुख :
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पुं० [ब० स०] सुग्रीव का मामा जो मधुबन का रक्षक था। |
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दधि-सागर :
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पुं० [ष० त०] दही का समुद्र। (पुराण) |
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दधि-सुत :
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पुं० [ष० त०] मक्खन। नवनीत। पुं० [सं० उदधि-सुत] १. कमल। २. मोती। ३. जहर। विष। ४. चन्द्रमा। ५. जालंधर नामक दैत्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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दधि-सुता :
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स्त्री० [सं० उदधि-सुता] १. लक्ष्मी। २. सीपी। |
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दधि-स्नेह :
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पुं० [ष० त०] दही की मलाई। |
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दधि-स्वेद :
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पुं० [ष० त०] छाछ। मठा। |
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दधिचार :
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पुं० [सं० दधि√चर् (चलना)+णिच्+अण्] मथानी जिससे मथने के समय दही चलाया जाता है। |
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दधिज :
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वि० [सं० दधि√जन् (पैदा होना)+ड] दही से उत्पन्न। पुं० मक्खन। |
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दधित्थ :
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पुं० [सं० दधि√स्था (ठहरना)+क, पृषो० सिद्धि] कैथ। |
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दधित्थाख्य :
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पुं० [सं० दधित्थ-आ√ख्या (कहना)+क] लोबान। |
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दधिधेनु :
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स्त्री० [मध्य० स०] पुराणानुसार दान के लिए कल्पित गौ जिसकी कल्पना दही के मटके में की जाती है। |
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दधियार :
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पुं० [देश०] अर्कपुष्पी। अंधाहुली। |
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दधिषाय्य :
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पुं० [सं० दधि√सो (नाश करना)+आय्य षत्व] घी। |
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दधिसार :
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पुं० [ष० त०] मक्खन। |
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