पल्ल/pall

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पल्ल  : पुं० [सं० पाद्√ला (लेना)+क, पद्—आदेश] १. वह आगार जिसमें अन्न संचित करके रखा जाता है। बखार २. फल आदि पकाने के लिए विशिष्ट प्रकार से उन्हें रखने का ढंग या युक्ति। पाल।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्ल  : पुं० [सं० पाद्√ला (लेना)+क, पद्—आदेश] १. वह आगार जिसमें अन्न संचित करके रखा जाता है। बखार २. फल आदि पकाने के लिए विशिष्ट प्रकार से उन्हें रखने का ढंग या युक्ति। पाल।
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पल्लड़  : पुं० [हिं० पल्ला ?] झुंड। समूह। उदा०—पूर्व की ओर से अंधकार के पल्लड़ के पल्लड़ नदी के स्वर्णरेखा पर मानों आवरण डालनेवाले थे।—वृंदावनलाल वर्मा।
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पल्लड़  : पुं० [हिं० पल्ला ?] झुंड। समूह। उदा०—पूर्व की ओर से अंधकार के पल्लड़ के पल्लड़ नदी के स्वर्णरेखा पर मानों आवरण डालनेवाले थे।—वृंदावनलाल वर्मा।
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पल्लव  : पुं० [सं०√पल्+क्विप्,√लू+अप्, पल्—लव, कर्म० स०] १. पौधे, वृक्ष आदि का कोमल, छोटा तथा नया पत्ता पत्ते की तरह की आगे की ओर निकली हुई। चिपटी गोलाकार चीज। जैसे—कर पल्लव। ३. गले में पहनने का एक तरह का कोई आभूषण जो पत्ते के आकार का होता है। ४. एक तरह का कंगन। ५. नृत्य में हाथ का एक विशिष्ट प्रकार की मुद्रा। ६. बल। शक्ति। ७. चंचलता। ८. आल का रंग। ९. पहने जानेवाले वस्त्र का पल्ला। १॰. विस्तार। ११. पल्लव देश। १२. पल्लव देश का निवासी। १३. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश जिसका राज्य किसी समय उड़ीसा से तुंगभद्रा नदी तक था। वराहमिहिर के अनुसार इस वंश के लोग पहिले दक्षिण-पश्चिम बसते थे। अशोक के समय में गुजरात में इनका राज्य था।
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पल्लव  : पुं० [सं०√पल्+वल्] छोटा जलाशय।
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पल्लव  : पुं० [सं०√पल्+क्विप्,√लू+अप्, पल्—लव, कर्म० स०] १. पौधे, वृक्ष आदि का कोमल, छोटा तथा नया पत्ता पत्ते की तरह की आगे की ओर निकली हुई। चिपटी गोलाकार चीज। जैसे—कर पल्लव। ३. गले में पहनने का एक तरह का कोई आभूषण जो पत्ते के आकार का होता है। ४. एक तरह का कंगन। ५. नृत्य में हाथ का एक विशिष्ट प्रकार की मुद्रा। ६. बल। शक्ति। ७. चंचलता। ८. आल का रंग। ९. पहने जानेवाले वस्त्र का पल्ला। १॰. विस्तार। ११. पल्लव देश। १२. पल्लव देश का निवासी। १३. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश जिसका राज्य किसी समय उड़ीसा से तुंगभद्रा नदी तक था। वराहमिहिर के अनुसार इस वंश के लोग पहिले दक्षिण-पश्चिम बसते थे। अशोक के समय में गुजरात में इनका राज्य था।
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पल्लव  : पुं० [सं०√पल्+वल्] छोटा जलाशय।
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पल्लव ग्राहिता  : स्त्री० [सं० पल्लवग्राहिन्+तल्+टाप्] पल्लवग्राही होने की अवस्था या भाव।
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पल्लव ग्राहिता  : स्त्री० [सं० पल्लवग्राहिन्+तल्+टाप्] पल्लवग्राही होने की अवस्था या भाव।
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पल्लव-द्रु  : पुं० [सं० मध्य० स०] अशोक (वृक्ष)।
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पल्लव-द्रु  : पुं० [सं० मध्य० स०] अशोक (वृक्ष)।
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पल्लवक  : पुं० [सं० पल्लव√कै (चमकना)+क] १. वेश्यागामी २. किसी वेश्या का प्रेमी। ३. अशोक (वृक्ष)। ४. नया हरा पत्ता। पल्लव। ५. एक तरह की मछली।
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पल्लवक  : पुं० [सं० पल्लव√कै (चमकना)+क] १. वेश्यागामी २. किसी वेश्या का प्रेमी। ३. अशोक (वृक्ष)। ४. नया हरा पत्ता। पल्लव। ५. एक तरह की मछली।
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पल्लवग्राही (हिन्)  : पुं० [सं० पल्लव√ग्रह् (ग्रहण करना)+णिनि] वह जिसने किसी विषय की ऊपरी या बाहरी छोटी-मोटी बातों का ही सामान्य ज्ञान प्राप्त किया हो। किसी विषय को स्थूल रूप से जाननेवाला।
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पल्लवग्राही (हिन्)  : पुं० [सं० पल्लव√ग्रह् (ग्रहण करना)+णिनि] वह जिसने किसी विषय की ऊपरी या बाहरी छोटी-मोटी बातों का ही सामान्य ज्ञान प्राप्त किया हो। किसी विषय को स्थूल रूप से जाननेवाला।
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पल्लवना  : अ० [सं० पल्लव+हिं० ना (प्रत्य०)] १. पौधों, वृक्षों आदि में नये पत्ते निकलना। पल्लवित होना। २. व्यक्तियों का फलना-फूलना और उन्नत अवस्था का प्राप्त होना। स० पल्लवित करना। पनपाना।
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पल्लवना  : अ० [सं० पल्लव+हिं० ना (प्रत्य०)] १. पौधों, वृक्षों आदि में नये पत्ते निकलना। पल्लवित होना। २. व्यक्तियों का फलना-फूलना और उन्नत अवस्था का प्राप्त होना। स० पल्लवित करना। पनपाना।
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पल्लवाद  : पुं० [सं० पल्लव√अद् (खाना)+अण्] हिरन।
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पल्लवाद  : पुं० [सं० पल्लव√अद् (खाना)+अण्] हिरन।
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पल्लवाधार  : पुं० [सं० पल्लव-आधार, ष० त०] डाली या शाखा जिसमें पत्ते लगते हैं।
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पल्लवाधार  : पुं० [सं० पल्लव-आधार, ष० त०] डाली या शाखा जिसमें पत्ते लगते हैं।
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पल्लवास्त्र  : पुं० [सं० पल्लव-अस्त्र, ब० स०] कामदेव।
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पल्लवास्त्र  : पुं० [सं० पल्लव-अस्त्र, ब० स०] कामदेव।
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पल्लविक  : पुं०=पल्लवक।
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पल्लविक  : पुं०=पल्लवक।
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पल्लवित  : भू० कृ० [सं० पल्लव+इतच्] १. (पेड़ों या पौधा) जो नये नये पत्तों से युक्त हुआ हो अथवा जिसमें नये-नये पत्ते निकल रहे हों। २. हरा-भरा तथा लहलहाता हुआ। ३. जिसे नई-नई चीजों, रचनाओं आदि से युक्त किया गया हो और इस प्रकार उसका अभिवर्द्धन तथा विकास हुआ हो। जैसे—लेखक अपनी रचनाओं से साहित्य को पल्लवित करते हैं। ४. लाख के रंग में रंगा हुआ। ५. जिसे रोमांच हुआ हो। रोमांचित।
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पल्लवित  : भू० कृ० [सं० पल्लव+इतच्] १. (पेड़ों या पौधा) जो नये नये पत्तों से युक्त हुआ हो अथवा जिसमें नये-नये पत्ते निकल रहे हों। २. हरा-भरा तथा लहलहाता हुआ। ३. जिसे नई-नई चीजों, रचनाओं आदि से युक्त किया गया हो और इस प्रकार उसका अभिवर्द्धन तथा विकास हुआ हो। जैसे—लेखक अपनी रचनाओं से साहित्य को पल्लवित करते हैं। ४. लाख के रंग में रंगा हुआ। ५. जिसे रोमांच हुआ हो। रोमांचित।
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पल्लवी (विन्)  : वि० [सं० पल्ल+इनि] जिसमें पल्लव हों। पत्तों से युक्त। पुं० पेड़। वृक्ष।
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पल्लवी (विन्)  : वि० [सं० पल्ल+इनि] जिसमें पल्लव हों। पत्तों से युक्त। पुं० पेड़। वृक्ष।
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पल्ला  : पुं० [सं० पल्लव=कपड़े का छोर] १. ओढ़े या पहने हुए कपड़े का अंतिम विस्तार। आँचल। छोर। जैसे—धोती या चादर का पल्ला। मुहा०—(किसी से) पल्ला छूटना=पीछा छूटना। छुटकारा मिलना। जैसे—चलो, किसी तरह इस दुष्ट से पल्ला छूटा। पल्ला छुड़ाना=बचाव या रक्षा करने के लिए किसी की पकड़ या बंधन से निकलना। जैसे—तुम तो पल्ला छुड़ाकर भागे, पर पकड़ गए हम। (किसी का) पल्ला पकड़ना=रक्षा, सहायता, स्वार्थ-साधन आदि के लिए किसी को पकड़ना या उसके साथ होना। जैसे—उसने एक भले आदमी का पल्ला पकड़ लिया था; इसीलिए उसकी जिंदगी अच्छी तरह बीत गई। (किसी का) पल्ला पकड़ना=किसी को किसी की अधीनता, संरक्षण आदि में रखना। (किसी के आगे या सामने) पल्ला पसारना या फैलाना=अनुग्रह, भिक्षा आदि के रूप में किसी से प्रार्थी होना। पल्ले पड़ना=(प्रायः तुच्छ, हेय या भार स्वरूप वस्तु का) प्राप्त होना या मिलना। जैसे—यह बदनामी हमारे पल्ले पड़ी। (लड़की का स्त्री का किसी के) पल्ले बँधना=विवाह आदि के द्वारा किसी की पत्नी बनकर उसके साथ रहना या होना, किसी के जिम्मे होना। (अपने) पल्ले बाँधना=अधिकार संरक्षण आदि में लेना। (किसी के) पल्ले बाँधना= (क) किसी के अधिकार, संरक्षण आदि में देना। जिम्मे करना। सौंपना। (ख) लड़कियों, स्त्रियों आदि के संबंध में, किसी के साथ विवाह कर देना। (बात को) पल्ले बाँधना=बहुत अच्छी तरह से उसे स्मरण रखना तथा उसके अनुसार आचरण करना। २. स्त्रियों की ओढ़नी चादर, साड़ी आदि का वह अंश जो उनके सिर पर रहता है और जिसे खींचकर वे घूँघट करती हैं। मुहा०—(किसी से) पल्ला करना=पर-पुरुष के सामने स्त्री का घूंघट करना। पल्ला लेना=मुँह पर घूँघट करके और सिर झुकाकर किसी मृतक के शोक में रोना। ३. अनाद आदि बाँधने का कपड़ा या चादर। ४. अपेक्षया अधिक दूरी पर या विस्तार। जैसे—(क) कोसों के पल्ले तक मैदान ही मैदान दिखाई देता था। (ख) उनका मकान यहाँ से मील भर के पल्ले पर है। पुं० [फा० पल्लः] १. तराजू की डंडी के दोनों सिरों पर रस्सियों, श्रृंखलाओं आदि की सहायता से लटकनेवाली दोनों आधारों या पात्रों में से हर एक जिसमें से एक पर बटखरे रखे जाते हैं और दूसरी पर तौली जानेवाली वस्तु। २. कुछ विशिष्ट वस्तुओं के दो विभिन्न परन्तु प्रायः समान आकार- प्रकारवाले या खंडों में से हर एक। जैसे—(क) दरवाजे का पल्ला। (ख) कैंची का पल्ला। (ग) दुपलिया टोपी का पल्ला। ३. बराबर के दो प्रतियोगी या विरोधी पक्षों में से हर एक। मुहा०—पल्ला दबना=पक्ष कमजोर या हलका पड़ना। पल्ला भारी होना=पक्ष प्रबल या बलवान होना। ४. ओर। तरफ। दिशा। ५. पहल। पार्श्व। पुं० [सं० पल?] तीन मन का बोझ। पद—पल्लेदार। (दे०) वि०=परला (उस ओर का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्ला  : पुं० [सं० पल्लव=कपड़े का छोर] १. ओढ़े या पहने हुए कपड़े का अंतिम विस्तार। आँचल। छोर। जैसे—धोती या चादर का पल्ला। मुहा०—(किसी से) पल्ला छूटना=पीछा छूटना। छुटकारा मिलना। जैसे—चलो, किसी तरह इस दुष्ट से पल्ला छूटा। पल्ला छुड़ाना=बचाव या रक्षा करने के लिए किसी की पकड़ या बंधन से निकलना। जैसे—तुम तो पल्ला छुड़ाकर भागे, पर पकड़ गए हम। (किसी का) पल्ला पकड़ना=रक्षा, सहायता, स्वार्थ-साधन आदि के लिए किसी को पकड़ना या उसके साथ होना। जैसे—उसने एक भले आदमी का पल्ला पकड़ लिया था; इसीलिए उसकी जिंदगी अच्छी तरह बीत गई। (किसी का) पल्ला पकड़ना=किसी को किसी की अधीनता, संरक्षण आदि में रखना। (किसी के आगे या सामने) पल्ला पसारना या फैलाना=अनुग्रह, भिक्षा आदि के रूप में किसी से प्रार्थी होना। पल्ले पड़ना=(प्रायः तुच्छ, हेय या भार स्वरूप वस्तु का) प्राप्त होना या मिलना। जैसे—यह बदनामी हमारे पल्ले पड़ी। (लड़की का स्त्री का किसी के) पल्ले बँधना=विवाह आदि के द्वारा किसी की पत्नी बनकर उसके साथ रहना या होना, किसी के जिम्मे होना। (अपने) पल्ले बाँधना=अधिकार संरक्षण आदि में लेना। (किसी के) पल्ले बाँधना= (क) किसी के अधिकार, संरक्षण आदि में देना। जिम्मे करना। सौंपना। (ख) लड़कियों, स्त्रियों आदि के संबंध में, किसी के साथ विवाह कर देना। (बात को) पल्ले बाँधना=बहुत अच्छी तरह से उसे स्मरण रखना तथा उसके अनुसार आचरण करना। २. स्त्रियों की ओढ़नी चादर, साड़ी आदि का वह अंश जो उनके सिर पर रहता है और जिसे खींचकर वे घूँघट करती हैं। मुहा०—(किसी से) पल्ला करना=पर-पुरुष के सामने स्त्री का घूंघट करना। पल्ला लेना=मुँह पर घूँघट करके और सिर झुकाकर किसी मृतक के शोक में रोना। ३. अनाद आदि बाँधने का कपड़ा या चादर। ४. अपेक्षया अधिक दूरी पर या विस्तार। जैसे—(क) कोसों के पल्ले तक मैदान ही मैदान दिखाई देता था। (ख) उनका मकान यहाँ से मील भर के पल्ले पर है। पुं० [फा० पल्लः] १. तराजू की डंडी के दोनों सिरों पर रस्सियों, श्रृंखलाओं आदि की सहायता से लटकनेवाली दोनों आधारों या पात्रों में से हर एक जिसमें से एक पर बटखरे रखे जाते हैं और दूसरी पर तौली जानेवाली वस्तु। २. कुछ विशिष्ट वस्तुओं के दो विभिन्न परन्तु प्रायः समान आकार- प्रकारवाले या खंडों में से हर एक। जैसे—(क) दरवाजे का पल्ला। (ख) कैंची का पल्ला। (ग) दुपलिया टोपी का पल्ला। ३. बराबर के दो प्रतियोगी या विरोधी पक्षों में से हर एक। मुहा०—पल्ला दबना=पक्ष कमजोर या हलका पड़ना। पल्ला भारी होना=पक्ष प्रबल या बलवान होना। ४. ओर। तरफ। दिशा। ५. पहल। पार्श्व। पुं० [सं० पल?] तीन मन का बोझ। पद—पल्लेदार। (दे०) वि०=परला (उस ओर का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्लि  : स्त्री०=पल्ली।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्लि  : स्त्री०=पल्ली।
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पल्लिका  : स्त्री० [सं० पल्लि+कन+टाप्] छोटा गाँव। छोटी बस्ती।
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पल्लिका  : स्त्री० [सं० पल्लि+कन+टाप्] छोटा गाँव। छोटी बस्ती।
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पल्लिवाह  : पुं० [सं० पल्लि√वह् (ढोना)+अण्] लाल रंग की एक प्रकार की घास।
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पल्लिवाह  : पुं० [सं० पल्लि√वह् (ढोना)+अण्] लाल रंग की एक प्रकार की घास।
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पल्ली  : स्त्री० [सं० पल्लि+ङीष्] १. छोटा गाँव। पुरवा। खेड़ा। २. कुटी। झौंपड़ी। ३. छिपकली।
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पल्ली  : स्त्री० [सं० पल्लि+ङीष्] १. छोटा गाँव। पुरवा। खेड़ा। २. कुटी। झौंपड़ी। ३. छिपकली।
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पल्लू  : पुं० [हिं० पल्ला] १. आँचल। छोर। २. स्त्रियों का घूँघट। ३. चौड़ी गोट या पट्टी।
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पल्लू  : पुं० [हिं० पल्ला] १. आँचल। छोर। २. स्त्रियों का घूँघट। ३. चौड़ी गोट या पट्टी।
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पल्ले  : अव्य० [हिं० पल्ला] प्राप्ति, स्थिति आदि के विचार से अधिकार, वश या स्वत्व में। पास या हाथ में। जैसे—उसके पल्ले क्या रखा है! अर्थात् उसके पास कुछ भी नहीं है। पुं०=प्रलय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्ले  : अव्य० [हिं० पल्ला] प्राप्ति, स्थिति आदि के विचार से अधिकार, वश या स्वत्व में। पास या हाथ में। जैसे—उसके पल्ले क्या रखा है! अर्थात् उसके पास कुछ भी नहीं है। पुं०=प्रलय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पल्लेदार  : वि० [हिं० पल्ला+फा० दार] १. जिसमें पल्ले लगे हुए हों। २. (आवाज या स्वर) जो अपेक्षाकृत अधिक ऊँचा, अधिक विस्तृत या अधिक जोरदार हो। पद—पल्लेदार आवाज=ऐसी ऊँची आवाज जो दूर तक पहुँचती हो। पुं० [हिं० पल्ला+फा० दार] [भाव० पल्लेदारी] १. वह जो गल्ले के बाजार में दूकानों पर अनाज तौलने का काम करता है। बया। २. अनाज ढोनेवाला मजदूर।
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पल्लेदार  : वि० [हिं० पल्ला+फा० दार] १. जिसमें पल्ले लगे हुए हों। २. (आवाज या स्वर) जो अपेक्षाकृत अधिक ऊँचा, अधिक विस्तृत या अधिक जोरदार हो। पद—पल्लेदार आवाज=ऐसी ऊँची आवाज जो दूर तक पहुँचती हो। पुं० [हिं० पल्ला+फा० दार] [भाव० पल्लेदारी] १. वह जो गल्ले के बाजार में दूकानों पर अनाज तौलने का काम करता है। बया। २. अनाज ढोनेवाला मजदूर।
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पल्लेदारी  : स्त्री० [हिं० पल्लेदार+ई (प्रत्य०)] पल्लेदार का काम, पद, भाव या मजदूरी।
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पल्लेदारी  : स्त्री० [हिं० पल्लेदार+ई (प्रत्य०)] पल्लेदार का काम, पद, भाव या मजदूरी।
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पल्लौ  : पुं० १.=पल्लव। २.=पल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पल्लौ  : पुं० १.=पल्लव। २.=पल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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