शब्द का अर्थ
|
पादाकुलक :
|
पुं० [सं० पाद-आकुल, तृ० त०,+कन्] एक प्रकार का मांत्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं। विशेष—भानु कवि के मत से वह छंद पादाकुलक कहलाता है जिसके प्रत्येक चरण में चार चौकल हों। यथा—गुरु-पद मृदु रज मंजुल अंजन नयन अमिय दृग दोष विभंजन।—तुलसी। परन्तु अन्य आचार्यों के मत में १६ मात्राओंवाले सभी छंद पादाकुलक कहलाते हैं। परन्तु उनके आरंभ में द्विकल अवश्य होना चाहिए; पर त्रिकल कभी नहीं होना चाहिए। इस दृष्टि से अटिल्ल, डिल्ला और पद्धति या छंद भी पादाकुलक वर्ग में आ जाते हैं। ऐसे छंदों की चाल त्रोटक वृत्त की चाल से मिलती-जुलती होती है। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पादाकुलक :
|
पुं० [सं० पाद-आकुल, तृ० त०,+कन्] एक प्रकार का मांत्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं। विशेष—भानु कवि के मत से वह छंद पादाकुलक कहलाता है जिसके प्रत्येक चरण में चार चौकल हों। यथा—गुरु-पद मृदु रज मंजुल अंजन नयन अमिय दृग दोष विभंजन।—तुलसी। परन्तु अन्य आचार्यों के मत में १६ मात्राओंवाले सभी छंद पादाकुलक कहलाते हैं। परन्तु उनके आरंभ में द्विकल अवश्य होना चाहिए; पर त्रिकल कभी नहीं होना चाहिए। इस दृष्टि से अटिल्ल, डिल्ला और पद्धति या छंद भी पादाकुलक वर्ग में आ जाते हैं। ऐसे छंदों की चाल त्रोटक वृत्त की चाल से मिलती-जुलती होती है। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
|