शब्द का अर्थ
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पवि :
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पुं० [सं०√पू+इ] १. वज्र। २. वाण अथवा वाण की नोक। ३. वाणी। ४. वाक्य। ५. अग्नि। ६. थहूर। सेहुँड़। ७. मार्ग। रास्ता। (डिं०) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पवि :
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पुं० [सं०√पू+इ] १. वज्र। २. वाण अथवा वाण की नोक। ३. वाणी। ४. वाक्य। ५. अग्नि। ६. थहूर। सेहुँड़। ७. मार्ग। रास्ता। (डिं०) |
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समानार्थी शब्द-
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पवि-धर :
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वि० [सं० ष० त०] वज्र धारण करनेवाला। पुं० इंद्र। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पवि-धर :
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वि० [सं० ष० त०] वज्र धारण करनेवाला। पुं० इंद्र। |
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समानार्थी शब्द-
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पवित :
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वि० [सं०] पवित्र। पुं० मिर्च। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पवित :
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वि० [सं०] पवित्र। पुं० मिर्च। |
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समानार्थी शब्द-
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पविताई :
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स्त्री०=पवित्रता। |
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पविताई :
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स्त्री०=पवित्रता। |
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पवित्तर :
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वि०=पवित्र। |
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उपलब्ध नहीं |
पवित्तर :
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वि०=पवित्र। |
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समानार्थी शब्द-
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पवित्र :
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वि० [सं०√पू+इत्र] [भाव० पवित्रता] १. (पदार्थ) जो धार्मिक उपचारों से इस प्रकार शुद्ध किया गया हो अथवा स्वतः अपने गुणों के कारण इतना अधिक शुद्ध माना जाता हो कि पूजा-पाठ, यज्ञ-होम आदि में काम में लाया या बरता जा सके। जैसे—पवित्र अग्नि, पवित्र जल। ३. (व्यक्ति) जो निश्छल, धार्मिक तथा सद्वृत्तिवाला होने के कारण पूज्य, मान्य तथा श्रद्धा का पात्र हो। जैसे—पवित्रात्मा। ३. (विचार) जो शुद्ध अंतःकरण से सोचा गया हो और जिसमें किसी प्रकार का मल या विकार न हो। ४. साफ। स्वच्छ। निर्मल। ५. दोष, पाप आदि से रहित। पुं० १. वह वस्तु या साधन जिससे कोई चीज निर्दोष, निर्मल या स्वच्छ की जाय। २. कुश या कुशा जिससे घी, जल आदि छिड़ककर चीजें पवित्र की जाती हैं। ३. कुश का वह छल्ला जो तर्पण, श्रद्धा आदि के समय उँगलियों में पहना जाता है। पवित्री। पैंती। ४. यज्ञोपवीत। जनेऊ। ५. ताँबा। ६. मेह। वर्षा। ७. जल। पानी। ८. दूध। ९. घी। १॰. अर्ध्य देने का पात्र। ११. अरघा। १२. मधु। शहद। १३. विष्णु। १४. शिव। १५. कार्तिकेय। १६. तिल का पौधा। १७. पुत्र-जीवी नामक वृक्ष। १८. घर्षण। रगड़। |
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पवित्र :
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वि० [सं०√पू+इत्र] [भाव० पवित्रता] १. (पदार्थ) जो धार्मिक उपचारों से इस प्रकार शुद्ध किया गया हो अथवा स्वतः अपने गुणों के कारण इतना अधिक शुद्ध माना जाता हो कि पूजा-पाठ, यज्ञ-होम आदि में काम में लाया या बरता जा सके। जैसे—पवित्र अग्नि, पवित्र जल। ३. (व्यक्ति) जो निश्छल, धार्मिक तथा सद्वृत्तिवाला होने के कारण पूज्य, मान्य तथा श्रद्धा का पात्र हो। जैसे—पवित्रात्मा। ३. (विचार) जो शुद्ध अंतःकरण से सोचा गया हो और जिसमें किसी प्रकार का मल या विकार न हो। ४. साफ। स्वच्छ। निर्मल। ५. दोष, पाप आदि से रहित। पुं० १. वह वस्तु या साधन जिससे कोई चीज निर्दोष, निर्मल या स्वच्छ की जाय। २. कुश या कुशा जिससे घी, जल आदि छिड़ककर चीजें पवित्र की जाती हैं। ३. कुश का वह छल्ला जो तर्पण, श्रद्धा आदि के समय उँगलियों में पहना जाता है। पवित्री। पैंती। ४. यज्ञोपवीत। जनेऊ। ५. ताँबा। ६. मेह। वर्षा। ७. जल। पानी। ८. दूध। ९. घी। १॰. अर्ध्य देने का पात्र। ११. अरघा। १२. मधु। शहद। १३. विष्णु। १४. शिव। १५. कार्तिकेय। १६. तिल का पौधा। १७. पुत्र-जीवी नामक वृक्ष। १८. घर्षण। रगड़। |
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पवित्र-धान्य :
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पुं० [कर्म० स०] जौ। |
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पुं० [कर्म० स०] जौ। |
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पवित्र-पाणि :
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वि० [ब० स०] जिसके हाथ में कुश हो। |
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वि० [ब० स०] जिसके हाथ में कुश हो। |
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पवित्रक :
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पुं० [सं० पवित्र√कै+क] १. कुशा। २. दौना (पौधा)। ३. गूलर का पेड़। ४. पीपल। ५. क्षत्रियों का यज्ञोपवीत। |
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पुं० [सं० पवित्र√कै+क] १. कुशा। २. दौना (पौधा)। ३. गूलर का पेड़। ४. पीपल। ५. क्षत्रियों का यज्ञोपवीत। |
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पवित्रता :
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स्त्री० [सं० पवित्र+तल्+टाप्] पवित्र होने की अवस्था या भाव। |
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पवित्रता :
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स्त्री० [सं० पवित्र+तल्+टाप्] पवित्र होने की अवस्था या भाव। |
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पवित्रवति :
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स्त्री० [सं०] क्रौंच द्वीप में होनेवाली एक प्रकार की वनस्पति। (पुराण) |
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स्त्री० [सं०] क्रौंच द्वीप में होनेवाली एक प्रकार की वनस्पति। (पुराण) |
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पवित्रा :
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स्त्री० [सं० पवित्र+टाप्] १. तुलसी। २. हलदी। ३. पीपल। ४. श्रावण के शुक्ल पक्ष की एकादशी। ५. एक प्राचीन नदी। ६. रेशमी धागों से बने हुए मनकों की एक तरह की माला। |
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स्त्री० [सं० पवित्र+टाप्] १. तुलसी। २. हलदी। ३. पीपल। ४. श्रावण के शुक्ल पक्ष की एकादशी। ५. एक प्राचीन नदी। ६. रेशमी धागों से बने हुए मनकों की एक तरह की माला। |
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पवित्रात्मा (त्मन्) :
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वि० [सं० पवित्र-आत्मन्, ब० स०] जिसकी आत्मा पवित्र हो। शुद्ध तथा स्तुत्य मनकों की एक तरह की माला। |
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वि० [सं० पवित्र-आत्मन्, ब० स०] जिसकी आत्मा पवित्र हो। शुद्ध तथा स्तुत्य मनकों की एक तरह की माला। |
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पवित्रारोपण :
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पुं० [सं० पवित्र-आरोपण, ष० त०] १. यज्ञोपवीत धारण करना। २. [ब० स०] श्रावण शुक्ला द्वादशी को भगवान श्रीकृष्ण को सोने, चाँदी, ताँबे या सूत आदि का यज्ञोपवीत पहनाने की एक रीति या उत्सव। |
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पुं० [सं० पवित्र-आरोपण, ष० त०] १. यज्ञोपवीत धारण करना। २. [ब० स०] श्रावण शुक्ला द्वादशी को भगवान श्रीकृष्ण को सोने, चाँदी, ताँबे या सूत आदि का यज्ञोपवीत पहनाने की एक रीति या उत्सव। |
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पवित्रारोहण :
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पुं०। पवित्रारोपण। (दे०) |
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पुं०। पवित्रारोपण। (दे०) |
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पवित्राश :
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पुं० [सं० पवित्र√अश् (व्याप्ति)+अण्] सन का बना हुआ डोरा, जो प्राचीन भारत में बहुत पवित्र माना जाता था। |
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पुं० [सं० पवित्र√अश् (व्याप्ति)+अण्] सन का बना हुआ डोरा, जो प्राचीन भारत में बहुत पवित्र माना जाता था। |
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पवित्रित :
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भू० कृ० [सं० पवित्र+णिच्+क्त] पवित्र या शुद्ध किया हुआ। |
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भू० कृ० [सं० पवित्र+णिच्+क्त] पवित्र या शुद्ध किया हुआ। |
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पवित्री :
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वि० [सं० पवित्र+ङीष्] पवित्र करने या बनानेवाला। स्त्री० १. कुश का बना हुआ एक प्रकार का छल्ला जो कर्मकांड के समय अनामिका में पहना जाता है। पैंती। २. संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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वि० [सं० पवित्र+ङीष्] पवित्र करने या बनानेवाला। स्त्री० १. कुश का बना हुआ एक प्रकार का छल्ला जो कर्मकांड के समय अनामिका में पहना जाता है। पैंती। २. संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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पविद :
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पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋषि। |
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पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋषि। |
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