शब्द का अर्थ
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					वट					 :
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					पुं० [सं०√वट् (लपेटना)+अच्] १. बरगद का पेड़। २. कौड़ी। ३. गोली। ४. वटिका। ५. छोटा गेंद। ६. शून्य। ७. एक प्रकार की रोटी। ८. रस्सी। ९. एकरूपता। १॰. एक पक्षी।				 | 
			
			
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					वट-गमनी					 :
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					स्त्री० [हिं० वाट=मार्ग+गमन, चलना] एक प्रकार का मैथिली लोक गीत जो उत्सवों, मेलों आदि में तथा वर्षा-ऋतु में स्त्रियाँ गाती हैं। इसके प्रत्येक चरण के अन्त में ‘सजनी’ शब्द आता है इसीलिए इसे ‘सजनी’ भी कहते हैं।				 | 
			
			
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					वट-पत्रा					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] एक तरह की चमेली।				 | 
			
			
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					वट-पत्री					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] पथरफोड़ नामक वनस्पति।				 | 
			
			
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					वट-सावित्री-व्रत					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] सौभाग्यवती स्त्रियों का एक त्यौहार जो जेठ वदी अमावस को होता है। इसमें सौभाग्य स्थिर रखने की कामना से वट और सावित्री का पूजन किया जाता है।				 | 
			
			
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					वटक					 :
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					पुं० [सं० वट+कन्] १. बड़ी टिकिया या गोला। बट्टा। २. पकौड़ी आदि पकवान। आठ मासे की एक पुरानी तौल।				 | 
			
			
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					वटर					 :
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					पुं० [सं० वट+अरन्] १. चोर। २. बटेर पक्षी। ३. बिस्तर। बिछौना। ४. उष्णीष। पगड़ी। ५. मथानी।				 | 
			
			
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					वटिक					 :
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					पुं० [सं०√वट्+इन्+कन्] शतरंज का मोहरा।				 | 
			
			
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					वटिका					 :
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					स्त्री० [सं०√वटिक+टाप्] गोली, टिकिया या बटी।				 | 
			
			
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					वटु					 :
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					पुं० [सं०√वट्+उ०] १. बालक। २. ब्रह्मचारी।				 | 
			
			
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					वटुक					 :
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					पुं० [सं० वटु+कन्] १. बालक। २. ब्रह्मचारी का एक विशिष्ट रूप।				 | 
			
			
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					वटोदका					 :
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					स्त्री० [सं० वट-उदक, ब० स०+टाप्] एक पवित्र नदी। (भागवत)।				 | 
			
			
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