| शब्द का अर्थ | 
					
				| पाशु					 : | पुं०=पाश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अव्य०=पास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पाशु					 : | पुं०=पाश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अव्य०=पास। | 
			
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				| पाशु-बंधक					 : | पुं० [सं० पशुबंध+ठक्—क] यज्ञ में वह स्थान जहाँ बलि पशु बाँधा जाता था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पाशु-बंधक					 : | पुं० [सं० पशुबंध+ठक्—क] यज्ञ में वह स्थान जहाँ बलि पशु बाँधा जाता था। | 
			
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				| पाशुपत					 : | वि० [सं० पशुपति-अण्] १. पशुपति-संबंधी। पशुपति या शिव का। पुं० १. पशुपति या शिव के उपासक एक प्रकार के शैव। २. एक तंत्र शास्त्र जो शिव का कहा हुआ माना जाता है। ३. अथर्ववेद का एक उपनिषद्। ४. अगस्त का फूल। | 
			
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				| पाशुपत					 : | वि० [सं० पशुपति-अण्] १. पशुपति-संबंधी। पशुपति या शिव का। पुं० १. पशुपति या शिव के उपासक एक प्रकार के शैव। २. एक तंत्र शास्त्र जो शिव का कहा हुआ माना जाता है। ३. अथर्ववेद का एक उपनिषद्। ४. अगस्त का फूल। | 
			
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				| पाशुपत-दर्शन					 : | पुं० [कर्म० स०] एक प्राचीन दर्शन जिसमें पशुपति, पाशु और पशु इन तीन सत्ताओं को मुख्य माना गया था और जिसमें पशु के पाश से मुक्त होने के उपाय बतलाये गये हैं। | 
			
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				| पाशुपत-दर्शन					 : | पुं० [कर्म० स०] एक प्राचीन दर्शन जिसमें पशुपति, पाशु और पशु इन तीन सत्ताओं को मुख्य माना गया था और जिसमें पशु के पाश से मुक्त होने के उपाय बतलाये गये हैं। | 
			
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				| पाशुपत-रस					 : | पुं० [कर्म० स०] वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध। | 
			
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				| पाशुपत-रस					 : | पुं० [कर्म० स०] वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध। | 
			
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				| पाशुपतास्त्र					 : | [पाशुपत-अस्त्र, कर्म० स०] शिव का एक भीषण शूलास्त्र जिसे अर्जुन ने तपस्या करके प्राप्त किया था। | 
			
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				| पाशुपतास्त्र					 : | [पाशुपत-अस्त्र, कर्म० स०] शिव का एक भीषण शूलास्त्र जिसे अर्जुन ने तपस्या करके प्राप्त किया था। | 
			
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				| पाशुपाल्य					 : | पुं० [सं० पशुपाल+ष्यञ्] पशुपालन। | 
			
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				| पाशुपाल्य					 : | पुं० [सं० पशुपाल+ष्यञ्] पशुपालन। | 
			
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