शब्द का अर्थ
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					वाज					 :
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					पुं० [सं०√वच्+घञ्] १. घृत। घी। २. यज्ञ। ३. अन्न। ४. जल। ५. संग्राम। ६. बल। ७. बाण के पीछे का पंजा। ८. पलक। ९. वेग। १॰. मुनि। ११. आवाज। शब्द।				 | 
			
			
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					वाज					 :
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					पुं० [अ० व्ज] १. उपदेश। २. विशेषतः धार्मिक उपदेश।				 | 
			
			
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					वाजपति					 :
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					पुं० [सं०] अग्नि।				 | 
			
			
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					वाजपेई					 :
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					पुं०=वाजपेयी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					वाजपेय					 :
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					पुं० [सं०] सात श्रौत यज्ञों में से पाँचवाँ यज्ञ जो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।				 | 
			
			
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					वाजपेयक					 :
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					वि० [सं० वाजपेय+कन्] वाजपेय-सम्बन्धी।				 | 
			
			
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					वाजपेयी					 :
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					पुं० [सं० वाजपेय+इनि] वह पुरुष जिसने वाजपेय यज्ञ किया हो। २. कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के एक प्रतिष्ठित वर्ग की उपाधि। ३. उक्त के आधार पर बहुत बड़ा कुलीन या धर्म-निष्ठ व्यक्ति। उदाहरण–कौन धौ सोमजाजी, अजामिल, कौन गजराज धौ बाजपेई।–तुलसी।				 | 
			
			
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					वाजप्य					 :
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					पुं० [सं०] एकगोत्रकार ऋषि। इनके गोत्र के लोग वाजप्यायन कहलाते हैं।				 | 
			
			
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					वाजप्यापन					 :
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					पुं० [सं०] वाजप्य ऋषि के गोत्र का व्यक्ति।				 | 
			
			
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					वाजबी					 :
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					वि०=वाजिबी।				 | 
			
			
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					वाजभोजी (जिन्)					 :
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					पुं० [वाज्√भुज् (खाना)+णिनि] बाजपेय यज्ञ।				 | 
			
			
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					वाजश्रव					 :
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					पुं० [सं०] एक गोत्र प्रवर्तक ऋषि।				 | 
			
			
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					वाजश्रवा (वस्)					 :
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					पुं० [सं०] १. अग्नि। २. एक गोत्र प्रवर्तक ऋषि ३. एक ऋषि जिनके पुत्र का नाम ‘नचिकेता’ था और जो अपने पिता के क्रुद्ध होने पर यमराज के पास ज्ञान प्राप्त करने गये थे।				 | 
			
			
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					वाजसनेय					 :
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					पुं० [सं० वाजसनि+ठक्-एय] १. यजुर्वेद की एक शाखा जिसे याज्ञवल्क्य ने अपने गुरु वैशपायन पर क्रुद्ध होकर उनकी पढ़ाई हुई विद्या उगलने पर सूर्य के तप से प्राप्त की थी। २. याज्ञवल्क्य ऋषि।				 | 
			
			
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					वाजसनेयक					 :
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					वि० [सं० वाजसनेय+कन्] १. याज्ञवल्क्य से संबद्ध। २. वाजसनेय।				 | 
			
			
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					वाजा					 :
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					वि० [अ० वाजऽ] ज्ञात। विदित। जैसे–आपको यह बात वाजा रहे।				 | 
			
			
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					वाजित					 :
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					वि० [सं० वाज+इतच्] १. पंखवाला। २. (तीर या वाण) जिसमें पंख लगे हों।				 | 
			
			
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					वाजिन					 :
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					पुं० [सं० वाज+इनि-अण] १. शक्ति। २. होड़। ३. संघर्ष।				 | 
			
			
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					वाजिनी					 :
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					स्त्री० [सं० वाजिन√ङीष्] १. घोड़ी। २. असगंध।				 | 
			
			
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					वाजिब					 :
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					वि० [अ०] १. उचित। २. संगत।				 | 
			
			
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					वाजिबी					 :
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					वि०=वाजिब।				 | 
			
			
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					वाजिभ					 :
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					पुं० [सं०] अश्विनी नक्षत्र।				 | 
			
			
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					वाजिमेध					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] अश्वमेघ।				 | 
			
			
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					वाजिराज					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. विष्णु। २. उच्चैश्रवा।				 | 
			
			
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					वाजिशिरा					 :
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					पुं० [सं० वाजिशिरस्+ब० स०] विष्णु का एक अवतार।				 | 
			
			
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					वाजी (जिन्)					 :
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					पुं० [सं० वाज+इनि] १. घोड़ा। २. वासक। अड़ूसा। ३. हवि। ४. फटे हुए दूध का पानी।				 | 
			
			
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					वाजीकर					 :
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					वि० [सं० वाजी√कृ (करना)+अच्] (औषध) जिससे स्त्री-संभोग की शक्ति बढ़ती हो।				 | 
			
			
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					वाजीकरण					 :
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					पुं० [सं० वाज+च्वि√कृ (करना)+ल्युट-अन] एक प्रक्रिया जिससे पुरुष में घोड़े की शक्ति आ जाती है।				 | 
			
			
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