पदार/padaar

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शब्द का अर्थ

पदार  : पुं० [सं० पद√ऋ (गति)+अण्] १. पैर की धूल। चरण-रज। २. पैर का ऊपरी भाग।
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पदारथ  : पुं०=पदार्थ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पदारविंद  : पुं० [पद-अरविंद, उपामि० स०] चरण-कमल।
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पदार्थ  : पुं० [सं० पद-अर्थ, ष० त०] १. वाक्यों आदि में आनेवाले पद (या शब्द) का अर्थ। (वर्ड-मीनिंग) २. वह वस्तु जिसका ज्ञान या बोध किसी विशिष्ट पद (या शब्द) से होता है। अभिधेय वस्तु। जैसे—‘चावल’ शब्द से चावल नामक पदार्थ का बोध होता है। ३. जिसका कोई दृश्य अथवा कोई बाह्य आकार या रूप हो अथवा जो पिंड, शरीर आदि के रूप में मूर्त हो। चीज। वस्तु। (मेटीरियल आब्जेक्ट) जैसे—किताब, घड़ी, पंखा आदि। ४. वह आधारिक, तात्त्विक या मौलिक अंश या वस्तु जिससे कोई दूसरी वस्तु बनी हो। (मेटीरियल) जैसे—धातु और मिट्टी वे पदार्थ हैं, जिनसे बर्तन बनते हैं। ५. वह जिसका कुछ नाम हो और जिसका ज्ञान प्राप्त किया जा सके, भले ही वह अमूर्त हो। ज्ञान या बोध का विषय। विशेष—इसी व्याख्या के आधार पर न्यायसूत्र में प्रमाण, प्रमेय, संशय, सिद्धांत आदि की गणना सोलह पदार्थों में की गई है। ६. प्राचीन भारतीय दार्शनिक क्षेत्रों में वे आधारिक और मौलिक बातें या विषय जिनका सम्यक् ज्ञान मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक कहा गया है। विशेष—वैशेषिक दर्शन में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नाम के छः पदार्थ माने हैं। न्याय-सूत्र में प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धांत, अवयव, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रह-स्थान से सोलह पदार्थ माने गये हैं। सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, महत् आदि और इनके विकारों के आधार पर २५ पदार्थ माने गये हैं। जैन दर्शनों में भी पदार्थ माने तो गये हैं, पर उनकी संख्या आदि में बहुत मतभेद है। प्राचीन दार्शनिकों ने मोक्ष-प्राप्ति के लिए पदार्थों का ज्ञान आवश्यक माना था; इसलिए पौराणिकों ने अपने दृष्टिकोण से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पदार्थ माने थे। इसी परंपरा के अनुसार वैद्यक में रस, गुण, वीर्य, विषाक और शक्ति ये पाँच पदार्थ माने गये हैं।
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पदार्थ-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] भौतिक-विज्ञान। (दे०)
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पदार्थ-विद्या  : स्त्री० [ष० त०] १. वह विद्या जिसमें विशिष्ट संज्ञाओं द्वारा सूचित पदार्थों का तत्त्व बतलाया गया हो। जैसे—वैशेषिक। २. दे० ‘भौतिक विज्ञान’।
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पदार्थवाद  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह वाद या सिद्धांत जिसमें भौतिक पदार्थों को ही वास्तविक तथा सब-कुछ माना जाता है और आत्मा अथवा ईश्वर का अस्तित्व नहीं माना जाता। (अध्यात्मवाद से भिन्न) २. आज-कल अधिक प्रचलित अर्थ में, यह सिद्धांत कि धन-संपत्ति के भोग में ही मनुष्य को आनन्द या सुख मिलता है, आत्म-चिंतन आदि व्यर्थ की बातें हैं। (मेटीरियलिज़्म)
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पदार्थवादी  : वि० [सं० पदार्थ√वद् (बोलना)+णिनि] पदार्थवाद संबंधी। पुं० पदार्थवाद का अनुयायी या समर्थक। (मेटीरियलिस्ट)
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पदार्थ्य  : पुं० [पद-अर्थ्य, मध्य० स०] वह जल जिसने पूज्य व्यक्तियों के चरण धोये जाते हैं।
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पदार्पण  : पुं० [पद-अर्पण, ष० त०] किसी स्थान में होनेवाला प्रवेश। आना। बहुत बड़े लोगों के संबंध में आदरसूचक पद) जैसे—महाराज का यहाँ पदार्पण ही हम लोगों के लिए विशेष सम्मानजनक है।
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