शब्द का अर्थ
|
दिग् :
|
स्त्री० [सं० दिक्] दिशा। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्गज :
|
पुं० [सं० दिक्+गज, ष० त०] पुराणानुसार वे आठों हाथी जो चारों दिशाओं और चारों कोणों में पृथ्वी को दबाए रखने और उन दिशाओं की रक्षा करने के लिए स्थापित हैं। वि० हाथी की तरह बहुत बड़ा या भारी। जैसे—दिग्गज पंडित, दिग्गज भवन। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्गी :
|
स्त्री०=दीघी। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्घ :
|
वि०=दीर्ध।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्घ :
|
वि०=दीर्घ। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्घी :
|
स्त्री० [सं० दीर्घिका] बड़ा तालाब। दीघी। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्जय :
|
पुं० [सं० ष० त०] दिग्विजय। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्जया :
|
स्त्री० [सं० ष० त०] दिगंश। (दे०) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्दंत :
|
पुं०=दिग्दंती (दिग्गज)। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्दंती (तिन्) :
|
पुं० [सं० ष० त०] दिग्गज। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्दर्शक :
|
वि० [सं० ष० त०] १. दिशा बतलाने अथवा उसका ज्ञान करानेवाला। २. दिग्दर्शन कराने वाला। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्दर्शक-यंत्र :
|
पुं० [कर्म० स०] दिशाओं का ज्ञान करानेवाला घड़ी के आकार का एक छोटा यंत्र। कुतुबनुमा। (कंपास) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्दर्शन :
|
पुं० [ ष० त०] १. दिशा या ओर दिखलाना। २. किसी को यह बतलाना कि किस ओर, किसकाम में अथवा किस प्रकार आगे बढ़ चलना या बढ़ना चाहिए। ३. यह बतलाना कि किस ओर अथवा दिशा में क्या-क्या है अथवा हो रहा है। ४. वह तथ्य जो उदाहरण—स्वरूप उपस्थित किया जाय। ५. अभिज्ञता। जानकारी। ६. दे० ‘दिग्दर्शक यंत्र’। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्दर्शनी :
|
स्त्री० [दिग्दर्शन+ङीष्] दिग्दर्शक यंत्र। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्दाह :
|
पुं० [सं० ष० त०] क्षितिज में होनेवाली एक प्राकृतिक विलक्षण घटनाएँ जिनमें कोई दिशा ऐसी लाल दिखाई देती है कि मानों आग-सी लगी हो। यह अशुभ मानी जाती है। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्देवता :
|
पुं० [सं० ष० त०]=दिक्पाल। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्ध :
|
वि० [सं०√दिह् (लेपन)+क्त] १. जहर में बुझा या बुझाया हुआ। २. लिप्त। लीन। ३. दीर्घ। लंबा। पुं० १. जहर में बुझाया हुआ तीर या बाण। २. तेल। ३. अग्नि। आग। ४. निबन्ध। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्पट :
|
पुं० [सं० दिक्+पट, कर्म० स०] दिक् रूपी वस्त्र। २. दे० ‘दिगंबर’। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्पति :
|
पुं० [सं० दिक्+पति, ष० त०]=दिक्पाल। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्पाल :
|
पुं० दिक्पाल। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्बल :
|
पुं० [सं० ष० त०] फलित ज्योतिष के अनुसार आदि पर स्थित ग्रहों का बल। फलित ज्योतिष में वह बल जो ग्रहों के किसी विशिष्ट स्थिति में रहने पर प्राप्त होता है। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्बिंन्दु :
|
पुं० [सं० मध्य० स०] वह बिन्दु या निश्चित स्थान जो सीध या ठीक उत्तर, दक्षिण, पूर्व या पश्चिम में पड़ता है। (कार्डिनल प्वाइंट) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्भू :
|
स्त्री० [सं० द्व० स०] दिशाएँ और पृथ्वी। उदाहरण—कंपित दिग्भू अंबर, ध्वस्त अहमद डंबर।—पंत। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्भ्रम :
|
पुं० [सं० ष० त०] दिशाओं के संबंध में होनेवाला भ्रम। जैसे—भूल से पश्चिम को दक्षिण या पूर्व समझना। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्मंडल :
|
पुं० [सं० दिङ+मंडल, ष० त०] दिशाओं का समूह। समस्त दिशाएँ। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्यंद :
|
पुं०=दिग्गज। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्राज :
|
पुं० [सं० ष० त०,+टच्०] दिक्पाल। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्वयापी (पिन्) :
|
वि० [सं० दिक्+वि√आप् (पहुँचना)+णिनि] [स्त्री० दिग्व्यापिनी दिग्व्यापिन्+ङीप्] सब दिशाओं में व्याप्त रहने या होनेवाला। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्वली (लिन्) :
|
पुं० [सं० दिग्बल+इनि] १. फलित ज्योतिष में वह ग्रह जो किसी दे के लिए बली हो। २. वह राशि जिसे किसी ग्रह से बल प्राप्त हो रहा हो। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्वसन :
|
पुं० [सं० ब० स०] दिग्वस्त्र। (दे०) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्वस्त्र :
|
पुं० [सं० ब० स०] १. महादेव। शिव। २. लग्न। ३. दिगंबर जैन यति। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्वान् (वत्) :
|
पुं० [सं० दिग्+मतुप्, म-व] चौकीदार। पहरेदार। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्वारण :
|
पुं० [सं० ष० त०] दिग्गज। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्वास (स्) :
|
पुं० [सं० ब० स०] दिग्वस्त्र। (दे०) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्विजय :
|
स्त्री० [सं० ष० त०] १. प्राचीन भारतीय महाराजाओं की एक प्रथा जिसमें वे अपना पौरूष और बल दिखाने के लिए सेना सहित निकलकर आस-पास विशेषतः चारों ओर के देशों और राज्यों को अपने अधीन करते चलते थे। २. किसी बहुत बड़े गुणी या पंडित का दूसरे स्थानों पर आकर वहाँ के गुणियों और विद्वानों को अपनी कलाओं, गुणों आदि से परास्त करके उन पर अपनी विशिष्टता का सिक्का जमाना। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्विजयी (यिन्) :
|
वि० [सं० दिग्विजय+इनि] [स्त्री० दिग्विजयनी दिग्विजयिन्+ङीष्] जिसने दिग्विजय प्राप्त की हो। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्विभाग :
|
पुं० [सं० ष० त०] दिशा। ओर। तरफ। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्विभावित :
|
वि० [सं० ष० त०] जिसकी प्रसिद्धि सभी दिशाओं में अर्थात् सब जगह हो। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्व्याप्त :
|
वि० [सं० स० त०] सब दिशाओं में व्याप्त। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्व्रत :
|
पुं० [सं० मध्य० स०] एक तरह का व्रत जिसमें कुछ निश्चित समय के लिए किसी निश्चित दिशा में नही जाया जाता। (जैन) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्शिखा :
|
स्त्री० [सं० ष० त०] पूर्व दिशा। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्शूल :
|
पुं०=दिशा शूल। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिग्सिंधुर :
|
पुं० [सं० ष० त०] गिदग्ज। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |