शब्द का अर्थ
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					मना					 :
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					वि० [अ०] १. जिसके संबंध में निषेध हो। निषिद्ध। जैसे—यहाँ तमाकू या बीड़ी पीना मना है। २. जो कोई काम करने से रोका गया हो। वारण किया हुआ। जैसे—लड़कों को मना कर दो, यहाँ शोर न करें।				 | 
			
			
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					मनाइन					 :
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					स्त्री० [?] वह स्त्री जो शुभ-अशुभ सभी प्रकार के कर्मों के विधि-विधान जानती हो और इसलिए स्त्री-समाज में मान्य हो (पूरब)।				 | 
			
			
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					मनाई					 :
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					स्त्री०=मनाही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मनाकु					 :
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					वि०=मनाक (थोड़ा)। उदा०—जेहिं बखान मति सक्ति मनाकू।—नूरमोहम्मद।				 | 
			
			
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					मनाक्					 :
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					वि० [सं०√मन् (ज्ञान करना)+आक्] १. बहुत जरा-सा अल्प। थोड़ा। २. धीमा। मन्द।				 | 
			
			
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					मनादी					 :
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					स्त्री०=मुनादी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मनाना					 :
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					सं० [हिं० मानना का प्रे०] १. किसी को कुछ मानने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना कि जिससे कोई कुछ मान ले। २. किसी को किसी काम या बात के लिए उद्यत, तत्पर या राजी करना। ३. जो किसी कारण से अप्रसन्न हो गया या रूठ गया हो उसे मीठी-मीठी बातें करके अपने अनुकूल बनाना और प्रसन्न करना। ४. अपनी त्रुटि या दोष मानकर उसके लिए क्षमा माँगना। उदा०—या भूल-चूक अपनी पहले मनाऊँ।—मैथिलीशरणगुप्त। ५. किसी प्रकार की कामना आदि की पूर्ति या कार्य की सिद्धि के लिए ईश्वर या देवी-देवता से प्रार्थना करना। जैसे—मैं तो ईश्वर से यही मानता हूँ कि वह आप को सद्बुद्धि दे। ६. प्रार्थना या स्तुति करना। उदा०—ताके युग पद कमल मनाऊँ, जासु कृपा निरमल मति पाऊँ।—तुलसी				 | 
			
			
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					मनायी					 :
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					स्त्री० दे० ‘मनावी’।				 | 
			
			
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					मनार					 :
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					पुं०=मीनार।				 | 
			
			
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					मनाल					 :
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					पुं० [सं० मृणाल] शिमले की पहाड़ियों पर रहनेवाला एक तरह का चकोर पक्षी।				 | 
			
			
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					मनावन					 :
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					पुं० [हिं० मनाना] १. असंतुष्ट या रूठे हुए को मनाने की क्रिया या भाव।				 | 
			
			
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					मनावी					 :
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					स्त्री० [सं० मनु+ङीष्, औव्] मनु की स्त्री का नाम।				 | 
			
			
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					मनाही					 :
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					स्त्री० [अ०] १. मना करने या होने की क्रिया या भाव। २. कोई काम न करने की आज्ञा। निषेध। रोक।				 | 
			
			
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