शब्द का अर्थ
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					वियो					 :
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					वि०=विय (दूसरा)।				 | 
			
			
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					वियोग					 :
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					पुं० [वि√युज् (संयोग होना)+घञ्, मध्यम० स०] १. योग न होने की अवस्था या भाव। पार्थक्य। २. ऐसी अवस्था जिसमें दो जीव विशेषतः प्रेमी एक दूसरे से दूर हों और इस प्रकार उनमें मिलन न होता हो। ३. उक्त अवस्था के फलस्वरूप प्रेमियों को होनेवाला कष्ट। ४. किसी का सदा के लिए बिछुड़ना। मरने के कारण होनेवाला अलगाव। ५. उक्त के फलस्वरूप होनेवाला शोक।				 | 
			
			
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					वियोग-श्रृंगार					 :
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					पुं० [सं०] साहित्य में श्रृंगार रस का वह अंग या विभाग जिसमें विरही की दशा का वर्णन होता है। २. संयोग श्रृंगार का जिसमें विरही की दशा का वर्णन होता है। विप्रलंभ। ३. ‘संयोग श्रृंगार’ का विपर्याय।				 | 
			
			
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					वियोगांत					 :
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					वि० [सं० ब० स०] (कथा-कहानी या नाटक) जिसके अंतिम दृश्य में प्रेमी, मित्र आदि के वियोग का वर्णन हो।				 | 
			
			
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					वियोगिन					 :
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					स्त्री०=वियोगिनी।				 | 
			
			
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					वियोगिनी					 :
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					वि० [वियोगिन्+ङीष्] जो नायक, पतिया प्रिय के पर देश चले जाने पर उसके विरह में दुःखी हो। स्त्री० विरहनी नायिका।				 | 
			
			
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					वियोगी (गिन्)					 :
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					वि० [सं० वियोगिन्] [स्त्री० वियोगिनी] १. जिसका किसी से वियोग हुआ हो। २. विरही। पुं० १. नायक जो नायिका से वियुक्त होने पर दुःखी हो। २. चकवा पक्षी। चक्रवाक।				 | 
			
			
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					वियोजक					 :
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					वि० [सं० वि√युज् (मिलना)+णिच्+ण्वुल-अक] [स्त्री० वियोजिका] वियोजन करने-वाला। पृथक् करनेवाला। पुं० गणित में वह छोटी संख्या जो किसी बड़ी संख्या में से घटाई गई हो।				 | 
			
			
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					वियोजन					 :
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					पुं० [सं० वि√युज् (मिलना)+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० वियोजित, वियुक्त] १. वियोग होना। योग का अभाव। २. जुदाई। वियोग। ३. गणित में एक संख्या (या राशि) में से दूसरी संख्या या राशि घटाने की क्रिया।				 | 
			
			
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					वियोजित					 :
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					भू० कृ० [सं० वि√युज् (मिलना)+णिच्+क्त] १. जिसका किसी से वियोग हुआ हो। २. जिसे बलात् किसी से अलग या जुदा कर दिया गया हो। ३. वंचित।				 | 
			
			
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					वियोज्य					 :
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					वि० [सं० वि√युज् (मिलना)+क्त] १. जिसका वियोजन हो सके या होने को हो। २. (गणित में संख्या) जिसमें से कोई छोटी संख्या घटाई जाने को हो।				 | 
			
			
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