मुख/mukh

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मुख  : पुं० [सं०√खन् (खोदना)+अच्, डित, मुट्आगम] १. जीव या प्राणी का मुँह। (देखें)। २. चेहरा। ३. दरवाजा। ४. किसी पदार्थ का अगला या ऊपरी खुला भाग। ५. आदि। आरंभ। शुरु। ६. आगे, पहले या सामने आनेवाला अंश या भाग। जैसे—रजनी मुख=सन्ध्या का समय। ७. साहित्य में रूपक की पाँच सन्धियों में से पहली संधि जिसका आविर्भाव बीज, नाम, अर्थ, कृति, और आरम्भ नामक अवस्थाओं का योग होने पर माना जाता है। ८. नाटक का पहला शब्द। ९. शब्द। १॰. नाटक। ११. वेद। १२. जीरा। १३. बड़हर। १४. मुरगाबी। वि० मुख्य। प्रधान।
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मुख-क्षुर  : पुं० [सं० ष० त०] दाँत।
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मुख-खुर  : पुं० =मुखक्षुर।
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मुख-गंधक  : पुं० [सं० ब० स० कप्] मुँह से दुर्गंध उपजानेवाला अर्थात् प्याज।
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मुख-चपल  : वि० [सं० सुप्सुपा स०] १. जो बहुत अधिक या बढ़-चढ़कर बोलता हो। वाचाल। मुँहजोर। २. कटुभाषी।
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मुख-चपलता  : स्त्री० [सं० मुखचपल+तल्-टाप्] मुख-चपल होने की अवस्था या भाव।
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मुख-चूर्ण  : पुं० [सं० ष० त०] मुँह पर मलने का चूर्ण। (पाउडर)।
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मुख-देखा  : वि० =मुँह-देखा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मुख-धावक  : पुं० [सं०] कोई ऐसी चीज जो मुँह के भीतरी भाग (जीभ, तालू, दाँत आदि) साफ करने के काम आती हो। (माउथ वाश)।
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मुख-धौता  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. भारंगी। २. ब्राह्मण-यष्टिका।
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मुख-पट  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. घूँघट। २. नकाब।
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मुख-पत्र  : पुं० [सं० उपमि० स०] किसी संस्था या दल का वह पत्र जिसमें उसके सिद्धान्तों तथा मतों का प्रकाशन मुख्य रूप से होता है। (आर्गन)
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मुख-पान  : पुं० [हिं० मुख+पान] ताले के ऊपरी आवरण का पान के आकार का धातु का वह टुकड़ा जिसमें प्रायः ताली लगाने के लिए छेद बना होता है।
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मुख-पिंड  : पुं० [सं० ष० त०] १. कौर। ग्रास। २. मृत व्यक्ति की अंत्येष्टि क्रिया से पहले दिया जानेवाला एक तरह का पिंड।
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मुख-पूरण  : पुं० [सं० मुख√पूर् (पूर्ण करना)+णिच्+ल्यु-अन] १. मुँह साफ करने के लिए किया जानेवाला कुल्ला। २. उतना पानी जितना एक बार कुल्ला करने के लिए मुँह में लिया जाय।
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मुख-पृष्ठ  : पुं० [सं० उपमि० स०] किसी ग्रंथ या पुस्तक का सबसे ऊपर वाला पृष्ठ जिसमें उस पुस्तक तथा उसके लेखक का नाम छपा होता है। (टाइटिल पेज)।
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मुख-प्रक्षालन  : पुं० [सं० ष० त०] मुँह धोना या साफ करना।
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मुख-बंद  : पुं० [सं० मुख+हिं० बंद] १. घोड़ों का एक रोग जिसमें उनका मुँह बन्द हो जाता है।
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मुख-बंध (न्)  : पुं० [सं० ष० त०] किसी ग्रंथ की प्रस्तावना या भूमिका।
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मुख-भूषण  : पुं० [सं० ष० त०] पान।
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मुख-मैथुन  : पुं० [सं०] मैथुन या संभोग का एक अप्राकृतिक और अस्वाभाविक प्रकार जिसमें उपभोग्य बालक अथवा स्त्री के मुख में लिंगेद्रिय रखी जाती है।
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मुख-मोद  : पुं० [सं० मुख√बुद् (हर्ष)+णिच्, +अण्, उप० स०] १. सलई का पेड़। शल्लकी। २. काला सहिंजन।
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मुख-यंत्रण  : पुं० [सं० ष० त०] घोड़े, बैल आदि की लगाम।
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मुख-रोग  : पुं० [सं० ष० त०] दांतो, मसूढ़ों होठों आदि में होनेवाले रोगों की संज्ञा।
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मुख-लांगल  : पुं० [सं० ब० स०] सूअर।
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मुख-लेप  : पुं० [सं० ष० त०] १. शोभा के लिए मुख पर किया जानेवाला लेप। २. एक प्रकार का मुख-रोग।
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मुख-लेपन  : पुं० [सं० ष० त०] मुख पर लेप करना या लगाना।
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मुख-वल्लभ  : वि० [सं० ष० त०] स्वादिष्ट। पुं० अनार का पेड़।
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मुख-वाद्य  : पुं० [सं० ष० त०] वह बाजा जो मुँह से फूँककर बजाय़ा जाता हो।
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मुख-वास  : पुं० [सं० मुख√वास् (सुगंधित करना)+अण्, +णिच्+उप० स०] १. गंधतृण। २. तरबूज की लता।
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मुख-वासन  : पुं० [सं० मुख√वास्+णिच्+ल्यु-अन, उप० स०] मुँह की दुर्गंध दूर करके उसे सुंगधित करने के उद्देश्य से मुँह में रखा जानेवाला चूर्ण या औषध।
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मुख-विष्ठा  : स्त्री० [सं० ब० स०] तिल-चट्टा (कीड़ा)।
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मुख-शुद्धि  : पुं० [सं० ष० त०] १. मुख की शुद्ध करने की क्रिया या भाव। २. बोलचाल में भोजन आदि के उपरांत इलायची, पान, सुपारी आदि खाना। विशेष—हमारे यहाँ इलायची, पान, सुपारी आदि का सेवन मुख को शुद्ध करने के लिए किया जाता है।
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मुख-शोधन  : पुं० [सं० ष० त०] १. मुख को शुद्ध करना। मुखशुद्धि। २. [मुख√शुध्+णिच्+ल्यु—अन, उप० स०] मुख शुद्ध करने के निमित्त खाया जानेवाला पदार्थ। जैसे—पान, सुपारी आदि। दारचीनी। वि० चरपरा।
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मुख-श्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] चेहरे की रौनक, शोभा या सौंदर्य।
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मुख-संधि  : स्त्री० दे० ‘मुख’ के अन्तर्गत साहित्यक संधि।
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मुख-संभव  : पुं० [सं० ब० स०] १. ब्राह्मण। २. पुष्करमूल। वि० मुँह से निकला हुआ।
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मुख-सुख  : पुं० [सं० ष० त०] वह स्थिति जिसमें व्यक्ति किसी शब्द का उच्चारण अपने मुख की गठन तथा सुविधा के अनुसार ऐसे रूप में करता है जो वर्णोच्चारण से कुछ भिन्न होता है।
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मुख-स्राव  : पुं० [सं० पं०त०] १. थूक। लार २. मुँह से निरन्तर लार गिरने का रोग।
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मुखचपला  : स्त्री० [सं० मुखचपल+टाप्] आर्याछंद का एक भेद।
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मुखज  : वि० [सं० मुख√जन् (उत्पन्न करना)+ड] मुख या मुँह से उत्पन्न। पुं० ब्राह्मण जिसकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से कही गई है।
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मुखंडा  : पुं० [हिं० मुख+अंडा (प्रत्यय)] १. कुछ विशिष्ट बरतनों में किया जानेवाला वह छेद जिसमें टोंटी लगाई जाती है। २. टोंटी का छेद।
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मुखड़ा  : पुं० [सं० मुख+हिं० डा (प्रत्यय)] १. मनुष्य का वह अंग जिसमें दोनों आँखे, नाक, गला, माथा, मुँह, ठुड्डी आदि अवयव होते हैं। चेहरा। २. बहुत ही सुन्दर मुख के लिए प्रशंसा और प्रेम का सूचक शब्द।
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मुखतार  : पुं० [अ० मुख्तार] [भाव० मुख्तारी] १. वह व्यक्ति जिसे किसी से विशिष्ट अवसरों पर कुछ विशेष प्रकार के काम प्रतिनिधि के रूप में करने का वैध अधिकार मिला होता है। २. एक प्रकार के कानूनी सलाहकार जो पद में वकील से छोटे होते हैं।
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मुखतार-आम  : पुं० [अं० मुख्तारेआम] वह प्रतिनिधि जिसे किसी तरफ से सब प्रकार के कार्य विशेषतः आर्थिक या कानूनी कार्य करने का अधिकार प्राप्त हो।
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मुखतार-खास  : पुं० [अ० मुख्तारे+फा० खास] वह जिसे किसी विशिष्ट कार्य या मुकदमे के लिए मुखतार या प्रतिनिधि बनाया गया हो।
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मुखतारकार  : पुं० [अ० मुख्तारे+फा० कार] [भाव० मुखतारकारी] कर्मचारी। करिंदा।
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मुखतारकारी  : स्त्री० [हिं० मुखतारकार+ई (प्रत्यय)] १. मुखतारकार का काम, पद या भाव। २. दे० ‘मुखतारी’।
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मुखतारनामा  : पुं० [अ० मुख्तार+फा०नामः] १. वह पत्र जिसमें कोई अधिकारिक या वैध रूप से किसी को अपना मुखतार नियुक्त करता हो। २. वह अधिकार-पत्र जिसके अनुसार कोई पेशेवर मुखतार कोई मुकदमा लड़ने के लिए मुखतार के रूप में नियुक्त किया जाता है।
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मुखतारी  : स्त्री० [अ० मुख्तारी] १. मुख्तार अर्थात् प्रतिनिधि होने की अवस्था या भाव। २. मुखतार का पद या पेशा। ३. प्रतिनिधित्व। ४. एक तरह की कानूनी परीक्षा जिसे पारित करने पर मुखतार के रूप में छोटी अदालतों में मुकदमे लड़ने का अधिकार प्राप्त होता है।
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मुखताल  : पुं० [हिं० मुख+ताल] गीत का पहला पद। टेक।
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मुखदूषण  : पुं० [सं० मुख√दूस (दूषित करना)+णिच्+ल्यु-अन] प्याज।
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मुखदूषिका  : स्त्री० [सं० ष० त०] मुँहासा।
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मुखदूषी (षिन्)  : पुं० [सं० मुख√दूस (दूषित करना)+णि्च्, णिनि, दीर्घ, न लोप] लहसुन।
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मुखप्रिय  : वि० [सं० मुख√प्री (तृप्त करना)+क, उप० स०] स्वादिष्ट। पुं० १. नांरगी। २. ककड़ी।
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मुखफ्फफ  : पुं० [अ० मुखफ्फफ] किसी चीज का लघु, संक्षिप्त या ह्रस्व रूप। जैसे—हाथ का मखफ्फफ हथ (हथकरघा)। वि० लघु संक्षिप्त स्वरूप में होनेवाला।
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मुखबिर  : पुं० [अ० मुख्बिर] [भाव० मुखबिरी] गुप्त रूप से समाचार लाने या खबर देनेवाला व्यक्ति। जासूस।
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मुखबिरी  : स्त्री० [अ० मुख्बिरी] मुखबिर का काम, पद या भाव।
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मुखभेड़  : स्त्री०=मुठभेंड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मुखमसा  : पुं० [अ० मुख्मसः=विकलता या कठिनता] झगड़ा बखेड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मुखम्मस  : वि० [अ० मुखम्मस] जिसमें पाँच कोने या अंग हो। पँचकोना। पुं० वह पद्य जिसके पाँच चरण हों। (उर्दू)।
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मुखर  : वि० [सं० मुख+रा (देना)√क] १. बहुत बोलनेवाला। बकवादी। वाचाल। २. बहुत बढ़कर या उद्दंतापूर्वक बातें करनेवाला। ३. व्यर्थ बहुत सी बातें कहनेवाला। बकवादी। ४. कटु-भाषी। ५. प्रधान। मुख्य। ६. बोलता हुआ। मुखरित०। पुं० १. कौआ। २. शंख।
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मुखरि  : भू० कृ० [सं० मुखरि+क्विप्, +क्त] अच्छी तरह बोलता या ध्वनि करता हुआ। ध्वनियों या शब्दों से युक्त।
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मुखलिस  : वि० [अ० मुख्लिस] [भाव० मुखलिसी] १. जो खलास हो चुका हो। मुक्त। २. निश्छल। ३. निष्ठ। सच्चा। ४. अकेला। ५. अविवाहित।
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मुखशोधी (धिन्)  : वि० [सं० मुखशुध (शुद्ध करना)+णिच्+णिनि, दीर्घ, न-लोप] मुख की शुद्धि करने या तत्त्व जिसके फलस्वरूप मुख सूखा रहता हो। ३. प्यास।
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मुखस्थ  : वि० [सं० मुख√स्था (ठहरना)+क०] १. जो मुँह जबानी याद हो। कंठस्थ। २. मुख में आया या रखा हुआ।
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मुखांग  : पुं० [सं० मुख-अंग, कर्म० स०] वह जो किसी व्यक्ति की ओर से बोल रहा हो जो स्वयं किसी कारण से चुप रहना चाहता हो। (माउथपीस) जैसे—आज तो आप उनके मुँखांग होकर बातें कर रहे हैं।
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मुखाग्नि  : स्त्री० [सं० मुख-अग्नि, मध्य० स०] १. चिता पर रखे हुए शव के मुख में रखी जानेवाली अग्नि। २. इस प्रकार मुँह में अग्नि रखने की प्रथा। ३. [ब० स०] दावानल। ४. ब्राह्मण।
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मुखाग्र  : पुं० [सं० मुख-अग्र, ष० त०] १. किसी पदार्थ का अगला भाग। २. होंठ। वि० जो जबानी याद हो। कंठस्थ।
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मुखातिब  : वि० [अ० मुख़ातिब] १. जिससे कुछ कहा जाय। संबोध्य। २. किसी की ओर (बात कहने या सुनने देखने आदि को) प्रवृत्त। वि० [अ० मुखातिब] संबोधन कर्ता।
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मुखापेक्षक  : वि० =मुखापेक्षी।
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मुखापेक्षा  : स्त्री० [सं० मुख—अपेक्षा, ष० त०] विवश होकर दूसरों का मुँह ताकना। (सहायता आदि के लिए)।
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मुखापेक्षी (क्षिन्)  : पुं० [सं० मुखापेक्ष+इनि] किसी के मुँह की ओर ताकने अर्थात् उसकी कृपा की अपेक्षा रखनेवाला। दूसरों की कृपा पर अवलम्बित रहनेवाला।
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मुखामय  : पुं० [सं० मुख-आमय, ष० त०] मुख में होनेवाले रोग। मुखरोग।
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मुखारविंद  : पुं० [सं० मुख-अरविन्द, उपमित, स०] ऐसा सुन्दर मुख जो देखने में कमल के समान हो। मुख-कमल। (प्रायः बड़ों के सम्बन्ध में आदरसूचक)।
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मुखारी  : स्त्री० [सं० मुख] १. मुख की गठन या बनावट। २. आकार-प्रकार, रूप आदि का सूचक किसी वस्तु का ऊपरी या सामने वाला भाग। ३. मुख-शुद्धि के लिए कुल्ला-दतुअन आदि करने की क्रिया या भाव। उदाहरण—दतवनि लै दुहै करी मुखारी।—सूर।
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मुखालिफ  : वि० [अ० मुख़ालिफ] १. विरोधी। २. प्रतिद्वन्दी। पुं० दुश्मन। शत्रु।
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मुखालिफत  : स्त्री० [अ० मुख़ालिफ़त] १. मुखालिफ होने की अवस्था या भाव। २. डटकर किया जानेवाला विरोध। ३. शत्रुता।
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मुख़ासमत  : स्त्री० [अ०] १. कलह। २. विवाद। ३. शत्रुता।
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मुखासव  : पुं० [सं० मुख-आसव, ष० त०] १. थूक। २. लार।
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मुखास्त्र  : पुं० [सं० मुख-अस्त्र, ब० स०] केकड़ा।
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मुखिया  : पुं० [सं० मुख्य+हिं० इया (प्रत्यय)] १. वह जो अपने वर्ग या समाज में मुख्य या प्रधान हो। २. ब्रिटिश शासन में किसी गाँव में प्रधान बनाया हुआ वह व्यक्ति जिसे कुछ अधिकार प्राप्त होते थे। ३. वल्लभ संप्रदाय का वह कर्मचारी जो मूर्ति का पूजन आदि करता है। ४. स्वतंत्र भारत में किसी गाँव या मंडल के चुने हुए प्रतिनिधियों का प्रधान या सभापति।
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मुखी (खिन्)  : वि० [सं० मुख+इनि] १. मुख से युक्त। मुखवाला। (यौ० के अन्त में) जैसे—नाहरमुखी, सूरयमुखी आदि। उदाहरण—जो देखिअ सो हँसता मुखी।—जायसी। २. किसी विशिष्ट ओर या दिशा में मुख रखनेवाला। जैसे—अन्तर्मुखी, सूर्यमुखी, सर्वतोमुखी।
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मुखुली  : स्त्री० [सं० मुख+उलच्+ङीष्] एक बौद्ध देवी।
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मुखौटा  : पुं० [हिं० मुख+औटा (प्रत्यय)] १. मुख का अल्पार्थक रूप। छोटा मुँह। २. धातु आदि का मुख के आकार का बना हुआ वह खंड जो देवी-देवताओं की मूर्तियों में उनके मुख पर लगाया जाता है। ३. रूप धारण करने के लिए मुँह की बनायी जानेवाली आकृति। उदाहरण—अतः मनुष्य चाहे जो मुखौटा पहने उसके नीचे सब मनुष्य नंगे हैं।
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मुख्तलिफ  : वि० [अ० मुख्तलिफ़] १. पृथक। भिन्न। २. अनेक प्रकार का।
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मुख्तसर  : वि० [अ० मुख्तसर] १. संक्षिप्त। घटाया या छोटा किया हुआ। २. संक्षेप में लाया हुआ। ३. अल्प। थोड़ा। पद—मुख्तसर में—संक्षेप में।
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मुख्तार  : पुं० ‘मुखतार’ (‘मुख्तार’ के अन्य यौ० के लिए देखें ‘मुखतार’ के यौ०)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मुख्य  : वि० [सं० मुख+यत्] [भाव० मुख्यता] १. जो सब से आगे बढ़ा हुआ या ऊपर और मुख के रूप में हो। प्रधान। खास। २. (अन्यों की अपेक्षा) अधिक आवश्यक महत्त्वपूर्ण या सारभूत। जैसे—अपने भाषण में उन्होंने मुख्य बात यही कही कि...। ३. अपने वर्ग का सबसे बड़ा। जैसे—मुख्य मंत्री, मुख्य न्यायाधीश। पुं० १. यज्ञ का पहला कल्प। २. वेदों का अध्ययन और अध्यापन. ३. अमांत मास।
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मुख्य-चांद्रमास  : पुं० [सं० कर्म० स०] चांद्र मास के दो भेदों में से एक जो शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या को समाप्त होता है। इसी को ‘अमांत’ भी कहते हैं। (दूसरा) भेद ‘गौण’ चांद्र ‘मास’ या ‘पूर्णिमांत’ कहलाता है।
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मुख्य-मन्त्री (त्रिन्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] भारतीय गणतंत्र के किसी राज्य (प्रांत) का सबसे बड़ा मंत्री। राज्य के मंत्रियों में सबसे बड़ा मंत्री। (चीफ मिनिस्टर)।
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मुख्य-सर्ग  : पुं० [सं० कर्म० स०] स्थावर सृष्टि।
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मुख्यतः (तस्)  : अव्य० [सं० मुख्य√तस्] मुख्य रूप से।
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मुख्यता  : स्त्री० [सं० मुख्य+तल्+टाप्] मुख्य होने की अवस्था, गुण या भाव।
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मुख्याधिष्ठाता (तृ)  : पुं० [सं० मुख्य-अधिष्ठातृ, कर्म० स०] किसी स्थान विशेषतः शिक्षा-संस्था का प्रधान अधिकारी और व्यवस्थापक। जैसे—गुरुकुल के मुख्याधिष्ठाता।
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मुख्यालय  : पुं० [सं० मुख्य-आलय, कर्म० स०] १. किसी संस्था का केन्द्रीय और प्रधान स्थान कार्यालय। २. किसी बड़े अधिकारी या व्यक्ति का मुख्य निवास स्थान (हेड क्वार्टर)।
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