लक्ष्योपमा/lakshyopama

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लक्ष्योपमा  : स्त्री० [सं० लक्ष्य-उपमा, मध्य० स०] साहित्य में उपमा अलंकार का एक भेद जिसमें सम, समान आदि शब्दों या इनके वाचक अन्य शब्दों का प्रयोग न करके यह कहा जाता है कि यह वस्तु अमुक कोटि या वर्ग की है, उसे लज्जित करती है, उससे होड़ करती है अथवा इसने उससे अमुक गुण या बात चुरा या छीन ली हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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