शब्द का अर्थ
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भू :
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स्त्री० [सं०√भू+क्विप्] १. पृथ्वी। २. जमीन। भूमि। ३. जगह। स्थान। ४. अस्तित्व। सत्ता। ५. प्राप्ति। ६. यज्ञ का अग्नि। ७. रसातल। ८. सीता की एक सखी। स्त्री०=भू (भौंह)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भू-आगम :
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पुं० [सं० सुप्सुपा स०] १. भूमि से होनेवाली आय। २. सरकार को लगान के रूप में होनेवाली आय। (लैंड रेवेन्यू) |
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भू-आँवला :
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पुं० [सं० भूम्यामलक] एक तरह की घास। |
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भू-कदंब :
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पुं० [स० त०] एक तरह का कदंब। |
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भू-कंप :
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पुं० [ष० त०] कुछ क्षणों के लिए धरातल पर होनेवाला वह प्राकृतिक कंपन जिस के फलस्वरूप पमकान आदि हिलने लगते या गिर पड़ते जमीन फट या दब जाती और कुछ अवस्थाओं में थल के स्थान पर जल या जल के स्थान पर थल हो जाता है। भूचाल। (अर्थक्वेक) |
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भू-कर्ण :
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पुं० [ष० त०] पृथ्वी का व्यास। |
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भू-कश्यप :
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पुं० [स० त०] कृष्ण के पिता वसुदेव का एक नाम। |
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भू-काक :
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पुं० [सं० स० त०] १. एक तरह का बाज पक्षी। २. क्रौंच पक्षी। ३. नीला कबूतर। |
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भू-कुष्मांडी :
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स्त्री० [सं० स० त०] भुँइकुम्हड़ा। बिदारी। |
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भू-गंधा :
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स्त्री० [सं० ब० स०,+टाप्] मुरा नामक गन्ध द्रव्य। |
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भू-गर्भ :
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पुं० [सं० ष० त०] १. पृथ्वी का नीचेवाला या भीतरी भाग। २. विष्णु। ३. संस्कृत के भवभूति कवि का एक नाम। |
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भू-गर्भग्रह :
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पुं० [सं० मध्य० स०] तल-घर। तहखाना। |
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भू-गर्भविद्या :
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स्त्री० [ष० त०] दे० ‘भूशास्त्र’। |
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भू-गर्भशास्त्र :
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पुं० [ष० त०] भू-शास्त्र। (दे०) |
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भू-चित्रावली :
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स्त्री० [सं० ष० त०] दे० ‘मान-चित्रावली’। |
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भू-छाया :
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स्त्री० दे० ‘प्रच्छाया’। |
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भू-तत्त्व-विज्ञान :
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पुं० [ष० त०] भूशास्त्र। |
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भू-तत्त्व-विद्या :
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स्त्री० [ष० त०]=भू-शास्त्र। |
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भू-दान :
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पुं० [सं० ष० त०] दान रूप में भूमि देना। |
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भू-दारक :
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पुं० [सं० ष० त०] शूर। वीर। |
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भू-दृश्य :
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पुं० [सं० ष० त०] १. किसी स्थान से दिखाई पड़नेवाला कोई भूखंड। २. पृथ्वी का कोई दर्शनीय खंड या भाग। ३. उक्त का अंकित चित्र। (लैंड स्केप; उक्त सभी अर्थों में) |
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भू-देव :
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पुं० [सं० ष० त०] ब्राह्मण। |
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भू-धृति :
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स्त्री० [ष० त०] १. लोक-व्यवहार में वह स्थिति जिसमें कोई व्यक्ति कुछ धन देकर किसी दूसरे की भूमि कुछ समय के लिए अपने अधिकार में कर लेता और उसका उपभोग करके लाभ उठाता है। (लैंड टेन्योर) |
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भू-नेता (तृ) :
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पुं० [स० ष० त०] राजा। |
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भू-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] १. राजा। २. शिव। ३. इन्द्र। ४. वटुक भैरव। ५. संगीत में एक प्रकार का राग जो मेघ राग का पुत्र कहा गया है। |
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भू-पतित :
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भू० कृ० [सं० स० त०] (घायल होकर या टूट-फूट कर पृथ्वी पर गिरा या पड़ा हुआ। |
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भू-पद :
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पुं० [सं० ब० स०] वृक्ष। पेड़। |
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भू-परिमाप :
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स्त्री० [ष० त०] भूमि अथवा उसके किसी खण्ड आदि की होनेवाली नाप-जोख। (लैंड सर्वे) |
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भू-पृष्ठ :
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वि० [सं० ब० स०] जिसका नीचेवाला भाग या पीठ समतल भूमि पर हो। ‘मेरु पृष्ठ’ का विपर्याय। जैसे—भू-पृष्ठ यंत्र। (तात्रिकों का) |
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भू-प्रकंप :
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पुं० [सं० ष० त०] भूकंप। |
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भू-बदरी :
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पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का छोटा बेर। |
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भू-भर्ता (तृ) :
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पुं० [सं० ष० त०] राजा। |
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भू-भाग :
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पुं० [सं० स० त०] केंचुआ। |
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भू-भार :
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पुं० [सं० स० त०] धरती पर होनेवाले पाप का भार। |
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भू-मंडल :
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पुं० [सं० ष० त०] धरती। पृथ्वी। |
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भू-मध्य :
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पुं० [सं० ष० त०] चारों ओर से पृथ्वी से घिरा हुआ। |
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भू-मध्यरेखा :
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स्त्री० [सं०] भूगोल में, वह कल्पित रेखा जो दोनों ध्रुवों से बराबर दूरी पर है और पृथ्वी को दो भागों में विभाजित करती है। (ईक्वेटर) |
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भू-मापन :
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पुं० [सं० ष० त०] किसी देश, राजा, प्रदेश, खेत आदि की नाप-जोख करना। (सर्वे) |
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भू-मिति :
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स्त्री० [सं०] १. जमीन नापने की क्रिया। २. किसी देश, प्रदेश या भूखंड के रूप, सीमा, स्थिति आदि का चित्र या लेख तैयार करने के लिए ज्यामिति के सिद्धांतों के अनुसार कोणों, रेखाओं आदि का विचार करते हुए नाप-जोख करना। (सर्वे) जैसे—भारत सरकार का भू-मिति विभाग। |
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भू-युक्ता :
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स्त्री० [सं० तृ० त०] भूमि। खर्जुरी। भुई खजूर। |
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भू-राजस्व :
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पुं० [ष० त०] राज्य या शासन को भूमि में से होनेवाली आय। (लैंड रेविन्यू) |
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भू-लग्ना :
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स्त्री० [सं० स० त०] शंखपुष्पी। |
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भू-लोक :
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पुं० [सं० मध्य० स०] मर्त्य-लोक। भूतल। संसार। जगत। |
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भू-लोटन :
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वि० [हिं० भू+लोटना] पृथ्वी पर लेटनेवाला। |
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भू-वल्लभ :
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पुं० [सं० ष० त०] राजा। |
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भू-विज्ञान :
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पुं० [सं० ष० त०] वह विज्ञान जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि पृथ्वी की मिट्टी और पत्थर की तहें किस प्रकार और कब कब बनती रही हैं; और आरंभ से कब तक किस प्रकार विकसित हुई हैं; तथा किस प्रकार की मिट्टी तथा चट्टानों के नीचे किस प्रकार के खनिज पदार्थ दबे रहते हैं। भूगर्भ-शास्त्र। भौमिकी। (जियालोजी) |
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भू-विद्या :
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स्त्री०=भू-विज्ञान। |
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भू-शय्या :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. जमीन पर सोना। २. शयन करने की भूमि। |
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भू-शर्करा :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कंद। |
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भू-शास्त्र :
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पुं०=भू-विज्ञान। |
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भू-शुद्धि :
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स्त्री० [ष० त०] लीप-पोत या धोकर की जानेवाली भूमि की शुद्धि या सफाई। |
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भू-शुल्क :
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पुं० [सं०] भू-संपत्ति पर लगनेवाला कर। (एस्टेट) ड्यूटी) |
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भू-संपत्ति :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] जमीन के रूप में होनेवाली संपत्ति (खेत, जमींदारी आदि)। |
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भू-संस्कार :
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पुं० [सं० ष० त०] यज्ञ करने से पहले भूमि को परिष्कृत करने, नापने, रेखाएँ खींचने आदि के कार्य। |
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भू-सुत :
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वि० [सं० ष० त०] जो पृथ्वी से उत्पन्न हुआ हो। पुं० १. मंगल ग्रह। २. पेड़-पौधे, वृक्ष और वनस्पतियाँ। ३. नरकासुर का एक नाम। |
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भू-सुता :
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स्त्री० [सं० ष० त०] सीता। |
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भू-सुर :
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पुं० [सं० स० त०] पृथ्वी के देवता ब्राह्मण। |
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भू-स्खलन :
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पुं० [सं०] चट्टानों, पहाड़ों आदि के ढालुएँ पार्श्व पर से मिट्टी और पत्थर के बड़े-बड़े ढेरों का खिसककर नीचे आना या गिरना। (लैंडस्लिप) |
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भू-स्फोट :
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पुं० [ष० त०] कुकुरमुत्ता। |
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भू-स्वर्ग :
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पुं० [सं० स० त०] सुमेरु पर्वत। |
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भू-स्वामी (मिन्) :
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पुं० [ष० त०] जमीन का मालिक। जमींदार। |
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भूआ :
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पुं० [हिं० घूआ] [स्त्री० अल्पा० भूई] रूई के समान हलकी और मुलायम वस्तु का बहुत छोटा। घूआ। जैसे—सेमर का भूआ। स्त्री०=बूआ (पिता की बहन)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूई :
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स्त्री० [हिं० भूआ का स्त्री० अल्पा०] पूनी। |
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भूक :
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स्त्री०=भूख। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूकंद :
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पुं० [ष० त०] जमीकंद। सूरन। |
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भूँकना :
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अ० [अनु०] १. कुत्तों का भूँ-भूँ या भौं-भौं शब्द करना। २. झूठ-मूठ या व्यर्थ में (किसी के पीछे पड़कर उसके संबंध में) बुरा-भला बकते फिरना। |
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भूकना :
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अ० दे० ‘भूँकना’। |
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भूकंप-विज्ञान :
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पुं० [ष० त०] आधुनिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें भूकंपों के कारणों तथा गतिविधि, वेग, स्वरूप आदि का विवेचन होता है। (सीस्मोलाजी) |
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भूकंपमापी :
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पुं०=भूकंप लेखी। |
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भूकंपलेख :
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पुं० [सं०] वह अंकन या लेख जो भूकंप लेखी यंत्र से भूकंपों की गतिविधि, वेग, व्यापकता आदि के संबंध में प्रस्तुत होता है। (सीस्मोग्राम) |
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भूकंपलेखी :
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पुं० [सं० भूकंप-लेखिन्] एक प्रकार का यंत्र जो जमीन के नीचे रहता है, और जिससे यह जाना जाता है कि भूकंप कहाँ और किस ओर से आया और कितने समय तक रहा और उसकी तीव्रता या वेग कितना है। (सीस्मोग्राफ) |
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भूका :
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वि०=भूखा। |
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भूकाना :
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स०=भुंकाना। |
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भूकेश :
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पुं० [ष० त०] १. बरगद का पेड़। वट। वृक्ष। २. सेवार। |
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भूकेशा :
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स्त्री० [सं० ब० स०,+ङीष्] राक्षसी। |
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भूँख :
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स्त्री०=भूख। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूख :
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स्त्री० [सं० बुभुक्षा] पेट खाली होने पर अन्न आगि भक्षण करने की तीव्र इच्छा। मुहा०—भूख मरना=(क) ऐसी शारीरिक स्थिति उत्पन्न होना जिसमें पूरी भूख न लगती हो और फलतः उचित मात्रा में भोजन किया जा सकता हो। (ख) इच्छा न रहना। भूख लगना=भोजन करने की आवश्यकता प्रतीत होना। कुछ खाने की जी चाहना। भूखों मरना=(क) भोजन के अभाव में भूख से व्याकुल होकर मरना। (ख) भोजन के लिए मारे मारे फिरना। २. कोई चीज पाने या लेने की आवश्यकता और इच्छा। (व्यापारी) जैसे—जितनी भूख होगी, उतना माल खरीद लेंगे। ३. अवकाश। गुंजाइश। समाई। ४. कोई चीज प्राप्त करने की उत्कट इच्छा। उदा०—मेरे मन में स्त्री की भूख जाग उठती थी।—अमृतलाल नागर। |
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भूखंड :
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पुं० [सं० ष० त०] १. भूमि का कोई टुकड़ा। २. पृथ्वी का कोई खंड या विभाग। (ट्रैक्ट) |
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भूखण, भूखन :
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पुं०=भूषण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूखना :
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स० [सं० भूषण] भूषित करना। सुसज्जित करना। सजाना। अ० भूषित होना। सजना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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भूखर :
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स्त्री० [हिं० भूख] १. भूख। क्षुधा। २. इच्छा। कामना। |
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भूखरी :
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स्त्री० [मध्य० स०] छोटी खजूर। |
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भूँखा :
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वि०=भूखा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूखा :
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वि० [हिं० भूख] १. जिसे भूख लगी हो। २. उत्कट इच्छुक या याचक। जैसे—प्यार का भूखा। ३. दरिद्र। |
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समानार्थी शब्द-
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भूखा-नंगा :
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वि० [हिं०] अन्न-वस्त्र के कष्ट से पीड़ित और दरिद्र। |
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भूखा-प्यासा :
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वि० [हिं०] जिसे भूख तथा प्यास लगी हो। क्षुधित-तृषित। |
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समानार्थी शब्द-
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भूँगड़ा :
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पुं० [ङिं० भूनना] भूना हुआ चना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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भूगोल :
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पुं० [सं० ष० त०] १. पृथ्वी। २. वह शास्त्र जिसमें पृथ्वी तल के ऊपरी स्वरूप, प्राकृतिक या विभागों जंगलों, नदियों, पहाड़ों आदि कृत्रिम या मानवी राजनीतिक विभागों (देश, नगर, गाँव आदि) वातावरणिक विभागों (उष्ण कटिबंध, शीत कटिबंध) तथा उद्योग-धंधों, ऋतुओं, निवासियों तथा इसी प्रकार की और बातों का विचार होता है। (जियॉग्रैफ़ी) |
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समानार्थी शब्द-
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भूगोलक :
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पुं० [सं० भूगोल+कन्] भूमंडल। |
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समानार्थी शब्द-
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भूचक्र :
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पुं० [सं० ष० त०] १. पृथ्वी की परिधि। २. क्रान्ति वृत्त। ३. विषुवत् रेखा। |
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भूचर :
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वि० [सं० भू√चर् (जाना)+ट] स्थलचर। पुं० १. स्थलचर प्राणी। शिव। ३. दीमक। ४. वह सिद्धि जिससे मनुष्य के लिए सब कुछ गम्य, प्रत्यक्ष तथा प्राप्य होता है। (तंत्र) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूचरी :
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स्त्री० [सं० भूचर+ङीष्] योग साधन में समाधि की एक मुद्रा जिसके द्वारा प्राण और अपान वायु दोनों एकत्र हो जाती हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूँचाल :
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पुं०=भूकंप। (पश्चिम) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूचाल :
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पुं० [सं० भू+हिं० चाल=चलना] भूकंप। (देखें)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूँज :
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पुं०=भड़भूँजा। उदा०—करम बिहून ए दूनौ, कोड रे धोबि भूकोक भूँजा—जायसी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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भूजंतु :
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पुं० [सं० ष० त०] १. हाथी। २. एक तरह का घोंघा। ३. सीसा नामक धातु। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूँजना :
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स० १.=भूनना। २.=भोगना। |
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समानार्थी शब्द-
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भूजंबु :
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पुं० [सं० ष० त०] १. गेहूँ। २. बन जामुन। |
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समानार्थी शब्द-
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भूँजा :
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पुं०=भड़-भूँजा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूँजा :
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पुं० [हिं० भूनना] १. भूना हुआ अन्न। चबेना। २. अन्न भूँजनेवाला व्यक्ति। भड़भूँजा। ३. अन्न भूँजनेवालों की जाति। |
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समानार्थी शब्द-
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भूजा :
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स्त्री० [सं० भू√जन् (उत्पत्ति)+ड+टाप्] सीता। उदा० आर्द्र नयन भूजा के तत्त्क्षण आर्तों का दुख किया निवारण।—पंत। पुं०=भूँजा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूजात :
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पुं० [सं० पं० त०] वृक्ष। पेड़। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूजी :
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स्त्री०=भुजिया। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूटान :
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पुं० [सं० भोटँग] नेपाल के पूर्व तथा आसाम के उत्तर में स्थित एक स्वतंत्र देश। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूटानी :
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वि० [हिं० भूटान+ई (प्रत्य०)] भूटान देश का। भूटान-संबधी। पुं० १. भूटान देश का निवासी। २. भूटान देश का घोड़ा। स्त्री० भूटान देश की बोली। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूटिया बादाम :
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पुं० [हिं० भूटान+फा० बादाम] एक प्रकार का मँझोला पहाड़ी वृक्ष जिसे कपासी भी कहते हैं। इसका फल खाया जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूँड़ :
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स्त्री०=भूड़ (बलुई भूमि या मिट्टी)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूड़ :
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स्त्री० [देश०] १. वह भूमि जिसमें बालू मिला हुआ हो। बलुई भूमि। २. कुएँ का भीतरी स्रोत। झिर। सोत। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूँडरी :
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स्त्री० [सं० भू] मध्य युग में, नाउ, बारी आदि को जोतने-बोने के लिए जमींदारी से मिलनेवाली ऐसी भूमि जिसपर उन्हें लगान नहीं देना पड़ता था। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूँड़ा :
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वि०=भोंडा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूड़िया :
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पुं० [हिं० भूँड़री=माफी जमीन] ऐसा कृषक जो दूसरों से हल-बैल माँगकर खेती करता हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूँडोल :
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पुं०=भूकंप। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूडोल :
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पुं० [सं० भू+हिं० डोलना] भूकंप। (देखें) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूण :
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पुं० [सं० भ्रमण] १. नदी, समुद्र आदि की यात्रा। जल-यात्रा। २. जल-विहार। (डिं०) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूत :
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वि० [सं०√भू (होना)+क्त] १. अस्तित्व में आ चुका या बन चुका हो। बना हुआ। २. जो घटना आदि के रूप में घटित हो चुका हो। ३. जो किसी विशिष्ट रूप को प्राप्त हो चुका हो। जैसे—अन्तर्गत, भस्मीभूत। ४. जो समय के विचार से बीत चुका हो। पहले का। पुराना। जैसे—भूत-काल, भूत-पूर्व मंत्री। ५. जो किसी के सदृश या समान हो चुका हो। जैसे—ब्रह्मीभूत। पुं० [सं० भूत] १. शिव का एक रूप। २. चंद्रमास का कृष्णपक्ष। ३. चंद्रमास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी। ४. देवताओं के एक पुरोहित। ५. पुत्र। बेट। पुं० [सं० भूत] १. वह जिसकी कोई सत्ता हो। कोई चेतन या जड़ पदार्थ। २. जीव। प्राणी। ३. दार्शनिक क्षेत्र में वे विशिष्ट मूल तत्त्व जिनसे सारी सृष्टि की रचना हुई है। द्रव्य। महाभूत। (इनकी संख्या पाँच कहीं गई है; यथा—पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश) ४. बीता हुआ काल या समय। गुजरा हुआ जमाना। ५. व्याकरण में, क्रिया के तीन कालों में से एक जो किसी घटना के पूर्व समय में समाप्त या सम्पन्न हो चुकने का सूचक होता है। जैसे—वह चला गया। यहाँ ‘चला गया’ क्रिया भूतकाल की सूचक है। ६. पुराणानुसार एक प्रकार के पिशाच या देव जो रुद्र के अनुचर हैं और जिनका मुँह नीचे की ओर लटका हुआ या ऊपर की ओर उठा हुआ माना जता है। ७. लोक-व्यवहार में किसी मृत प्राणी की आत्मा जिसके संबंध में यह माना जाता है कि छाया के रूप में और बहुत ही सूक्ष्म शरीर वाली होती है। जिन। शैतान। विशेष—इनके विषय में यह भी माना जाता है, कि इनका यह रूप तब तक बना रहता है, जब तक इनकी मुक्ति या मोक्ष नहीं हो जाता; अथवा इन्हें दूसरा जन्म नहीं प्राप्त होता है। यह भी समझा जाता है कि ये कभी कभी लोगों की दिखाई भी पड़ती हैं और अनेक प्रकार के उपद्रव भी करती हैं। यह भी कहा जाता है कि कभी-कभी ये किसी व्यक्ति के शरीर और मस्तिष्क पर अधिकार करके उसके होश-हवास बिगाड़ देती हैं, जिससे वह बकने-झकने और पागलों के से काम करने लगाता है। इसी दृष्टि से इस शब्द के साथ आना, उतरना, चढ़ना, लगना आदि क्रियाओं का भी प्रयोग होता है। पद—भूतों का पकवान या मिठाई=(क) ऐसी पदार्थ जो भ्रम-वश दिखाई तो दे पर वास्तव में जिसका काई अस्तित्व न हो। (कहते हैं कि भूत आकर ऐसी मिठाई रख जाते हैं, जो खाने या छूने पर मिठाई नहीं रह जाती, राख, मिट्टी, विष्ठा आदि हो जाती है। (ख) बिना किसी परिश्रण के या बहुत सहज में मिला हुआ धन जो शीघ्र ही नष्ट हो जाय। मुहा०—(किसी पर) भूत चढ़ना या सवार होना=(क) किसी पर भूत का आवेश होना। (ख) किसी का बहुत अधिक क्रुद्ध होकर पागलों का-सा आचरण या व्यवहार करने लगना। (किसी बात का) भूत चढ़ना या सवार होना=(किसी बात के लिए) बहुत अधिक आग्रह, तन्मयता या हठ होना। जैसे—तुम्हें तो हर बात का भूत चढ़ जाता है। (किसी काम या बात के लिए) भूत बनना=बहुत ही तन्मयता या दृढ़तापूर्वक और पागलों की तरह किसी काम के पीछे पड़ना या उसमें बुरी तरह से लगना। (किसी को) भूत लगाना=किसी पर भूत चढ़ना या सवार होना। (दे० ऊपर) ८. वह औषध, जिसके सेवन से प्रेतों और पिशाचों का उपद्रव शांत होता हो। ९. मृत शरीर। शव। लाश। १॰. सत्य। ११. कार्तिकेय। १२. योगी। १३. वृत्त। १४. लोध्र। लोध। |
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समानार्थी शब्द-
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भूत-कृत :
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पुं० [सं० भूत√कृ (करना)+क्विप्, तक्-आगम] १. देवता। २. विष्णु। |
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भूत-केश :
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पुं० [ष० त०] १. सफेद दूब। २. इंद्र-वारुणी। ३. सफेद तुलसी। ४. जटामाशी। |
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भूत-चतुर्दशी :
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स्त्री० [मध्य० स०] कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी। नरक चौदस। |
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भूत-चारी (रिन्) :
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पुं० [सं० भूत्√चर् (गति)+णिनि] महादेव। शिव। |
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भूत-चिंता :
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स्त्री० [ष० त०] भूत नामक तत्त्वों की छानबीन। |
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भूत-जटा :
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स्त्री० [ष० त०] जटामासी। |
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भूत-दया :
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स्त्री० [ष० त०] चेतन और जड़ सभी के प्रति मन में रखा जानेवाला दया-भाव। |
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भूत-द्रुम :
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पुं० [मध्य० स०] श्लेष्मांतक वृक्ष। |
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भूत-धात्री :
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स्त्री० [ष० त०] पृथ्वी। |
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भूत-धाम (न्) :
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पुं० [ष० त०] पुराणानुसार इन्द्र का एक पुत्र। |
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भूत-धारिणी :
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स्त्री० [सं० भूत√धृ (धारण करना)+णिनि,+ङीष्, उप० स०] धरती। पृथ्वी। |
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भूत-नाथ :
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पुं० [ष० त०] शिव। महादेव। |
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भूत-नायिका :
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स्त्री० [ष० त०] दुर्गा। |
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भूत-नाशन :
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पुं० [ष० त०] १. रुद्राक्ष। २. सरसों। ३. भिलावाँ। ४. हींग। |
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भूत-निचय :
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पुं० [ष० त०] देह। शरीर। |
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भूत-पक्ष :
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पुं० [मध्य० स०] कृष्ण पक्ष। अँधेरा पाख। |
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भूत-पति :
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पुं० [ष० त०] १. शिव। २. अग्नि। ३. काली तुलसी। |
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भूत-पत्री :
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स्त्री० [ब० स०,+ङीप्] काली तुलसी। |
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भूत-पाल :
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पुं० [सं० भूत्√पाल् (पालना)+णिच्+अच्] विष्णु। |
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भूत-पूर्णिमा :
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स्त्री० [ष० त०] आश्विन की पूर्णिमा। शरद् पूर्णिमा। |
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भूत-पूर्व :
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वि० [सुप्सुपा स०] १. पहलेवाला। प्राचीन। २. गत। ३. (पदाधिकारी के संबंध में) जो किसी पद पर पहले कभी रह चुका हो। जैसे—भूतपूर्व सभापति। |
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भूत-प्रकृति :
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स्त्री० [ष० त०] १. भूतों अर्थात् जीवों की उत्पत्ति। २. दे० ‘मूल-प्रकृति’। |
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भूत-प्रेत :
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पुं० [द्व० स०] भूत, पिशाच, प्रेत आदि की योनियाँ, अथवा इन योनियों से प्राप्त होनेवाली सूक्ष्म शरीरों का वर्ग। |
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भूत-बलि :
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स्त्री० [च० त० या मध्य० स०] भूतयज्ञ। (दे०) |
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भूत-भर्ता (र्तृ) :
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पुं० [ष० त०] १. भूतों का भरण-पोषण करनेवाले; शिव। २. भैरव का एक रूप। |
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भूत-भावन :
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पुं० [सं० भूत√भू (होना+णिच्+ल्यु-अन] १. ब्रह्मा। २. शिव। विष्णु। |
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भूत-भाषा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. भूत-प्रेतों की भाषा। २. पैशाची भाषा। |
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भूत-भैरव :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. भैरव का एक नाम। २. उक्त रूप की पूर्ति। ३. हरताल, गंधक आदि के योग बनाया जानेवाला रस जो ज्वर तथा वात नाशक होता है। (वैद्यक) |
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भूत-माता (तृ) :
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स्त्री० [ष० त०] गौरी। |
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भूत-मात्रा :
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स्त्री० [ष० त०] (पाँचों में से हर एक) भूत का मूल सूक्ष्म रूप। तन्मात्रा। |
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भूत-यज्ञ :
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पुं० [मध्य स०] गृहस्थ के लिए विहित पाँच यज्ञों में से एक जिसमें वह समस्त जीवों को आहुति देता है। भूतबलि। |
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भूत-योनि :
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स्त्री० [ष० त०] प्रेतयोनि। पुं० परमेश्वर। |
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भूत-राज :
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पुं० [ष० त०] शिव। |
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भूत-लक्षी :
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वि०=पूर्व-व्यापित। |
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भूत-वाद :
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पुं० [ष० त०] १. प्राचीन भारत में, एक नास्तिक दार्शनिक संप्रदाय जो पंच-भूतों को ही सृष्टि का कर्ता मानता था, ईश्वर या ब्रह्मा को नहीं। २. दे० ‘भौतिकवाद’। (मेटीरियलिज़्म) |
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भूत-वादी (दिन्) :
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वि० [सं० भूतवाद+इनि] भूत-वाद सम्बन्धी। पुं० भूत-वाद का अनुयायी। |
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भूत-वास :
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पुं० [ब० स०] १. महादेव। शिव। २. विष्णु। ३. बहेड़े का पेड़। |
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भूत-वाहन :
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वि० [ब० स०] भूतों पर सवारी करनेवाला। पुं० महादेव। शिव। |
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भूत-विक्रिया :
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स्त्री० [ष० त०] १. भूत-प्रेतों के कारण होनेवाली बाधा। प्रेत-बाधा। २. [ब० स०] अपस्मार रोग। |
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भूत-विद्या :
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स्त्री० [मध्य० स०] आयुर्वेद का वह अंग जिसमें देवता, असुर, गंधर्व, यक्ष, पिशाच, नाग, ग्रह, उपग्रह आदि के प्रभाव से उत्पन्न होनेवाले मानसिक रोगों का निदान और विवेचन होता है। इन्हें दूर करने के लिए बहुधा ग्रह-शांति, पूजा, जप, होम, दान, रत्न पहनने और औषध आदि के सेवन का विधान होता है। |
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भूत-विनायक :
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पुं० [ष० त०] भूतों अर्थात् जीवों के नायक; शिव। |
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भूत-शुद्धि :
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स्त्री० [ष० त०] पूजन आदि से पहले मंत्रों द्वारा की जानेवाली शरीर की शुद्धि। (तांत्रिक) |
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भूत-संचार :
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पुं० [ष० त०] भूतोन्माद नामक रोग। |
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भूत-संचारी (रिन्) :
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पुं० [सं० भूत√चर् (चलना)+णिनि] दावानल। |
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भूत-संप्लव :
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पुं० [ष० त०] प्रलय। |
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भूत-सिद्ध :
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पुं० [ब० स०] वह जिसने किसी भूत-प्रेत को सिद्ध किया हो। (तंत्र) |
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भूत-हत्या :
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स्त्री० [ष० त०] जीवों या प्राणियों का बध या हत्या। |
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भूत-हंत्री :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. नीली दूब। २. बाँझ ककोड़ी। |
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भूत-हन :
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पुं० [सं० भूत√हन् (मारना)+क्विप्] भोजपत्र का वृक्ष। |
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भूत-हर :
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पुं० [ष० त०] गुग्गल। |
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भूतक :
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पुं० [सं० भूत+कन्] पुराणानुसार सुमेरु पर के २१ लोकों में से एक लोक। |
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भूतकर्ता (तृ) :
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पुं० [ष० त०] ब्रह्मा। स्रष्टा। |
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भूतकला :
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स्त्री० [ष० त०] एक प्रकार की शक्ति जो पंच भूतों को उत्पन्न करनेवाली मानी गई है। |
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भूतकाल :
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पुं० [कर्म० स०] बीता हुआ समय। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतकालिक :
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वि० [सं० भूतकाल+ठन्-इक] भूतकाल-संबंधी। जो बीते हए समय में हुआ हो या उनसे संबंध रखता हो। जैसे—भूतकालिक कृदंत। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतकालिक कृदन्त :
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पुं० [कर्म० स०] क्रिया से बना हुआ भूत काल का सूचक विशेषण रूप। जैसे—कृत, गत, परिष्कृत आदि। |
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भूतकृदंत :
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पुं० [सं०] व्याकरण में क्रिया का वह रूप जिससे यह सूचित होता है कि क्रिया भूत काल में पूरी या समाप्त हो चुकी थी। जैसे—चलन’ क्रिया का भूतकृदंत ‘चला’ और ‘बैठना’ क्रिया का भूतकृदंत ‘बैठी’ है। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतक्रांति :
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स्त्री० [ष० त०] किसी व्यक्ति पर होनेवाला भूतों का आवेश। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतखाना :
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पुं० [हिं० भूत+फा० खाना=घर] बहुत मैला कुचैला या ऐसा अँधेरा जो भूतों के रहने का स्थान जान पड़े। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतगण :
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पुं० [ष० त०] शिव के अनुचरों का वर्ग। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतगंधा :
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स्त्री० [ब० स०,+टाप्] मुरा नामक गंध द्रव्य। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतग्राम :
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पुं० [ष० त०] देह। शरीर। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतघ्न :
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पुं० [सं० भूत√हन् (मारना)+टक्, कुत्व] १. लहसुन। २. भोजपत्र। ३. ऊँट। वि० भूतों का नाश करनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतघ्नी :
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स्त्री० [सं० भूतघ्न+ङीप्] तुलसी। |
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भूतनी :
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स्त्री० [हिं० भूत+नी] भूत योनि की स्त्री। २. डाकिनी। ३. लाक्षणिक अर्थ में काले रंग और प्रायः क्रोधी तथा लड़ाके स्वभाववाली स्त्री। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतल :
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पुं० [ष० त०] १. पृथ्वी का ऊपरी तल। धरातल। भू-पृष्ठ। २. जगत। संसार। ३. पाताल। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतहा :
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पुं० [सं० भूत√हन् (मारना)+क्विप्] भोजपत्र का वृक्ष। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतहारी (रिन्) :
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पुं० [सं० भूत√ह (हरण करना)+णिनि] १. लाल कनेर। २. देवदारु। |
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समानार्थी शब्द-
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भूता :
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स्त्री० [सं० भूत+टाप्] कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतांकुश :
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पुं० [भूत-अंकुश, ष० त०] १. कश्यप ऋषि। २. गावजुबाँ नामक वनस्पति। २. वैद्यक एक प्रकार का रसौषध जो भूतोन्माद के लिए उपयोगी कहा गया है। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतागति :
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स्त्री० [हिं० भूत+गति] भूत-प्रेत की लीला की तरह का कोई अद्भुत व्यापार। विलक्षण कार्य या बात। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतांतक :
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पुं० [भूत-अंतक, ष० त०] १. यम। २. रुद्र। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतात्मा (त्मन्) :
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पुं० [भूत-आत्मन्, ष० त०] १. शरीर। २. परमेश्वर। ३. शिव। ४. विष्णु। ५. जीवात्मा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतादि :
|
पुं० [भूत-आदि, ष० त०] १. परमेश्वर। २. सांख्य में, अहंकार, तत्त्व, जिससे पंचभूतों की उत्पत्ति मानी गई है। |
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समानार्थी शब्द-
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भूताधिपति :
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पुं० [भूत-अधिपति, ष० त०] शिव। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतायन :
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पुं० [भूत-अयन, ष० त०] नारायण। परमेश्वर। |
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समानार्थी शब्द-
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भूतारि :
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पुं० [भूत-अरि, ष० त०] हींग। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतार्त :
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वि० [भूत-आर्त, तृ० त०] भूतों या प्रेतों की बाधा से पीड़ित। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतार्थ :
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वि० [भूत-अर्थ, ब० स०] जो वस्तुतः घटित हुआ हो। यथार्थ में होनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतावास :
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पुं० [भूत-आवास, ष० त०] १. पंचभूतों से बना हुआ शरीर। २. जीवों का वासस्थान। जगत। दुनिया। संसार। ३. विष्णु। ४. बहेड़ा। |
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समानार्थी शब्द-
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भूताविष्ट :
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वि० [तृ० त०] भूत-प्रेत से ग्रस्त। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतावेश :
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पुं० [भूत-आवेश, ष० त०] किसी को भूत लगना। प्रेतबाधा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूति :
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स्त्री० [सं०√भू (होना+कतिन् या क्तिच्] १. अस्तित्व में आने या घटित होने की क्रिया, दशा या भाव। प्रस्तुत या वर्तमान होना। २. उत्पत्ति। जन्म। ३. कल्याण या वैभव से युक्त वैभव और सुख। ४. सौभाग्य। ५. धन-सम्पत्ति। गौरव। महिमा। ७. अधिकता। बहुलता। ८. बढ़ती। वृद्धि। ९. अणिमा, महिमा आदि आठ प्रकार की सिद्धियाँ। १॰. रंगों आदि से हाथी के मस्तक पर बनाये जानेवाले बेल-बूटे। ११. लक्ष्मी। १२. मुक्ति। मोक्ष। १३. वृद्धि नाम की ओषधि। १४. भूतृण। १५. सत्ता। १६. पकाया हुआ मांस। १७. रूसा नामक घास। पुं० १. शिव का एक रूप। २. विष्णु। ३. बृहस्पति। ४. पितरों का एक गण या वर्ग। राजा का मंत्री। वि० मांगलिक और शुभ। |
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समानार्थी शब्द-
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भूति-भूषण :
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पुं० [ब० स०] शिव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतिकाम :
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पुं० [सं० भूति√कम् (इच्छा)+अण्] १. राजा का मंत्री। २. बृहस्पति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतिकृत :
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पुं० [सं० भूति√कृ (करना)+क्विप्, तुक्] शिव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतिद :
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पुं० [सं० भूति√दा (देना)+क] शिव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतिदा :
|
स्त्री० [सं० भूतिद+टाप्] गंगा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतिनि :
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स्त्री०=भूतनी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतिनिधान :
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पुं० [ष० त०] धनिष्ठा नक्षत्र। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतिनी :
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स्त्री०=भूतनी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूती :
|
पुं० [हिं० भूत+ई (प्रत्य०)] भूत-प्रेतों को पूजनेवाला अथवा उन्हें सिद्ध करनेवाला व्यक्ति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतीवानी :
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स्त्री० [सं० विभूति] भस्म। राख। (डिं०) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतृण :
|
पुं० [ष० त०] १. रूसा नाम की घास। रोहिष। २. कपूर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतेज्य :
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पुं० [सं० मध्य० स०] भूती (दे०) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतेज्या :
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स्त्री० [सं० भूत-इज्या, ष० त०] भूत-प्रेतों की पूजा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतेल :
|
पुं० [सं०] पृथ्वी के कुछ विशिष्ट भू-भागों की चट्टानों के नीचे से निकलनेवाला एक प्रकार का प्राकृतिक तैलीय और ज्वलनशील द्रव पदार्थ जो हरे रंग या काले रंग का होता है और जिसे साफ करने पर मिट्टी का तेल और कई प्रकार की चीजें निकलती हैं। (पेट्रोलियम) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतेश :
|
पुं० [सं० भूत+ईश, ष० त०] १. परमेश्वर। २. शिव। ३. कार्तिकेय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतेश्वर :
|
पुं० [सं० भूत-ईश्वर, ष० त०] १. महादेव। २. एक प्राचीन तीर्थ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूतोन्माद :
|
पुं० [सं० भूत-उन्माद, मध्य० स०] भूत, बाधा के परिणाम स्वरूप होनेवाला उन्माद। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूत्तम :
|
पुं० [सं० भू-उत्तम, स० त०] सोना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूदान-यज्ञ :
|
पुं० [सं० ष० त०] महात्मा गांधी के सर्वोदय आन्दोलन के आधार पर आचार्य विनोबा भावे का चलाया हुआ एक प्रसिद्ध आन्दोलन जिसमें भू-स्वामियों के दान रूप में भूमि प्राप्त करके ऐसे लोगों को बिना मूल्य दी जाती है जिनके पास न तो जोतने-बोने के लिए जमीन होती है और न जिनकी जीविका का कोई निश्चित तथा विशिष्ट साधन होता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूदार :
|
पुं० [सं० भू√दृ (फाड़ना)+अण्,] सूअर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूधन :
|
पुं० [ब० स०] राजा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूधर :
|
पुं० [सं० ष० त०] १. पर्वत। पहाड़। २. पृथ्वी को धारण करनेवाले शेषनाग। ३. विष्णु। ४. राजा। ५. वाराह अवतार। ६. रस आदि बनाने का एक उपकरण। (वैद्यक) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूधरेश्वर :
|
पुं० [सं० भूधर-ईश्वर, ष० त०] पर्वतों का राजा, हिमालय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूधात्री :
|
स्त्री० [सं० मध्य० स०] भुईं आँवला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूध्र :
|
पुं० [सं० भू√धृ (धरण करना)+क] पर्वत। पहाड़। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भून :
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पुं०=भ्रूण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूनना :
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स० [सं० भर्जन] १. किसी खाद्य पदार्थ को जलते हुए अंगारों पर सेंककर पकाना। जैसे—पापड़ भूनना, भुट्टा भूनना। २. गरम बालू में (या से) अन्न-कणों को पकाना। जैसे—दाने भूनना। ३. घी, तेल आदि में कोई तरकारी अच्छी तरह लाल करना। जैसे—भुरता या प्याज भुनना। ४. लाक्षणिक अर्थ में, बहुत अधिक सताना। क्रि० प्र०—डालना।—देना। ५. रासायनिक क्षेत्र में, कोई चीज इस प्रकार तपाना कि उसमें के अवांछित तत्त्व या जल-कण निकल जायँ। (रोस्टिंग) |
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भूप :
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पुं० [सं० भू√पा (रक्षा करना)+क] १. राजा। रात के पहले पहल में गाया जानेवाला आड़ेव जाति का एक राग। |
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भूपग :
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पुं० [सं० भूप√गम् (जाना)+ड] राजा। (डिं०) |
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भूपत :
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स्त्री०=भूपता। पुं०=भूपति। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूपता :
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स्त्री० [सं० भूप+तल्,+टाप्] १. राजा होने की अवस्था या भाव। २. राजा का पद। |
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भूपदी :
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स्त्री० [सं० भूपद+ङीष्] एक तरह की चमेली। |
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भूपरा :
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पुं० [सं० भूप से] सूर्य्य। (डिं०) |
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भूपाल :
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पुं० [सं० भू√पाल् (रक्षा करना)+अण्] राजा। स्त्री० झड़बेरी। |
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भूपाली :
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स्त्री० [सं० भूपाल+ङीष्] वर्षा ऋतु में रात के पहले पहर में गाई जानेवाली एक रागिनी जिसे कुछ लोग हिंडोल राग की रागिनी और कुछ मालकोश की पुत्रवधू मानते हैं। |
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भूपुत्र :
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पुं० [सं० ष० त०] १. मंगल ग्रह। २. नरकासुर नामक राक्षस। |
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भूपुत्री :
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स्त्री० [सं० भूपुत्र+ङीष्] जानकी। सीता। |
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भूपेंद्र :
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पुं० [सं० भूप-इंद्र, ष० त०] राजाओं में श्रेष्ठ, सम्राट्। |
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भूबंधी :
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स्त्री० [हिं० भू+बंधना] युद्ध का वह ढंग या प्रकार जिसमें दोनों पक्ष खुले मैदान में आमने-सामने होकर लड़ते हैं। उदा०—घाटियाँ और नदियाँ बारगी और भूबंधी दोनों प्रकार की लड़ाइयों के लिए बहुत उपयोगी हैं।—वृन्दावनलाल वर्मा। |
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भूबल :
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स्त्री०=भूभल। |
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भूभत :
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पुं० [सं० भू√भृ (धारण-पोषण)+क्विप्, तुक्] १. राजा। २. पर्वत। पहाड़। |
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भूभरि :
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स्त्री०=भूभल। |
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भूभल :
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स्त्री० [सं० भू-भुर्ज या अनु० ?] १. ऐसी राख जो कुछ गरम हो तथा जिसमें अभी कुछ चिनगारियाँ भी दबी हों। २. गरम रेत। |
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भूभा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा पर पड़नेवाली पृथ्वी की छाया। |
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भूभाग :
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पुं० [सं० ष० त०] १. भूखंड। प्रदेश। २. विशेषतः ऐसा प्रदेश जो किसी नगर या राज्य के किसी ओर हो और उसके अधिक्षेत्र में हो। (टेरिटरी) |
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भूभागीसमुद्र :
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पुं० [सं०] प्रादेशिक-समुद्र। |
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भूभुज :
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पुं० [सं० भू√भुज् (उपभोग करना)+क्विप्] राजा। |
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भूभुर्व :
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पुं० [सं ब्रह्मा] के एक मानस-पुत्र का नाम। |
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भूभौतिकी :
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स्त्री० [सं०] आधुनिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि आँधी, वर्षा के जल, नदियों और समुद्रों की लहरों आदि का पृथ्वी के भू-तल पर कैसा और क्या प्रभाव पड़ता है। (जिओफिजिक्स) |
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भूम :
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पुं० [सं०√भू+भन्] पृथ्वी। स्त्री०=भूमि। |
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भूमध्य-सागर :
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पुं० [मध्य० स०] यूरोप और एशिया के बीच अवस्थित समुद्र। |
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भूमय :
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स्त्री० [सं० भू+मयट्] सूर्य की पत्नी; छाया। |
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भूमा (मन्) :
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स्त्री० [सं० बहु+इमनिच्, भू-आदेश] १. आधिक्य। बहुलता। २. जमीन। भूमि। ३. पृथ्वी। ४. निसर्ग। प्रकृति। ५. ऐश्वर्य। ६. पर-ब्रह्म की वह उत्तरोत्तर बढ़ती हुई अनुभूति जो मन का द्वैत भाव मिटाती है। उदा०—यही भूमा का मधुमय दान।—प्रसाद। पुं० सर्व-व्यापी पर-ब्रह्मा। विराट् पुरुष। वि० बहुत अधिक। प्रचुर। |
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भूमानंद :
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पुं०=परमानंद। |
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भूमि :
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स्त्री० [सं०√भू+मि] १. यह सारी पृथ्वी जो सौर जगत् के एक ग्रह के रूप में है। (दे० ‘पृथ्वी’) २. पृथ्वी-तल के ऊपर का वह ठोस भाग जिस पर देश, नदियाँ, पर्वत आदि हैं और जिस पर हम सब लोग रहते और वनस्पतियाँ उगती हैं। जमीन। (लैंड) मुहा०—भूमि होना=पृथ्वी पर गिर पड़ना। ३. उक्त का काई ऐसा छोटा टुकड़ा जिस पर किसी का अधिकार हो और जिसमें कुछ उपज आदि होती हो। (एस्टेट) पद—भूमिधर। (दे०) ४. जगह। स्थान। जैसे—जन्म-भूमि, मातृ-भूमि। ५. ऐसी जमीन जिस पर खेतीबारी होती है। जैसे—भूमिधर। ६. कोई बड़ा देश या प्रान्त। जैसे—आर्यभूमि। ७. कोई ऐसा आधार जिसपर कोई दूसरी चीज बनी अथवा आश्रित या स्थित हो। क्षेत्र। जैसे—पृष्ठभूमि। ८. धन सम्पत्ति या वैभव। ९. मकान के ऐसे खंड जो ऊपर-नीचे के विचार से अलग-अलग होते हैं। मंजिल। १॰. कोई विशिष्ट प्रकार का ऐसा विषय जो किसी स्थिति के रूप में हो। जैसे—विश्वास भूमि, स्नेह-भूमि। ११. किसी प्रकार का विस्तार या उसकी सीमा। १२. योगाशास्त्र के अनुसार वे अवस्थाएँ जो क्रम-क्रम से योगी को प्राप्त होती हैं और जिनको पास करके वह पूर्ण योगी होता है। १३. जिह्वा। जीभ। १४. दे० ‘भूमिका’। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूमि कंदक :
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पुं० [मध्य० स०] कुकुरमुत्ता। |
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भूमि-कंप :
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पुं० [सं० ष० त०] भूकंप। भूडोल। |
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भूमि-कुष्मांड :
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पुं० [सं० मध्य० स०] गरमी के दिनों में होनेवाला कुम्हड़ा जो जमीन पर होता है। भँई-कुम्हड़ा। |
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भूमि-खर्जूरी :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार की छोटी खजूर। |
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भूमि-गत :
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वि० [द्वि० त०] १. जमीन पर गिरा या पड़ा हुआ। २. जो भूमि की सतह के नीचे हो। ३. जो जन-साधारण के सामने से हटकर कहीं छिपा हो। (अंडर-ग्राउंड) |
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भूमि-गृह :
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पुं० [सं० मध्य० स०] तहखाना। |
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भूमि-चंपक :
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पुं० [सं० मध्य० स०] १. एक प्रकार का पौधा जिसकी छाल, पत्ते तथा जड़ें औषधि के रूप में प्रयुक्त होती हैं। भुइँचंपा। २. उक्त पौधे का फूल। |
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भूमि-चल :
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पुं० [सं० ष० त०] भूकंप। |
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भूमि-जल :
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पुं० [मध्य० स०] जमीन के नीचे रहने या होनेवाला पानी। |
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भूमि-जात :
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वि० [सं० पं० त०] जो भूमि से उत्पन्न हुआ हो। भूमिज। पुं० पेड़। वृक्ष। |
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भूमि-जीवी (विन्) :
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पुं० [सं० भूमि√जीव् (जीना+णिनि, उप० स०] १. वह जिसकी जीविका का आधार भूमि हो। कृषक। २. वैश्य। |
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भूमि-तल :
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पुं० [ष० त०] पृथ्वी का ऊपरी भाग या सतह। |
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भूमि-धर :
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पुं० [सं० ष० त०] १. पर्वत। पहाड़। २. शेष-नाग। ३. आज-कल वह किसान जिसने उचित धन देकर जमीन पर खेती-बारी करने का स्थायी अधिकार प्राप्त कर लिया हो। |
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भूमि-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] राजा। |
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भूमि-पुत्र :
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पुं० [ष० त०] १. मंगल ग्रह। २. नरकासुर का एक नाम। ३. श्योनाक। सोना-पाढ़। |
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भूमि-पुत्री :
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स्त्री० [ष० त०] सीता। |
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भूमि-पुरंदर :
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पुं० [ष० त०] राजा दिलीप का एक नाम। |
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भूमि-भुक् (ज्) :
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पुं० [सं० भूमि√भुज् (उपभोग करना)+क्विप्] राजा। |
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भूमि-भोग :
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पुं० [ब० स०] वह राष्ट्र या राजा जिसके पास बहुत अधिक भूमि हो। |
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भूमि-लग्ना :
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स्त्री० [सं० त०] सफेद फूलोंवाली अपराजिता। |
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भूमि-लता :
|
स्त्री० [मध्य० स०] शंख पुष्पी। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-लवण :
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पुं० [ष० त०] शोरा। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-लाभ :
|
पुं० [ब० स०] मृत्यु। |
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भूमि-लेप :
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पुं० [ष० त०] गोबर। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-वर्द्धन :
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पुं० [ष० त०] मृत शरीर। शव। लाश। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-वल्ली :
|
स्त्री० [मध्य० स०] भुँईं आँवला। |
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भूमि-संधि :
|
स्त्री० [मध्य० स०] १. वह संधि जो परस्पर मिलकर कोई भूमि प्राप्त करने के लिए की जाय। २. शत्रु को कुछ भूमि देंकर उससे की जानेवाली सन्धि। |
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भूमि-संभवा :
|
स्त्री० [ब० स०,+टाप्] जानकी। सीता। |
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भूमि-सात् :
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वि० [सं० भूमि+सात् (प्रत्य०)] जो गिर कर जमीन के साथ मिल गया हो। जैसे—भूकंप में मकानों का भूमिसात होना। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-सुत :
|
पुं० [ष० त०] १. मंगल-ग्रह। २. नरकासुर। ३. केवाँच। कौंछ। ४. पेड़। वृक्ष। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-सुता :
|
स्त्री० [ष० त०] जानकी जी। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-सुर :
|
पुं० [ष० त०] ब्राह्मण। भूसुर। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-स्खलन :
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पुं०=भू-स्खलन। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमि-स्पर्श :
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पुं० [ब० स०] उपासना के लिए बौद्धों का एक प्रकार का आसन। वज्रासन। |
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भूमि-हार :
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पुं० [सं० भूमि+हिं० हार (प्रत्य०)] एक ब्राह्मण जाति को प्रायः उत्तर-प्रदेश और बिहार में बसती और प्रायः खेती-बारी से जीविका-निर्वाह करती है। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमिका :
|
स्त्री० [सं० भूमि√कै+क,+टाप् अथवा भूमि+कन्,+टाप्] १. जमीन। भूमि। २. जगह। स्थान। ३. मकान के वे दंड जो एक दूसरे के ऊपर नीचे होते हैं। मंजिल। ४. योग में क्रम क्रम से प्राप्त होनेवाली उन्नत स्थितियों में से प्रत्येक। भूमि। ५. किसी प्रकार की रचना। ६. कोई ऐसा आधार जिस पर कोई चीज आश्रित या स्थित हो। पृष्ठभूमि। (बैक ग्राउंड) ७. आज-कल किसी ग्रंथ के आरंभ लेखक का वह वक्तव्य जिसमें उस ग्रंथ से सम्बन्ध रखनेवाली आवश्यक तथा ज्ञातव्य बातों का उल्लेख होता है। आमुख। मुखबंध। (प्रिफ़ेस) ८. कोई महत्त्वपूर्ण बात कहने से पहले कही जानेवाली वे बातें जिनके फल-स्वरूप उस महत्त्वपूर्ण बात का उपयुक्त परिणाम या फल होता या हो सकता हो। मुहा०—(किसी काम या बात की) भूमिका बाँधना=कुछ कहने से पहले उसे प्रभावशाली बनाने के लिए कुछ और बातें कहना। जैसे—जरा सी बात के लिए इतनी भूमिका मत बाँधा करो। ९. वेदान्त के अनुसार चित्त की पाँच अवस्थाएँ, जिनके नाम ये हैं- क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र और विरुद्ध। १॰. नाटकों आदि में से किसी पात्र का अभिनय तथा कार्य। (पार्ट) जैसे—शिवा जी की भूमिका में मोहनवल्लभ ने बहुत प्रशंसनीय काम किया था। ११. मूर्तियों आदि का किया जानेवाला श्रृंगार या सजावट। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमिका-गत :
|
पुं० [सं० द्वि० त०, उप० स०] वह जिसने नाटक में अभिनय करने के लिए कोई विशिष्ट वेश-भूषा धारण की हो। |
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समानार्थी शब्द-
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भूमिज :
|
वि० [सं० भूमि√जन्+ड] भूमि से उत्पन्न। पुं० १. मंगल ग्रह। २. सोना। स्वर्ण। ३. सीमा। ४. नरकासुर राक्षस। ५. भू-कदंब। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिजंबु :
|
पुं० [सं० मध्य० स०] छोटा जामुन। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिजा :
|
स्त्री० [सं० भूमि√जन्+ड,+टाप्] जानकी। सीता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमित्व :
|
पुं० [सं० भूमि+त्व] ‘भूमि’ का धर्म या भाव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिदेव :
|
पुं० [सं० ष० त०] १. ब्राह्मण। राजा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिपाल :
|
पुं० [सं० भूमि√पाल् (पालन करना)+णिचि+अच्] राजा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिपिशाच :
|
पुं० [सं० ष० त०] ताड़ का पेड़। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिभृत् :
|
पुं० [सं० भूमि√भृ (भरण करना)+क्विप्, तुक्] राजा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिया :
|
पुं० [हिं० भूमि+इया (प्रत्य०)] १. भूमि का मूल अधिकारी और स्वामी। २. जमींदार। ३. किसी देश का प्राचीन और मूल निवासी। ४. ग्राम-देवता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिरुह :
|
पुं० [सं० भूमि√रुह् (ऊपर चढ़ना)+क] वृक्ष। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमिरुहा :
|
स्त्री० [सं० भूमि√रुह्+टाप्] दूब। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमी :
|
स्त्री० [सं० भूमि+ङीष्] भूमि। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमींद्र :
|
पुं० [भूमि-इंद्र, ष० त०] राजा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमीरुह :
|
पु० [सं० भूमी√रुह्+क] वृक्ष। पेड़। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूमीश्वर :
|
पुं० [सं० भूमि+ईश्वर, ष० त०] राजा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूम्यामलकी :
|
स्त्री० [भूमि-आमलकी, मध्य० स०] भुँई आँवला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूम्युच्च :
|
पुं० [सं० भूमि+उच्च] ज्योतिष में, किसी ग्रह की वह स्थिति जब वह अपनी कक्षा पर चलते समय पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर होता है। (एपोजी) |
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समानार्थी शब्द-
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भूय (स्) :
|
अव्य० [सं० भू√यस् (प्रयत्न)+क्विप्] पुनः। फिर। स्त्री०=भू (पृथ्वी)। |
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समानार्थी शब्द-
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भूयण :
|
स्त्री० [हिं० भूय] पृथ्वी। (डिं०) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूयशः (शस्) :
|
अव्य० [सं० भूयस्+शस् (वीप्सार्थ) स-लोप] बहुत अधिक रूप में। |
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समानार्थी शब्द-
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भूयशी दक्षिणा :
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स्त्री० [सं० व्यस्तपद] १. कोई धार्मिक या मंगल कृत्य संपन्न होने पर अन्त में ब्राह्मणों को बाँटी जानेवाली दक्षिणा। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी बड़े खरच के बाद होनेवाला कोई छोटा खरच। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूयसी :
|
वि० [सं० भूयस्+ङीष्] बहुत अधिक। क्रि० वि० बार बार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूयस् :
|
वि० [सं० बहु+ईयसुन्, ई-लोप, भू-आदेश] बहुत। अधिक। |
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समानार्थी शब्द-
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भूयिष्ठ :
|
वि० [सं० बहु+इष्ठन्, यिट्-आगम, भू-आदेश] बहुत अधिक। अत्यधिक। |
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समानार्थी शब्द-
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भूयोदयः :
|
अ० [सं० भूयस्, वीप्सा में द्वित्व] पुनः पुनः। बार बार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूयोविद्य :
|
पुं० [सं० ब० स०] प्राचीन भारत में ऐसा विद्वान् जो छन्द, ब्राह्मण, कल्प, धर्म व्याकरण, काव्य आदि अनेक विद्याओं का अच्छा ज्ञाता या पारंगत होता था। |
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समानार्थी शब्द-
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भूर :
|
वि० [सं० भूरि] अधिक बहुत। पुं० [हिं० भुरभुरा] बालू। रेत। पुं० [?] गौओं की एक जाति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूर-लोखरिया :
|
स्त्री० [हिं० भूर=बालू+लोखरी=लोमड़ी] वह बलुई मिट्टी जिसमें लोमड़ी माँद बनाती है। |
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समानार्थी शब्द-
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भूरकी :
|
स्त्री० [हिं० भुरका] १. अन्न रखने की छोटी कोठिला। धुनकी। २. पानी का छोटा गड्ढा। ३. छोटा भुरका या कुल्हड़। ५. छिद्र। छेद। (पूरब) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरज (जस्) :
|
पुं० [सं० ष० त०] पृथ्वी की धूलि। गर्द। मिट्टी। पुं० [सं० भूर्य] भोजपत्र। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरजपत्र :
|
पुं०=भोज पत्र। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरपुर :
|
वि०=भूर-पूर।√ अव्य०, वि०=भर-पूर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरला :
|
पुं० [देश०] वैश्यों की एक जाति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरसी दक्षिणा :
|
स्त्री०=भूयसी दक्षिणा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरा :
|
वि० [सं० वभ्रु] मिट्टी के रंग का। मटमैले रंग का। खाकी। पुं० १. मिट्टी का सा या मटमैला रंग। २. एक प्रकार का कबूतर जिसकी पीठ काली और पेट पर सफेद छीटें होती हैं। ३. कच्ची चीनी को पकाकर साफ़ करके बनाई हुई चीनी। बूरा। ४. कच्ची चीनी। खाँड़। ५. चीनी। ६. युरोप का निवासी। युरोपियन। (राज०) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरा कुम्हड़ा :
|
पुं० [हि० भूरा+कुम्हड़ा] पेठा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि :
|
वि० [सं०√भू (होना)+क्रिन्] बहुत अधिक। प्रचुर। जैसे—भूरि-भूरि प्रशंसा करना। पुं० १. ब्रह्मा। २. विष्णु। ३. शिव। ४. इन्द्र। ५. सोना। स्वर्ण। अव्य० बहुत अच्छी तरह। उदा०—पैर छोड़ो और मुझको भूरि भेंटो।—मैथिलीशरण। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि गंधा :
|
स्त्री० [ब० स०] मुरा नामक गंध द्रव्य। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-तेजस् :
|
पुं० [ब० स०] १. अग्नि। २. सोना। स्वर्ण। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-दक्षिण :
|
पुं० [ब० स०] विष्णु। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-धाम (न्) :
|
पुं० [सं० ब० स०] नवें मनु के एक पुत्र का नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-पुष्पा :
|
स्त्री० [ब० स०] शत पुष्पा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-प्रेमा (मन्) :
|
पुं० [ब० स०] चकवा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-फेना :
|
स्त्री० [ब० स०] सातला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-बल :
|
पुं० [सं० ब० स०] धृतराष्ट्र का एक पुत्र। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-बला :
|
पुं० [सं० ब० स०,+टाप्] अतिबला। कँगही। ककही। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-भाग्य :
|
वि० [ब० स०] भाग्यवान्। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-मंजरी :
|
स्त्री० [ब० स०] सफेद तुलसी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-मल्ली :
|
स्त्री० [सं० भूरि√मल्ल्+अच्+ङीष्] ब्राह्मणी या पाढ़ा नाम की लता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-माय :
|
वि० [ब० स०] बहुत बड़ा मायावी। पुं० १. सियार। २. लोमड़ी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-मूलिका :
|
स्त्री० [ब० स०, कप्+टाप्] ब्राह्मणी लता। पाढ़ा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-रस :
|
पुं० [ब० स०] ईख। ऊख। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-लग्ना :
|
स्त्री० [ब० स०] सफेद अपराजिता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भूरि-विक्रम :
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वि० [ब० स०] बहुत बड़ा शूरवीर। |
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भूरि-श्रवा (वस्) :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रसिद्ध योद्धा जो महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से लड़ा था तथा जिसका वध सात्यिक ने किया था। |
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भूरिगम :
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पुं० [सं० भूरि√गम् (जाना)+अप्] गधा। |
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भूरिता :
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स्त्री० [सं० भूरि+तल्+टाप्] भूरि अथवा अधिक होने का भाव। अधिकता। बहुलता। |
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भूरिदा :
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वि० [सं० भूरि√दा (देना)+क+टाप्] यथेष्ट दान देनेवाला। |
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भूरिषेण :
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पुं० [सं० ब० स०] भागवत के अनुसार एक मनु का नाम। |
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भूरिसेन :
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पुं० [सं० ब० स०] राजा शर्याति के तीन पुत्रों मे से एक। |
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भूरुह :
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पुं० [सं० भू√रुह् (उगना)+क] १. वृक्ष। पेड़। २. अर्जुन। वृक्ष। ३. शाल वृक्ष। |
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भूरुहा :
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स्त्री० [सं० भूरुह+टाप्] दूब। |
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भूँरो :
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पुं० [सं० भ्रमर] भ्रमर। भौंरा। (डिं०) |
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भूर् :
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पुं० [सं०√भू (होना)+रुक्] अन्तरिक्षलोक से नीचे पैर रखने योग्य स्थान। लोक। |
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भूर्ज :
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पुं० [सं० भू√ऊर्ज्+अच] भोजपत्र का वृक्ष। |
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भूर्ज-पत्र :
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पुं० [सं० ष० त० वा ब० स०] भोजपत्र। |
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भूर्णि :
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स्त्री० [सं०√भू (भरण करना)+नि,] १. पृथ्वी। २. मरुभूमि। रेगिस्तान। ( |
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भूर्लोक :
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पुं० [सं० मध्य० स०] १. मर्त्य लोक। संसार। जगत। २. विषुवत् रेखा के दक्षिण का देश। |
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भूल :
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स्त्री० [हिं० भूलना] १. भूलने की क्रिया या भाव। २. अज्ञान, असावधानता, भ्रम आदि के कारण कुछ का कुछ समझाने और उसके फल-स्वरूप कोई अनुचित या गलत काम करने की अवस्था, या भाव। गलती। (एरर) जैसे—मैंने उन्हें झूठा समझ लिया, यह मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई। ३. अर्थ, तथ्य, प्रक्रिया आदि ठीक तरह से न जानने या समझने के कारण गलत तरह से कुछ कर डालने की अवस्था, क्रिया या भाव। अशुद्धि। गलती। (मिस्टेक) जैसे—उनके साथ साझा करके तुमने बहुत बड़ी भूल की। ४. कोई ऐसी चूक या त्रुटि जो जल्दी में रहने या पूरा ध्यान न देने के कारण हो जाय। (स्लिप) जैसे—इस हिसाब में कोई अपराध या दोष। कसूर। जैसे—(क) मैं अपनी इस भूल के लिये बहुत दुखी हूँ। (ख) भगवान् सबकी भूलें क्षमा करता है। |
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भूल-चूक :
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स्त्री० [हिं० भुलना+चूकना] लेख या हिसाब में ब्योरे आदि की ऐसी गलती जो दृष्टि-दोष आदि के कारण हो और बाद में जिसका सुधार हो सकता हो। (एरर्स एण्ड ओमिशन्स) पद—भूल-चूक, लेना देना=एक पद जिसका प्रयोग लेन-देन के पुरजों, प्राप्यकों आदि के अन्त में यह सूचित करने के लिए होता है कि कोई भूल रह गई हो तो उसका हिसाब या लेन-देन बाद में हो सकेगा। |
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भूलक :
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पुं० [हिं० भूल+क (प्रत्य०)] भूल करनेवाला। जिससे भूल होती हो। |
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भूलना :
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अ० [प्रा० भुल्ल] १. उचित अवधान या ध्यान न रहने के कारण किसी काम या बात का स्मृति-क्षेत्र में न रह जाना। याद न रहना। विस्तृत होना। जैसे—मैं तो बिल्कुल भूल ही गया था, अच्छा किया जो तुमने याद दिला दिया। २. दृष्टि-दोष, प्रमाद आदि के कारण किसी प्रकार की गलती, त्रुटि या भूल करना। जैसे—भूल गया था। पद—भूलकर भी=दृढ़ता-पूर्वक प्रतिज्ञा करते हुए। कदापि। कभी-कभी अथवा किसी भी दशा में। (केवल नहिक प्रसंगों में) जैसे—(क) अब कभी भूलकर भी उनका साथ न करना। (ख) वहाँ मैं भूलकर भी नहीं जाऊँगा। ३. किसी प्रकार के धोखे या भ्रम में पड़कर कर्तव्य न करना या उचित मार्ग से हटकर इधर-उधर हो जाना। जैसे—तुम तो दूसरों की बातों में भूलकर अपनी हानि कर बैठते हो। ४. उक्त प्रकार की बातों के फलस्वरूप किसी पर अनुरक्त होना। जैसे—तुम भी किसकी बातों में भूले हो, वह तुम्हें बहुत धोखा देगा। उदा०—मैं तो तोरी लाल पगिया पै भूली रे साजनाँ।—लोक-गीत। ५. किसी प्रकार के घमण्ड के वश में होकर इतराना। गर्व-पूर्वक प्रसन्न रहना। जैसे—(क) उन्हें एक मकान मिल गया है, इसी पर वह भूले हुए हैं। )(ख)सांसारिक वैभव पर भूलना नहीं चाहिए। ६. किसी चीज़ का खो जाना। गुम होना। जैसे—हमारी कलम यहाँ कहीं भूल गई है। स० १. कोई बात इस प्रकार मन से हटा देना कि फिर उसका ध्यान न आवे। याद न रखना। विस्तृत करना। जैसे—अब तो वह अपनी पुरानी हालत भूल गये हैं। २. असावधानता, उदासीनता, उपेक्षा, दृष्टि-दोष, प्रमाद आदि के कारण, परन्तु अनजान में वह न करना जो करना चाहिए। जैसे—उस पत्र में मैं एक बात लिखना भूल गया था। ३. अनजान में उस और ध्यान न देना जिधर ध्यान देना आवश्यक और उचित हो। जैसे—मुझे आपने जो वचन दिया था वह तो आप भूल ही गये। ४. गलती या चूक के कारण कर्त्तव्य, ठीक मार्ग आदि से विचलित होकर इधर-उधर हो जान। जैसे—वह रास्ता भूलकर कहीं का कहीं चला गया। ५. कोई चीज खो या गवाँ देना। जैसे—मैं अपनी घड़ी बाजार में भूल आया हूँ। वि०=भुलना।। |
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भूलभुलैया :
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स्त्री० [हिं० भूलना+ऐयाँ (प्रत्य०)] १. ऐसी इमारत अत्यधिक गलियाँ तथा दरवाजे होते हैं और जिसमें जाकर आदमी रास्ता भूल जाता है और जल्दी बाहर नहीं निकल पाता। २. खेल-तमाशे के लिए रेखाओं, दीवारों आदि से बनाई हुई उक्त प्रकार की रचना। चकाबू। (लैबिरिन्थ)। ३. बहुत घुमाव-फिराववाली बात। पेचीली बात। |
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भूलिंग :
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पुं० [सं० ?] अरावली के उत्तरी-पश्चिम में रहनेवाली एक प्राचीन जाति। |
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भूवा :
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वि०, पुं०=भूआ। स्त्री०=बुआ। |
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भूवारि :
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पुं० [डिं०] वह स्थान जहाँ हाथी पकड़कर रखे या बाँधे जाते हैं। |
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भूशक्र :
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पुं० [सं० स० त०] राजा। |
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भूशय :
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पुं० [सं० भू√शी (शयन करना)+अच्,] बिल बनाकर रहनेवाले जानवर। जैसे—गोह, चूहा, नेवला, लोमड़ी आदि। |
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भूशायी (यिन्) :
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वि० [सं० भू√शी (शयन करना)+णिनि,] १. पृथ्वी पर सोनेवाला। २. जो टूट-फूट कर जमीन पर गिर पड़ा हो। ३. मरा हुआ। मृत। |
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भूषण :
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पुं० [सं०√भूष् (भूषित करना)+ल्युट्-अन] अलंकार। गहना। जेवर। २. शोभा बढ़ानेवाली कोई वस्तु या गुण। ३. विष्णु। |
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भूषणीय :
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वि० [सं०√भूष्√भूष् (भूषित करना)+अनीयर] अलंकृत किये जाने के योग्य। |
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भूषन :
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पुं०=भूषण। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूषना :
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सं० [स० भूषण] भूषित करना। अलंकृत करना। सजाना। अ० अलंकृत होना। सजना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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भूषा :
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स्त्री० [सं०√भूष्+णिच्+अ+टाप्] १. गहना+जेवर। २. अलंकृत करने की क्रिया या भाव। पद—वेष-भूषा। |
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भूषाचार :
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पुं० [भूषा-आचार, ष० त०] १. कपड़े आदि पहनने का विशिष्ट। ढंग। २. समाज के उच्च वर्गों में या आहट्टत ढंग या रीति। (फैशन) |
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भूषित :
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भू० कृ० [सं०√भूष्+णिच्+क्त] १. भूषणों से युक्त किया हुआ। अलंकृत। २. सजा हुआ। |
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भूष्णु :
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वि० [सं०√भू (होना)+ग्सनु] १. होनेवाला। २. ऐश्वर्य का इच्छुक। |
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भूष्य :
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वि० [सं०√भूष्+णिच्+यत्] भूषित किये जाने योग्य। सजाये जाने के योग्य। |
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भूस :
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पुं०=भूसा। |
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भूसठ :
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पुं० [सं० भू+शठ ?] कुत्ता। श्वान। |
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भूसन :
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पुं० [हिं० भूँकना] कुत्तों का बोलना। भूँकना। पुं०=भूषण। |
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भूँसना :
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अ०=भूकना। |
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भूसना :
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अ० [हिं० भूँकना] कुत्तों का शब्द करना। भूँकना। |
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भूसा :
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पुं० [सं० तुष] गेहूँ, जौ आदि के पौधों के डंठलों के सूखे छोटे महीन टुकड़े जो गाय-भैसों आदि को खिलाये जाते हैं। |
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भूसी :
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स्त्री० [हिं० भूसा] १. किसी चीज के पतले या महीन छिलकों के छोटे छोटे टुकड़े। जैसे—ईसबगोल की भूसी। २. भूसा। ३. चकोर। |
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भूसीकर :
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पुं० [हिं० भूसी+कर] अगहन में होनेवाला एक तरह का धान और उसका चावल। |
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भूस्तृण :
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पुं० [सं० ष० त०, सुट्-आगम] एक प्रकार की घास। घटिपारी। |
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भूस्या :
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पुं० [सं० भू√स्था (ठहरना)+क, आ-लोप] मनुष्य। |
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