पुराण/puraan

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पुराण  : वि० [सं० पुरा√टयु—अन] [भाव० पुराणता] १. बहुत प्राचीन काल का। बहुत पुराना। पुरातन। जैसे—पुराण पुरुष। २. बहुत अधिक अवस्था या वय वाला। वृद्ध। बुड्ढा। ३. जो पुराना होने के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गया हो। पुं० १. बहुत पुरानी घटना या उसका वृत्तांत। २. प्रायः सभी प्राचीन जातियों, देशों और धर्मों में प्रचलित उन पुरानी और परम्परागत कथा-कहानियों का समूह जिनका थो़ड़ा-बहुत ऐतिहासिक आधार होता है; पर जिनके रचयिता अज्ञात कवि होते हैं। (मिथ) जैसे—चीन, यूनान, या रोम के पुराण, जैन या बौद्ध पुराण। विशेष—ऐसी कथाओं में प्रायः घटनाओं मानव जाति की उत्पत्ति, सृष्टि की रचना, प्राचीन कृत्यों और सामाजिक रीति-रिवाजों के कुछ अत्युक्तिपूर्ण विवरण होते हैं, तथा देवी-देवताओं और वीर-पुरुषों के जीवन-वृत्त होते हैं। ३. भारतीय धार्मिक क्षेत्र में उक्त प्रकार के वे विशिष्ट बहुत बड़े-बड़े काव्य-ग्रंथ, जिनमें इतिहास की बहुत सी घटनाओं के साथ-साथ सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय देवी-देवताओं, दानवों, ऋषि-महर्षियों, महाराजाओं, महापुरुषों आदि के गुणों तथा पराक्रमों की बहुत सी बातें, और अनेक राजवंसों की वंशावलियाँ आदि भी दी गई है, और धार्मिक दृष्टि से जिनकी गणना पाँचवें वेद के रूप में होती है। विशेष—हिंदू धर्म में कुल १८ पुराण माने गये हैं। प्रायःसभी पुराणों में शेष सभी पुराणों के नाम और श्लोक-संख्याएं थोड़े-बहुत अन्तर से दी है। पुराणों के नाम प्रायः ये है—ब्रह्म, पद्म, विष्णु, वायु अथवा शिव, लिंग अथवा नृसिंह, गरुड़, नारद, स्कंद, अग्नि, श्रीमद्भागवत अथवा देवी भागवत, मार्कण्डेय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, वामन, वाराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्माण्ड पुराण। साहित्यकारों के अनुसार पुराणों मे पाँच बातें होती हैं—सर्ग अर्थात् सृष्टि, प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय और उसके उपरांत फिर से होनेवाली सृष्टि, वंशों, मन्वन्तरों और वंशानुचरित की बातों का वर्णन; परन्तु कुछ पुराणों में इस प्रकार की बातों के सिवा राजनीति राजधर्म, प्रजा-धर्म, आयुर्वेद, व्याकरण, शस्त्र-विद्या, साहित्य अवतारों देवी-देवताओं आदि की कथाएँ तथा इसी प्रकार की और भी बहुत सी बातें मिलती हैं। धार्मिक हिंदू प्रायः विशेष भक्ति और श्रद्धा से इन पुराणों की कथाएँ सुनते हैं। साधारणतः वेद-मंत्रों के संग्रहकर्ता वेदव्यास ही इन सब पुराणों के भी रचयिता माने जाते हैं। इन १८ पुराणों के सिवा १८ उप-पुराण भी माने गये हैं। और जैन तथा बौद्ध-धर्मों में भी इस प्रकार के कुछ पुराण बने हैं। आधुनिक विद्वानों का मत है कि भिन्न-भिन्न पुराण भिन्न-भिन्न समयों में बने हैं। कुछ प्राचीन पुराणों के नष्ट हो जाने पर उनके स्थान पर उन्हीं के नाम से कुछ नये पुराण भी बने हैं। और इनमें बहुत सी बातें समय-समय पर घटती-बढ़ती रही हैं। ४. उक्त ग्रन्थों के आधार पर १८ की संख्या का वाचक शब्द। ५. शिव। ६. कार्षाषण नाम का पुराना सिक्का।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुराण  : वि० [सं० पुरा√टयु—अन] [भाव० पुराणता] १. बहुत प्राचीन काल का। बहुत पुराना। पुरातन। जैसे—पुराण पुरुष। २. बहुत अधिक अवस्था या वय वाला। वृद्ध। बुड्ढा। ३. जो पुराना होने के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गया हो। पुं० १. बहुत पुरानी घटना या उसका वृत्तांत। २. प्रायः सभी प्राचीन जातियों, देशों और धर्मों में प्रचलित उन पुरानी और परम्परागत कथा-कहानियों का समूह जिनका थो़ड़ा-बहुत ऐतिहासिक आधार होता है; पर जिनके रचयिता अज्ञात कवि होते हैं। (मिथ) जैसे—चीन, यूनान, या रोम के पुराण, जैन या बौद्ध पुराण। विशेष—ऐसी कथाओं में प्रायः घटनाओं मानव जाति की उत्पत्ति, सृष्टि की रचना, प्राचीन कृत्यों और सामाजिक रीति-रिवाजों के कुछ अत्युक्तिपूर्ण विवरण होते हैं, तथा देवी-देवताओं और वीर-पुरुषों के जीवन-वृत्त होते हैं। ३. भारतीय धार्मिक क्षेत्र में उक्त प्रकार के वे विशिष्ट बहुत बड़े-बड़े काव्य-ग्रंथ, जिनमें इतिहास की बहुत सी घटनाओं के साथ-साथ सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय देवी-देवताओं, दानवों, ऋषि-महर्षियों, महाराजाओं, महापुरुषों आदि के गुणों तथा पराक्रमों की बहुत सी बातें, और अनेक राजवंसों की वंशावलियाँ आदि भी दी गई है, और धार्मिक दृष्टि से जिनकी गणना पाँचवें वेद के रूप में होती है। विशेष—हिंदू धर्म में कुल १८ पुराण माने गये हैं। प्रायःसभी पुराणों में शेष सभी पुराणों के नाम और श्लोक-संख्याएं थोड़े-बहुत अन्तर से दी है। पुराणों के नाम प्रायः ये है—ब्रह्म, पद्म, विष्णु, वायु अथवा शिव, लिंग अथवा नृसिंह, गरुड़, नारद, स्कंद, अग्नि, श्रीमद्भागवत अथवा देवी भागवत, मार्कण्डेय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, वामन, वाराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्माण्ड पुराण। साहित्यकारों के अनुसार पुराणों मे पाँच बातें होती हैं—सर्ग अर्थात् सृष्टि, प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय और उसके उपरांत फिर से होनेवाली सृष्टि, वंशों, मन्वन्तरों और वंशानुचरित की बातों का वर्णन; परन्तु कुछ पुराणों में इस प्रकार की बातों के सिवा राजनीति राजधर्म, प्रजा-धर्म, आयुर्वेद, व्याकरण, शस्त्र-विद्या, साहित्य अवतारों देवी-देवताओं आदि की कथाएँ तथा इसी प्रकार की और भी बहुत सी बातें मिलती हैं। धार्मिक हिंदू प्रायः विशेष भक्ति और श्रद्धा से इन पुराणों की कथाएँ सुनते हैं। साधारणतः वेद-मंत्रों के संग्रहकर्ता वेदव्यास ही इन सब पुराणों के भी रचयिता माने जाते हैं। इन १८ पुराणों के सिवा १८ उप-पुराण भी माने गये हैं। और जैन तथा बौद्ध-धर्मों में भी इस प्रकार के कुछ पुराण बने हैं। आधुनिक विद्वानों का मत है कि भिन्न-भिन्न पुराण भिन्न-भिन्न समयों में बने हैं। कुछ प्राचीन पुराणों के नष्ट हो जाने पर उनके स्थान पर उन्हीं के नाम से कुछ नये पुराण भी बने हैं। और इनमें बहुत सी बातें समय-समय पर घटती-बढ़ती रही हैं। ४. उक्त ग्रन्थों के आधार पर १८ की संख्या का वाचक शब्द। ५. शिव। ६. कार्षाषण नाम का पुराना सिक्का।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुराण-कल्प  : पुं०=पुराकल्प। (दे०)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुराण-कल्प  : पुं०=पुराकल्प। (दे०)
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पुराण-दृष्ट  : भू० कृ० [तृ० त०] जो पुराने लोगों द्वारा देखा और माना गया हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुराण-दृष्ट  : भू० कृ० [तृ० त०] जो पुराने लोगों द्वारा देखा और माना गया हो।
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पुराण-पुरुष  : पुं० [कर्म० स०] १. विष्णु। २. वृद्ध व्यक्ति।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुराण-पुरुष  : पुं० [कर्म० स०] १. विष्णु। २. वृद्ध व्यक्ति।
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पुराणग  : पुं० [सं० पुराण√गम् (जाना)+ड] १. पुराणों की कथाएं पढ़ने अथवा पढ़कर दूसरों को सुनानेवाला पंडित या व्यास। २. ब्रह्मा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुराणग  : पुं० [सं० पुराण√गम् (जाना)+ड] १. पुराणों की कथाएं पढ़ने अथवा पढ़कर दूसरों को सुनानेवाला पंडित या व्यास। २. ब्रह्मा।
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पुराणता  : स्त्री० [सं० पुराण+तल्+टाप्] १. पुराण का भाव। २. बहुत ही प्राचीन होने की अवस्था या भाव। (एन्टिक्विटी)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुराणता  : स्त्री० [सं० पुराण+तल्+टाप्] १. पुराण का भाव। २. बहुत ही प्राचीन होने की अवस्था या भाव। (एन्टिक्विटी)
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