फटना/phatana

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फटना  : अ० [हिं० फाड़ना का अ० रूप] १. आघात लगने के कारण या यों ही किसी चीज़ का बीच में से इस प्रकार खंडित होना या उसमें दरार पड़ जाना कि अन्दर की चीजें बाहर निकल पड़ें या बाहर से दिखायी देने लगें। जैसे—दमीन या दीवार फटना। मुहावरा—फट पड़ना=अचानक बहुत अधिक मात्रा में आ पहुँचना। सहसा आ पड़ना। जैसे—(क) दौलत तो उनके घर मानों फट पड़ी है। (ख) आफत तो उनके सिर मानों पट पड़ी है। फटा पड़ना-इतनी अधिकता होना कि अपने आधार या आधान में समा न सके। जैसे—उसका रूप तो मानों फटा पड़ता था। २. किसी पदार्थ का बीच से कटकर या दो टुकड़े हो जाना। जैसे—कपड़ा फटना। ३. बीच या सीध में से निकलकर किसी ओर असंगत रूप से बढना या अलग होकर दूर निकल जाना। मुहावरा—फट जाना या पड़ना=बीच या सीध में अचानक निकलकर इधर या उधर हो जाना। जैसे—वह घोड़ा चलते-चलते दाहिनी या बायी ओर बढ़ जाता है। ४. किसी गाढ़े द्रव पदार्थ में ऐसा विकार होना जिससे उसका पानी अलक और सार भाग अलग हो जाय। जैसे—खून फटना, दूध फटना। ५. रोग विकार आदि के कारण शरीर के किसी अंग में ऐसी पीड़ा या वेदना होना कि मानों वह अंग फट जायगा। जैसे—दर्द के मारे आँख या सिर फटना, बहुत अधिक थकावट के कारण पैर फटना, हो-हल्ले से कान फटना। ६. लाक्षणिक रूप में मन या हृदय पर ऐसा आघात लगना कि उसकी पहलेवाली साधारण अवस्था न रह जाय। जैसे—किसी के दुर्व्यवहार से चित्त (मन या हृदय) फटना, शोर से छाती फटना। ७. किसी चीज या बात का अपनी साधारण या प्रसम अवस्था में न रहकर विकृत अवस्था में आना या होना। जैसे—चिल्लाते-चिल्लाते आवाज (या गला) फटना। ८. किसी पर विपत्ति के रूप में आकर गिरना। उदाहरण—सीता असगुन कौं कटाई नाक बार, सोई अब कृपा करि राधिका पै फेर फाटी है।—रत्ना०।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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