शब्द का अर्थ
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भाँड़ :
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पुं० [सं० भाँड़, प्रा० भाँड़ा] १. बरतन। भाँड़ा। २. घी, तेल, आदि रखने का कुप्पा। ३. कोई उपकरण या औजार। ४. वाद्ययंत्र। बाजा। ५. खरीदा या बेंचा जानेवाला माल। ६. नदी का पेट। ७. गर्दभांड़ वृक्ष। पुं० [सं० भंड] १. एक जाति जिसके पुरूषों का पेशा नाटक आदि खेलना, गाना-बजाना, हास्यपूर्ण स्वाँग भरना, नकलें उतारना आदि है। २. वह व्यक्ति जो बहुत अधिक तथा प्रायः निम्न कोटि के परिहास से लोगों को हँसाता रहता हो। मसखरा। विदूषक। ३. बोल-चाल में ऐसा व्यक्ति जिसके पेट में बात न पचती हो और जो कोई बात सुन लेने पर सब जगह कहता फिरता हो। ४. भाँड़ों का सा गुल गपाडा या हो-हल्ला। |
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समानार्थी शब्द-
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भांड :
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पुं० [सं०√भण् (शब्द)+ड+अण्] १. पात्र। बरतन। २. मूलधन। पूँजी। ३. भूषण। ४. गर्दभांड वृक्ष। |
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भांड-कला :
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स्त्री० [सं०] मिट्टी के बरतन आदि बनाने की कला। |
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भांड-गोपक :
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पुं० [सं० ष० त०] वह जो प्राचीन काल में बौद्ध बिहारों में बरतन आदि सुरक्षापूर्वक रखने का काम करता था। |
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भांड-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] व्यापारी। |
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भांड-शाला :
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स्त्री० [सं० ष० त०] भंडार। |
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भाँड़ना :
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अ० [सं० भंड] १. व्यर्थ इधर-उधर घूमना। मारे-मारे पिरना। २. किसी पर अनुरक्त होना। ३. किसी ओर प्रवृत्त होना। ४. किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव करना। उदाहरण—सो बोलै जा को जिउ भाँड़ै।—जायसी। स० १. किसी के अपराधों, कुकृत्यों, दोषों आदि की जगह-जगह चर्चा करके उसे बदनाम करना। २. किसी का भंडा फोड़ना या उसे नष्ट करना। बिगाड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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भाँड़पन :
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पुं० [हिं० भाँड़+पन (प्रत्यय)] १. भाँड़ होने की अवस्था या भाव। २. भाँड़ों का सा आचरण। |
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भाँडयो :
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पुं० =भाँड़पन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भाँड़ा :
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पुं० [सं० भाँण्ड] खाने-पीने की चीजें आदि रखने का बरतन। बासन। पात्र। (पश्चिम)। मुहावरा—भाँड़े भरना=पश्चाताप करना। पछताना। उदाहरण—रिसनि आगे कहि जो आवनि अब लै भाँड़े भरति।—सूर। पुं० =भाँड़पन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भांड़ागर :
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पुं० [सं० भांड-आगार] १. वह आगार या कोठरी जिसमे वस्तुएँ घरेलू उपयोग की वस्तुएँ रखी जाती है। २. भंडार। |
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भांडागारिक :
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पुं० [सं० भांडागार+ठन्-इक] भांडागार या भंडार का प्रधान अधिकारी। |
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भांडार :
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पुं० [सं० भांड√ऋ (गति)+अण्] १. वह कमरा या कोठरी जिसमें घरेलू उपयोग में आनेवाली तरह-तरह की बहुत-सी चीजें रखी जाती है। २. वह स्थान जहाँ बेची जानेवाली बहुत सी वस्तुएं जमा की तथा सुरक्षित रखी जाती है। (स्टाक) ३. आधार स्थान। ४. कोश। खजाना। |
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भांडार-पंजी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] वह पंजी या बही जिसमें भाँडार में रखी जानेवाली चीजों की संख्या और विवरण लिखा रहता है। (स्टाक-बुक) |
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भांडार-पाल :
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पुं० [सं० भांडार√पाल्+णिच्+अच्] १. भांडार का मुख्य अधिकारी। २. वह जिसका भांडार हो। भांडार का स्वामी। (स्टाकिस्ट) |
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भांडारी (रिन्) :
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पुं० [सं० भांडार+इनि] भांडारपाल। (दे०) |
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