शब्द का अर्थ
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प्रह :
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पुं० [सं० प्रभा] १. चमक। २. प्रकाश। |
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समानार्थी शब्द-
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प्रहणन :
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पुं०=हनन। |
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प्रहत :
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भू० कृ० [सं० प्र√हन्+क्त] [भाव० प्रहति] १. मारा हुआ। हत। २. जिस पर आघात हुआ हो। ३. पराजित। ४. प्रसारित। पुं० १. आघात। प्रहार। २. पासा आदि फेंकने की क्रिया। |
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प्रहति :
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स्त्री० [सं० प्र√हन्+क्तिन्] १. प्रहत होने की अवस्था या भाव। २. आघात। प्रहार। |
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प्रहर :
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पुं० [सं० प्र√हृ (हरण करना)+अप्] काल-मापन की दृष्टि से दिन के किये हुए आठ भागों में से प्रत्येक जिनकी अवधि ३-३ घंटे की होती है। |
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प्रहरक :
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पुं०=प्रहरी। |
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प्रहरखना :
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अ० [सं० प्रहर्षण] हर्षित या प्रसन्न होना। आनंदित होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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प्रहरण :
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पुं० [सं० प्र√हृ (हरण करना)+ल्युट्—अन] १. बलपूर्वक किसी से कुछ ले लेना। छीनना। २. अस्त्र। ३. युद्ध। ४. आघात। प्रहार। वार। ५. फेंकना। ६. परित्याग। ७. चित्त की एकाग्रता। ८. एक तरह की पालकी। ९. पालकी में बैठने का स्थान। १॰. मृदंग का एक प्रबंध। |
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प्रहरणीय :
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वि० [सं० प्र√हृ+ल्युट्—अन] १. जिसे छीना जा सके। २. जिसपर आक्रमण किया जा सके। ३. जिससे युद्ध किया जा सके। ४. नष्ट किये जाने के योग्य। पुं० प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र। |
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प्रहरी (रिन्) :
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पुं० [सं० प्रहार+इनि] १. पहर-पहर पर घंटा बजानेवाला कर्मचारी। घड़ियाली। २. पहरेदार। |
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प्रहर्ता (तृ) :
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पुं० [सं० प्र√हृ+तृच] [स्त्री० प्रहर्त्री] १. वह जो किसी पर प्रहार करे। २. योद्धा। |
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प्रहर्ष :
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पुं० [सं० प्रा० स०] हर्ष का वह तीव्र रूप जिसमें हृदय उमड़ने लगता है। |
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प्रहर्षण :
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पुं० [सं० प्र√हृष्+णिच्+ल्युट्—अन] १. हर्षित या प्रसन्न करने की क्रिया या भाव। २. आनन्द। प्रसन्नता। ३. [सं० प्र√हृष्+णिच्+ल्युट्—अन] बुध नामक ग्रह। ४. परवर्ती साहित्य में एक प्रकार का गौण अर्थालंकार जिसमें अनायास या सहज में किसी उद्देश्य की आशा से अधिक सिद्धि या आशातीत फल प्राप्ति की स्थिति का उल्लेख होता है। (यह ‘विषादन’ अलंकार के विपरीत भाव का सूचक है।) |
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प्रहर्षणी :
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स्त्री० [सं० प्रहर्षण+ङीप्] १. हरिद्रा। हलदी। २. तेरह अक्षरों की एक वर्णवृत्ति जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः म, न, ज, र, ग होता है। |
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प्रहर्षित :
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भू० कृ० [सं० प्रहर्ष+इतच्] १. जिसे प्रहर्ष हुआ हो। २. जिसके मन में प्रहर्ष हुआ हो। ३. जिसके मन में प्रहर्ष उत्पन्न किया गया हो। |
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प्रहसन :
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पुं० [सं० प्र√हस्+ल्युट्+अन] १. प्रसन्नतापूर्वक हँसना। विशेषतः जोरों से हँसना। २. किसी को उपहासास्पद ठहराना या बनाना। ३. एक प्रकार का रूपक जो भाण की तरह हास्य-रस-प्रधान होता है। इसमें एक या दो अंग तथा अनेक पात्र होते हैं; इसका विषय प्रायः कवि-कल्पित होता है; और इसमें दूषित तथा हेय आचार-विचार की दिल्लगी उड़ाई जाती है। |
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प्रहसित :
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पुं० [सं० प्र√हस्+क्त] १. खूब जोर से होनेवाली हँसी। ठहाका। २. एक बुद्ध का नाम। भू० कृ० हँसता हुआ। |
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प्रहस्त :
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पुं० [सं० ब० स०] १. हथेली की वह स्थिति जिसमें उँगलियाँ खुली तथा अकड़ी हुई हों। पंजा। २. चपत। थप्पड़ ३. रावण का एक सेनापति। (रामायण) |
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प्रहाण :
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पुं० [सं० प्र√हा (त्याग)+ल्युट्—अन] १. छोड़ना। त्यागना। २. अनुमान करना। ३. उद्योग। चेष्टा। |
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प्रहान :
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पुं०=प्रहाण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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प्रहानि :
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स्त्री० [सं०] १. बहुत बड़ी हानि। २. कमी। ३. त्रुटि। |
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प्रहार :
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पुं० [सं० प्र√हृ+घञ्] १. आहत या हत करने के लिए किसी पर किया जानेवाला आघात। वार। जैसे—लाठी या तलवार से किया जानेवाला प्रहार। २. आघात। चोट। |
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प्रहारक :
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वि० [सं० प्र√हृ+ण्वुल्—अक] प्रहार करनेवाला। |
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प्रहारण :
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पुं० [सं० प्र√हृ+णिच्+ल्युट्—अन] १. प्रहार करना। २. काम्यदान। मनचाहा दान। |
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प्रहारना :
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स० [सं० प्रहार] आघात या प्रहार करना। मारना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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प्रहारार्त :
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वि० [सं० प्रहार-आर्त, तृ० त०] जिस पर प्रहार किया गया हो; फलतः आहत या हत। पुं० १. प्रहार लगने से होनेवाला घाव। २. उक्त घाव से होनेवाली पीड़ा। |
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प्रहारित :
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भू० कृ० [सं० प्रहृत] जिस पर आघात या प्रहार हुआ हो जिसे चोट लगी या मार पड़ी हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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प्रहारी (रिन्) :
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वि० [सं० प्र√हृ+णिनि] [स्त्री० प्रहारिणी] १. प्रहार करने या मरनेवाला। २. दूर करने या हटानेवाला। ३. नष्ट करनेवाला। नाशक। ४. (अस्त्र, शस्त्र आदि) चलाने या छोड़नेवाला। |
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प्रहारुक :
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वि० [सं० प्र√हृ+उकञ्] १. छीननेवाला। २. प्रहार करनेवाला। |
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प्रहार्य :
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वि० [सं० प्र√हृ+ण्यत्] १. जो हरण किया या छीना जा सके। २. जिस पर प्रहार या आघात किया जा सके। |
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प्रहास :
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पुं० [सं० प्र√हस् (हँसना)+घञ्] १. प्रहसन। हँसी। २. अट्टहास। ३. नट। ४. शिव। ५. कार्तिकेय का एक अनुचर। ६. सोमतीर्थ का एक नाम। |
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प्रहासी (सिन्) :
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वि० [सं० प्र√हस्+णिनि] जोर से हँसने या हँसानेवाला। |
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प्रहित :
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भू० कृ० [सं० प्र√धा (धारण)+क्त, धा=हि] १. भेजा हुआ। प्रेरित। २. फेंका हुआ। ३. फटका हुआ। ४. निष्कासित। पुं० १. सूप २. दाल। ३. सालन। |
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प्रहुत :
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पुं० [सं० प्र√हु (होम करना)+क्त] बलिवैश्वदेव। भूतयज्ञ। |
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प्रहुति :
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पुं० [सं० प्र√हु+क्तिन्] आहुति। |
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प्रहृत :
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भू० कृ० [सं० प्र√हृ (हरण)+क्त] १. फेंका हुआ। २. चलाया हुआ। ३. मारा हुआ। ४. फैलाया हुआ। ५. ठोंका या पीटा हुआ। पुं० १. प्रहार। मार। २. एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि। |
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प्रहृष्ट :
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भू० कृ० [सं० प्र√हृष् (प्रसन्न होना)+क्त] अत्यन्त प्रसन्न। आह्लादित। |
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प्रहेलक :
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पुं० [सं० प्र√हिल् (हाव-भाव करना)+अच्√कन] लपसी। |
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प्रहेला :
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स्त्री० [सं० प्रा० स०] स्वच्छन्द रूप से की जानेवाली क्रीड़ा। |
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प्रहेलि :
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स्त्री०=प्रहेलिका। |
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प्रहेलिका :
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स्त्री० [सं० प्र√हिल्+क्वुन्—अक,+टाप्, इत्व] पहेली। (दे०) |
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प्रह्लाद :
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पुं० [सं० प्र√ल्हाद्+णिच्+अच्] १. आहलाद। आनन्द। २. एक प्राचीन देश। ३. दैत्यराज हिरण्यकशिपु का एक पुत्र जो बहुत बड़ा ईश्वर-भक्त था। कहा जाता है कि इसी की रक्षा करने के लिए भगवान ने नृसिंह अवतार धारण करके हिरण्युकशिपु को मारा था। |
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प्रह्लादक :
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वि० [सं० प्र√हलाद्+णिच्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० प्रह्लादिका] प्रसन्न करनेवाला। हर्षकारक। |
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प्रह्लादन :
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पुं० [सं० प्र√ह्लाद+णिच+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रह्लादित] आह्लादित या प्रसन्न रहनेवाला। |
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प्रह्लादी (दिन्) :
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वि० [सं० प्रह्लाद+इनि] प्रसन्न होनेवाला। |
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प्रह्वाद :
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पुं०=प्रह्लाद। |
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