प्रयोद-वाद/prayod-vaad

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प्रयोद-वाद  : पुं० [सं० ष० त०] यह आधुनिक साहित्यकि मत या सिद्धांत कि अब तक जो साहित्यिक परम्पराएँ चली आ रही है, उन्हें प्रयोगात्मक परीक्षण के द्वारा जाँच लेना चाहिए। और उनमें से जो अनावश्यक या निरर्थक हों, उनके स्थान पर नई परम्पराएँ चलाने के लिए नये प्रयोग करके देखना चाहिए। (एक्सपेरिमेन्टलिज्म) विशेष—इस वाद के अनुयायी कवि या लेखक संसार में छापे हुए अन्धकार, अनाचार और विषाद में अपने आपको नये उचित मार्ग का अन्वेषक तथा अपनी कृतियों या रचनाओं को प्रयोग मात्र मानते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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