शब्द का अर्थ
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					वान					 :
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					पुं० [सं०√वा (गमनादि)+ल्युट्–अन] १. गति। २. सुरंग। ३. सुगंध। ४. पानी में लगनेवाला हवा का झोंका। ५. चटाई। प्रत्य० [सं० वान्] एक प्रत्यय जो कुछ सवारियों के नामों के अंत में लगकर उन्हें चलाने या हाँकनेवाले का सूचक होता है। जैसे—एक्कावान, गाड़ीवान। वि० [सं०] १. वन-संबंधी। जंगल का। २. सूखा या सुखाया हुआ। पुं० १. बड़ा और घना जंगल। २. जल आदि का बहाव या आगे बढ़ना। ३. सूखा फल। (ड्राई फ्रूट)। ४. महक। सुगंधि। ५. यम।				 | 
			
			
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					वान-दंड					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] करघे की वह लकड़ी जिसमें बुनने के लिए बाना लपेटा रहता है।				 | 
			
			
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					वान-वासिका					 :
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					स्त्री० [सं० वानवास+कन्+टाप्, इत्व] सोलह मात्राओं के छन्दों या चौपाइयों का एक भेद, जिसमें नवीं और बारहवीं मात्राएँ लघु होती हैं।				 | 
			
			
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					वानक					 :
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					पुं० [सं० वान+कन्] ब्रह्मचर्यावस्था।				 | 
			
			
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					वानप्रस्थ					 :
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					पुं० [सं० वन+प्र√स्था (ठहरना)+कु, वनप्रस्थ+अण्] १. भारतीय आर्यों में जीवन-यापन के चार शास्त्र विहित आश्रमों या विभागों में से एक जो गृहस्थ आश्रम के उपरान्त और संन्यास से पहले आता है और जिसमें मनुष्य ५॰ वर्ष का हो जाने पर पचीस वर्षों तक वनों में घूमता-फिरता रहता है। २. महुए का पेड़। ३. पलास।				 | 
			
			
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					वानर					 :
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					पुं० [सं०] १. ऐसा प्राणी जो पूरी तरह से तो नर या मनुष्य न हो, फिर भी उससे बहुत कुछ मिलता-जुलता हो। जैसे—गोरिल्ला, चिम्पांजी आदि। २. बन्दर। ३. दोहे का एक लघु भेद जिसके प्रत्येक चरण में १॰ गुरु और २८ लघु होते हैं।				 | 
			
			
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					वानर-युद्ध					 :
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					पुं० [सं०] दे० ‘छापामार लड़ाई’।				 | 
			
			
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					वानर-सेना					 :
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					स्त्री० [सं०] छोटे-छोटे बच्चों का दल जो कोई विशिष्ट कार्य करने के लिए नियुक्त हो।				 | 
			
			
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					वानरी					 :
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					वि० [सं०] १. वानर-सम्बन्धी। बन्दर का। २. वानर या बन्दर की तरह का। जैसे—वानरी तप। स्त्री० १. बन्दर की मादा। बँदरिया। २. केंवाच। कौंछ।				 | 
			
			
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					वानरी तप					 :
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					पुं० [सं०] एक प्रकार का तप या तपस्या जो बन्दरों की तरह बराबर वृक्षों पर ही रहकर और उनके पत्ते, फल आदि खाकर की जाती है।				 | 
			
			
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					वानवासक					 :
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					पुं० [सं० वानवास+कन्] वैदेही माता से उत्पन्न वैश्य का पुत्र।				 | 
			
			
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					वानस्पतिक					 :
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					वि० [सं०] १. वनस्पति सम्बन्धी। वनस्पति का। २. वनस्पति के द्वारा बनने या होनेवाला । जैसे–वानस्पतिक खाद या तैल।				 | 
			
			
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					वानस्पतिक खाद					 :
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					स्त्री० [सं०+हिं] गोबर, मल, पौधों आदि के मिश्रण से बनाई हुई खाद। कूड़े आदि से बनी खाद (कम्पोस्ट)।				 | 
			
			
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					वानस्पत्य					 :
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					पुं० [सं० वनस्पति+ण्य] १. वह वृक्ष जिसमें पहले फूल लगकर पीछे फल लगते हैं। जैसे–आम, जामुन आदि। २. वनस्पतियों का वर्ग या समूह। ३. वनस्पतियों के तत्त्वों और उनकी वृद्धि, पोषण आदि से सम्बन्ध रखनेवाला शास्त्र। (आरबोरिकल्चर)। वि०=वानस्पतिक।				 | 
			
			
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					वानाचार					 :
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					पुं० [सं०] दे० ‘वाम-मार्ग’।				 | 
			
			
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					वानिक					 :
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					वि० [सं० वन+ठक्–इक] १. जंगली। वन्य। २. जंगल में रहनेवाला। वनवासी।				 | 
			
			
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					वानीर					 :
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					पुं० [सं० वन+ईरन+अण्] १. बेंत। २. पाकर वृक्ष।				 | 
			
			
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					वानेय					 :
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					पुं० [सं० वन+ढञ्-एय] केवड़ी मोथा। वि० १. वन में रहने या होनेवाला। २. जल संबंधी।				 | 
			
			
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					वान्					 :
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					प्रत्य० [सं०] [स्त्री० वती] एक संस्कृत प्रत्यय जो कुछ शब्दों के अंत में लग कर युक्त या संपन्न होने का सूचक होता है। जैसे—ऐश्वर्यवान्, धैर्यवान् आदि।				 | 
			
			
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					वान्य					 :
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					वि० [सं० वन+ण्य] वन-संबंधी। वन का। जंगली।				 | 
			
			
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