फेर/pher

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फेर  : पुं० [हिं० फेरना] १. फिरने या फेरने की क्रिया या भाव। २. ऐसी स्थिति जिसमें किसी को अथवा किसी के चारों ओर फिरना पड़ता है। घुमाव। चक्कर। क्रि० प्र०—पड़ना। पद—फेर की बात=घुमाव की बात ऐसी बात जो सीधी या सरल न हो, बल्कि घुमाव-फिराव पेंच य चालाकी भरी हो। मुहावरा—फेर खाना=सीधे रास्ते से न जाकर घुमाव-फिराववाले रास्ते से जाना। ३. किसी प्रकार का ऐसा क्रम या सिलसिला जिसमें आवश्यकतानुसार थोड़ा-बहुत परिवर्तन होता रहे। जैसे—अभी तो काम शुरू किया है तब फेर बँध(या बैठ) जायगा, तब कुछ न कुछ अच्छा ही परिणाम निकलेगा। क्रि० प्र०—बँधना।—बाँधना।—बैठाना। ४. कोई बड़ा या महत्त्वपूर्ण परिवर्तन। कुछ से कुछ हो जाना। पद—उलटे-फेर (दे० स्वतंत्र शब्द)। दिनों (या भाग्य) का फेर=दैवी घटनाओं का ऐसा क्रमिक परिवर्तन जिससे रूप या स्थिति बिलकुल बदल जाय विशेषतः अच्छी दशा से निकलकर बुरी दशा की होनेवाली प्राप्ति। ५. ऐसी स्थिति जिसमें भ्रम-वश कुछ का कुछ समझ में आये। धोखा। जैसे—(क) और कुछ नहीं तुम्हारी समझ का फेर है। (ख) यदि इस फेर में रहोगे तो बहुत धोखा खाओगे। ६. ऐसी स्थिति जिसमें बुद्धि जल्दी काम न करती हो। अनिश्चय, असमंजस या दुविधा की स्थिति। जैसे—वह बड़े फेर में पड़ गया कि वह क्या करे। क्रि० प्र०—मे डालना।—में पड़ना। ७. ऐसी स्थिति जो अन्त में हानिकारक सिद्ध हो। जैसे—उसकी बातों मे आकर मैं हजारों रुपए के फेर में पड़ गया। क्रि० प्र०—में आना।—में डालना।—में पड़ना। ८. चालाकी या धोखेबाजी से भरी हुई चाल या उक्ति। जैसे—(क) तुम उसके फेर में मत पड़ना वह बहुत बड़ा धूर्त है। (ख) वह आज-कल तुम्हें फँसाने के फेर में लगा है। उदाहरण—फेर कछू करि पौरि तै फिरि चितई मुस्काई।—बिहारी। क्रि० प्र०—में आना।—में डालना।—में पड़ना।—में लगना।—में लगाना। पद—फेर-फार (दे० स्वतंत्र शब्द)। ९. उपाय। तरकीब। युक्ति। उदाहरण—दैव जो जोरी दुहुँ लिखी मिले सौ कबनेह फेर।—जायसी। मुहावरा—फेर बाँधना-तरकीब या युक्ति लगाना। १॰. लेन-देन व्यवसाय आदि के प्रसंग में, समय-समय पर कुछ लेते और कुछ देते रहने की अवस्था या भाव। पद—हेर-फेर-लेन-देन का क्रम या व्यवसाय। जैसे—इसी तरह हेर-फेर चलता रहता है। क्रि० प्र०—बँधना।—बाँधना। ११. जंजाल। झंझट। बखेड़ा। जैसे—प्रेम (या रुपए-पैसे) का फेर बहुत बुरा होता है। पद—निन्नानबे का फेर=अधिक धन कमाने की चिता या धुन। विशेष—यह पद एक ऐसी कहानी के आधार पर बना है जिसमें किसी अपव्ययी को ठीक मार्ग पर लाने के उद्देश्य से उसे ९९ रुपए दे दिये। अपव्ययी ने सोचा था कि ये किसी प्रकार पूरे सौ रुपए हो जायँ, फलतः वह धीरे-धीरे धन इकट्ठा करने लगा था। १२. भूत-प्रेत का आवेश या प्रभाव। जैसे—कुछ फेर है इसी से वह अच्छा नहीं हो रहा है। (इस अर्थ में प्रायः ऊपरी फेर पद का ही अधिक प्रयोग होता है) १३. ओर। तरफ। दिशा। उदाहरण—सगुन होहिं सन्दर सकल मन प्रसन्न सब केर। प्रभु आगमन जनाव जनु नगर रम्य चहुँ फेर।—तुलसी। १४. दे० ‘फेरा’। अव्य०=फिर। पुं० [सं०फे√रू+ड] श्रृंगाल। गीदड़।
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फेर-पलटा  : पुं० [हिं० फेरना+पलटा] गौना। द्विरागमन।
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फेर-फार  : पुं० [हिं० फेर+अनु० फार] १. बहुत बड़ा तथा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन। उलट-फेर। २. घुमाव-फिराव। चक्कर। ३. घुमाव-फिराव या छल-कपट की बात-चीत। धूर्तता का व्यवहार। चालाकी। जैसे—हमसे इस तरह की फेर-फार की बातें मत किया करो। ४. लेन-देन या व्यवहार के चलते रहने की अवस्था या भाव। जैसे—रोजगारियों का फेर-फार चलता रहना चाहिए।
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फेरंड  : पुं० [सं०फे√रग्ड+अच्] गीदड़। सियार।
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फेरना  : स० [हिं० फेर या फेरा] १. कोई चीज किसी फेरे या घेरे में बार-बार मंडालाकार अथवा किसी धुरी पर चारों ओर घुमाना। जैसे—(ख) माला फेरना (अर्थात् एक-एक दाना या मनका सरकाते हुए बार-बार नीचे करते हुए चक्कर देना)। (ख) चक्की फेरना। (ग) मुग्दर फेरना। (बार-बार घुमाते हुए शरीर के चारों ओर ले जाना और ले आना)। घोड़ा फेरना। (घोड़े की ठीक तरह से चलना सिखाने के लिए खेत या मैदान में मंडलाकार चक्कर लगाने में प्रवृत्त करना)। २. किसी तल या कोई चीज चारों ओर इधर-उधर ऊपर-नीचे ले जाना और ले आना। जैसे—(क) किसी की पीठ या सिर पर हाथ फेरना। (ख) दीवार पर चूना या रंग फेरना। (ग) पान फेरना=पान की गड्डी या ढोली के पानों को बार-बार उलट-पलटकर देखना और सड़े-गले पान निकालकर अलग करना। ३. कोई चीज लेकर चारों ओर या चक्कर सा लगाते हुए सबसे सामने जाना। जैसे—(क) अतिथियों के सामने, पान इलायची फेरना। (ख) नगर में डुग्गी या मुनादी पेरना। ४. जो वस्तु या व्यक्ति जहाँ या जिधर से आया हो, उसे लौटाते हुए वहीं या उसी ओर कर या भेज देना। वापस करना। जैसे—(क) बुलाने के लिए आया हुआ आदमी फेरना। (ख) दुकानदार से लिया हुआ माल या सौदा फेरना। ५. किसी के द्वारा भेजी हुई वस्तु न लेना और फलतः उसे लौटा देना। लौटाना। ६. किसी काम या चीज या बात की गति की दिशा बदलना। किसी ओर घुमाना या मोड़ना। जैसे—(क) गाड़ी या घोड़े को दाहिने या बाएँ फेरना। (ख) कुंजी या पेंच इधर या उधर फेरना। ७. जो चीज जिस दिशा में हो, उसका पार्श्व या मुँह उससे विपरीत दिशा में करना। जैसे—(क) किसी की ओर पीठ फेरना। (ख) किसी की ओर से मुँह फेरना। ८. जैसा पूर्व में रहा हो या साधारणतः रहता हो उससे भिन्न या विपरीत करना। उदाहरण—कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिँ।—तुलसी। ९. किसी चीज या बात की पहले की स्थिति बिलकुल उलट या बदल देना। जैसे—(क) जबान फेरना=बात कहकर मुकर जाना या वचन का पालन न करना। (ख) किसी के दिन फेरना=किसी को बुरी से अच्छी दशा में या प्रतिक्रमात् लाना। १॰. अभ्यास या कंठस्थ करने के लिए बार-बार उच्चारण करना या दोहराना। जैसे—लड़कों का पाठ फेरना-अच्छी तरह याद करने के लिए दोहराना।
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फेरब  : पुं० [सं० फेरव] गीदड़। उदाहरण—फेरबि फफ् फारिस गाइआ। विद्यापति।
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फेरव  : वि० [सं० फे-रव, ब० स०] १. धूर्त। चालबाज। २. हिंसक। पुं० १. राक्षस। २. गीदड़।
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फेरवट  : स्त्री० [हिं० फेरना] १. फेरने या फेरने का भाव। २. पेरे जाने पर होनेवाला चक्कर। फेरा। ३. घुमाव-फिराव। ४. अंतर। फरख।
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फेरवा  : पुं० [हिं० फेरना] सोने का वह छल्ला जो तार की दो तीन बार लपेटकर बनाया जाता है। लपेटा हुआ तार। पुं०=पेरा। पुं० [सं० फेरव] गीदड़। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फेरा  : पुं० [हिं० फेरना] [स्त्री० फेरी] १. किसी चीज के चारों ओर फिरने अर्थात् घूमने की क्रिया या भाव। चक्कर। परिक्रमण। जैसे—यह पहिया एक मिनट में सौ पेरे लगाता है। २. किसी लम्बी तथा लचीली चीज को दूसरी चीज के चारों ओर घुमाने, आवृत्त करने लपेटने आदि की क्रिया या भाव। ३. उक्त प्रकार से किया हुआ आवर्तन, घुमाव या लपेट। जैसे—इस लकड़ी पर रस्सी के चार फेरे अभी और लगाने चाहिए। संयो० क्रि०—देना। ४. बार-बार कही आने-जाने की क्रिया या भाव। जैसे—यह भिखमंगा दिन भर में इस बाजार के चार फेरे लगाता है। संयो० क्रि०—डालना।—लगाना। ५. कहीं जाकर वहाँ से लौटना या वापस आना, विशेषतः निरीक्षण करने, मिलने हाल-चाल पूछने आदि के उद्देश्य से किसी के यहाँ थोड़ी देर या कुछ समय के लिए जाना और फिर वहाँ से वापस लौट आना। जैसे—दिन भर में तकाजे के उद्देश्य से दस फेरे लगाता हूँ। संयो० क्रि०—लगाना।—लगवाना। ६. आवर्त। घेरा। मंडल। ७. विवाह के समय वर-वधू द्वारा की जानेवाली अग्नि की परिक्रमा। भाँवर। ८. (विवाह के उपरात) लड़की का ससुराल जाने का भाव। जैसे—उसे दूसरे फेरे घड़ी और तीसरे फेरे बाइसिकिल मिली थी। (पश्चिम) ९. दे० ‘फेर’।
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फेरा-फेरी  : स्त्री० [हिं० फेरना] १. बार-बार इधर-उधर फेरने की क्रिया या भाव। २. दे० ‘हेरा-फेर’। क्रि० वि०—१. बारी-बारी से। २. रह-रहकर।
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फेरि  : अव्य० [हिं० फिर] फिर (पुनः)। पद—फेरि-फेरि=फिर-फिर। बार-बार।
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फेरी  : स्त्री० [हिं० फेरना] १. देवी-देवता आदि की की जानेवाली परिक्रमा। प्रदक्षिणा। २. विवाह के समय वर और वधू की वह प्रदक्षिणा जो अग्नि के चारों ओर की जाती है। भाँवर। क्रि० प्र०—डालना।—पड़ना। ३. भिक्षुओं का भिक्षा के उद्देश्य से गली-मुहल्ले का लगाया जानेवाला चक्कर। क्रि० प्र०—देना।—लगाना।—लेना। ४. छोटे व्यापारी द्वारा गलियों, गाँवों आदि में फुटकर ग्राहकों के हाथ सामान बेचने के उद्देश्य से लगाया जानेवाला चक्कर। पद—फेरीवाला। (दे०) ५. बार-बार कहीं आते-जाते रहना। ६. एक तरह की चरखी जिससे रस्सी पर ऐंठन डाली जाती है। ७. फेर। ८. फेरा।
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फेरीदार  : पुं० [हिं० फेरी+फा० दार] [भाव० फेरीदारी] वह जो किसी दुकानदार या महाजन की ओर से घूम-घूमकर कर्जदारों से पावना वसूल करने का काम करता हो।
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फेरीदारी  : स्त्री० [हिं० फेरीदार] फेरीदार का काम, पद या भाव।
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फेरीवाला  : पुं० [हिं० फेरी+वाला] वह छोटा व्यापारी जो गली-गली या गाँव-गाँव मे घूम-घूमकर फुटकर ग्राहकों के हाथ सौदा बेचता हो।
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फेरूआ  : पुं०=फेरवा।
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फेरूक  : पुं० [सं०] गीदड़। सियार।
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फेरौती  : स्त्री० [हिं० फेरना] टूटे-फूटे खपरैलों के स्थान पर नये खपरैले रखने की क्रिया या भाव।
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