मंजि/manjaavat

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मंजि  : स्त्री० [सं०√मंज्+इन्] १. मंजरी। २. लता।
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मंजि-फला  : स्त्री० [सं० ब० स०,+टाप्] केला।
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मंजिका  : स्त्री०√मंज्+ण्वुल्—अक्-टाप्, इत्व] वेश्या। रंडी।
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मंजिमा (मन्)  : स्त्री० [सं० मंजु+इमानिच्] सुंदरता। मनोहरता।
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मंजिल  : स्त्री० [अ० मंजिल] १. यात्रा के मार्ग में बीच-बीच में यात्रियों के ठहरने के लिए बने हुए नियत स्थान। पड़ाव। मुहा०—मंजिल काटना=एक पड़ाव से चलकर दूसरे पड़ाव तक का रास्ता पार करना। मंजिल देना=कोई बड़ी या भारी चीज उठाकर ले चलने के समय रास्ते में सुस्ताने के लिए उसे कहीं उतारना या रखना। मंजिल मारना=(क) बहुत दूर से चलकर कहीं पहुँचना। (ख) कोई बहुत बड़ा काम या उसका कोई विशिष्ट अंश पूरा करना। २. वह स्थान जहाँ तक पहुँचना हो। अभीष्ट, उद्दिष्ट या नियत स्थान अथवा स्थिति। ३. ऊपर-नीचे बने हुए होने के विचार से मकान का खंड। मरातिब। जैसे—(क) दो (या तीन) मंजिल का मकान। (ख) तीसरी मंजिल की छत।
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मंजिष्ठा  : स्त्री० [सं० मंजिमती+इष्ठन्, टि-लोप,+टाप्] मंजीठ नामक पेड़ और उसका फल।
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मंजिष्ठा-मेह  : पुं० [उपमि० स०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का प्रमेह जिसमें मंजीठ के पानी के समान मूत्र होता है।
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मंजिष्ठा-राग  : पुं० [ष० त०] १. मंजीठ का रंग। २. [उपमि० स०] पक्का या स्थायी अनुराग अथवा प्रेम।
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