शब्द का अर्थ
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पोत :
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पुं० [सं० √पू+तन्] १. किसी पशु या पक्षी का छोटा बच्चा। २. दस वर्ष की अवस्थावाला हाथी। ३. छोटा पौधा या उसमें से निकला हुआ नया कल्ला। ४. वह गर्भस्थ पिंड जिस पर अभी झिल्ली न चढ़ी हो। ५. पहनने के वस्त्र। पोशाक। ६. सूत के प्रकार, बुनावट आदि के विचार से कपड़े के तल की चिरनई और मोटाई। (टेक्सचर) ७. पानी पर चलने वाला यान।। जैसे—जहाज, नाव आदि। पुं० [हिं० पोतना] पोतने की क्रिया या भाव। पुताई। पुं० [सं० प्रवृत्ति, प्रा० पउत्ति] १. प्रकृति। स्वभाव। २. ढब। ढंग। तरीका। ३. कोई काम करने का क्रमागत अवसर। दाँव। बारी। पुं० [फा० पोतः] जमीन का लगान। भू-कर। मुहा०—पोत पूरा करना=उसी प्रकार जैसे-तैसे कोई काम या त्रुटि पूरी करना जिस प्रकार चुकाने के लिए भू-कर या लगान इकट्ठा करते हैं। पुं० १.=पुत्र। २.=पौत्र। स्त्री० [सं० प्रोता, प्रा० पोता] १. माला की गुरिया या दाना। २. कांच आदि की गुरिया जो माला के रूप में पिरोई जाती है। उदा०—मानों मनि मोतिन लाल माल मागे पोति है।—सेनापति। |
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पोत-घाट :
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पुं० [सं० पोत+हिं० घाट] समुद्र आदि के किनारे बना हुआ वह पक्का घाट या घेरा जिसके अंदर आकर यात्रियों आदि को उतारने-चढ़ाने के लिए जहाज ठहरते हैं। (पिअर) |
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पोत-धारी (रिन्) :
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पुं० [सं० पोत√धृ (धारण करना)+णिनि] जहाज का अधिकारी या मालिक। |
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पोत-ध्वज :
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पुं० [सं० ष० त०] जहाज़, बड़ी नाव आदि का वह झंड़ा जो उसके राष्ट्र का सूचक होता है। (एन्साइन) |
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पोत-प्लव :
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पुं० [सं० पोत√प्लु+अच्] मल्लाह। माँझी। |
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पोत-भंग :
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पुं० [सं० ष० त०] जहाज पर चट्टानों आदि से टकराकर टूट-फूट जाना। |
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पोत-भार :
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पुं० [सं० मध्य स०] पोत या जलयान पर लादा जानेवाला या लदा हुआ माल। (कारगो) |
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पोत-भारक :
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पुं० [सं०] वह पोत या जलयान जो माल ढोता हो। (कारगोशिप) |
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पोत-वणिक् (ज्) :
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पुं० [सं० सुप्सुपा स०] वह व्यापारी जो जहाजों पर लादकर माल भेजता या माँगता हो। |
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पोत-संतरण :
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पुं० [ष० त०] कारखाने से बनकर निकले हुए जहाज को पहली बार समुद्र में उतारना या तैरना। |
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पोतक :
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पुं० [सं० पोत√कै (शब्द करना)+क] १. छोटा बच्चा। २. छोटा पौधा या कल्ला। ३. वह स्थान जहाँ घर बनाया जाने को हो। |
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पोतकी :
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स्त्री० [सं० पोतक+ङीष्] पोई नाम की लता। |
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पोतड़ा :
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पुं० [हिं० पोतना+ड़ा (प्रत्य०)] वह कपड़ा जो नन्हें बच्चों के नीचे इसलिए बिछाया जाता है कि उसका गुह-मूत उसी पर गिरे या लगे, नीचेवाला बिस्तर खराब न करे। पद—पोतड़ों के अमीर=सम्पन्न घराने में उत्पन्न होनेवाला। |
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पोतदार :
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पुं० [हिंच पोत=भूकर+फा० दार] १. वह जो लगान या कर का रुपया जमा करके रखता हो। २. खजानची। ३. वह जो खजाने में रुपए, रेजगी आदि परखकर थैलियों में रखने का काम करता हो। |
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पोतन :
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वि० [सं०√पू+तन] १. पवित्र या शुद्ध करनेवाला। २. पवित्र। शुद्ध। स्त्री० [हिं० पोतना] पोतने की क्रिया, ढंग या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पोतनहर :
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स्त्री० [हिं० पोतना+हर (प्रत्य०)] १. वह बरतन जिसमें आँगन, चौका आदि पोतने के लिए मिट्टी घोलकर रखी जाती है। २. वह स्त्री० जो आँगन चौका आदि पोतने का काम करती है। स्त्री० [?] अँतड़ी। आँत। |
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पोतना :
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स० [सं० प्लुत; प्रा० पुत+ना] १. किसी विशिष्ट तरल पदार्थ में तर किये हुए कपड़े के टुकड़े को इस प्रकार किसी चीज पर फेरना कि उस पर तरल पदार्थ की तह चढ़ जाय। लेप करना। लीपना। जैसे—किवाड़ों पर रंग पोतना। २. किसी गीले या सूखे पदार्थ को किसी वस्तु पर इस प्रकार लगाना कि वह उस पर बैठ जाय या जम जाय। जैसे—किसी के मुँह पर गुलाल पोतना। ३. आँगन, चौके आदि को पवित्र करने के उद्देश्य से उस पर गोबर, मिट्टी आदि का लेप करना। ४. लाक्षणिक अर्थ में, किसी चीज या बात के ऊपर ऐसी क्रिया करना कि वह छिप या ढक जाय। पुं० वह कपड़ा जिससे कोई चीज पोती जाय। पोतने का कपड़ा। |
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पोतला :
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पुं० [हिं० पोतना] तवे पर घी पोतकर सेंकी हुई चपाती। पराँठा। पुं०=पुतला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पोतवाह :
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पुं० [सं० पोत√वह्+अण्] मल्लाह। माँझी। |
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पोता :
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पुं० [सं० पौत्र; प्रा० पोत्त] [स्त्री० पोती] बेटे का बेटा। पुत्र का पुत्र। पुं० [हिं० पोतना] १. वह कपड़ा या कूची जिससे घरों में चूना पोता या फेरा जाता है। २. धुली हुई मिट्टी जो आँगन, चौका, दीवार आदि पोतने के काम आती है। क्रि० प्र०—फेरना।—लगाना। मुहा०—पोता फेरना=पूरी तरह से चौपट या बरबाद करना। चौका लगाना। पुं० [फा० फ़ोतः] १. भूमिकर। लगान। पोत। २. अंड-कोश। पुं० [सं० पोत] १५ या १६ अंगुल लंबी एक प्रकार की मछली जो भारत की प्रायः सभी नदियों में मिलती है। पुं० [सं०√पू+तृच्] १. यज्ञ में सोलह प्रधान ऋत्विजों में से एक। २. वायु। हवा। ३. विष्णु। पुं०=पोटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पोताई :
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स्त्री० [हिं० पोतना] पोतने की क्रिया, भाव या मजदूरी। |
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पोताच्छादन :
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पुं० [सं० पोत+आ√छद्+णिच्+ल्यु—अन] तंबू। छौलदारी। डेरा। |
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पोताधान :
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पुं० [सं० पोत-आधान, ष० त०] मछलियों के बच्चों का गोल या समूह। छाँवर। |
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पोतारा :
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पुं०=पुतारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पोतारी :
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स्त्री०=पुतारा। |
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पोताश्रय :
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पुं० [सं० पोत-आश्रय, ष० त०] समुद्र के किनारे का वह प्राकृतिक या कृत्रिम स्थान जहाँ पहुँचकर जहाज ठहरते तथा माल आदि उतारते-चढाते हैं। बन्दरगाह। (हार्बर) |
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पोतास :
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पुं० [सं०] भीमसेनी कपूर। बरास। |
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पोति :
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स्त्री०=पोत (काँच की गुरिया)। |
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पोतिका :
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स्त्री० [सं०=पूर्तिका; पृषो० सिद्धि] १. पोई की बेल। २. कपड़ा। वस्त्र। |
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पोतिया :
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पुं० [सं० पोत] १. वह कपड़ा जो साधु लुंगी की तरह कमर में बाँधकर पहनते हैं। २. पान, सुपारी, सुरती आदि रखने की छोटी थैली या बटुआ। ३. एक प्रकार का खिलौना। वि० [?] बाद में आने या पड़नेवाला। परवर्ती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पोती :
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स्त्री० [हिं० पोतना] १. पोतने की क्रिया या भाव। पोताई। २. मिट्टी का वह लेप जो हँड़िया आदि की पेंदी पर इसलिए चढ़ाया जाता है कि उसमें अधिक आँच न लगे। उदा०—जैन नीरसों पोती किया।—जायसी। २. किसी गरम चीज को ठंढ़ा रखने के लिए उस पर पानी से तर कपड़ा फेरने की क्रिया या भाव। ३. दे० ‘पुतारा’। स्त्री० हिं० पोता (पौत्र) का स्त्री०। |
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पोत्या :
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स्त्री० [सं० पोत+य+टाप्] पोतों अर्थात् जलयानों का समूह। |
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पोत्र :
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पुं० [सं०√पू+ष्ट्रन्] १. सूअर का खाँग। २. वज्र। ३. एक प्रकार का यज्ञ-पात्र जो पोता नामक याजक के पास रहता था। ४. जहाज या नाव। पोत। ५. नाव खेने का डाँड़ा। |
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पोत्रायुध :
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पुं० [सं० पोत्र-आयुध, ब० स०] जंगली सूअर। |
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पोत्री (त्रिन्) :
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पुं० [सं० पोत्र+इनि] सूअर। |
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