रहस्यवाद/rahasyavaad

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रहस्यवाद  : पुं० [सं० ष० त०] [वि० रहस्यवादी] रहस्य (देखें) अर्थात् ईश्वर तथा सृष्टि के परम तत्त्व या सत्य पर आश्रित और सात्त्विक आत्मानुभूति से संबंध रखनेवाला एक वाद या सिद्धान्त (छायावाद से भिन्न) जो आध्यात्मिक तथा साहित्यिक क्षेत्रों में, परमात्मा के प्रति होनेवाले जीवात्मा के अनुराग या प्रेम के द्योतक का सूचक है। (मिस्टिसिज्म)। विशेष—प्रायः सभी कालों, जातियों और देशों में सात्त्विक वृत्तियोंवाले कुछ ऐसे लोग होते आये है, जो अपने समाज में प्रचलित धार्मिक सिद्धान्त नहीं मानते, और उनसे ऊपर उठकर उसी को आध्यात्मिक सत्य मानकर ईश्वर की उपासना करते हैं जो उनके अंतःकरण से स्फुरित होता है। ऐसे लोग प्रायः संसार से विमुख तथा विरक्त होकर जिस प्रकार अथवा जिस सिद्धान्त के आश्रित होकर परम सत्य का प्रत्यक्ष साक्षात्कार करते और लोक में उसका अभिव्यंजन करते हैं, वही साहित्य में रहस्यवाद कहलाता है। इसके मूल में मनुष्य की वह जिज्ञासा है जो उसके मन में सृष्टि उत्पन्न करनेवाली अलौकिक या लोकोत्तर शक्ति के प्रति उत्पन्न होती है और जिसके साथ वह तादात्म्य स्थापित करना चाहता है।
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रहस्यवादी (दिन्)  : वि० [सं० रहस्यवाद+इनि] रहस्यवाद संबंधी। रहस्यवाद का। पुं० वह जो रहस्यवाद के तत्त्व समझता अथवा उनके सिद्धान्तों का अनुकरण करता हो। रहस्यवाद का अनुयायी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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