शब्द का अर्थ
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					वारि					 :
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					पुं० [सं०√वृ (रोकना)+णिच्-इञ्, अथवा वृ+इण्] १. जल। पानी। २. कोई तरल द्रव या पदार्थ। ३. वाणी। सरस्वती। ४. हाथी बाँधने का सिक्कड़। ५. छोटा गगरा या घड़ा। ६. सुगन्ध बाला।				 | 
			
			
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					वारि-केय					 :
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					पुं० [वारिका+ढक्–एय] दे० ‘जल-लेखी’।				 | 
			
			
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					वारि-कोल					 :
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					पुं० [सं०] कच्छप। कछुआ।				 | 
			
			
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					वारि-गर्भ					 :
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					पुं० [ब० स०] बादल। मेघ।				 | 
			
			
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					वारि-चर					 :
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					वि० [सं०] पानी में रहने और चलने फिरने वाला जलचर। पुं० १. मछली आदि जीव-जन्तु जो पानी में रहते हैं। २. शंख।				 | 
			
			
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					वारि-रथ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] जहाज या यान।				 | 
			
			
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					वारि-रुह					 :
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					पुं० [वारि√रुह् (उत्पन्न होना)+क] कमल।				 | 
			
			
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					वारि-वर्त					 :
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					पुं० [सं० वारि+आवर्त] मेघ। बादल।				 | 
			
			
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					वारि-वास					 :
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					पुं० [सं०] मद्य के निर्माण या व्यापारी।				 | 
			
			
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					वारि-वाह					 :
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					पुं० [सं०] १. मेघ। बादल। २. नागर मोथा।				 | 
			
			
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					वारि-वाहन					 :
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					पुं० [ष० त०] मेघ। बादल।				 | 
			
			
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					वारि-शास्त्र					 :
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					पुं० [सं०] १. फलित ज्योतिष का वह अंग जिससे यह जाना जाता है कि कब, कहाँ और कितनी वर्षा होगी। २. दे० ‘वारिकेय’।				 | 
			
			
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					वारिकफ					 :
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					पुं० [ष० त०] समुद्र।				 | 
			
			
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					वारिज					 :
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					वि० [सं०] जल में या जल से उत्पन्न होनेवाला। पुं० १. कमल। २. मछली। ३. शंख। ४. घोंघा। ५. कौड़ी। ६. खरा और बढ़िया सोना। ७. द्रोणी लवण।				 | 
			
			
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					वारिजात					 :
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					वि० पुं० [सं०]=वारिज।				 | 
			
			
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					वारित					 :
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					भू० कृ० [सं०] जिसका वारण किया गया या हुआ हो। मना किया हुआ।				 | 
			
			
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					वारित्र					 :
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					पुं० [सं० वारि√त्रा (रक्षा करना)+ड] अविहित या निन्दनीय आचरण।				 | 
			
			
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					वारिद					 :
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					पुं० [सं०] १. बादल। मेघ। २. नागर मोथा। वि० [अ०] जो आकर उपस्थित या घटित हुआ हो। सामने आया हुआ आगत। विशेष–वारिदात इसी का बहुवचन है जो हिन्दी में ‘वारदात’ (देखें) के रूप में प्रचलित है।				 | 
			
			
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					वारिदात					 :
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					स्त्री० [अ०]=वारदात।				 | 
			
			
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					वारिधर					 :
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					पुं० [सं०] १. बादल। मेघ। २. नागर मोथा। ३. एक प्रकार का सम वृत्त वर्णिक छन्द जिसके प्रत्येक चरण में रगण, नगण और दो भगण होते हैं।				 | 
			
			
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					वारिधि					 :
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					पुं० [सं०] समुद्र।				 | 
			
			
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					वारिनाथ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. वरुण। २. समुद्र। ३. बादल। मेघ।				 | 
			
			
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					वारिनिधि					 :
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					पुं० [सं०] समुद्र।				 | 
			
			
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					वारिपर्णी					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] १. जलकुंभी। २. पानी में होनेवाली काई।				 | 
			
			
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					वारियंत्र					 :
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					पुं० [सं०] फुहारा।				 | 
			
			
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					वारियाँ					 :
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					अव्य० [हिं० वारना] मैं तुम पर निछावर हूँ (स्त्रियाँ)। मुहावरा– बारियाँ जाऊँ=दे० ‘वारा’ के अन्तर्गत मुहा०–‘वारी जाऊँ’। वारियाँ लेना=बार-बार निछावर होना। (विशेष दे० ‘वारना’ और ‘वारा’ के अन्तर्गत)।				 | 
			
			
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					वारिस					 :
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					पुं० [अ०] १. वह जिसे किसी की विरासत मिले। २. उत्तराधिकारी। व्यापक क्षेत्र में, जिसने अपने आपको किसी दूसरे के कार्यों का संचालन करने के योग्य बना लिया हो।				 | 
			
			
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