दुर्ग/durg

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दुर्ग  : वि० [सं० दुर्√गम् (जाना)+ड](स्थान) जहाँ तक पहुँचना बहुत कठिन हो। दुर्गम। पुं० १. दु्र्गम पथ। २. बहुत बड़ा किला (विशेषतः किसी पहाड़ी पर स्थित) ३. एक प्रसिद्ध राक्षस जिसका वध दुर्गा ने किया था।
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दुर्ग-कर्म (न्)  : पुं० [ष० त०] दुर्ग बनाने का काम।
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दुर्ग-कारक  : पुं० [ष० त०] १. दुर्ग बनानेवाला कारीगर। २. एक तरह का वृक्ष।
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दुर्ग-कोपक  : पुं० [स० त०] किले में बगावत फैलानेवाला विद्रोही।
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दुर्ग-तरणी  : स्त्री० [ष० त०] १. एक देवी का नाम। २. सावित्री।
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दुर्ग-पाल  : पुं० [सं० दुर्ग√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण्] दुर्ग अर्थात् किले का प्रधान अधिकारी और रक्षक। किलेदार।
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दुर्ग-पुष्पी  : पुं० [ब० स०, ङीष्] एक तरह का वृक्ष।
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दुर्ग-रक्षक  : पुं० [ष० त०] दुर्गपाल। किलेदार।
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दुर्ग-लंघन  : पुं० [ष० त०] (रेतीले दुर्गम पथ को पार करनेवाला) ऊँट।
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दुर्ग-संचर  : पुं० [ष० त०] वह जिसके द्वारा या माध्यम से दुर्गम पथ पार किया जाय। जैसे—पुल, बेड़ा, सीढ़ी इत्यादि।
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दुर्गच्छा  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार का मोहनीय कर्म जिसके उदय से मलिन पदार्थों में ग्लानि उत्पन्न होती है। (जैन)
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दुर्गत  : वि० [ सं० दुर्√गम्+क्त] १. जिसकी दुर्गति हुई हो। २. गरीब। दरिद्र। स्त्री०=दुर्गति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दुर्गति  : स्त्री० [सं० दुर्√गम्+क्तिन्] १. दुर्गम होने की अवस्था या भाव। २. दुर्दशाग्रस्त होने की अवस्था या भाव। ३. दुर्दशाग्रस्त करने की क्रिया या भाव।
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दुर्गंध  : स्त्री० [सं० दुर्-गंध प्रा० स०] १. बुरी गंध या महक। बदबू। २. लोक में, किसी बुराई का होनेवाला प्रसार। पुं० [ प्रा० ब० स०] १. आम का पेड़। २. प्याज ३. काला नमक।
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दुर्गंधता  : स्त्री० [सं० दुर्गंध+तल्—टाप्] १. वह अवस्था जिसमें किसी वस्तु में से बदबू निकल रही हो। २. वह तत्त्व जिसके कारण दुर्गंध फैलती हो।
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दुर्गम  : वि० [सं० दुर्√गम्+खल्] [भाव० दुर्गमता] १. जिसमें गमन करना अर्थात् जाना, चलना या आगे बढ़ना बहुत कठिन हो। २. जिसे जानना या समझना कठिन हो। दुर्बोध। ३. कठिन। विकट। पुं० १. दुर्ग। किला। गढ़। २. जंगल। वन। ३. संकटपूर्ण स्थान या स्थिति। ४. विष्णु का एक नाम। ५. एक असुर का नाम।
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दुर्गमता  : स्त्री० [सं० दुर्गम+तल्—टाप्] दुर्गम होने की अवस्था, गुण या भाव।
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दुर्गमनीय  : वि० [सं० दुर्√गम्+अनीयर्] दुर्गम।
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दुर्गल  : पुं० [सं०] एक प्राचीन देश।
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दुर्गा  : पुं० [सं० दुर्ग+टाप्] १. आदि शक्ति के रूप में मानी जानेवाली एक प्रसिद्ध देवी जिसका यह नाम दुर्ग राक्षस का वध करने के कारण पड़ा था। २. नौ वर्षों की अवस्थावाली कन्या। ३. नील का पौधा। ४. अपराजिता। ५. श्यामा पक्षी। ६. गौरी, मालश्री, सारंग और लीलावती के योग से बनी हुई एक संकर रागिनी।
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दुर्गा-कल्याण  : पुं० [सं०] ओडव संपूर्ण जाति का एक राग जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
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दुर्गा-नवमी  : स्त्री० [मध्य० स०] १. कार्तिक शुक्ल नवमी जिस दिन दुर्गा के पूजन का विधान है। २. चैत्र शुक्ल नवमी। ३. आश्वनी शुक्ल नवमी।
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दुर्गा-पूजा  : स्त्री० [ष० त०] १. दु्र्गा का पूजन। २. चैत्र और आश्विन के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक के नौ दिन जिनमें लोग दुर्गा या देवी की प्रतिमा स्थापित करके उसका पूजन करते हैं।
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दुर्गाधिकारी (रिन्)  : पुं० [सं० दुर्ग-अधिकारिन् ष० त०] [स्त्री० दुर्गाधिकारिणी] दुर्ग का प्रधान अधिकारी। किलेदार।
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दुर्गापाश्रया भूमि  : स्त्री० [सं० दुर्ग-अपाश्रया ष० त०, दुर्गापाश्रया भूमि व्यस्त पद] वह भूमि जिसमें अनेक किले हों।
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दुर्गाष्टमी  : स्त्री० [दुर्गा-अष्टमी मध्य० स०] १. आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी। २. चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी।
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दुर्गाह्य  : वि० [सं० दुर्√गाह्+ण्यत्] जिसका अवगाहन करना बहुत कठिन हो।
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दुर्गाह्व  : पुं० [सं० दुर्गा-आ ह्वा ब० स०] भूमि गूगल।
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दुर्गुण  : पुं० [सं० दुर्-गुण प्रा० स०] १. व्यक्ति में होनेवाली ऐसी दूषित स्वभावजन्य क्रियाशीलता जिसके कारण वह बुरे कामों में प्रवृत्त होता है। ऐब। २. किसी पदार्थ में होनेवाला ऐसा दोष जिससे विकार उत्पन्न होता हो।
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दुर्गुणी (णिन्)  : वि० [सं० दुर्गुण+इनि] जिसमें दुर्गुण या ऐब हों।
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दुर्गेश  : पुं० [सं० दुर्ग-ईश ष० त०] १. दुर्ग का स्वामी। २. दुर्ग का प्रधान अधिकारी।
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दुर्गोत्सव  : पुं० [सं० दुर्गा-उत्सव मध्य० स०] चैत्र तथा आश्विन के नवरात्रों में मनाया जानेवाला उत्सव जिसमें दुर्गा का पूजन किया जाता है।
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दुर्ग्रह  : वि० [सं० दुर्√ग्रह (पकड़ना)+खल्] १. जिसे कठिनता से पकड़ा अर्थात् अधिकार में किया जा सके। २. कठिनता से समझ में आनेवाला। दुर्बोध। पुं० १. अपामार्ग। चिचड़ा। २. [दुर्-ग्रह प्रा० स०] बुरा या अनिष्टकारक ग्रह।
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दुर्ग्राह्य  : वि० [सं० दुर्√ह+ण्यत्] दुर्ग्रह।
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