शब्द का अर्थ
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					व्यवहार					 :
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					पुं० [सं० वि+अव√हृ+घञ्] १. क्रिया। काम। २. निर्णय, विचार आदि कार्यान्वित करना। ३. दूसरों से किया जानेवाला बरताव। ४. वस्तु आदि का किया जानेवाला उपभोग या भोग। काम में लाना। ५. रूपये-पैसे लेन-देन आदि का काम। महाजनी। ६. मुकदमा। ७. किसी मुकदमे से संबंध रखनेवाली उसकी सारी प्रक्रिया। ८. न्याय। ९. शर्त। १॰. स्थिति।				 | 
			
			
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					व्यवहार-दर्शन					 :
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					पुं० [सं०] दे० ‘आचार-शास्त्र’।				 | 
			
			
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					व्यवहार-निरीक्षक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] वह अधिकारी जो सरकार की ओर से मुकदमे की पैरवी करता हो (कोर्टइन्स्पेक्टर)।				 | 
			
			
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					व्यवहार-पाद					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. व्यवहार के पूर्वपक्ष उत्तर, क्रिया पाद और निर्णय इन चारों का समूह। २. उक्त चारों में से कोई एक जो व्यवहार का एक पाद या अंश माना जाता है।				 | 
			
			
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					व्यवहार-मातृका					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] न्यायालय के दृष्टिकोण तथा विधि के अनुसार होनेवाली कार्रवाई। (स्मृति)				 | 
			
			
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					व्यवहार-विधि					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] वह शास्त्र जिसमें अपराधों का विवेचन तथा अपराधियों को समुचित दण्ड की व्यवस्था होती है। धर्मशास्त्र।				 | 
			
			
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					व्यवहार-शास्त्र					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] दे० ‘व्यवहार-विधि’।				 | 
			
			
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					व्यवहार-सिद्धि					 :
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					[सं० ष० त०] व्यवहार शासत्र के अनुसार अभियोगों का निर्णय करना।				 | 
			
			
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					व्यवहारक					 :
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					पुं० [सं० व्यवहार+कन्] १. वह जिसकी जीविका व्यवहार से चलती हो। २. वह जो न्याय या वकालत आदि करता हो। ३. वह जो व्यवहारों के लिए उचित उमर तक पहुँच चुका हो। वयस्क। बालिंग है।				 | 
			
			
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					व्यवहारजीवी (विन्)					 :
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					पुं० [सं० व्यवहार√जीव् (जीवित होना)+णिनि] वह जो व्यवहार अर्थात् मुकदमेबाजी या वकालत आदि के द्वारा अपनी जीविका चलाता हो।				 | 
			
			
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					व्यवहारज्ञ					 :
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					पुं० [सं० व्यवहार√ज्ञा (जानना)+क] १. वह जो व्यवहार शास्त्र का ज्ञाता हो। २. वयस्क। बालिग।				 | 
			
			
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					व्यवहारतः					 :
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					अव्य० [सं० व्यवहार+तस्] १. व्यवहार अर्थात् बरताव के विचार से। २. प्रायोगिक दृष्टि से जिस रूप में होना चाहिए, ठीक उसी रूप में।				 | 
			
			
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					व्यवहारत्व					 :
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					पुं० [सं० व्यवहार+त्व] व्यवहार का धर्म या भाव।				 | 
			
			
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					व्यवहारांग					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] व्यवहार के ये दो अंग दीवानी कानून और फौजदारी कानून।				 | 
			
			
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					व्यवहारासन					 :
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					पुं० [सं० ष० त० च० त० वा] वह आसन जिस पर बैठकर न्यायाधीश मुकदमें सुनते तथा अपना निर्णय सुनाते हैं।				 | 
			
			
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					व्यवहारास्पद					 :
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					पुं० [सं०] वह निवेदन जो वादी अपने अभियोग के संबंध से राजा अथवा न्यायकर्ता के सम्मुख करता हो। नालिश। फरियाद।				 | 
			
			
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					व्यवहारिक					 :
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					वि० [सं० व्यवहार+ठक्-इक] १. जो व्यवहार के लिए उपयुक्त या ठीक हो। व्यवहार योग्य। २. जो साधारणतः व्यवहार या उपयोग में आता हो। व्यावहारिक।				 | 
			
			
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					व्यवहारिक जीव					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] वेदांत के अनुसार विज्ञानमय कोश जो ज्ञानेन्द्रिय के साथ बुद्धि के संयुक्त होने पर प्रस्तुत होता है।				 | 
			
			
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					व्यवहारिका					 :
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					स्त्री० [सं० व्यवहारिक+टाप्] संसार में रहकर उसके सब व्यवहार या कार्य करना। दुनियादारी।				 | 
			
			
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					व्यवहारी (रिन्)					 :
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					वि० [सं० व्यवहार+इनि] १. व्यवहार करनेवाला। २. व्यवसाय में लगा हुआ। ३. (आचरण आदि) जिसका सामान्यतः उपयोग किया जाता है। ४. मुकदमा लड़नेवाला।				 | 
			
			
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					व्यवहार्य					 :
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					वि [सं० वि+अव√हृ (हरण करना)+ण्यत्] जो व्यवहार में आने के योग्य हो। जिसका व्यवहार हो सके।				 | 
			
			
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