शब्द का अर्थ
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पृथ्वी :
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स्त्री० [सं० पृथु+ङीष्] १. सौर जगत् का पाँचवाँ सबसे बड़ा ग्रह जिसमें हम लोग रहते हैं। २. उक्त का अकाश तथा जल से भिन्न और अतिरिक्त अंश, जिस पर मनुष्य तथा पशु विचरण करते तथा पेड़-पौधे उगते हैं। जमीन। ३. स्वर्ग और नरक से भिन्न हमारा यह संसार। ४. मिट्टी। ५. पंचभूतों या तत्त्वों में एक जिसका प्रधान गुण गंध है, पर जिसमें गौण रूप से शब्द, स्पर्श रूप और रस चारों गुण भी माने गये हैं। दे० ‘भूत। ६. हिंगु पत्री। ७. काला जीरा। ८. सोंठ। ९. बड़ी इलायची। १॰. सत्रह अक्षरों का एक वर्णवृत्त जिसमें ८, ९ पर यति और अंत में लघु-गुरु होते हैं। ११. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त। |
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पृथ्वी-कुखक :
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पुं० [स० त०] सफेद मदार या आक। |
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पृथ्वी-नाथ :
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पुं० [ष० त०] राजा। |
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पृथ्वी-पति :
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पुं० [ष० त०] राजा। |
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पृथ्वी-पुत्र :
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पुं० [ष० त०] १. वीर पुरुष २. मंगल ग्रह। |
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पृथ्वी-भृत् :
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पुं० [सं० पृथ्वी√भृ (पोषण)+क्विप्] राजा। |
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पृथ्वीका :
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स्त्री० [सं० पृथ्वी+कन्+टाप्] १. बडी इलायची। २. छोटी इलायची। ३. काला जीरा। ४. हिंगुपत्री। |
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पृथ्वीखात :
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पुं० [ष० त०] गुफा। |
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पृथ्वीगर्भ :
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पुं० [ब० स०] गणेश। वि० बड़े पेटवाला। |
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पृथ्वीज :
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वि० [सं० पृथ्वी√जन् (उत्पन्न होना)+ड] जो पृथ्वी से उत्पन्न हुआ हो। पुं० १. पेड़-पौधे। २. सांभर नमक। ३. मंगल ग्रह। |
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पृथ्वीतनया :
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स्त्री० [ष० त०] सीता। |
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पृथ्वीतल :
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पुं० [ष० त०] १. जमीन का वह ऊपरी धरातल जिस पर हम लोग रहते हैं। २. दुनियाँ। संसार। |
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पृथ्वीधर :
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वि० [ष० त०] पृथ्वी को धारण करनेवाला। पुं० पर्वत। पहाड़। |
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पृथ्वीपाल :
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पुं० [सं० पृथ्वी√पाल् (पालन करना)+ णिच्+अण्] राजा। |
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पृथ्वीभुक् (ज्) :
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पुं० [सं० पृथ्वी√भुज् (पालन)+ क्विप्] राजा। |
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पृथ्वीश :
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पुं० [सं० पृथ्वी-ईश, ष० त०] राजा। |
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