भरंत/bharant

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भरत  : पुं० [सं०√भृ+अतच्] १. दुष्यंत् का शकुंतला के गर्भ से उत्पन्न पुत्र जिसके नाम के आधार पर इस देश का नाम भारत पड़ा था। २. राम के सौतेले भाई जो कैकेयी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। ३. नाट्यशास्त्र के एक प्रधान आचार्य। ४. अभिनेता। ५. दे० ‘जड़ भरत’। ६. जैनों के अनुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र का नाम। पुं० [सं० भरद्वाज] १. भरने की क्रिया या भाव। २. वह चीज जो किसी दूसरी चीज में भरी जाय। ३. किसी आधान के अन्दर का वह अवकाश जिसमें चीजें भरी जाती है। ४. कसीदे आदि के कामों में वह रचना जो बीच का खाली स्थान भरने के लिए की जाती है। ५. मालगुजारी या लगान। (पश्चिम)। पुं० [देश०] १. काँस नामक धातु। कसकुट। २. उक्त धातु के बरतन बनानेवाला। ठठेरा। ३. भरी हुई चीज। भराव।
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भरत-खंड  : पुं० [सं० ष० त०] राजा भरत के किए हुए पृथ्वी के नौ खंडों में से एक खंड। भारतवर्ष। हिन्दुस्तान। भारतवर्ष के दक्षिण का कुमारिका खंड।
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भरत-पुत्रक  : पुं० [सं० ष० त०] अभिनेता। नट।
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भरत-भूमि  : स्त्री० [सं० ष० त०] भारतवर्ष।
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भरत-वाक्य  : पुं० [सं० ष० त०] संस्कृत नाटकों के अंत में वह पद्य जिसमें नाट्यशास्त्र के जन्मदाता भरतमुनि की स्तुति की जाती है।
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भरत-शास्त्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] नाट्यशास्त्र।
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भरतज्ञ  : वि० [सं० भरत√ज्ञा (जानना)+क] नाट्यशास्त्र का ज्ञाता।
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भरतरी  : स्त्री० [सं० भर्त्तृ] पृथ्वी (डिं०)। पुं० =भर्त्तृहरि।
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भरतवर्ष  : पुं० =भारतवर्ष।
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भरता  : पुं० [देश०] १. कुछ विशिष्ट तरकारियों को आग पर भूनकर तदुपरान्त उनके गूदे को छौंक कर बनाया जानेवाला सालन। चोखा। जैसे—बैंगन का भरता,आलू का भरता। २. लाक्षणिक अर्थ में,किसी चीज का मसला हुआ रूप। पुं० =भर्त्ता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरतार  : पुं० [सं० भर्त्ता] १. स्त्री का पति। खसम। २. मालिक। स्वामी।
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भरतिया  : वि० [हं० भरत (काँसा)+इया (प्रत्यय)] भरत अर्थात् काँसे का बना हुआ। पुं० भरत के बरतन आदि बनानेवाला कसेरा। ठठेरा। भरत।
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भरती  : स्त्री० [हिं० भरना] १. किसी चीज में कोई दूसरी चीज भरने की क्रिया,या भाव। भराई। पद—भरती का=जो अनावश्यक रूप से यों ही स्थान-पूर्ति मात्र के विचार से रखा या सम्मिलित किया गया हो। जैसे—इस पुस्तकालय में बहुत सी पुस्तकें तो यों ही भरती की जान पड़ती है। २. नक्काशी, चित्रकारी, कसीदे आदि के बीच का स्थान इस प्रकार भरना जिसमें उसका सौन्दर्य बढ़ जाय। जैसे—कसीदे के बूटों में की भरती, नैचे में की भरती। ३. किसी दल वर्ग समाज आदि में कार्यकर्ता सदस्य आदि के रूप में प्रविष्ट या सम्मिलित किये जाने की क्रिया या भाव। जैसे—विद्यालय में विद्यार्थी की या सेना में रंगरूट की होनेवाली भरती। ४. वह जहाज या नाव जिसमें माल लादा जाता हो। (लश०) ५. जहाज या नाव में उक्त प्रकार से भरा हुआ माल (लश०) ६. जहाज या नाव पर माल लादने की क्रिया। (लश०) ७. समुद्र में पानी का चड़ाव। ज्वार। (लश०) ८. नदी की बाढ़। (लश०) स्त्री० [देश०] १. एक प्रकार की घास जो पशुओं के चारे के काम में आती है। २. साँवाँ नामक कदन।
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भरतोद्वता  : स्त्री० [सं० त० त०] केशव के अनुसार एक प्रकार का छंद।
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भरत्थ  : पुं० =भरत।
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