रह/rah

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रह  : पुं० [सं० रथ] रथ। स्त्री०=राह (रास्ता) प्रत्यय राह का वह रूप जो कुछ समस्त पदों में प्रत्येक रूप में लगता है। जैसे—रहनुमा, रहबर।
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रह-चट्टना  : अ०=चहचहाना (पक्षियों का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रह-नुमा  : वि० [फा० राहनुमाँ का संक्षिप्त रूप] [भाव० रह-नुमाई] ठीक रास्ता बतलानेवाला। मार्ग-दर्शक।
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रह-नुमाई  : स्त्री० [फा०] ठीक रास्ता बतलाना। मार्ग-दर्शन।
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रह-बर  : वि० [फा०] [भाव० रह-बरी] रास्ता दिखलानेवाला।
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रहंकला  : पुं०=रहकता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहकला  : पुं० [हिं० रथ+कल] १. तोप अति ढोनेवाली एक तरह की पुरानी चाल की गाड़ी। २. उक्त गाड़ी पर रखी जानेवाली तोप।
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रहँचटा  : पुं०=रहचटा।
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रहचटा  : पुं० [सं० रस+हिं० चाट] १. वह जिसे किसी प्रकार के रस (सुख) की चाट या चस्का लगा हो। २. उक्त प्रकार का चस्का या चाट।
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रहचट्ट  : स्त्री० [अनु०] १. चिड़ियों का बोलना। चहचाहट। २. आदमियों की चहलपहल। स्त्री० [हिं० रहचटा] रहचटे होने की अवस्था, गुण या भाव।
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रहँट  : पुं०=रहट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहट  : पुं० [सं० अरघट्ट, प्रा० अरहट्ठ] खेतों की सिंचाई के लिए कुएँ से पानी निकालने का एक प्रकार का यंत्र जो गोलाकार पहिए के रूप में होता है और जिस पर हाँड़ियों की माला पड़ी रहती है। इसी पहिए के घूमने से हाँड़ियों आदि में भरकर पानी ऊपर आता है।
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रहँटा  : पुं०=रहटा।
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रहटा  : पुं० [हिं० रहट] चरखा।
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रहँटी  : पुं० =रहटी।
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रहटी  : स्त्री० [हिं० रँहटा] १. कपास ओटने की चरखी। २. ऋण देने का एक प्रकार जिसमें ऋणी से प्रति मास कुछ धन वसूल किया जाता है। हुंडी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहठा  : पुं० [?] अरहर के पौधे का सूखा हुआ ठंडल। कड़िया।
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रहठान  : पुं० [हिं० रहना] १. रहने का स्थान। २. जगह। स्थान।
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रहड़  : पुं० [सं० रथरूप, प्रा० रहरूप] १. ठेला-गाड़ी। २. बैलगाड़ी।
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रहतिया  : वि० [हिं० रहना+तिया (प्रत्यय)] (दुकान या माल) जो बहुत दिनों तक पड़ा रहने के कारण कुछ खराब हो गया हो।
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रहन  : स्त्री० [हिं० रहना] १. रहने की अवस्था, ढंग या भाव। पद—रहन-सहन। २. लोगों के साथ रहने और जीवन-निर्वाह तथा व्यवहार करने का ढंग या प्रकार। ३. किसी के साथ प्रेमपूर्वक रहने और निभाने की क्रिया या भाव। उदाहरण—जौ पै रहनि राम सों नाही।—तुलसी।
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रहन-सहन  : स्त्री० [हिं० रहना+सहना] घर-गृहस्थी या लोक में रहने और लोगों के साथ व्यवहार करने की क्रिया या ढंग।
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रहनहार  : वि० [हिं० रहना+हार (प्रत्यय)] १. रहने अर्थात् निवास करनेवाला। निवासी। २. टिककर या स्थायी रूप से बना रहने या रहनेवाला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहना  : अ० [प्रा० रहण] १. किसी आधार या स्थान पर अवस्थित या स्थित होना। टिका या ठहरा हुआ होना। जैसे—इन्हीं खंभों (या दीवारों) पर छत रहेगी। २. किसी विशिष्ट दशा या स्थिति में स्थिर होना। एक रूप में अवस्थान करना। जैसे—गर्भ (या पेट) रहना। जीवन या जिंदगी रहना। उदाहरण—नीके है छीकैं छुए, ऐसे ही रह नारि।—बिहारी। मुहावरा—रह चलना या रह जाना=प्रस्थान करने का विचार छोड़ देना। रुक जाना। ठहर जाना। रह जाना=शांति या स्थिरता पूर्वक अवस्थान करने में समर्थ होना। जैसे—(क) अब तो बिना बोले मुझसे रहा नहीं जाता। (ख) उसके बिना तुमसे रहा नहीं जाता। ३. किसी स्थान को अस्थायी अथवा स्थायी रूप में अपने निवास का मुख्य केंद्र बनाकर वहाँ बसना निवास करना। जैसे—आज-कल वह कलकत्ते में रहते हैं। ४. किसी स्थान पर कुछ समय के लिए विद्यमान होकर वहाँ समय बिताना। जैसे—दो चीर दिन यहाँ रहकर वे घर चले गये। उदाहरण—जैसे कंता घर रहे, तैसे रहे विदेस। मुहावरा—(स्त्री या पुरुष) से रहना=पर-पुरुष से संभोग करना। उदाहरण—मीरगुल से अब के रहने में हुई वह बेकली। टल गई क्या नाफदानी, पेडू पत्थर हो गया।—जानसाहब। रहना-सहना=किसी स्थान पर निवास करते हुए कुछ समय बिताना। जैसे—जो आदमी जहाँ रहता-सहता है, वहीं उसका मन लगता है। ५. उपस्थित या विद्यमान रहना। जैसे—हमारे रहते तुम्हारा कोई बिगाड़ नहीं सकता। मुहावरा—(किसी वस्तु या व्यक्ति का) बना रहना=ठीक और अच्छी दशा में वर्तमान रहना। जैसे—तुम्हारा राज-पाट बना रहे। किसी की बनी रहना=किसी की प्रतिष्ठा, मर्यादा आदि का ज्यों का त्यों रहना। उदाहरण—किस की बनी रही हैं, किसकी बनी रहेगी।—कोई शायर। ६. जीविका चलाने के लिए नौकर आदि के रूप में कहीं या किसी पद पर स्थित रहकर निर्वाह करना या समय बिताना। जैसे—इधर साल भर में वह तीन चार जगह रह चुका, पर कहीं टिका नहीं। ७. किसी के साथ मैथुन या संभोग करना। (बाजारू)। जैसे—यह भी तो कई बार उसके साथ रह चुका है। उदाहरण—मीरगुल से अबके रहने में हुई वह बेकली। टल गई क्या नाफदानी, पेडू पत्थर हो गया।—जानसाहब। ८. व्यवहार आदि में नियम या मर्यादा का पालन करना। अच्छा और ठीक आचरण करना। उदाहरण—(क) धरमु विचारि समुझि कुल रहई। (ख) हम जानति तुम यों नहिं रैहौ, रहियौ गारी खाय।-सूर। ९. बाधा। रूकावट आदि मानकर किसी बात से विरत होना। उदाहरण—चितवन रोकै हूँ न रही।—सूर। मुहावरा—(व्यक्ति का) रह जाना= (क) थककर या हिम्मत हारकर आगे काम या गति से विमुख होना। (ख) प्रतियोगिता आदि में विफल होना। (ग) परीक्षा आदि में अनुतीर्ण होना। जैसे—इस वर्ष प्रवेशिका परीक्षा में बहुत से लड़के रह गये। (शरीर के अंग का) रह जाना= (क) अधिक परिश्रम के कारण इतना थक जाना कि आगे काम न हो सके। बहुत ही शिथिल तथा स्तब्ध हो जाना। जैसे—लिखते-लिखते हाथ रह गया। (ख) रोग आदि के कारण निकम्मा या बे-काम हो जाना। जैसे—लकवे में उनका हाथ रह गया। १॰. अवशिष्ट रहना। बाकी बचना। जैसे—(क) अब तो सौ ही रुपए हाथ में रह गये हैं। (ख) और मकान तो बिक गये, यहीं एक रह गया है। पद—रहा-सहा। ११. पीछे छूट जाना। पिछड़ना। १२. क्रिया, गति, भोग आदि से रहित होना। जैसे—अब तो आप वहाँ जाने से भी रहे। १३. चुपचाप बैठे रहकर या बिना किये हुए समय बिताना। उदाहरण—समुझि चतुर चित बात यह रहत बिसूर-बिसूर।—रसनिधि। मुहावरा—रह जाना=बिना कुछ किये हुए चुपचाप या शांत भाव से समय बिताना। जैसे—हम तुम्हारे कहने पर रह गये, नहीं तो उसे मजा चखा देते। रहने देना= (क) जिस अवस्था में हो, उसी में छोड़ देना। हस्तक्षेप न करना। जैसे—तुम रहने दो मैं सबकर लूँगा। (ख) ध्यान न देना। उपेक्षापूर्वक छोड़ या जाने देना। जैसे—रहने दो, इन बातों में क्या रखा है। रह-रहकर=बीच-बीच में कुछ ठहर या रुककर। थोड़े-थोड़े अन्तर पर या थोड़ी-थोड़ी देर बाद। जैसे—रह-रहकर पेट (या सिर) में दरद होना। १४. लेन-देन आदि में किसी के जिम्मे कोई रकम बाकी निकलना। बाकी पड़ना। जैसे—कभी का तुम्हारा कुछ रहता हो। (या रह गया हो) तो बताओ।
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रहनि  : स्त्री०=रहन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहनी  : स्त्री०=रहन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहम  : पुं० [अ० रहम] १. करुणा। दया। २. अनुकंपा। अनुग्रह। पद—रहमदिल।
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रहमत  : स्त्री० [अ० रहमत] १. ईश्वरीय कृपा। २. कृपा। दया।
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रहमदिल  : वि० [अ० रहम+फा० दिल] करुणापूर्ण (व्यक्ति)। सहृदय।
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रहमान  : वि० [अ० रहमान] बहुत बड़ा दयालु। कृपालु। पुं० ईश्वर का एक नाम।
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रहर, रहरी  : स्त्री०=अरहर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहरू  : स्त्री० [पं० रिढना=घसिटना] छोटी देहाती गाड़ी, जिसमें किसान लोग पांस या खाद ढोते हैं। पुं० [फा०] रास्ता चलनेवाला। पथिक। बटोही।
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रहरेठा  : पुं० [हिं० अरहर] अरहर के पौधे का सूखा डंठल। कड़िया। रहठा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहल  : स्त्री० [अ०] एक विशेष प्रकार की छोटी चौकी जो आवश्यकतानुसार खोली या बन्द की जा सकती है और जिस पर पढ़ने के समय पुस्तक रखी जाती है।
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रहलूं  : स्त्री०=रहरु। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहवाल  : पुं० [फा०] घोड़ा। स्त्री० घोड़े की चाल।
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रहस  : पुं० =रहस्। स्त्री०=रास (लीला)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहस-बधावा  : पुं० [हिं० रहस+बधाई] विवाह की एक रीति जिसमें नव-विवाहिता वधू को वर अपने साथ जनवासे में लाता है। वहाँ गुरुजन उसे देखते तथा उपहार देते हैं।
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रहसना  : अ० [हिं० रहस+ना (प्रत्यय)] आनंदित होना। प्रसन्न होना।
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रहसाना  : स० [सं० रहस्] प्रसन्न करना। प्रसन्न होना। उदाहरण—किछू डेराई किछू रहसाई।—नूरमोहम्मद। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहसि  : स्त्री० [सं० रहस्] १. गुप्त स्थान। २. एकांत स्थान। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रहस्  : पुं० [सं०√रम् (क्रीड़ा)+असुन्, ह-आदेश] १. गुप्त भेद। छिपी बात। २. गूढ़ तत्व या रहस्य। ३. क्रीड़ा। खेल। ४. आनन्द। सुख। ५. एकांत स्थान।
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रहस्य  : पुं० [सं० रहस्+यत्] १. वह बात जो सबको बतलाई न जा सकती हो, कुछ विशिष्ट लोग ही जिसे जानने के अधिकारी माने या समझे जाते हों। गुप्त या भेद की बात। २. किसी चीज या बात के अन्दर छिपा हुआ वह तत्त्व या बात जिसका पता ऊपर से यों ही देखने पर न चलता हो, और फलतः जिसे जानने या समझने के लिए कुछ विशिष्ट पात्रता, बुद्धि-योग्यता आदि की आवश्यकता होती हो। भेद। मर्म। राज। ३. किसी प्रकार या किसी रूप में अन्दर छिपी हुई बात। भेद (सीक्रेट)। क्रि० प्र०—खुलना।—खोलना। ४. आध्यात्मिक क्षेत्र में ईश्वर और उसकी सृष्टि के संबंध के वे गुप्त तत्त्व या भेद जो सब लोग नहीं जानते या नहीं जान सकते और जिनकी अनुभूति केवल सात्विक वृत्तिवाले लोगों के अंतःकरण में ही होती है। पद—रहस्यवाद (देखें)। ५. ऐसा तत्त्व जो केवल दीक्षा के द्वारा अधिकारियों या पात्रों को ही बतलाया जाता हो। ६. एक उपनिषद् का नाम। ७. हँसी-ठट्टा। परिहास। मजाक। वि० १. तत्त्व या विषय) जो सबको ज्ञात न हो अथवा बतलाया न जा सके। २. (कार्य) जो औरों से छिपाकर किया जाय।
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रहस्य-क्रीड़  : पुं० =रहस्य-क्रीड़ा।
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रहस्य-क्रीड़ा  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] एकांत में दूसरों की दृष्टि से दूर रहकर की जानेवाली क्रीड़ा। जैसे—नायक और नायिका की।
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रहस्य-सचिव  : पुं० =मर्म सचिव। (देखें)
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रहस्यवाद  : पुं० [सं० ष० त०] [वि० रहस्यवादी] रहस्य (देखें) अर्थात् ईश्वर तथा सृष्टि के परम तत्त्व या सत्य पर आश्रित और सात्त्विक आत्मानुभूति से संबंध रखनेवाला एक वाद या सिद्धान्त (छायावाद से भिन्न) जो आध्यात्मिक तथा साहित्यिक क्षेत्रों में, परमात्मा के प्रति होनेवाले जीवात्मा के अनुराग या प्रेम के द्योतक का सूचक है। (मिस्टिसिज्म)। विशेष—प्रायः सभी कालों, जातियों और देशों में सात्त्विक वृत्तियोंवाले कुछ ऐसे लोग होते आये है, जो अपने समाज में प्रचलित धार्मिक सिद्धान्त नहीं मानते, और उनसे ऊपर उठकर उसी को आध्यात्मिक सत्य मानकर ईश्वर की उपासना करते हैं जो उनके अंतःकरण से स्फुरित होता है। ऐसे लोग प्रायः संसार से विमुख तथा विरक्त होकर जिस प्रकार अथवा जिस सिद्धान्त के आश्रित होकर परम सत्य का प्रत्यक्ष साक्षात्कार करते और लोक में उसका अभिव्यंजन करते हैं, वही साहित्य में रहस्यवाद कहलाता है। इसके मूल में मनुष्य की वह जिज्ञासा है जो उसके मन में सृष्टि उत्पन्न करनेवाली अलौकिक या लोकोत्तर शक्ति के प्रति उत्पन्न होती है और जिसके साथ वह तादात्म्य स्थापित करना चाहता है।
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रहस्यवादी (दिन्)  : वि० [सं० रहस्यवाद+इनि] रहस्यवाद संबंधी। रहस्यवाद का। पुं० वह जो रहस्यवाद के तत्त्व समझता अथवा उनके सिद्धान्तों का अनुकरण करता हो। रहस्यवाद का अनुयायी।
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रहस्या  : स्त्री० [सं० रहस्य+टाप्] १. एक प्राचीन नदी। (महा०) २. रासना। ३. पाठा।
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रहा-सहा  : वि० [हिं० रहना+सहना (अनु०)] [स्त्री० रही-सही] बहुत थोड़ा बाकी बचा हुआ। बचा-बचाया थोडा सा। जैसे—अब तो उनकी रही-सही प्रतिष्ठा भी नष्ट हो गई।
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रहाइश  : स्त्री०=रिहाइश।
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रहाई  : स्त्री० [हिं० रहना] १. रहने की क्रिया, ढंग या भाव। २. सुखपूर्वक रहने की अवस्था या भाव। ३. आराम। चैन। सुख। स्त्री० [फा०]=रिहाई।
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रहाऊ  : पुं० [हिं० रहना] गीत में का पहला पद। टेक। स्थायी। (पश्चिम)। वि० =रहतिया (माला)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहाना  : अ० [हिं० रहना] १. रहना। उदाहरण—उण बिन पल न रहाऊँ।—मीराँ। २. दोना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहावना  : स्त्री० [हिं० रहना+आवन (प्रत्यय)] वह स्थान जहाँ गाँव भर के सब पशु एकत्र होकर रहते हों। रहुनिया।
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रहि  : स्त्री०=राह (रास्ता)।
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रहित  : वि० [सं०√रह् (त्याग)+क्त] [भाव० रहितत्व] १. समस्त पदों के अन्त में,...के बिना,...के विहीन। जैसे—धन रहित। २. अभावपूर्ण। ३. अलग तथा मुक्त।
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रहितत्व  : पुं० [सं० रहित+त्व] १. रहित होने की अवस्था या स्थिति। २. नियम, बंधन, भार आदि से मुक्त या रहित किये जाने का भाव (एग्जेम्पशन)।
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रहिम  : पुं० [अ०] रहम (गर्भाशय)।
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रहिला  : पुं० [?] चना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहीम  : वि० [अ०] जो रहम करता या तरस खाता हो। करुणावान् तथा दयालु। पुं० १. ईश्वर का एक नाम। २. अब्दुल रहीम खान खानाँ का साहित्यिक उपनाम।
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रहुआ  : पुं० [हिं० रहना] किसी के यहाँ पड़ा रहने तथा उसकी रोटियों पर पलनेवाला व्यक्ति। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रहूगण  : पुं० [सं०] १. अंगिरस् गोत्र के अन्तर्गत एक शाखा या गण। (गौतम ऋषि इसी वंश के थे)। २. उक्त वंश का व्यक्ति।
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