प्रमा/prama

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प्रमा  : स्त्री० [सं० प्र√मा (मापना)+अड+टाप्] १. तर्क और प्रमाणों आदि के आघार पर प्राप्त होनेवाला यथार्थ ज्ञान। २. वह ज्ञान जो बिना बुद्धि की सहायता के या बिना सोचे-विचारे आप से आप तत्काल उत्पन्न हो। (इन्ट्यूशन)। ३. नींव। ४. नाप। माप।
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प्रमाण  : पुं० [सं० प्र√मा+ल्युट्—अन] १, लंबाई, चौ़ड़ाई आदि नापने या भार आदि तौलने का मान। नाप या तौल। जैसे—गज, बटखरे आदि। २. नाप, तौल आदि की नियत इकाई या इयत्ता। जैसे—इस धोती का प्रमाण दस हाथ है; अर्थात् यह इससे न कम होती है और न अधिक। ३. लंबाई-चौड़ाई। विस्तार। ४. सीमा। हद। ५. ऐसा कथन, तथ्य या बात जिससे किसी अन्य कथन, तथ्य या बात के सत्यपूर्ण होने की प्रतीति होती है। सबूत। (प्रूफ) जैसे—धुआँ इस बात का प्रमाण है कि कहीं आग जल रही है। ६. वह चीज या बात जिससे विवादास्पद दूसरी बात के किसी एक पक्ष या मत का ठीक होने का निश्चय होता हो। पद—प्रमाणपत्र। (देखें)। ७. वह चीज या बात जो किसी कथन को ठीक सिद्ध करने के लिए औरों के सामने रखी जाती हो। साथी (एविडेन्स) ८. ऐसा कथन, तथ्य या बात जिसे सब लोग ठीक, प्रामाणिक या यथार्थ मानते हों। ९. किसी चीज या बात के ठीक या यथार्थ होने की अवस्था या भाव। सचाई। सत्यता। उदा०—कान्ह जू कैसे दया के निधान हौ, जानौ न काहू के प्रेम प्रमानहिं।—दास। १॰. किसी की सत्यता आदि पर किया जानेवाला विश्वास। प्रतीति। ११. ऐसी चीज या बात जो बिलकुल ठीक होने के कारण सबके लिए आदरणीय या मान्य हो। उदा०—अति ब्रह्मशास्त्र प्रमाण मानि सो वश्य मो मन यु्द्ध कै।—केशव। १२. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार जिसमें किसी बात का कोई प्रमाण मिलने घर उस बात के प्रत्यक्ष या सिद्ध होने का उल्लेख होता है। विशेष—न्यायशास्त्र में प्रमाण के जो आठ भेद कहे गये हैं, उन्हीं के अनुसार इस अलंकार के भी आठ भेद माने गये हैं। १३. किसी बात का ठीक, पूरा और सच्चा ज्ञान। १४. चित्रकला में, अंकित पदार्थों, व्यक्तियों आदि के सब अंगों का पारस्परिक ठीक अनुपात। (प्रोपोर्शन) १५. शास्त्र, जो प्रमाण के रूप में माने जाते हैं। १६. मूल-धन। पूँजी। १७. एकता। १८. कारण। सबब। १९. गणित में त्रैराशिक की पहली राशि या संख्या। २0. विष्णु का एक रूप। २१. शिव। वि० १. जो ठीक या सत्य सिद्ध हो चुका हो अथवा माना जाता हो। २. जो सबके लिए मान्य हो। ३. जो यह जानता हो कि क्या ठीक है, और क्या ठीक नहीं है। अव्य० १. अवधि या सीमा सूचक शब्द। पर्यन्त। तक। उदा०—सत जोजन प्रमान लै धावै।—तुलसी। २. किसी के तुल्य, सदृश या समान।
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प्रमाण-कुशल  : वि० [स० त०] अच्छा तर्क करने और उपयुक्त प्रमाण देनेवाला।
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प्रमाण-पत्र  : पुं० [ष० त०] वह पत्र जिसमें कोई संबंधित अधिकारी यह कहता है कि किसी के संबंध की अमुक-अमुक बातें सत्य हैं। प्रमाणक। (सर्टिफिकेट)
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प्रमाण-पुरुष  : पुं० [मध्य० स०] वह जिसके निर्णय मानने के लिए दोनों पक्षों के लोग तैयार हों। पंच।
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प्रमाण-शास्त्र  : पुं०=तर्क-शास्त्र। (न्याय)
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प्रमाणक  : वि० [सं० प्रमाण+कन् या प्रमाण+णिच्+ण्वुल्—अंक] १. समस्त पदों के अंत में, परिणाम या विस्तार-संबंधी। २. प्रमाणित करनेवाला। पुं० १. वह पत्र जिस पर लिखी हुई बातें प्रामाणिक और सही मानी जाती हैं। (सर्टिफिकेट) २. किसी रकम के आय-व्यय के खाते में चढ़ाये जाने की संपुष्टि या प्रमाण के रूप में साथ में नत्थी किये जाने-वाले हिसाब के ब्यौरे का पुरजा। (वाउचर)
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प्रमाणकर्त्ता (तृ)  : पुं० [ष० त०] वह व्यक्ति जो कोई बात प्रमाणित करता हो। (सर्टिफायर)
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प्रमाणकोटि  : स्त्री० [ष० त०] प्रमाण मानी जानेवाली बातों या वस्तुओं का वर्ग।
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प्रमाणतः (तस्)  : अव्य० [सं० प्रमाण+तस्] प्रमाण के अनुसार या आधार पर।
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प्रमाणन  : पुं० [सं० प्रमाण+णिच्+ल्युट्—अन] १. कथन, लेख आदि के सम्बन्ध में यह कहना या सिद्ध करना कि यह ठीक और प्रामाणिक है। (सर्टिफ़िकेशन) २. प्रमाण उपस्थित करके किसी तथ्य या बात को सही सिद्ध करना।
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प्रमाणना  : सं०=प्रमानना।
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प्रमाणिक  : वि० [सं० प्रमाण+ठन्—इक] प्रामाणिक।
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प्रमाणिका  : स्त्री० [सं० प्रमाणिक+टाप्] प्रमाणी। (दे०)
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प्रमाणित  : भू० कृ० [सं० प्रमाण+णिच्+इतच्] १. जो प्रमाण द्वारा ठीक सिद्ध किया जा चुका हो। २. जिसके संबंध में किसी आधिकारिक व्यक्ति ने यह लिखा हो कि यह प्रामाणिक, सत्यपूर्ण या सही है।
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प्रमाणी  : स्त्री० [सं० प्रमाण+ङीष्] चार चरणों का एक वर्ण वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रम से जगण, रगण, लघु और गुरु (ज, र, ल, ग) होते हैं। नाग स्वरूपिणी।
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प्रमाणीकृत  : भू० कृ० [सं० प्रमाण+च्वि√कृ+क्त] जो प्रमाण के रूप में मान लिया गया हो। या प्रमाण के द्वारा सत्य या सिद्ध हो चुका हो।
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प्रमातव्य  : वि० [सं० प्र√मा+तव्यत्] मारे जाने के योग्य।
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प्रमाता (तृ)  : पुं० [सं० प्र०√मा+तृच्] १. प्रमाणों को मानने अर्थात् उनके आधार पर न्याय करनेवाला अधिकारी। २. न्यायाधीश। ३. आत्मा या चेतना पुरुष जिसे या जिससे ज्ञान होता है। ४. वह जो विषय से भिन्न और द्रष्टा या साक्षी हो।
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प्रमातामह  : पुं० [सं० अत्या० स०] [स्त्री० प्रमातामही] परनाना।
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प्रमात्रा  : स्त्री . [सं० प्रा० स०] उतनी मात्रा जितनी आवश्यक, इष्ट या निर्दिष्ट हो। (क्वैन्टम)
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प्रमाथ  : पुं० [सं० प्र√मथ्+घञ्] १. मथन। २. कष्ट देना। पीड़न। ३. नष्ट करना। न रहने देना। ४. मार डालना। ५. बलात् किया जानेवाला संभोग। बलात्कार। ६. बलपूर्वक किसी से कुछ छीन लेना। ७. प्रतिद्वद्वी को जमीन पर पटककर उस पर चढ़ बैठना और उसे घस्सा देना। ८. शिव का एक गण। ९. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। १॰. कार्तिकेय का एक अनुचर।
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प्रमाथी (थिन्)  : वि० [सं० प्र√मथ्+णिनि] [स्त्री० प्रमाथिनी] १. प्रमथन करने या मथनेवाला। २. कष्ट देने या पी़ड़ित करनेवाला। ३. नष्ट करनेवाला। नाशक। ४. मार डालनेवाला। ५. घातक। ६. काटनेवाला। पुं० १. बृहत्संहिता के अनुसार बृहस्पति के ऐंद्र नामक तीसरे युग का दूसरा संवत्सर जो निकृष्ण माना गया है। २. वह ओषध जो मुँह, आँख, कान आदि में जमा हुआ कफ बाहर निकाल दे। ३. धृतराष्ट्र का एक पुत्र।
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प्रमाद  : पुं० [सं० प्र√मद्+घञ्] १. किसी प्रकार के मद या नशे में होने की अवस्था या भाव। २. वह मानसिक स्थिति जिसमें मनुष्य अभिमान, असावधानता, उपेक्षा, प्रभुत्व, भ्रम आदि के कारण बिना कुपरिणाम का विचार किये कोई अनुचित काम, बात या भूल कर बैठता है। ३. उक्त प्रकार की मानसिक अवस्था में की जानेवाली कोई बहुत बड़ी भूल। ४. दुर्घटना। ५. बेहोशी। मूर्च्छा। ६. अंतःकरण की दुर्बलता। ७. उन्माद। पागलपन। ८. योग-शास्त्र में समाधि के साधनों की ठीक तरह से भावना न करना या उन्हें ठीक न समझना।
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प्रमादतः  : अव्य० [सं० प्रमाद+तस्] प्रमाद के कारण।
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प्रमादवान् (वत्)  : वि० [सं० प्रमाद+तुप्, वत्व] (व्यक्ति) जो प्रमाद करता हो अर्थात् बिना कुपरिणाम का विचार किये अनुचित या गलत काम करता हो।
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प्रमादिक  : वि० [सं० प्रमाद+ठन्—इक] १. प्रमाद-सम्बन्धी। प्रमाद का। २. प्रमाद करनेवाला। प्रमादशील।
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प्रमादिका  : स्त्री० [सं० प्रमादिक+टाप्] ऐसी कन्या जिसके साथ किसी ने बलात्कार किया हो।
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प्रमादिनी  : स्त्री० [सं० प्रमादिन्+ङीप्] संगीत में एक रागिनी जो हिंडोल राग की सहचरी कही गई है।
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प्रमादी (दिन्)  : वि० [सं० प्रमाद+इनि] [स्त्री० प्रमादिनी] १. (व्यक्ति) जो प्रमाद करता हो। प्रमादवान्। २. पागल।
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प्रमान  : वि० [सं० प्रमाण या प्रामाणिक] १. प्रामाणिक। २. निश्चित। पक्का। उदा०—यह प्रमान मन मोरे।—तुलसी। अव्य० की तरह। की भाँति। के समान।
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प्रमानना  : स० [सं० प्रमाण+ना (प्रत्य०) ] १. प्रमाण के रूप में या बिलकुल सत्य मानना। ठीक समझना। २. प्रमाणित या सिद्ध करना। साबित करना। ३. निश्चित या स्थिर करना। ठहराना।
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प्रमानी  : वि०=प्रामाणिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रमापक  : वि० [सं० प्र√मा+णिच्, पुक्,+ण्वुल्—अक ] प्रमाणित करने-वाला। पुं० प्रमाण।
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प्रमापन  : पुं० [सं० प्र√मा+णिच्, पुक्,+ ल्युट्—अन] १. मार डालना। मारण। २. नाश। ३. आकृति। रूप।
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प्रमापित  : भू० कृ० [सं० प्र√मा+णिच्, पुक्,+तृच्] १. जो मार डाला गया हो। हत। २. ध्वस्त। विनष्ट।
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प्रमापियता (तृ)  : वि० [सं० प्र√मा+णिच् पुक्,+तृच्] [स्त्री० प्रमापयित्री] १. घातक। २. नाशक। ३. अनिष्टकारक। हानिकारक।
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प्रमापी (पिन्)  : वि० [सं० प्र√मा+णिच्, पुक्,+णिनि] १. वध करने-वाला। २. नष्ट करनेवाला।
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प्रमायुक  : वि० [सं० प्र√मी (हिंसा)+उकञ्] जो ध्वस्त या नष्ट हो सकता है।
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प्रमार्जक  : वि० [सं० प्र√मृज् (शुद्ध करना)+णिच् +ण्वुल्—अक] १. पोंछने या साफ करनेवाला। २. दूर करने या हटानेवाला।
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प्रमार्जन  : पुं० [सं० प्र√मृज+णिच्+ल्युट्—अन] १. झाड़-पोंछ या धोकर साफ करना। २. मरम्मत या सुधार करना। ३. दूर करना। हटाना।
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प्रमावाद  : पुं० [सं० ष० त०] [वि० प्रमावादी] १. मनोविज्ञान का यह मत या सिद्धान्त कि कोई सार्विक शब्द या संज्ञा सुनकर उसके अनुरूप आकृति प्रस्तुत करने की शक्ति मन में होती है। (कन्सेप्चुअलिज़्म)
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प्रमास्तिष्क  : वि० [सं०] प्रमस्तिष्क से संबंध रखने या उसमें होनोवाला। (सेरिब्रल)
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