शब्द का अर्थ
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परख :
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स्त्री० [हिं० परखना] १. परखने की क्रिया या भाव। २. गुण-दोष, भलाई-बुराई, आदि परखने की क्रिया या भाव। ३. वह दृष्टि या मानसिक शक्ति जिससे आदमी गुण-दोष, भलाई-बुराई आदि पहचानने और समझने में समर्थ होता है। ठीक-ठक पता लगाने या वस्तु-स्थिति जानने की योग्यता या सामर्थ्य। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
परखचा :
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पुं० [?] टुकड़ा। खंड। मुहा०—परखचे उड़ना=टुकड़ा-टुकड़ा कर देना। छिन्न-भिन्न करना। |
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परखना :
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स० [सं० परीक्षण, प्रा० परीक्खण] १. ठोक-बजाकर तथा अन्य परीक्षणों द्वारा किसी चीज का गुण, दोष, महत्त्व, मान आदि जानना। २. अच्छे बुरे की पहचान करना। ३. कार्य-व्यवहार आदि देखकर समझना कि यह क्या अथवा कैसा है। संयो० क्रि०—लेना। अ० [हिं० परेखना] प्रतीक्षा करना। उदा०—जेवत परखि लियौ नहिं हम कौ तुम अति करी चँडाई।—सूर। |
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परखनी :
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स्त्री०=परखी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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परखवाना :
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स०=परखाना। |
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परखवैया :
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पुं० [हिं० परख+वैया (प्रत्य०)] १. परखनेवाला व्यक्ति। २. दे० ‘परखैया’। |
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परखाई :
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स्त्री० [हिं० परख] १. परखने की क्रिया या भाव। परखाव। २. परखने की मजदूरी या पारिश्रमिक। |
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परखाना :
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सं० [हिं० ‘परखना’ का प्रे०] १. परखने का काम दूसरे से कराना। जाँच या परीक्षा करवाना। २. कोई चीज देने के समय अच्छी तरह ध्यान दिलाते हुए उसकी पहचान कराना। सहेजना। |
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परखी :
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स्त्री० [हिं० परखना] लोहे का एक तरह का नुकीला लंबोतरा उपकरण जिसकी सहायता से अन्न के बंद बोरों में से नमूने के तौर पर उसके कण या बीज निकाले जाते हैं। पुं० दे० ‘पारखी’। |
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परखुरी :
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स्त्री०=पखड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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परखैया :
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पुं० [सं०] परखने या जाँचनेवाला व्यक्ति। |
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