बाँह/baanh

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बाँह  : स्त्री० [सं० बाहु] १. मनुष्य के शरीर मे कंधे से लेकर कलाई के बीच का अवयव। भुजा। मुहावरा—(किसी की) बाँह ऊँची (या बुलंद) होना=(क) वीर और साहसी होना। (ख) उदार और परोपकारी होना। (किसी की) बाँह गहना या पकड़ना=(क) किसी की सहायता करने के लिए प्रस्तुत होना० सहारा देना। (ख) किसी स्त्री को अपने आश्रय में लेकर और पत्नी बनाकर रखना। पाणिग्रहण करना। बाँह चढ़ाना=(क) कुछ करने के लिए उद्यत होना। (ख) किसी से लड़ने या हाथा-पाँही करने के लिए तैयार होना। आस्तीन चढ़ाना। २. कमीज, कुरते, कोट आदि का वह अंश जिसे बाँह ढकी रहती है। ३. एक प्रकार की कसरत जो दो आदमी मिलकर करते हैं और जिसमें दोनों विशिष्ट प्रकार से एक-दूसरे की बाँहें पकड़कर बलपूर्वक स्वंय आगे बढ़ते और दूसरों को पीछे हटाते हैं। ४. भुजबल। शक्ति। मुहावरा(किसी की) बाँह की छांह लेना=किसी की शरण में जाकर उसके भुज-बल का आश्रित होना। ५. वह जो किसी का बहुत बड़ा मदद करनेवाला या सहायक हो। पद—बाँह-बोल=आश्रय या सहायता देने रक्षा करने आदि के संबंध में दिया जानेवाला वचन। उदाहरण—लाज बाँह बोल की नेवाजे की साँभर सार साहेब न राम सों, बलैया लीजै भील की।—तुलसी। मुहावरा—बाँह टूटना=बहुत बड़े सहायक का न रह जाना। जैसे—भाई के मरने से उसकी बाँह टूट गयी। ६. सहायता या सहारे का आसरा। भरोसा। मुहावरा—(किसी को) बाँह देना=सहायता या सहारा देना। मदद करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
बाँहड़ली  : स्त्री०=दे० बाँह। उदाहरण—राम मोरी बाँहड़ली जी गहा।—मीराँ।
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बाँहबोल  : पुं० [हिं० बाँह+बोल=वचन] बाँह पकड़ने अर्थात् रक्षा करने या सहायता देने का वचन।
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बाँहाँ जोड़ी  : क्रि० वि० [हिं० बाँह+जोड़ना] किसी के कंधे के साथ अपना कंधा मिलाते हुए। साथ-साथ। उदाहरण—सूरदास दोउ बाँहाँ जोरी राजत स्यामा स्याम।—सूर। स्त्री० कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने या बैठने की मुद्रा या स्थिति।
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बाँही  : स्त्री०=बाँह।
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