पुरा/pura

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पुरा  : अव्य० [सं०√पुर (अग्रगति)+का] १. पुराने समय में। पूर्व या प्राचीन काल में। २. अब तक। ३. थोड़े समय में। वि० समस्त पदों के आरंभ में विशेषण के रूप में लगकर यह पुराना या प्राचीन का अर्थ देता है। जैसे—पुराकल्प, पुरावृत्त। स्त्री० १. पूर्व दिशा। पूरब। २. मुरा नामक गंध द्रव्य। ३. छोटी बस्ती। गाँव।
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पुरा  : अव्य० [सं०√पुर (अग्रगति)+का] १. पुराने समय में। पूर्व या प्राचीन काल में। २. अब तक। ३. थोड़े समय में। वि० समस्त पदों के आरंभ में विशेषण के रूप में लगकर यह पुराना या प्राचीन का अर्थ देता है। जैसे—पुराकल्प, पुरावृत्त। स्त्री० १. पूर्व दिशा। पूरब। २. मुरा नामक गंध द्रव्य। ३. छोटी बस्ती। गाँव।
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पुरा-कथा  : स्त्री० [कर्म० स०] १. प्राचीन काल की बातें। २. इतिहास।
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पुरा-कथा  : स्त्री० [कर्म० स०] १. प्राचीन काल की बातें। २. इतिहास।
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पुरा-कोश  : पुं० [सं० कर्म० स०] ऐसा शब्दकोश जिसमें प्राचीन भाषाओं के अथवा बहुत पुराने शब्दों का विवेचन होता है। निघण्टु। (लेक्सिकन)
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पुरा-कोश  : पुं० [सं० कर्म० स०] ऐसा शब्दकोश जिसमें प्राचीन भाषाओं के अथवा बहुत पुराने शब्दों का विवेचन होता है। निघण्टु। (लेक्सिकन)
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पुरा-तल  : पुं० [कर्म० स०] तलातल। (दे०)
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पुरा-तल  : पुं० [कर्म० स०] तलातल। (दे०)
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पुरा-लेख  : पुं० [कर्म० स०] किसी प्राचीन भवन या स्मृति-चिह्र पर अंकित किया हुआ कोई ऐसा लेख जो किसी प्राचीन लिपि में अंकित हो। (एपिग्राफी)
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पुरा-लेख  : पुं० [कर्म० स०] किसी प्राचीन भवन या स्मृति-चिह्र पर अंकित किया हुआ कोई ऐसा लेख जो किसी प्राचीन लिपि में अंकित हो। (एपिग्राफी)
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पुरा-वृत्त  : पुं० [कर्म० स०] प्राचीन काल का कोई वृत्तांत।
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पुरा-वृत्त  : पुं० [कर्म० स०] प्राचीन काल का कोई वृत्तांत।
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पुराई  : स्त्री० [हिं० पूरना-भरना] १. पूरा करने की क्रिया या भाव। २. पुरवट आदि के द्वारा खेतों में पानी देने की क्रिया। सिंचाई। क्रि० प्र०—चलना। ३. उक्त का पारिश्रमिक या मजदूरी।
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पुराई  : स्त्री० [हिं० पूरना-भरना] १. पूरा करने की क्रिया या भाव। २. पुरवट आदि के द्वारा खेतों में पानी देने की क्रिया। सिंचाई। क्रि० प्र०—चलना। ३. उक्त का पारिश्रमिक या मजदूरी।
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पुराकल्प  : पुं० [कर्म० स०] १. पूर्व कल्प। पहले का कल्प। २. प्राचीन इतिहास युग। ३. एक प्रकार का अर्थवाद जिसमें प्राचीन काल का कहकर किसी विधि के करने की ओर प्रवृत्त किया जाय। जैसे—ब्राह्मणों ने इससे हविः पवमान सामस्तोम की स्तुति की थी। ४. आधुनिक भू० विज्ञान के अनुसार उत्तर पाँच कल्पों में से तीसरा कल्प, जिसमें पृथ्वी तल पर जगह-जगह छिछले समुद्र बनने लगे थे; खूब बाढ़े आती थीं, मछलियाँ सरीसृप और कीड़े-मकोड़े उत्पन्न होने लगे थे, और कुछ विशिष्ट प्रकार के बहुत बड़े-बड़े वृक्ष होते थे। यह कल्प प्रायः बीस से पचास करोड़ वर्ष पहले हुआ था। पुराजीवकाल। (पेलियो जोइक एरा) विशेष—शेष चार कल्प ये हैं—आदि कल्प, उत्तर कल्प, मध्य कल्प और नवकल्प।
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पुराकल्प  : पुं० [कर्म० स०] १. पूर्व कल्प। पहले का कल्प। २. प्राचीन इतिहास युग। ३. एक प्रकार का अर्थवाद जिसमें प्राचीन काल का कहकर किसी विधि के करने की ओर प्रवृत्त किया जाय। जैसे—ब्राह्मणों ने इससे हविः पवमान सामस्तोम की स्तुति की थी। ४. आधुनिक भू० विज्ञान के अनुसार उत्तर पाँच कल्पों में से तीसरा कल्प, जिसमें पृथ्वी तल पर जगह-जगह छिछले समुद्र बनने लगे थे; खूब बाढ़े आती थीं, मछलियाँ सरीसृप और कीड़े-मकोड़े उत्पन्न होने लगे थे, और कुछ विशिष्ट प्रकार के बहुत बड़े-बड़े वृक्ष होते थे। यह कल्प प्रायः बीस से पचास करोड़ वर्ष पहले हुआ था। पुराजीवकाल। (पेलियो जोइक एरा) विशेष—शेष चार कल्प ये हैं—आदि कल्प, उत्तर कल्प, मध्य कल्प और नवकल्प।
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पुराकालीन  : वि० [सं० पुरा-काल, कर्म० स०,+ख—ईन] १. प्राचीन काल का। बहुत पुराना। २. इतना अधिक पुराना कि जिसका प्रचलन, प्रयोग या व्यवहार बहुत दिन पहले से उठ गया हो। बहुत पुराने जमाने का। (एन्टीक)
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पुराकालीन  : वि० [सं० पुरा-काल, कर्म० स०,+ख—ईन] १. प्राचीन काल का। बहुत पुराना। २. इतना अधिक पुराना कि जिसका प्रचलन, प्रयोग या व्यवहार बहुत दिन पहले से उठ गया हो। बहुत पुराने जमाने का। (एन्टीक)
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पुराकृत  : भू० कृ० [सं० स० त०] १. पूर्व काल में किया हुआ। २. पूर्वजन्म में किया हुआ। पुं० पूर्वजन्म में किये हुए वे भले और बुरे काम जिनका फल दूसरे जन्म में भोगना पड़ता है।
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पुराकृत  : भू० कृ० [सं० स० त०] १. पूर्व काल में किया हुआ। २. पूर्वजन्म में किया हुआ। पुं० पूर्वजन्म में किये हुए वे भले और बुरे काम जिनका फल दूसरे जन्म में भोगना पड़ता है।
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पुराग  : वि० [सं० पुरा√गम् (जाना)+ड] पूर्वगामी।
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पुराग  : वि० [सं० पुरा√गम् (जाना)+ड] पूर्वगामी।
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पुरांगना  : स्त्री० [सं० पुर-अगना, ष० त०] नगर में रहनेवाली स्त्री। नगर-निवासिनी।
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पुरांगना  : स्त्री० [सं० पुर-अगना, ष० त०] नगर में रहनेवाली स्त्री। नगर-निवासिनी।
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पुराचीन  : वि० १.=पुराकालीन। २.=प्राचीन।
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पुराचीन  : वि० १.=पुराकालीन। २.=प्राचीन।
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पुराजीव  : पुं०=जीवाश्म। (देखें)
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पुराजीव  : पुं०=जीवाश्म। (देखें)
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पुराजीवकाल  : पुं०=पुराकाल।
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पुराजीवकाल  : पुं०=पुराकाल।
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पुराजैविकी  : स्त्री०=जीवाश्म विज्ञान। (देखें)
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पुराजैविकी  : स्त्री०=जीवाश्म विज्ञान। (देखें)
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पुराण  : वि० [सं० पुरा√टयु—अन] [भाव० पुराणता] १. बहुत प्राचीन काल का। बहुत पुराना। पुरातन। जैसे—पुराण पुरुष। २. बहुत अधिक अवस्था या वय वाला। वृद्ध। बुड्ढा। ३. जो पुराना होने के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गया हो। पुं० १. बहुत पुरानी घटना या उसका वृत्तांत। २. प्रायः सभी प्राचीन जातियों, देशों और धर्मों में प्रचलित उन पुरानी और परम्परागत कथा-कहानियों का समूह जिनका थो़ड़ा-बहुत ऐतिहासिक आधार होता है; पर जिनके रचयिता अज्ञात कवि होते हैं। (मिथ) जैसे—चीन, यूनान, या रोम के पुराण, जैन या बौद्ध पुराण। विशेष—ऐसी कथाओं में प्रायः घटनाओं मानव जाति की उत्पत्ति, सृष्टि की रचना, प्राचीन कृत्यों और सामाजिक रीति-रिवाजों के कुछ अत्युक्तिपूर्ण विवरण होते हैं, तथा देवी-देवताओं और वीर-पुरुषों के जीवन-वृत्त होते हैं। ३. भारतीय धार्मिक क्षेत्र में उक्त प्रकार के वे विशिष्ट बहुत बड़े-बड़े काव्य-ग्रंथ, जिनमें इतिहास की बहुत सी घटनाओं के साथ-साथ सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय देवी-देवताओं, दानवों, ऋषि-महर्षियों, महाराजाओं, महापुरुषों आदि के गुणों तथा पराक्रमों की बहुत सी बातें, और अनेक राजवंसों की वंशावलियाँ आदि भी दी गई है, और धार्मिक दृष्टि से जिनकी गणना पाँचवें वेद के रूप में होती है। विशेष—हिंदू धर्म में कुल १८ पुराण माने गये हैं। प्रायःसभी पुराणों में शेष सभी पुराणों के नाम और श्लोक-संख्याएं थोड़े-बहुत अन्तर से दी है। पुराणों के नाम प्रायः ये है—ब्रह्म, पद्म, विष्णु, वायु अथवा शिव, लिंग अथवा नृसिंह, गरुड़, नारद, स्कंद, अग्नि, श्रीमद्भागवत अथवा देवी भागवत, मार्कण्डेय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, वामन, वाराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्माण्ड पुराण। साहित्यकारों के अनुसार पुराणों मे पाँच बातें होती हैं—सर्ग अर्थात् सृष्टि, प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय और उसके उपरांत फिर से होनेवाली सृष्टि, वंशों, मन्वन्तरों और वंशानुचरित की बातों का वर्णन; परन्तु कुछ पुराणों में इस प्रकार की बातों के सिवा राजनीति राजधर्म, प्रजा-धर्म, आयुर्वेद, व्याकरण, शस्त्र-विद्या, साहित्य अवतारों देवी-देवताओं आदि की कथाएँ तथा इसी प्रकार की और भी बहुत सी बातें मिलती हैं। धार्मिक हिंदू प्रायः विशेष भक्ति और श्रद्धा से इन पुराणों की कथाएँ सुनते हैं। साधारणतः वेद-मंत्रों के संग्रहकर्ता वेदव्यास ही इन सब पुराणों के भी रचयिता माने जाते हैं। इन १८ पुराणों के सिवा १८ उप-पुराण भी माने गये हैं। और जैन तथा बौद्ध-धर्मों में भी इस प्रकार के कुछ पुराण बने हैं। आधुनिक विद्वानों का मत है कि भिन्न-भिन्न पुराण भिन्न-भिन्न समयों में बने हैं। कुछ प्राचीन पुराणों के नष्ट हो जाने पर उनके स्थान पर उन्हीं के नाम से कुछ नये पुराण भी बने हैं। और इनमें बहुत सी बातें समय-समय पर घटती-बढ़ती रही हैं। ४. उक्त ग्रन्थों के आधार पर १८ की संख्या का वाचक शब्द। ५. शिव। ६. कार्षाषण नाम का पुराना सिक्का।
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पुराण  : वि० [सं० पुरा√टयु—अन] [भाव० पुराणता] १. बहुत प्राचीन काल का। बहुत पुराना। पुरातन। जैसे—पुराण पुरुष। २. बहुत अधिक अवस्था या वय वाला। वृद्ध। बुड्ढा। ३. जो पुराना होने के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गया हो। पुं० १. बहुत पुरानी घटना या उसका वृत्तांत। २. प्रायः सभी प्राचीन जातियों, देशों और धर्मों में प्रचलित उन पुरानी और परम्परागत कथा-कहानियों का समूह जिनका थो़ड़ा-बहुत ऐतिहासिक आधार होता है; पर जिनके रचयिता अज्ञात कवि होते हैं। (मिथ) जैसे—चीन, यूनान, या रोम के पुराण, जैन या बौद्ध पुराण। विशेष—ऐसी कथाओं में प्रायः घटनाओं मानव जाति की उत्पत्ति, सृष्टि की रचना, प्राचीन कृत्यों और सामाजिक रीति-रिवाजों के कुछ अत्युक्तिपूर्ण विवरण होते हैं, तथा देवी-देवताओं और वीर-पुरुषों के जीवन-वृत्त होते हैं। ३. भारतीय धार्मिक क्षेत्र में उक्त प्रकार के वे विशिष्ट बहुत बड़े-बड़े काव्य-ग्रंथ, जिनमें इतिहास की बहुत सी घटनाओं के साथ-साथ सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय देवी-देवताओं, दानवों, ऋषि-महर्षियों, महाराजाओं, महापुरुषों आदि के गुणों तथा पराक्रमों की बहुत सी बातें, और अनेक राजवंसों की वंशावलियाँ आदि भी दी गई है, और धार्मिक दृष्टि से जिनकी गणना पाँचवें वेद के रूप में होती है। विशेष—हिंदू धर्म में कुल १८ पुराण माने गये हैं। प्रायःसभी पुराणों में शेष सभी पुराणों के नाम और श्लोक-संख्याएं थोड़े-बहुत अन्तर से दी है। पुराणों के नाम प्रायः ये है—ब्रह्म, पद्म, विष्णु, वायु अथवा शिव, लिंग अथवा नृसिंह, गरुड़, नारद, स्कंद, अग्नि, श्रीमद्भागवत अथवा देवी भागवत, मार्कण्डेय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, वामन, वाराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्माण्ड पुराण। साहित्यकारों के अनुसार पुराणों मे पाँच बातें होती हैं—सर्ग अर्थात् सृष्टि, प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय और उसके उपरांत फिर से होनेवाली सृष्टि, वंशों, मन्वन्तरों और वंशानुचरित की बातों का वर्णन; परन्तु कुछ पुराणों में इस प्रकार की बातों के सिवा राजनीति राजधर्म, प्रजा-धर्म, आयुर्वेद, व्याकरण, शस्त्र-विद्या, साहित्य अवतारों देवी-देवताओं आदि की कथाएँ तथा इसी प्रकार की और भी बहुत सी बातें मिलती हैं। धार्मिक हिंदू प्रायः विशेष भक्ति और श्रद्धा से इन पुराणों की कथाएँ सुनते हैं। साधारणतः वेद-मंत्रों के संग्रहकर्ता वेदव्यास ही इन सब पुराणों के भी रचयिता माने जाते हैं। इन १८ पुराणों के सिवा १८ उप-पुराण भी माने गये हैं। और जैन तथा बौद्ध-धर्मों में भी इस प्रकार के कुछ पुराण बने हैं। आधुनिक विद्वानों का मत है कि भिन्न-भिन्न पुराण भिन्न-भिन्न समयों में बने हैं। कुछ प्राचीन पुराणों के नष्ट हो जाने पर उनके स्थान पर उन्हीं के नाम से कुछ नये पुराण भी बने हैं। और इनमें बहुत सी बातें समय-समय पर घटती-बढ़ती रही हैं। ४. उक्त ग्रन्थों के आधार पर १८ की संख्या का वाचक शब्द। ५. शिव। ६. कार्षाषण नाम का पुराना सिक्का।
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पुराण-कल्प  : पुं०=पुराकल्प। (दे०)
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पुराण-कल्प  : पुं०=पुराकल्प। (दे०)
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पुराण-दृष्ट  : भू० कृ० [तृ० त०] जो पुराने लोगों द्वारा देखा और माना गया हो।
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पुराण-दृष्ट  : भू० कृ० [तृ० त०] जो पुराने लोगों द्वारा देखा और माना गया हो।
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पुराण-पुरुष  : पुं० [कर्म० स०] १. विष्णु। २. वृद्ध व्यक्ति।
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पुराण-पुरुष  : पुं० [कर्म० स०] १. विष्णु। २. वृद्ध व्यक्ति।
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पुराणग  : पुं० [सं० पुराण√गम् (जाना)+ड] १. पुराणों की कथाएं पढ़ने अथवा पढ़कर दूसरों को सुनानेवाला पंडित या व्यास। २. ब्रह्मा।
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पुराणग  : पुं० [सं० पुराण√गम् (जाना)+ड] १. पुराणों की कथाएं पढ़ने अथवा पढ़कर दूसरों को सुनानेवाला पंडित या व्यास। २. ब्रह्मा।
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पुराणता  : स्त्री० [सं० पुराण+तल्+टाप्] १. पुराण का भाव। २. बहुत ही प्राचीन होने की अवस्था या भाव। (एन्टिक्विटी)
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पुराणता  : स्त्री० [सं० पुराण+तल्+टाप्] १. पुराण का भाव। २. बहुत ही प्राचीन होने की अवस्था या भाव। (एन्टिक्विटी)
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पुरांतक  : पुं० [सं० पुर-अंतक, ष० त०] शिव।
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पुरांतक  : पुं० [सं० पुर-अंतक, ष० त०] शिव।
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पुरातत्त्व  : पुं० [कर्म० स०] वह विद्या जिसमें मुख्यतः इतिहास पूर्वकाल की वस्तुओं के आधार पर पुराने अज्ञात इतिहास का पता लगाया जाता है। प्रत्न विज्ञान। (आर्कियॉलोजी)
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पुरातत्त्व  : पुं० [कर्म० स०] वह विद्या जिसमें मुख्यतः इतिहास पूर्वकाल की वस्तुओं के आधार पर पुराने अज्ञात इतिहास का पता लगाया जाता है। प्रत्न विज्ञान। (आर्कियॉलोजी)
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पुरातत्त्वज्ञ  : पुं० [सं० पुरातत्व√ज्ञा (जानना)+क] वह जो पुरातत्व विद्या का ज्ञाता हो। (आकियालाजिस्ट)
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पुरातत्त्वज्ञ  : पुं० [सं० पुरातत्व√ज्ञा (जानना)+क] वह जो पुरातत्व विद्या का ज्ञाता हो। (आकियालाजिस्ट)
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पुरातन  : वि० [सं०पुरा+ट्यु—अन, तुट्] १. सब से पहले का। आद्य। २. पुराना। प्राचीन। पुं० विष्णु।
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पुरातन  : वि० [सं०पुरा+ट्यु—अन, तुट्] १. सब से पहले का। आद्य। २. पुराना। प्राचीन। पुं० विष्णु।
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पुराधिप  : पुं० [सं० पुरा-अधिप, ष० त०] पुर अर्थात् नगर का प्रधान शासनिक अधिकारी।
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पुराधिप  : पुं० [सं० पुरा-अधिप, ष० त०] पुर अर्थात् नगर का प्रधान शासनिक अधिकारी।
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पुराध्यक्ष  : पुं० [सं० पुर-अध्यक्ष, ष० त०] पुराधिप।
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पुराध्यक्ष  : पुं० [सं० पुर-अध्यक्ष, ष० त०] पुराधिप।
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पुरान  : वि०=पुराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पुराण।
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पुरान  : वि०=पुराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पुराण।
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पुराना  : वि० [सं० पुराण] [स्त्री० पुरानी] १. जो प्रस्तुत समय से बहुत पहले का हो। बहुत पूर्व या प्राचीन काल का। जैसे—पुराना जमाना, पुरानी सभ्यता। २. जिसे अस्तित्व में आये या जीवन धारण किये बहुत समय हो चुका हो। जैसे—पुराना पेड़, पुराना बुखार, पुराना मकान आदि। ३. जो बहुत दिनों का हो जाने के कारण अच्छी दशा में न रह गया हो या ठीक तरह से और पूरा काम न दे सकता हो। जीर्ण-शीर्ण। जैसे—पुराना कपड़ा, पुरानी चौकी। ४. जिसे किसी काम या बात का बहुत दिनों से अनुभव होता आय़ा हो,अथवा जो बहुत दिनों से अभ्यस्त हो रहा हो। यथेष्ट रूप में परिपक्व। जैसे—पुराना कारीगर, पुराने पंडित या विद्वान। पद—पुराना खुर्राट=बहुत बड़ा अनुभवी। पुराना घाघ=बहुत बड़ा चालाक। ५. जो किसी निश्चित या विशिष्ट काल से चला आ रहा हो। जैसे—(क) पाँच सौ वर्ष का पुराना चावल, सौ वर्ष का पुराना पेड़। ६. जो उक्त प्रकार का होने पर भी अब प्रचलित न हो। जिसका चलन अब उठ गया हो, या उठता जा रहा हो। जैसे—पुराना पहनावा, पुरानी परिपाटी या प्रथा। स० [हिं० पूरना का प्रे०] १. पूरने का काम किसी और से कराना। पूरा कराना। २. आज्ञा, निर्देश, वचन आदि का निर्वाह या पालन कराना। ३. अवकाश, गड्ढे आदि के प्रसंग में, समतल कराना। भरवाना। स० [हिं० पूरना] १. पूरा करना। २. निर्वाह या पालन करना। अ०=पूरना (पूरा होना)।
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पुराना  : वि० [सं० पुराण] [स्त्री० पुरानी] १. जो प्रस्तुत समय से बहुत पहले का हो। बहुत पूर्व या प्राचीन काल का। जैसे—पुराना जमाना, पुरानी सभ्यता। २. जिसे अस्तित्व में आये या जीवन धारण किये बहुत समय हो चुका हो। जैसे—पुराना पेड़, पुराना बुखार, पुराना मकान आदि। ३. जो बहुत दिनों का हो जाने के कारण अच्छी दशा में न रह गया हो या ठीक तरह से और पूरा काम न दे सकता हो। जीर्ण-शीर्ण। जैसे—पुराना कपड़ा, पुरानी चौकी। ४. जिसे किसी काम या बात का बहुत दिनों से अनुभव होता आय़ा हो,अथवा जो बहुत दिनों से अभ्यस्त हो रहा हो। यथेष्ट रूप में परिपक्व। जैसे—पुराना कारीगर, पुराने पंडित या विद्वान। पद—पुराना खुर्राट=बहुत बड़ा अनुभवी। पुराना घाघ=बहुत बड़ा चालाक। ५. जो किसी निश्चित या विशिष्ट काल से चला आ रहा हो। जैसे—(क) पाँच सौ वर्ष का पुराना चावल, सौ वर्ष का पुराना पेड़। ६. जो उक्त प्रकार का होने पर भी अब प्रचलित न हो। जिसका चलन अब उठ गया हो, या उठता जा रहा हो। जैसे—पुराना पहनावा, पुरानी परिपाटी या प्रथा। स० [हिं० पूरना का प्रे०] १. पूरने का काम किसी और से कराना। पूरा कराना। २. आज्ञा, निर्देश, वचन आदि का निर्वाह या पालन कराना। ३. अवकाश, गड्ढे आदि के प्रसंग में, समतल कराना। भरवाना। स० [हिं० पूरना] १. पूरा करना। २. निर्वाह या पालन करना। अ०=पूरना (पूरा होना)।
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पुराराति  : पुं० [सं० पुर-अराति, ष० त०] शिव।
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पुराराति  : पुं० [सं० पुर-अराति, ष० त०] शिव।
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पुरारि  : पुं० [सं० पुर-अरि, ष० त०] शिव।
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पुरारि  : पुं० [सं० पुर-अरि, ष० त०] शिव।
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पुराल  : पुं० [हिं०]=पयाल (धान के डंठल) धान के ऐसे डंठल, जिसमें से बीज झाड़ लिये गये हों। पद।
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पुराल  : पुं० [हिं०]=पयाल (धान के डंठल) धान के ऐसे डंठल, जिसमें से बीज झाड़ लिये गये हों। पद।
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पुरालेखशास्त्र  : पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें प्राचीन काल की लिपियाँ पढ़ने का विवेचन होता है। (एपिग्राफी)
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पुरालेखशास्त्र  : पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें प्राचीन काल की लिपियाँ पढ़ने का विवेचन होता है। (एपिग्राफी)
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पुरावती  : स्त्री० [सं० पुर+मतु, वत्व+ङीष्, दीर्घ] एक प्राचीन नदी। (महाभारत)
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पुरावती  : स्त्री० [सं० पुर+मतु, वत्व+ङीष्, दीर्घ] एक प्राचीन नदी। (महाभारत)
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पुरावशेष  : पुं० [सं० पुरा-अवशेष, कर्म० स०] बहुत प्राचीन काल की चीजों के टूटे-फूटे या बचे-खुचे अंश या अवशेष जिनके आधार पर उस काल की सभ्यता, इतिहास आदि के संबंध में जानकारी प्राप्त की जाती है। (एन्टिक्विटीज)
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पुरावशेष  : पुं० [सं० पुरा-अवशेष, कर्म० स०] बहुत प्राचीन काल की चीजों के टूटे-फूटे या बचे-खुचे अंश या अवशेष जिनके आधार पर उस काल की सभ्यता, इतिहास आदि के संबंध में जानकारी प्राप्त की जाती है। (एन्टिक्विटीज)
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पुरावसु  : पुं० [कर्म० स०] भीष्म।
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पुरावसु  : पुं० [कर्म० स०] भीष्म।
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पुराविद्  : वि० [सं० पुरा√विद् (जानना)+क्विप्] पुरानी अर्थात् प्राचीन काल की ऐतिहासिक सामाजिक आदि बातों को जाननेवाला। पुरातत्वज्ञ। (आर्कियालोजिस्ट)
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पुराविद्  : वि० [सं० पुरा√विद् (जानना)+क्विप्] पुरानी अर्थात् प्राचीन काल की ऐतिहासिक सामाजिक आदि बातों को जाननेवाला। पुरातत्वज्ञ। (आर्कियालोजिस्ट)
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पुरासाह्  : पुं० [सं० पुरा√सह् (सहन करना)+ण्वि] इन्द्र।
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पुरासाह्  : पुं० [सं० पुरा√सह् (सहन करना)+ण्वि] इन्द्र।
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पुरासिनी  : स्त्री० [सं० पुर√अस् (फेंकना)+णिनि+ङीप्] सहदेवी नाम की बूटी।
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पुरासिनी  : स्त्री० [सं० पुर√अस् (फेंकना)+णिनि+ङीप्] सहदेवी नाम की बूटी।
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