न्याय/nyaay

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न्याय  : पुं० [सं० नि√इ (गति)+घञ्] १. कोई काम ठीक तरह से पूरी करने की ढंग, नियम या योजना। २. उचित, उपयुक्त या ठीक होने की आस्था या भाव। ३. ऐसा आचरण या व्यवहार जिसमें नैतिक दृष्टि से किसी प्रकार का अनौचित्य, पक्षपात या बेईमानी न हो। ४. प्रमाणों द्वारा विषयों का किया जानेवाला परीक्षण। ५. विवाद आदि के प्रसंगों में, आधिकारिक अथवा प्रामाणिक रूप से निष्पक्ष होकर यह निर्णय या निश्चय करना कि कौन-सा पक्ष उचित और कौन-सा अनुचित है; अथवा भविष्य में कार्य का निर्वाह किस प्रकार होना चाहिए और किसे कौन-सी वस्तु अथवा क्या दंड मिलना चाहिए। ६. उक्त के संबंध में अधिकारिक रूप से होने वाला निर्णय या निश्चय। ७.व्याकरण में, ऐसा नियम या सिद्धांत जिसका पालन सब जगह समान रूप से होता हो। ८. तुल्यता। समानता। ९. प्रायः कहावत या लोकोक्ति के रूप में प्रचलित या प्रसंग में ठीक वैद्यता या लगता हो। जैसे–आपकी यह बात तो देहली-दीपक न्याय से दोनों तरफ ठीक बैठती है। विशेष–हमारे यहाँ संस्कृत में इस प्रकार के बहुत से न्याय या दृष्टान्त वार्य प्रचलित थे जिनमें से कुछ का अब भी उपयुक्त अवसरों पर प्रयोग होता है। जैसे–अंध-गज न्याय, अरण्य-रोदन न्याय, कपिथ्य न्याय, घुणाक्षर न्याय, पिष्ट पोषण न्याय, बीजांकुर न्याय आदि। इस प्रकार के न्याय या तो कुछ प्रसिद्ध तथ्यों पर आश्रित होते हैं या प्रचलित लोक-कथाओं पर, और संस्कृत साहित्य में प्रायः प्रयुक्त होते हुए दिखाई देते हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध न्यायों के आशय यथा-स्थान देखे जा सकते हैं। १॰ हमारे यहाँ के छः मुख्य आस्तिक दर्शनों में से एक प्रसिद्ध दर्शन या शास्त्र जिसके कर्ता गौतम मुनि हैं और जिसमें इस बात का विवेचन है कि किस प्रकार किसी पदार्थ या विषय का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए तार्किक दृष्टि से उसके सब अंगों या पक्षों के विकारों का निरूपण या योजना होनी चाहिए। विशेष–उक्त दर्शन में, तर्क-वितर्क के नियमों के निरूपण के सिवा आत्मा, इंद्रिय, पुनर्जन्म, सुख-दुःख आदि के स्वरूपों का भी विवेचन है; और कहा जाता है कि इन बातों का यथार्थ ज्ञान होने पर ही मनुष्य को अपवर्ग या मोक्ष मिल सकता है। ११. तर्कशास्त्र। १२. तर्कशास्त्र में, वह सम्यक् तर्क जो प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, अनय और निगमन नामक पाँचों अवयवों से युक्त हो। १३. विष्णु का एक नाम। वि० १. उचित। ठीक। वाजिब।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) २. तुल्य। समान। अव्य० की तरह। के समान।
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न्याय-पथ  : पुं० [सं० ष० त०] न्याय का मार्ग।
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न्याय-पर  : वि० [सं० ब० स०] [भाव० न्यायपरता] १. न्यायपूर्ण आचरण करनेवाला। २. न्याय के अनुसार ठीक।
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न्याय-परता  : स्त्री० [सं० न्यायपर+तल्+टाप्] न्याय पर या न्यायपरायण होने की अवस्था या भाव। न्याय-परायणता।
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न्याय-परायण  : वि० [सं० स० त०] [भाव० न्याय-परायणता] न्यायपूर्ण आचरण करनेवाला।
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न्याय-प्रिय  : वि० [सं० ब० स०] [भाव० न्याय-प्रियता] जिसे न्याय प्रिय हो। न्यायपूर्ण पक्ष का समर्थन करनेवाला।
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न्याय-मूर्ति  : पुं० [सं० ष० त०] राज्य के मुख्य न्यायालय के न्यायज्ञ की उपाधि। (जस्टिस)
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न्याय-शुल्क  : पुं० [सं० मध्य० स०] वह शुल्क जो न्यायालय में कोई प्रार्थना-पत्र उपस्थित करने के समय अंकपत्र (स्टाम्प) के रूप में देना पड़ता है। (कोर्ट फी)
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न्याय-संगत  : वि० [सं० तृ० त०] १. (आचरण) जो न्याय की दृष्टि से ठीक हो। २. (निर्णय) जिसमें पूरा पूरा न्याय हो। (जस्ट)
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न्याय-सभा  : स्त्री० [ष० त०] अदालत। अदालत। वह सभा जहाँ न्याय होता हो अर्थात् कचहरी।
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न्याय-सभ्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] फौजदारी के कुछ खास-खास मुकदमों का विचार करते समय दौरा जज की सहायता करने के लिए नियुक्त सभ्यगण, जिनती संख्या प्रायः ३ से ७ तक होती है। इनसे न्यायाधीश का मत-भेद होने पर मामला उच्च-न्यायालय में भेज दिया जाता है। (जूरी)
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न्यायकर्ता (र्तृ)  : वि० [सं० ष० त०] (विवाद आदि का) न्याय करनेवाला। पुं० न्यायालय का वह अधिकारी जो विवादों का न्याय या फैसला करता है।
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न्यायज्ञ  : पुं० [सं० न्याय√ज्ञा (जानना)+क] न्याय+शास्त्र का ज्ञाता।
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न्यायतः(तस्)  : अव्य० [सं० न्याय+तस्] न्याय की दृष्टि या विचार से। अर्थात् उचित और संगत रूप से। न्यायपूर्वक।
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न्यायवान् (वत्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] भारतीय आर्यों के दर्शनों में से एक दर्शन या शास्त्र जिसमें किसी तथ्य या बात का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए तार्किक दृष्टि से उसके विवेचन के नियम और सिद्धांत निरूपित हैं। (उसके कर्ता गौतम ऋषि हैं।)
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न्यायाधिकरण  : पुं० [सं० न्याय-अधिकरण, ष० त०] विवाद-ग्रस्त विषयों पर निर्णय देनेवाला न्यायालय या अधिकारी वर्ग। (ट्रिव्यूनल)
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न्यायाधिपति  : पुं० [सं० न्याय-अधिपति ष० त०] दे० ‘न्यायमूर्ति’।
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न्यायाधीश  : पुं० [सं० न्याय-अधीश, ष० त०] न्यायालय का वह अधिकारी जो विवादग्रस्त विषयों पर अपना निर्णय देता है।
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न्यायालय  : पुं० [सं० न्याय-आलय, ष० त०] वह स्थान जहाँ पर न्यायाधीश न्याय करता हो। अदालत। कचहरी। (कोर्ट)
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न्यायिक-अधिकारी  : पुं० [सं० न्याय से] न्याय विभाग का प्राधिकारी। (जूडिशियल अथॉरिटी)
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न्यायिक-निर्णय  : पुं० [सं० न्याय से] १. न्यायासन पर बैठकर किसी मामले के संबंध में निर्णय लेना। २. इस तरह दिया हुआ निर्णय। (एडजुडिकेशन)
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न्यायी (यिन्)  : पुं० [सं० न्याय+इनि] वह जो न्याय करता हो। बिना पक्षपात के निर्णय करनेवाला। वि०=न्यायशील।
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न्यायोचित्  : वि० [सं० तृ० त०] जो न्यायतः उचित हो। न्याय-संगत।
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न्याय्य  : वि० [सं० न्याय+यत्] न्यायोचित। न्याय-संगत।
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