| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रत्यभिज्ञा					 : | स्त्री० [सं० प्रति-अभिज्ञा, अव्य० स०] १. ज्ञान प्राप्त करना। जानना। २. पहले से देखे हुए को पहचानना। ३. पहले से देखी हुई चीज की तरह की कोई दूसरी चीज देखकर उसका ज्ञान प्राप्त करना। ४. वह अभेद ज्ञान जिसमें ईश्वर और जीवात्मा दोनों एक माने जाते हैं। ५. दे० ‘प्रत्यभिज्ञादर्शन’। | 
			
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				| प्रत्यभिज्ञा-दर्शन					 : | पुं० [सं० ष० त०] माहेश्वर या शैव संप्रदाय का एक दर्शन जिसमें सब सिद्धान्तों का तर्क-बद्ध निरूपण है और जिसके अनुसार भक्त-वत्सल महेश्वर ही परमेश्वर माने गये हैं। | 
			
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				| प्रत्यभिज्ञात					 : | भू० कृ० [सं० प्रति-अभि√ज्ञा (जानना)+क्त] जाना या पहचाना हुआ। | 
			
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				| प्रत्यभिज्ञान					 : | पुं० [सं० प्रति-अभि√ज्ञा+ल्युट्—अन] १. प्रत्यभिज्ञा। २. स्मृति की सहायता से होनेवाला ज्ञान। | 
			
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